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प्रमोटर ( प्रवर्तक ) का अर्थ एवं परिभाषा | Promoter meaning and definition in hindi

प्रमोटर ( प्रवर्तक ) का अर्थ एवं परिभाषा

Introduction (प्रस्तावना) :-

प्रमोटर शब्द व्यापार का शब्द है । किसी भी कंपनी के लिए प्रमोटर की भागीदारी सबसे अहम होती है । प्रमोटर का कार्य कंपनी की विक्रय  में वृद्धि  करना है | कंपनी के प्रति लोंगो में सकारात्मक भावनाओं का पैदा करना भी प्रमोटर की अहम भूमिका हो सकती है । प्रमोटर शब्द कानून का नही है और न ही यह अधिनियम में कही भी परिभाषित किया गया है ।

प्रमोटर लोंगो को कंपनी के साथ जोड़ने का काम करता है । कंपनी निर्माण में प्रवर्तक पहली सीढ़ी है जिसके आधार पर कंपनी के निर्माण हेतु आवश्यक कार्यवाही की जाती है । कंपनी की स्थापना अथवा निर्माण करने में अथवा उसे वैधानिक अस्तित्व प्रदान करने में जो लोग सहायता करते है उन्हें हम प्रवर्तक ( promoter )  कहते है । 

प्रमोटर (प्रवर्तक) का अर्थ एवं परिभाषा  :- 

प्रवर्तक ( प्रमोटर ) से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से है जो कंपनी प्रवर्तन संबंधी कार्य करते है । प्रवर्तक ही वह व्यक्ति है जिसके मस्तिष्क में सर्वप्रथम कंपनी के निर्माण के विचार आता है और जिसे वह क्रियान्वित करने हेतु आवश्यक कदम उठाता है । वह व्यापार सम्बंधी अनुसंधान करता है ।

एक निश्चित योजना के अनुसार कंपनी का निर्माण करता है । आवश्यक साधन एकत्रित करता है । और प्रारम्भिक व्ययों का भुगतान करता है । वास्तव में प्रमोटर अपने ऊपर भारी जोखिम लेता है क्योंकि यदि कंपनी असफल होती है । हानि का भार उसे ही वहन करना होता है । कंपनी अधिनियम पर प्रवर्तक शब्द की कोई परिभाषा नही दी गई है , परन्तु कुछ प्रमुख विद्वानों एवं न्यायाधीशों द्वारा प्रवर्तको शब्द की दी गई परिभाषाये इस प्रकार है – 

न्यायाधीश कोक्बर्ण के अनुसार  :-  प्रवर्तक निश्चित उद्देश्यों के आधार पर कंपनी का निर्माण करता है और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कार्यवाही करता है । 

एलजे ब्राउन के अनुसार  :- प्रवर्तक ( प्रमोटर ) शब्द कानून का नही बल्कि व्यवसाय का एक शब्द है । जो कि एक शब्द में वाणिज्यिक , दुतिया से परिचित कई व्यावसायिक कार्यों कों समेट लेता है । जिसके द्वारा एक कम्पनी को आमतौर पर अस्त्तित्व में लाया जाता है ।

गुथमैन और डगल के अनुसार :- प्रमोटर वह व्यक्ति होता है , जो पुरषों धन और सामग्रियों को एक चिंता में डाल देता है । ” 

हीगलैंड के अनुसार  :-  एक सफल प्रवर्तक धन का निर्माता होता है । वह कल्पना करने में सक्षम है क्योंकि क्या अभी तक मौजूद नही है और व्यावसायिक उद्यम को व्यवस्थित करने के लिए उत्पादों का उपयोग करने के लिए उपलब्ध है । ” 

