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धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम | Section 19 prevention of corruption act in hindi | Section 19 PC Act in hindi

धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम — अभियोजन पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता.–

(1) कोई न्यायालय [धारा 7. धारा 11. धारा 13 और धारा 15] के अधीन दंडनीय अपराध का संज्ञान जिसके संबंध में यह अधिकधित है कि वह लोक सेवक द्वारा किया गया है, निम्नलिखित की पूर्व मंजूरी के बिना [लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय] नहीं करेगा:-

(क) ऐसे व्यक्ति की दशा में जो संघ के मामलों के संबंध में यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था और जो अपने पद से केन्द्रीय सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से हटाए जाने के सिवाय नहीं हटाया जा सकता है, केन्द्रीय सरकार;

(ख) ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो राज्य के मामलों के संबंध में यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था और जो अपने पद से राज्य सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से हटाए जाने के सिवाय नहीं हटाया जा सकता है, राज्य सरकार;

(ग) किसी अन्य व्यक्ति की दशा में उसे उसके पद से हटाने के लिए सक्षम प्राधिकारी ।

परंतु, किसी पुलिस अधिकारी या किसी अन्वेषक अभिकरण के किसी अधिकारी या अन्य विधि प्रवर्तन प्राधिकारी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा इस उपधारा में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध का न्यायालय द्वारा संज्ञान लिए जाने के लिए ऐसी सरकार या ऐसे प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी के लिए, यथास्थिति, समुचित सरकार या सक्षम प्राधिकारी को कोई अनुरोध तब तक नहीं किया जा सकता जब तक कि,

(i) ऐसे व्यक्ति ने ऐसे अभिकथित अपराधों के बारे में, जिनके लिए लोक सेवक को अभियोजित किए जाने की ईप्सा की गई है, किसी सक्षम न्यायालय में कोई परिवाद फाइल न किया हो; और

(ii) न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 203 के अधीन परिवाद खारिज न कर दिया हो और परिवादी को लोक सेवक के विरुद्ध अभियोजन के लिए आगे कार्रवाई करने के लिए मंजूरी अभिप्राप्त करने का निदेश न दे दिया हो:

     परंतु यह और कि किसी पुलिस अधिकारी या किसी अन्वेषक अभिकरण के किसी अधिकारी या अन्य विधि प्रवर्तन प्राधिकारी से भिन्न व्यक्ति से अनुरोध प्राप्त होने की दशा में, समुचित सरकार या सक्षम प्राधिकारी, संबद्ध लोक सेवक को सुने जाने का अवसर प्रदान किए बिना किसी लोक सेवक को अभियोजित करने के लिए मंजूरी नहीं देगा :

     परंतु यह भी कि समुचित सरकार या कोई सक्षम प्राधिकारी, इस उपधारा के अधीन किसी लोक सेवक के अभियोजन के लिए मंजूरी की अपेक्षा करने वाले प्रस्ताव की प्राप्ति के पश्चात्, उसकी प्राप्ति की तारीख से तीन मास की अवधि के भीतर उस प्रस्ताव पर अपना विनिश्चय देने का प्रयास करेगा

     परंतु यह भी कि उस दशा में जहां अभियोजन हेतु मंजूरी प्रदान करने के प्रयोजन के लिए कोई विधिक परामर्श अपेक्षित है, वहां ऐसी अवधि को लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से एक मास की और अवधि के लिए विस्तारित किया जा सकेगा :

     परंतु यह भी कि केन्द्रीय सरकार किसी लोक सेवक के अभियोजन हेतु मंजूरी देने के प्रयोजन के लिए ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांत विहित कर सकेगी, जो यह आवश्यक समझे ।

 स्पष्टीकरण.– उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, लोकसेवक पद में निम्नलिखित व्यक्ति सम्मिलित हैं,

(क) ऐसा व्यक्ति, जिसने उस अवधि के दौरान, जिसमें अभिकथित रूप से अपराध किया गया है, पदधारण करना बंद कर दिया था; या

(ख) ऐसा व्यक्ति, जिसने उस अवधि के दौरान, जिसमें अभिकथित रूप से अपराध किया गया है, पदधारण करना बंद कर दिया था और वह उस पद से भिन्न कोई अन्य पदधारण कर रहा था, जब अभिकथित रूप से अपराध किया गया है।]

(2) जहाँ किसी कारण से इस बाबत शंका उत्पन्न हो जाए, कि उपधारा (1) के अधीन अपेक्षित पूर्व मंजूरी केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकारी में से किसके द्वारा दी जानी चाहिए वहां ऐसी मंजूरी उस सरकार या प्राधिकारी द्वारा दी जाएगी जो लोक सेवक को उसके पद से उस समय हटाने के लिए सक्षम था जिस समय अपराध किया जाना अभिकथित है।

(3)  दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी :–

(क) उपधारा (1) के अधीन अपेक्षित मंजूरी में किसी अनियमितता, लोप या मंजूरी के कारण अपील न्यायालय द्वारा पुनरीक्षण, पुष्टिकरण या अपील में, विशेष न्यायालय द्वारा पारित कोई निष्कर्ष, दंडादेश या आदेश तब तक परिवर्तित या उल्टा नहीं जाएगा, जब तक कि उस न्यायालय की राय में उसके कारण यथार्थ में न्याय नहीं हो सका:

(ख) इस अधिनियम के अधीन की किसी कार्यवाही को किसी न्यायालय द्वारा प्राधिकारी द्वारा दी गई मंजूरी में किसी अनियमितता वा लोप या त्रुटि के कारण रोका नहीं जाएगा जब तक कि यह समाधान न हो जाए कि ऐसी अनियमितता, लोप या त्रुटि के परिणामस्वरूप न्याय नहीं हो सका है,

(ग) इस अधिनियम के अधीन की किसी कार्यवाही को किसी न्यायालय द्वारा किसी अन्य आधारों पर रोका नहीं जाएगा और किसी न्यायालय द्वारा पुनरीक्षण के अधिकारों का प्रयोग किसी जाँच, सुनवाई, अपील या अन्य कार्यवाही में पारित किसी अन्तर्वती आदेश के संबंध में नहीं किया जाएगा।

(4) उपधारा (3) के अधीन अवधारणों के लिए, कि ऐसी मंजूरी के अभाव या किसी अनियमितता, लोप या त्रुटि के कारण न्याय नहीं हो सका है, न्यायालय इन तथ्यों को विचार में लेगा की आपत्ति, किसी कार्यवाही के दौरान उठाई जा सकती थी और उठाई गई थी।

स्पष्टीकरण.– इस धारा के प्रयोजनों के लिए,

(क) त्रुटि में मंजूरी देने वाला प्राधिकारी की सक्षमता शामिल है;

(ख) “अभियोजन के लिए अपेक्षित मंजूरी” में किसी विहित प्राधिकारी के आवेदन पर किया जाने वाला अभियोजन की आवश्यकता का सन्दर्भ अथवा किसी विहित व्यक्ति द्वारा दी गई मंजूरी या इसी प्रकृति की अन्य अपेक्षा सम्मिलित है|


Section 19 prevention of corruption act — Previous sanction necessary for prosecution —

(1) No court shall take cognizance of an offence punishable under 1[sections 7, 11, 13 and 15] alleged to have been committed by a public servant, except with the previous sanction 2[save as otherwise provided in the Lokpal and Lokayuktas Act, 2013 (1 of 2014)]–


(a) in the case of a person 3[who is employed, or as the case may be, was at the time of commission of the alleged offence employed] in connection with the affairs of the Union and is not removable from his office save by or with the sanction of the Central Government, of that Government;


(b) in the case of a person 3[who is employed, or as the case may be, was at the time of commission of the alleged offence employed] in connection with the affairs of a State and is not removable from his office save by or with the sanction of the State Government, of that Government; धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम


(c) in the case of any other person, of the authority competent to remove him from his office:



4[Provided that no request can be made, by a person other than a police officer or an officer of an investigation agency or other law enforcement authority, to the appropriate Government or competent authority, as the case may be, for the previous sanction of such Government or authority for taking cognizance by the court of any of the offences specified in this sub-section, unless–



(i) such person has filed a complaint in a competent court about the alleged offences for which the public servant is sought to be prosecuted; and


(ii) the court has not dismissed the complaint under section 203 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974) and directed the complainant to obtain the sanction for prosecution against the public servant for further proceeding: धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम



Provided further that in the case of request from the person other than a police officer or an officer of an investigation agency or other law enforcement authority, the appropriate Government or competent authority shall not accord sanction to prosecute a public servant without providing an opportunity of being heard to the concerned public servant: धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम



Provided also that the appropriate Government or any competent authority shall, after the receipt of the proposal requiring sanction for prosecution of a public servant under this sub-section, endeavour to convey the decision on such proposal within a period of three months from the date of its receipt:



Provided also that in case where, for the purpose of grant of sanction for prosecution, legal consultation is required, such period may, for the reasons to be recorded in writing, be extended by a further period of one month: धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम



Provided also that the Central Government may, for the purpose of sanction for prosecution of a public servant, prescribe such guidelines as it considers necessary. धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम



Explanation.–For the purposes of sub-section (1), the expression “public servant” includes such person–



(a) who has ceased to hold the office during which the offence is alleged to have been committed; or धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम


(b) who has ceased to hold the office during which the offence is alleged to have been committed and is holding an office other than the office during which the offence is alleged to have been committed.]


(2) Where for any reason whatsoever any doubt arises as to whether the previous sanction as required under sub-section (1) should be given by the Central Government or the State Government or any other authority, such sanction shall be given by that Government or authority which would have been competent to remove the public servant from his office at the time when the offence was alleged to have been committed. धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम


(3) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974),–


(a) no finding, sentence or order passed by a special Judge shall be reversed or altered by a Court in appeal, confirmation or revision on the ground of the absence of, or any error, omission or irregularity in, the sanction required under sub-section (1), unless in the opinion of that court, a failure of justice has in fact been occasioned thereby; धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम


(b) no court shall stay the proceedings under this Act on the ground of any error, omission or irregularity in the sanction granted by the authority, unless it is satisfied that such error, omission or irregularity has resulted in a failure of justice;


(c) no court shall stay the proceedings under this Act on any other ground and no court shall exercise the powers of revision in relation to any interlocutory order passed in any inquiry, trial, appeal or other proceedings. धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम


(4) In determining under sub-section (3) whether the absence of, or any error, omission or irregularity in, such sanction has occasioned or resulted in a failure of justice the court shall have regard to the fact whether the objection could and should have been raised at any earlier stage in the proceedings. धारा 19 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम



Explanation.–For the purposes of this section,–


(a) error includes competency of the authority to grant sanction;


(b) a sanction required for prosecution includes reference to any requirement that the prosecution shall be at the instance of a specified authority or with the sanction of a specified person or any requirement of a similar nature.

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