IPC की धारा 81 — कार्य, जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिए किया गया है –
कोई बात केवल इस कारण अपराध नहीं है कि वह यह जानते हुए की गई है कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, यदि वह अपहानि कारित करने के किसी आपराधिक आशय के बिना और व्यक्ति या संपत्ति को अन्य अपहानि का निवारण या परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक की गई हो।
स्पष्टीकरण - ऐसे मामले में यह तथ्य का प्रश्न है कि जिस अपहानि का निवारण या परिवर्जन किया जाना है। क्या वह ऐसी प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि वह कार्य, जिससे यह जानते हुए कि उससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, करने की जोखिम उठाना न्यायानुमत या माफी योग्य था।
दृष्टांत –
(क) क, जो एक वाष्प जलयान का कप्तान है, अचानक और अपने किसी कसूर या उपेक्षा के बिना अपने आपको ऐसी स्थिति में पाता है कि यदि उसने जलयान का मार्ग नहीं बदला तो इससे पूर्व कि वह अपने जलयान को रोक सके वह बीस या तीस यात्रियों से भरी नाव ख को अनिवार्यतः टकराकर डुबो देगा, और कि अपना मार्ग बदलने से उसे केवल दो यात्रियों वाली नाव ग को डुबोने की जोखिम उठानी पड़ती है।जिसको वह संभवत: बचाकर निकल जाए। यहाँ यदि क नाव ग को डुबोने के आशय के बिना और ख के यात्रियों के संकट का परिवर्जन करने के प्रयोजन से सद्भावपूर्वक अपना मार्ग बदल देता है तो यद्यपि वह नाव ग को ऐसे कार्य द्वारा टकराकर डुबो देता है, जिससे ऐसे परिणाम का उत्पन्न होना वह संभाव्य जानता था, तथापि तथ्यतः यह पाया जाता है कि वह संकट जिसे परिवर्जित करने का उसका आशय था, ऐसा था जिससे नाव ग को डुबोने की जोखिम उठाना माफी योग्य है, तो वह किसी अपराध का दोषी नहीं है।
(ख) क एक बड़े अग्निकाण्ड के समय आग को फैलने से रोकने के लिए गृहों को गिरा देता है। वह इस कार्य को मानव जीवन या संपत्ति को बचाने के आशय से सद्भावनापूर्वक करता है। यहां, यदि यह पाया जाता है कि निवारण की जाने वाली अपहानि इस प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि क का कार्य माफी योग्य है तो क उस अपराध का दोषी नहीं है।
IPC की धारा 81 के प्रमुख अवयव क्या हैं ? |
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(i) अभियुक्त द्वारा कोई कृत्य (जिसमें अवैध लोप भी शामिल है) किया गया हो, (ii) ऐसा कार्य इस ज्ञान के साथ किया जा रहा हो कि उससे अपहानि संभाव्य है, (iii) प्रश्नगत कृत्य अभियुक्त द्वारा क्षति कारित करने के आपराधिक आशय से मुक्त रहा हो. (iv) कृत्य सद्भावनापूर्ण रहा हो, (v) अभियुक्त द्वारा प्रश्नगत कृत्य व्यक्ति या सम्पत्ति की किसी अन्य क्षति के निवारण हेतु किया गया हो। |
IPC की धारा 81 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
आर० बनाम डड्ले एवं स्टीफेन (1884) 14 क्यू० बी० डी० 273.
के वाद में डड्ले, स्टीफेन एवं ब्रुक्स नामक तीन वयस्क व्यक्ति और पार्कर नामक एक लड़का एक तूफान में समुद्र में बह गये थे, जब वे एक खुली नाव में यात्रा कर रहे थे। कुछ दिनों की यात्रा करने के पश्चात् उनके पास रखी हुई भोजन सामग्री और पानी समाप्त हो गया। अट्ठारह दिनों के बीतने के पश्चात् डड्ले ने ब्रुक्स को सलाह दिया कि लड़के की बलि दे दी जाय । किन्तु ब्रुक्स इस बात के लिये राजी नहीं हुआ। बीसवें दिन डड्ले ने स्टीफेन की सलाह लेकर, किन्तु ब्रुक्स की सलाह के बिना ही लड़के को मार डाला और तीनों ने चार दिनों तक उसी के मांस को खाया। जब तीनों वयस्क सुरक्षित वापस लाये गये तो यह पाया गया कि लड़के की हालत बहुत नाजुक हो गयी थी और इस बात की सम्भावना थी कि वह तीनों से पहले मरता । यदि नाविकों ने लड़के के मांस को अपने भोजन के लिये इस्तेमाल न किया होता तो वे जीवित न बचे होते और लड़के को मार कर खाने के सिवा जीवित बचने का कोई साधन नहीं था। यह निर्णीत हुआ कि ऐसी कोई आवश्यकता नहीं थी जो अभियुक्तों के इस कार्य को न्यायोचित ठहरा सके। फलतः वे 'हत्या के दोषी हैं। आवश्यकता के सिद्धान्त का बचाव नही मिला |
आर0 बनाम बी0 हवी फुद्देखान, 17 बाम्बे 626
कोई व्यक्ति के घर में लगी आग को बुझाने के उद्देश्य से आशायित घर में अनाधिकृत प्रवेश करता है तो उसका ऐसा कार्य आईपीसी(IPC) की धारा 81 के तहत अपराध नहीं माना जायेगा।
विशम्भर बनाम रूमल ए० आई० आर० 1951 इला० 500.
