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माल- विक्रय संविदा में शर्तें एवं वारंटियां

माल- विक्रय संविदा में शर्तें एवं वारंटियां

माल- विक्रय संविदा में शर्तें एवं वारंटीयां  

शर्तें एवं वारंटी का अर्थ :-

माल- विक्रय संविदा में माल के संबंध में अनेकों अनुबंध होते हैं। जैसे माल किस क्वालिटी का होगा, माल की मात्रा क्या होगी, किस समय परिदान होगा, इत्यादि। संविदा के अंतर्गत माल के विषय में किया गया कथन यदि संविदात्मक प्रभाव रखता है तो उसे संविदा का भाग होना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं है तो यह केवल कथन है जिसकी असत्यता किसी दावे का अधिकार प्रदान नहीं करता है।

मामले की परिस्थितियों से अनुमानित पक्षकारों के आशय पर निर्भर करता है कि कथन शर्त या वारंटी केवल अभिव्यक्त है। यह केवल विचार की अभिव्यक्ति है तथा सम्व्यवहार के उद्देश्य से नहीं किया जाता है कोई भी व्यक्ति इस पर विश्वास करके भ्रमित नहीं होता है।

प्रत्येक विक्रय की संविदा में माल की प्रकृति या गुण के विषय में कुछ अनुबंध होते हैं। यदि अनुबंध संविदा का भाग नहीं है और संविदात्मक प्रभाव नहीं रखता है तो उसे केवल वर्णन माना जाता है। यदि संविदा को पूरा करने के लिए दायित्व पूरा करने के मुख्य वचन के रूप में होता है तो इसे अभिव्यक्ति शर्त कहते हैं और उसका उल्लंघन संविदा के निराकरण का अधिकार प्रदान करता है।

यदि कथन गौंण वचन के रूप में है जिसके उल्लंघन पर संविदा को शून्य घोषित नहीं कराया जा सकता बल्कि केवल हर्जाना का उपचार प्राप्त होता है उसे अभिव्यक्त वारंटी कहते हैं। संविदा के पक्ष कार संविदा में अनुबंध लगाने के लिए स्वतंत्र हैं। अर्थात् वे कोई भी अभिव्यक्त शर्त या वारंटी लगा सकते हैं|

इसके अतिरिक्त विक्रय की संविदा में विधि द्वारा कुछ शर्ते एवं वारंटी में विवक्षित होती हैं जिन्हें विवक्षित शर्तें एवं वारंटियां कहा जाता है। इन्हें विक्रय की प्रत्येक संविदा में निहित माना जाता है और पक्षकारों पर बाध्यकारी माना जाता है।

धारा 16 (4) के अनुसार अभिव्यक्त शर्तें एवं वारंटी के द्वारा विवक्षित शर्त एवं वारंटी को नकारा नहीं जा सकता है जब तक कि उससे असंगत न हो। धारा 62 के अनुसार विधि की विवक्षा से उत्पन्न अधिकार,कर्तव्य या दायित्व को निम्न 3 आधारों पर नकारा जा सकता है- 

  1. अभिव्यक्त करार द्वारा
  2. पक्षकारों के बीच व्यवहार चर्चा या
  3. व्यापार की प्रथा

अभिव्यक्त शर्तों को न्यायालयों ने हतोत्साहित करने का प्रयास किया है दो आधारों पर –

  1. संविदा का मूलभूत उल्लंघन
  2. कठोर अर्थान्वयन 

केस :- Word V. Hobbes

इस मामले में बीमार सुअर बेचे गए थे। “सभी दोषों के साथ” शब्द द्वारा विक्रेता दायित्व से मुक्त हो गया था। किंतु न्यायालय ने ऐसे बचाओ खण्ड की निंदा की।

केस :-Baldry V. Marshall

इस वाद में टूरिंग के लिए कार बेचीं गई जो अभियुक्त नहीं थी। विक्रेता ने सभी प्रकार के दायित्व से अपने को मुक्त कर लिया था। न्यायालय ने कहा कि यह वारंटी नहीं बल्कि शर्त का उल्लंघन है।

धारा 12 (1) के अनुसार, विक्रय के संविदा का अनुबंध शर्त या वारंटी हो सकेगा।

धारा 12 (2) के अनुसार, शर्त संविदा के मुख्य प्रयोजन का मर्मभूत अनुबंध है।

जिसका भंग संविदा को निराकृत करने का अधिकार प्रदान करता है।

धारा 12 (3) के अनुसार वारंटी संविदा के मुख्य प्रयोजन का सांपार्श्विक उपबंध है। जिसका उल्लंघन नुकसानी के लिए दावा पैदा करता है किंतु माल को प्रतिक्षेपित करने तथा संविदा को निराकृत करने का हक नहीं देता है।

धारा 12 (4) के अनुसार संविदा का अनुबंध शर्त है या वारंटी प्रत्येक मामले में संविदा के अर्थान्वयन पर निर्भर करता है। अनुबंध शर्त हो सकता है भले ही उसे वारंटी कहा गया हो।

केस :-Harrison V. Knowles & foster

इस वाद में पानी के जहाज की वहन क्षमता को शर्त न मानकर वारंटी माना और वारंटी से विक्रेता ने अपने को मुक्त कर रखा था।

