IPC की धारा 94 — वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है –
हत्या और मृत्यु से दण्डनीय उन अपराधों को जो राज्य के विरुद्ध है, छोड़कर कोई बात अपराध नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए ऐसी धमकियों से विवश किया गया हो जिनसे उस बात को करते समय उसको युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो गई हो कि अन्यथा परिणाम यह होगा कि उस व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो जाए।
परन्तु यह तब जबकि उस कार्य को करने वाले व्यक्ति ने अपनी ही इच्छा से या तत्काल मृत्यु से कम अपनी अपहानि की युक्तियुक्त आशंका से अपने को उस स्थिति में न डाला हो, जिसमें कि वह ऐसी मजबूरी के अधीन पड़ गया है।
स्पष्टीकरण 1 - वह व्यक्ति, जो स्वयं अपनी इच्छा से, या पीटे जाने की धमकी के कारण, डाकुओं की टोली में उनके शील को जानते हुए सम्मिलित हो जाता है, इस आधार पर ही इस अपवाद का फायदा उठाने का हकदार नहीं कि वह अपने साथियों द्वारा ऐसी बात करने के लिए विवश किया गया था जो विधिना अपराध है। |
स्पष्टीकरण 2 - डाकुओं की एक टोली द्वारा अभिगृहीत और तत्काल मृत्यु की धमकी द्वारा किसी बात के करने के लिए जो विधिना अपराध है, विवश किया गया व्यक्ति, उदाहरणार्थ, एक लोहार, जो अपने औजार लेकर एक गृह का द्वार तोड़ने को विवश किया जाता है, जिससे डाकू उसमें प्रवेश कर सकें और उसे लूट सकें, इस अपवाद का फायदा उठाने के लिए हकदार है।
धारा 94 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं? |
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कोई बात अपराध नहीं है, जो- 1. जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए, जो उसे करने के लिए ऐसी धमकियों से विवश किया गया हो, 2. जिनसे उस बात को करते समय उसको युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो गई हो, 3. अन्यथा परिणाम यह होगा कि उस व्यक्ति की तत्काल मृत्यु हो जाए। परन्तु ऐसे अपराध – 1. हत्या और 2.मृत्यु से दण्डनीय उन अपराधों को जो राज्य के विरुद्ध है, छोड़कर होने चाहिये | |
IPC की धारा 94 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –
देव जी गोविन्दजी 20 बाम्बे 215.
के वाद में यह निर्णय दिया गया कि "एक सिपाही अब एक व्यक्ति की मृत्यु तक यातना देने में मात्र इसलिये न्यायसंगत नहीं है, क्योंकि उसके वरिष्ठ अधिकारी ने उसे ऐसा करने का आदेश दिया था जैसे एक डाकू अपने कार्य को इस आधार पर न्यायोचित नहीं ठहरा सकता कि उसे उसके अन्य साथियों की आज्ञा का पालन करना पड़ा।"
मिर्जा जहीद देग बनाम सम्राट, ए) आई0 आर0 1938 इला0 91
आईपीसी की धारा 94 के लाभान्वयन हेतु अपराध को करते समय तक भय का विद्यमानता या उसे बना रहना आवश्यक है। धमकी के प्रभाव की समाप्ति के उपरान्त किया गया अपराध इस धारा द्वारा संरक्षित नहीं माना जायेगा
ई0 आर0 1926 इला0 347
जब किसी मामले में एक नौकर मृतक के शरीर को अपने मालिक के दबाव के कारण हटाता है, तो उसका कार्य उपरोक्त धारा के तहत अपराध नहीं माना जाता है और उसे संरक्षित (आईपीसी की धारा 94) माना जाता है।
IPC की धारा 94 FAQ
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कोई कार्य करने के लिए धमकियों द्वारा विवश किया गया व्यक्ति संहिता की किस धारा के अंतर्गत बचाव की माँग कर सकता है?
IPC की धारा 94 के अंतर्गत
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आईपीसी (IPC) की धारा 94 के अंतर्गत तत्काल मृत्यु की धमकी से प्रभावित व्यक्ति कौन सा अपराध नहीं कर सकता ?
ऐसा व्यक्ति हत्या या मृत्यु से दण्डनीय उन अपराधों को, जो राज्य के विरुद्ध है; नहीं कर सकता है।
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यदि कोई व्यक्ति पीटे जाने की धमकी के कारण डाकुओं की टोली में सम्मिलित होता है, और उनके द्वारा अपराध करने के लिए विवश किया जाता है। क्या उसे आईपीसी (IPC) की धारा 94 की प्रतिरक्षा प्राप्त होगी ?
नहीं। क्योंकि IPC की धारा 94 के परन्तुक में तत्काल मृत्यु से कम अपहानि की युक्तियुक्त आशंका पर धमकी के समक्ष झुक जाने पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 94 का बचाव नहीं मिलेगा।
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एक लुहार डाकुओं की एक टोली द्वारा विवश किया जाता है कि वह अपने औजार द्वारा एक गृह का द्वार तोड़े, नहीं तो उसे मार डाला जायेगा। लुहार ताला तोड़ देता है। उसका आपराधिक दायित्व क्या है?
उसका कोई आपराधिक दायित्व नहीं बनेगा, और वह IPC की धारा 94 का लाभ ले सकता है।
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भारतीय दण्ड संहिता की धारा 94 पर प्रमुख प्रकरण कौन से हैं?
IPC की धारा 94 पर प्रमुख प्रकरण निम्नवत् हैं-
1. मगनलाल का मामला
2. देवजी गोविन्दजी का मामला एवं
3. बच्चन लाल बनाम राज्य का मामला -
तत्काल मृत्यु के भय से कारित हत्या क्षम्य नहीं है, किन्तु हत्या का दुष्प्रेरण क्षम्य है किस मामले में कहा गया ?
तत्काल मृत्यु के भय से कारित हत्या का दुष्प्रेरण क्षम्य है (उमा दासी देवी का मामला) ।
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IPC की धारा 94 से आप क्या समझते है ?
वह कार्य जिसको करने के लिए कोई व्यक्ति धमकियों द्वारा विवश किया गया है
IPC Section 94 — Act to which a person is compelled by threats –
Except murder, and offences against the State punishable with death, nothing is an offence which is done by a person who is compelled to do it by threats, which, at the time of doing it, reasonably cause the apprehension that instant death to that person will otherwise be the consequence :
Provided the person doing the act did not of his own accord, or from a reasonable apprehension of harm to himself short of instant death, place himself in the situation by which he became subject to such constraint.
Explanation 1 – A person who, of his own accord, or by reason of a threat of being beaten, joins a gang of dacoits, knowing their character, is not entitled to the benefit of this exception, on the ground of his having been compelled by his associates to do anything that is an offence by law. IPC की धारा 94
Explanation 2 – A person seized by a gang of dacoits, and forced, by threat of instant death, to do a thing which is an offence by law; for example, a smith compelled to take his tools and to force the door of a house for the dacoits to enter and plunder it, is entitled to the benefit of this exception.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]