के वाद में परिवादी को उसका चेहरा काला कर पूरे गाँव में घुमाया गया तथा अभियुक्तों, जो कि पंचायत के सदस्य थे, के आदेश पर उसे जूतों से पीटा गया क्योंकि परिवादी ने एक चमार की लड़की के साथ छेड़छाड़ किया था और इसके फलस्वरूप उस समुदाय के लगभग 200 आदमी हथियारों तथा लाठियों से लैस होकर उसे दण्डित करना चाहते थे। अभियुक्तों को भारतीय दण्ड संहिता की धाराओं 323 तथा 506 के अन्तर्गत अभियोजित किया गया। यह निर्णय दिया गया कि चूँकि अभियुक्तों ने सद्भाव में बिना किसी आपराधिक आशय के परिवादी को उसके अभद्र कार्य के घातक परिणामों से उसे बचाने हेतु हस्तक्षेप किया, इतना ही नहीं अभियुक्तों ने परिवादी की सहमति लिखित रूप में उसके लाभ के लिये प्राप्त कर लिया था, अतः वे IPC की धारा 81 और 87 का लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं और वे आरोपित अपराध हेतु दण्डनीय नहीं हैं।
आर0 बनाम धनिया दाजी, 1868 (5) बी० एच० सी० (क्रि0) 59
जहाँ पर बर्तन में रखी गयी ताड़ी को बार-बार चुरा लिये जाने के कारण अभियुक्त चोर का पता लगाने के उद्देश्य से ताड़ी के बर्तन में जहर रखा देता है किन्तु कतिपय सैनिक उसे ताड़ी समझकर खरीद कर पी लेते हैं तो ऐसी दशा में अभियुक्त द्वारा चोर का पता लगाने के प्रयोजन से किया गया उक्त कार्य आईपीसी(IPC) की धारा 81 के अधीन संरक्षित नहीं माना जायेगा तथा अभियुक्त धारा 328 के अधीन दोषसिद्धि के लिए उत्तरदायी होगा ।
गोपाल नाडयू बनाम इम्परर, 1922 (46) मद्रास 605
कोई मजिस्ट्रेट लोकहित की सुरक्षा में एक मदमत्त व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेता है, तो मजिस्ट्रेट द्वारा किया गया उक्त कार्य अपराध की कोटि में नहीं आयेगा तथा वह आईपीसी(IPC) की धारा 81 द्वारा संरक्षित माना जायेगा ।
IPC की धारा 81 FAQ
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भारतीय दण्ड संहिता की कौन सी धारा आवश्यकता के सिद्धान्त से सम्बन्ध रखती है ?
IPC की धारा 81
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IPC की धारा 81 के लिए कौन आवश्यक तत्व नहीं है?
यदि कार्य व्यक्ति या सम्पत्ति को दूसरी हानि से रोकने या बचाने के उद्देश्य से किया गया है।
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नष्ट हुए जहाज के कारण दो व्यक्ति एक लकड़ी के लट्ठे पर जो दोनों का भार सहन नहीं कर सकता, चिपके हुए हैं। उनमें से प्रथम दूसरे को धक्का देता है, जिससे कि दूसरा डूब जाता है। प्रथम का दायित्व क्या होगा?
व्यक्ति दायी नहीं है। आपराधिक दायित्व से मुक्त है, कोई अपराध नहीं, होने के कारणा।
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कौन सा वाद ‘आवश्यकता’ की प्रतिरक्षा से सम्बन्धित है ?
आर. बनाम डडले और स्टीफेन (1884) सिद्धान्त- अनेक व्यक्तियों के जीवन की रक्षा के लिए किसी एक की हत्या करने की अनुमति ‘आवश्यकता’ के आधार पर नहीं दी जा सकती है।’ भारत में भी अनुसरित
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IPC की धारा 81 क्या है ?