समय के संबंध में अनुबंध (धारा 11):-

जब तक संविदा के निबंधों से भिन्न आशय प्रतीत न होता हो, संदाय के समय के बारे में अनुबंध विक्रय संविदा का मर्म नहीं माना जाता है। अर्थात् जब तक संविदा से भिन्न आशय प्रतीत न होता हो, भुगतान का समय संविदा का शर्त नहीं होता है और परिणामस्वरूप क्रेता द्वारा समय पर भुगतान न करने पर विक्रेता संविदा को खंडित या रद्द नहीं कर सकता, वह केवल प्रतिकर या नुकसानी का ही दावा कर सकता है। परंतु पक्षकार चाहे तो समय को संविदा का मर्म अर्थात् बना सकते हैं।

केस :-बलदेव दाय बनाम होवे (1881) 6 कल. 64

इस मामले में समय को संविदा का मर्म, शर्त बना दिया गया है तो क्रेता के निवेदन पर विक्रेता द्वारा समय बढ़ाए जाने पर बढ़ाया गया समय भी संविदा का मर्म माना जाएगा।

इस प्रकार जब तक संविदा के निबंधों से भिन्न आशय प्रतीत न होता हो और संदाय  के समय के बारे में अनुबंध विक्रय संविदा का मर्म या सार नहीं माना जाता है समय के बारे में अन्य अनुबंध संविदा का मर्म है या नहीं, यह बात उस संविदा के निबंधों पर अवलंबित होती है

केस :-हार्टले बनाम हाईमन्स (1920) 3 K.B. 475

माल के परिदान के समय को संविदा का मर्म/ शर्त मानते हैं और इसके उल्लंघन पर निर्दोष पक्षकार संविदा को विखंडित करके नुकसानी के लिए वाद चला सकता है।

यदि क्रेता माल का परिदान विलंब से करता है और क्रेता इस पर कोई आपत्ति नहीं करता है तो वह वाद में परिदान में विलंब के आधार पर संविदा को रद्द नहीं कर सकता।

शर्त और वारंटी में भेद(अंतर ) :-

1.मुख्य प्रयोजन – 

शर्त संविदा के मुख्य प्रयोजन के लिए मर्मभूत अनुबंध है जिसका भंग उस संविदा को निराकृत मानने का अधिकार पैदा करता है परंतु वारंटी संविदा के मुख्य प्रयोजन का  साम्पार्श्विक अनुबंध है जिसका भंग नुकसानी के लिए दावा पैदा करता है किंतु माल को अस्वीकार करने का अधिकार पैदा नहीं करता है।

2. भंग की दशा –

शर्त के भंग की दशा में निर्दोष पक्षकार संविदा को विखंडित करके नुकसानी वसूल करने हेतु वाद चला सकता है। यदि विक्रेता शर्त का उल्लंघन करता है तो क्रेता संविदा रद्द करके माल वापस कर के भुगतान की गई कीमत वापस ले सकता है। वारंटी के भंग की दशा में निर्दोष पक्षकार संविदा को विखंडित नहीं कर सकता, वह केवल नुकसानी के लिए वाद चला सकता है।

इस प्रकार यदि विक्रेता वारंटी का उल्लंघन करता है तो क्रेता संविदा को विखंडित करके माल वापस नहीं कर सकता है और भुगतान की गई कीमत वसूल नहीं कर सकता है, वह केवल उल्लंघन के कारण होने वाला नुकसान के लिए नुकसानी या प्रतिकर वसूल करने के लिए विक्रेता के विरुद्ध वाद चला सकता है।

कतिपय दशाओं में शर्त के भंग को वारंटी का भंग माना जाता है। परंतु वारंटी के भंग को शर्त का भंग नहीं माना जाता।

शर्त कब वारंटी मानी जाएगी (धारा 13)-

  1. क्रेता को शर्त त्यागने या वारंटी मानने का विकल्प [धारा 13 (1) ]
  2. क्रेता द्वारा माल स्वीकार करने पर वारंटी माना जाना [धारा 13 (2)] 
  3. पालन से माफी की स्थिति में दायित्व से मुक्ति। [धारा 13 (3)]

विवक्षित शर्तें एवं विवक्षित वारंटियां – 

माल विक्रय अधिनियम में निम्नलिखित विवक्षित शर्तें एवं वारंटियां दी गई हैं :-

विवक्षित शर्तें —

  1. विक्रेता को बेचने का हक (right to sell) [धारा 14( a)]
  2. माल वर्णन के अनुरूप है [धारा 15]
  3. माल वर्णन एवं नमूने के अनुरूप है [धारा 15]
  4. माल क्रेता के प्रयोजन के लिए उपयुक्त है [धारा 16 (1)]
  5. माल वाणिज्यिक क्वालिटी का हो [धारा 16 (2)]
  6. माल नमूने के अनुरूप हो [धारा 17 (2)]

विवक्षित वारंटियां —

  1. माल के निर्वाध कब्जा एवं उपभोग का अधिकार [धारा 14 (6)]
  2. माल भार या विलंगम से मुक्त होगा [धारा 14 (c)]

संदर्भ- सूची:-