Bare Acts

IPC की धारा 98 | धारा 98 भारतीय दण्ड संहिता | IPC Section 98 In Hindi

IPC की धारा 98 — ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त आदि हो –

जबकि कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन, समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्तविकृति या मत्तता के कारण, या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण, वह अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता।

दृष्टांत

(क) य, पागलपन के असर में, क को जान से मारने का प्रयत्न करता है। य किसी अपराध का दोषी नहीं है। किन्तु क को प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार है, जो वह य के स्वस्थचित्त होने की दशा में रखता। 
(ख) क रात्रि में एक ऐसे गृह में प्रवेश करता है जिसमें प्रवेश करने के लिए वह वैध रूप से हकदार है। य, सद्भावपूर्वक क को गृहभेदक समझकर, क पर आक्रमण करता है। यहां य इस भ्रम के अधीन क पर आक्रमण करके कोई अपराध नहीं करता है, किन्तु क, य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है, जो वह तब रखता, जब य उस भ्रम के अधीन कार्य न करता।

धारा 98 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं?
कोई कार्य, जो अन्यथा कोई अपराध होता-
1. उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के-
a. बालकपन,
b. समझ की परिपक्वता के अभाव,
c. चित्तविकृति या
d. मत्तता के कारण, या
e. उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण,
2. वह अपराध नहीं है,
3. तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है,
4. जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता|

IPC की धारा 98 FAQ

  1. IPC की धारा 98 से आप क्या समझते हो ?

    ऐसे व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार जो विकृतचित्त हो |

  2. आईपीसी (IPC) की धारा 98 क्या हैं ?

    IPC की धारा 98 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति, बालकपन समझ की परिपक्वता के अभाव, चित्तविकृति या मात्रता के कारण या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण कोई कार्य करता है, जो अपराध नहीं है, जो अन्यथा अपराध होता तो हर व्यक्ति ऐसे कार्य के विरूद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार रखता है जैसा कि वह उस कार्य के अपराध होने की दशा में रखता।

  3. ‘य’ पागलपन के असर में क को जान से मारने का प्रयत्न करता है, ‘य’ किसी अपराध का दोषी नहीं है, किन्तु क्या ‘क’ को ‘य’ के विरूद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार होगा? 

    हाँ ! ‘क’ को ‘य’ के विरूद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का वही अधिकार होगा, जो वह ‘य’ के स्वस्थचित्ता होने की दशा में उसके विरूद्ध रखता (धारा 98 दृष्टांत क ) 

IPC Section 98 — Right of private defence against the act of a person of unsound mind, etc. –

When an act, which would otherwise be a certain offence, is not that offence, by reason of the youth, the want of maturity of understanding, the unsoundness of mind or the intoxication of the person doing that act, or by reason of any misconception on the part of that person, every person has the same right of private defence against that act which he would have if the act were that offence.

Illustrations –

(a) Z, under the influence of madness, attempts to kill A; Z is guilty of no offence. But A has the same right of private defence which he would have if Z were sane.

(b) A enters by night a house which he is legally entitled to enter. Z, in good faith, taking A for a house-breaker, attacks A. Here Z, by attacking A under this misconception, commits no offence. But A has the same right of private defence against Z, which he would have if Z were not acting under that misconception.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

IPC की धारा 98 IPC की धारा 98 IPC की धारा 98 98 IPC In HIndi 98 IPC In HIndi