IPC की धारा 81 — कार्य, जिससे अपहानि कारित होना संभाव्य है, किन्तु जो आपराधिक आशय के बिना और अन्य अपहानि के निवारण के लिए किया गया है –
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IPC की धारा 81 मूलतः किस नीति का अनुसरण करती है ?
IPC की धारा 81 मूलतः इस नीति का अनुसरण करती है कि जहाँ दो अपहानियों में से एक अवश्यम्भावी हो वहाँ बड़ी एवं व्यापक अपहानि के निवारणार्थ छोटी एवं सीमित अपहानि का जोखिम) उठाना क्षम्य या औचित्यपूर्ण होगा।
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A एक बड़े अग्निकांड के समय आग को फैलने से रोकने के लिए गृहों को गिरा देता है, वह इस कार्य को मानव जीवन या सम्पत्ति को बचाने के आशय से सद्भावपूर्वक करता है। A किस अपराध का दोषी है?
यहाँ यदि यह पाया जाता है कि निवारण की जाने वाली अपहानि इस प्रकृति की और इतनी आसन्न थी कि A का कार्य माफी योग्य है तो A उस अपराध का दोषी नहीं है। (IPC की धारा 81 )
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IPC की धारा 81 के आवश्यक तत्त्व क्या हैं?
IPC की धारा 81 आवश्यक तत्त्व निम्न हैं –
(i) अभियुक्त द्वारा कोई कृत्य (जिसमें अवैध लोप भी शामिल है) किया गया हो,
(ii) ऐसा कार्य इस ज्ञान के साथ किया जा रहा हो कि उससे अपहानि संभाव्य है,
(iii) प्रश्नगत कृत्य अभियुक्त द्वारा क्षति कारित करने के आपराधिक आशय से मुक्त रहा हो.
(iv) कृत्य सद्भावनापूर्ण रहा हो,
(v) अभियुक्त द्वारा प्रश्नगत कृत्य व्यक्ति या सम्पत्ति की किसी अन्य क्षति के निवारण हेतु किया गया हो। -
आवश्यकता का सिद्धान्त किस लैटिन सूक्ति पर आधारित है ?
आवश्यकता का सिद्धान्त “Quod necessities non ha bet legam” नामक लैटिन सूक्ति पर आधारित है, जिसका अर्थ है- विधि उसे प्रतिषिद्ध नहीं करती जो कुछ आवश्यक है।
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एक चिकित्सक को यह निर्णय करना है कि वह शिशु की या उसको जन्म देने वाली स्त्री की मृत्यु कारित करे। चिकित्सक सद्भावपूर्वक कार्य करता हुआ माँ को बचाने के लिए शिशु की मृत्यु कर देता है। वह कौन सा अपराध करता है?
चिकित्सक ने कोई अपराध नहीं किया उसका कार्य IPC की धारा 81 के अंतर्गत न्यासंगत होगा।
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एक मजिस्ट्रेट ने एक मदमत्ता व्यक्ति को कैद किया, क्योंकि उसका आचरण लोकहित के लिए खतरनाक था। क्या मजिस्ट्रेट किसी अपराध का दोषी है ?
मजिस्ट्रेट किसी भी अपराध का दोषी नहीं है, वह IPC की धारा 81 का लाभ प्राप्त करने का हकदार है (गोपाल नायडू ,1992 का मामला )
IPC Section 81 — Act likely to cause harm, but done without criminal intent, and to prevent other harm –
Nothing is an offence merely by reason of its being done with the knowledge that it is likely to cause harm, if it be done without any criminal intention to cause harm, and in good faith for the purpose of preventing or avoiding other harm to person or property. IPC की धारा 81
Explanation - It is a question of fact in such a case whether the harm to be prevented or avoided was of such a nature and so imminent as to justify or excuse the risk of doing the act with the knowledge that it was likely to cause harm. IPC की धारा 81
Illustrations –
(a) A, the captain of a steam vessel, suddenly and without any fault or negligence on his part, finds himself in such a position that, before he can stop his vessel, he must inevitably run down a boat B, with twenty or thirty passengers on board, unless he changes the course of his vessel, and that, by changing his course, he must incur risk of running down a boat C with only two passengers on board, which he may possibly clear. Here, if A alters his course without any intention to run down the boat C and in good faith for the purpose of avoiding the danger to the passengers in the boat B, he is not guilty of an offence, though he may run down the boat C by doing an act which he knew was likely to cause that effect, if it be found as a matter of fact that the danger which he intended to avoid was such as to excuse him in incurring the risk of running down the boat C. IPC की धारा 81
(b) A, in a great fire, pulls down houses in order to prevent the conflagration from spreading. He does this with the intention in good faith of saving human life or property. Here, if it be found that the harm to be prevented was of such a nature and so imminent as to excuse A's act. A is not guilty of the offence.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]