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IPC की धारा 90 | धारा 90 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 90 In Hindi

IPC की धारा 90 — सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है –

कोई सम्मति ऐसी सम्मति नहीं है जैसी इस संहिता की किसी धारा से आशयित है, यदि वह सम्मति किसी व्यक्ति ने क्षति, भय के अधीन या तथ्य के भ्रम के अधीन दी हो, और यदि कार्य करने वाला व्यक्ति यह जानता हो या उसके पास विश्वास करने का कारण हो कि ऐसे भय या भ्रम के परिणामस्वरूप वह सम्मति दी गई थी; अथवा 

उन्मत्त व्यक्ति की सम्मति – यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो जो चित्तविकृति या मत्तता के कारण उस बात की, जिसके लिए वह अपनी सम्मति देता है, प्रकृति और परिणाम को समझने में असमर्थ हो; अथवा 

शिशु की सम्मति – जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, यदि वह सम्मति ऐसे व्यक्ति ने दी हो जो बारह वर्ष से कम आयु का है।

धारा 90 आईपीसी के के अन्तर्गत किन मामलों में दी गयी सम्मति स्वतंत्र सहमति नहीं है ?
1. क्षति, भय के अधीन एक व्यक्ति द्वारा दी गयी सहमति;
2. तथ्य के भ्रम के अधीन दी गयी सहमति;
3. एक उन्मत्त व्यक्ति द्वारा दी गयी सहमति; 
4. विकृतचित्त वाले व्यक्ति द्वारा दी गयी सहमतिः
5.12 वर्ष से कम आयु के शिशु द्वारा दी गयी सहमति 

IPC की धारा 90 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –

विपुल मेथी बनाम स्टेट आफ आसाम, 2008 क्रि० लॉ ज0 1099 (गौहाटी)
अगर अभियोक्त्री ने अपने साक्ष्य में यह दावा किया है कि उसने लैंगिक कार्य के लिए सहमति नहीं दी थी, तो यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 114-क के तहत इस प्रतिपक्ष की प्रतिष्ठा के रूप में देखा जा सकता है कि वह ने लैंगिक कार्य के लिए सहमति नहीं दी थी। हालांकि, इसे साबित करने का भार अभियुक्त पर आता है कि अभियोक्त्री के साथ उसका लैंगिक कार्य उसकी सहमति से हुआ था।
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम नौशाद (2014) I क्रि० लॉ ज० 540 (एस० सी०). 
इस वाद में अभियुक्त ने अभियोजिका के साथ यह गलत आश्वासन देकर कि वह उससे शादी करेगा उसके साथ लैंगिक सम्भोग किया। जब वह गर्भवती हो गयी तब उसने उससे शादी करने को मना कर दिया। इस मामले में अभियुक्त को बलात्कार के अपराध हेतु दोषी अधिनिर्णीत किया गया क्योंकि महिला की सहमति तथ्य की भ्रान्ति या गलतफहमी से प्राप्त की गयी थी और वह स्वतन्त्र सहमति नहीं थी।
दशरथ पासवान बनाम बिहार स्टेट, ए0 आई0 आर0 1958 पटना 190
निसहाय होकर किसी तथ्य की स्वीकृति हेतु समर्पण का किया जाना, वैध सम्मति  (आईपीसी (IPC) की धारा 90) नहीं होगी यदि उसमें धमकी या भय का तथ्य समाहित हो।

पुनाई फात्तेमा (1869 )12 डब्ल्यू० आर०( क्रि०) 7.
के वाद में अभियुक्त, जो एक सपेरा था, ने उकसाया कि वह एक जहरीले साँप से अपने को कटवाये तथा उसको यह भी विश्वास दिलाया कि संपेरा उसे किसी भी अपहानि से बचाने की सामर्थ्य रखता है। न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि मृतक द्वारा दी गई सहमति वास्तविक सहमति नहीं थी क्योंकि उसे यह विश्वास था कि संपेरा में सर्पदंश से बचाने की सामर्थ्य मृतक को है तथा अभियुक्त को यह ज्ञात था कि मृतक अपनी सहमति इस भ्रम के कारण दे रहा है। अतः अभियुक्त मृतक की सहमति  (आईपीसी (IPC) की धारा 90) के आधार पर अपना बचाव करने का हकदार नहीं है।
सतपाल सिंह बनाम स्टेट आफ हरियाणा, 2010 क्रि० लॉ ज0 4283 (एस0 सी0)
जहां "सहमति" की संकल्पना को बलात्संग के मामलों में आईपीसी (IPC) की धारा 90 के उपबंधों को ध्यान में रखकर समझा जाता है, वहां भय/उत्पीड़न या तथ्य के भ्रम/भूल के आधार पर दी गई सहमति मान्य नहीं होती है।

IPC की धारा 90 FAQ

  1. IPC की धारा 90 के अधीन सहमति (सम्मति) स्वतंत्र सम्मति कब कही जाती है ? 

    जब वह 12 वर्ष से अधिक आयु के शिशु के द्वारा दी गयी हो। ( IPC की धारा 90 पैरा 4)।

  2. एक सपेरे ने सांपों का खेल दिखाते हुए यह दावा किया कि वह सर्प दंश को ठीक कर देता है। मृतक ने सर्प से अपने को कटवा लिया किन्तु संपेरा उसे ठीक नहीं कर पाया। सपेरा किसके लिए उत्तरदायी होगा?

    हत्या।

  3. IPC की धारा 90 का क्या उद्देश्य है ?

    IPC की धारा 90 का उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि जहाँ किसी आपराधिक आरोप के लिए सहमति बचाव प्रदान कर सकती है। वह सहमति निश्चयतः वास्तविक होनी चाहिए, और अवयस्कता,भ्रम, भय अथवा धोखे इत्यादि द्वारा दूषित नहीं होनी चाहिए। 

  4. भारतीय दण्ड संहिता की धारा 90 के अनुसार कितने वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति अपनी सहमति देने में सक्षम हैं? 

    12 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति ।

  5. तथ्य के भ्रम के अधीन दी गयी सहमति पर प्रमुख प्रकरण कौन से हैं?

    बबूलन हिजड़ा 1866 एवं पुनाई फात्तेमा 1869 का है।

  6. आर बनाम फ्लैटरी का वाद (जिसमें चिकित्सक से सलाह मांगने पर शल्य चिकित्सा की सलाह दिया, जबकि उसके साथ संभोग किया) किस विषय पर है।

    यह वाद मिथ्या अभिवचन के आधार पर दी गयी सहमति से सम्बन्धित है। जो तथ्य के भ्रम के अधीन दी गयी सहमति मानी जाती है। 

  7. IPC की धारा 90 क्या है?

    IPC की धारा 90 के अनुसार – सम्मति, जिसके संबंध में यह ज्ञात हो कि वह भय या भ्रम के अधीन दी गई है|


IPC Section 90 — Consent known to be given under fear or misconception –

A consent is not such a consent as it intended by any section of this Code, if the consent is given by a person under fear of injury, or under a misconception of fact, and if the person doing the act knows, or has reason to believe, that the consent was given in consequence of such fear or misconception; or

Consent of insane person – if the consent is given by a person who, from unsoundness of mind, or intoxication, is unable to understand the nature and consequence of that to which he gives his consent; or

Consent of child — unless the contrary appears from the context, if the consent is given by a person who is under twelve years of age.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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