इस प्रकार हम कह सकते है कि प्रमोटर वह व्यक्ति होता है जो किसी कंपनी के गठन के लिए विचार उत्पन्न करता है और अपने स्वयं के संसाधनों की मदद से और दूसरों के साथ इस विचार को व्यावहारिक रूप देता है । एक व्यक्ति को केवल इसलिए प्रमोटर के रूप में नही रखा जा सकता है क्योंकि उसने मेमोरेंडम के पैरा पर हस्ताक्षर किये है या कि उसने गठन , व्यय के भुगतान के लिए धन प्रदान किया है । 

प्रवर्तक एक व्यक्ति , एक फर्म , व्यक्तियों का एक संघ या  एक कंपनी भी हो सकती है ।

कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसार प्रमोटर की परिभाषा  :-

कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2(69) में प्रमोटर को बताया गया है – 

 प्रमोटर का अर्थ एक व्यक्ति है – 

  1. जिसे प्रोस्पेक्टस में नाम दिया गया है या कंपनी अधि. की धारा 92 में संदर्भित वार्षिक रिटर्न में बताया गया है । या
  2. जिसका कंपनी के मामलों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष  रूप से नियंत्रण है , चाहे शेयर धारक , निदेशक या अन्यथा या
  3. जिसकी सलाह , निर्देशो या निर्देशो के अनुसार कंपनी का निदेशक मंडल कार्य करने का आदि है , बशर्ते कि उपखंड (सी) में कुछ भी उस व्यक्ति पर लागू नही होगा जो केवल पेशेवर क्षमता में कार्य कर रहा है ।

क्या एक अकेला व्यक्ति प्रमोटर हो सकता है :-

प्रमोटर के लिए संख्या महत्वपूर्ण नही है । यह  की प्रमोटर एक अकेला व्यक्ति भी हो सकता है । लोंगो का समूह भी प्रमोटर हो सकता है । कोई कंपनी भी प्रमोटर हो सकती है ।

यह जरूरी नही है कि किसी अकेले व्यक्ति के दिमाग मे ही बिजनेस का कोई आईडिया हो या हो सकता है कि यह आईडिया एक से अधिक लोंगो के दिमाग मे आया हो । और या बिजनेस का विचार , यदि किसी के दिमाग मे आया होता तो यह कंपनी भी प्रमोटर कहलाएगी ।

कंपनी में प्रमोटर की क्या स्थिति होती है? :-

कंपनी में प्रमोटर की स्थिति निम्न प्रकार से है –

  • एजेंट एवं ट्रस्टी –  प्रमोटर्स न तो कंपनी के एजेंट होते है और न ही कंपनी के ट्रस्टी |
  • प्रमोटर की भूमिका –  प्रमोटर किसी कंपनी में एक जिम्मेदार व्यक्ति की भूमिका में होता है । 
  • कंपनी के गठन से पहले –  प्रमोटर्स का रोल कंपनी के गठन में बहुत पहले ही शुरू हो जाता है । 

प्रमोटर कितने प्रकार के होते है? :-

प्रमोटर या प्रवर्तक  निम्न प्रकार के होते है-

  • पेशेवर प्रवर्तक ( Professional promoter ) :- पेशेवर प्रवर्तक वह व्यक्ति अथवा कंपनी है जिसका मुख्य कार्य कमीशन के बदले में नई कंपनियों की स्थापना / प्रवर्तन करना होता है । कंपनी का प्रवर्तन करना इनका मुख्य व्यवसाय होता है ।
  • सामयिक प्रवर्तक ( Occasional promoter ) :- यह वह प्रवर्तक होते है जो अपने व्यवसाय के साथ – साथ कभी – कभी कंपनी के प्रवर्तन का कार्य भी करते है । 
  • वित्तीय प्रवर्तक ( Financial promoter ) :- यह प्रवर्तक , प्रवर्तन कार्य मे वित्तीय सहायता प्रदान करते है ।
  • विशेष संस्थायें ( Specialized institutes ) :- ये ऐसी विशेष संस्थायें है जो कंपनी के प्रवर्तक का कार्य करने हेतु स्थापित की जाती है । भारत में राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। 

प्रवर्तक के क्या कार्य है? ( Functions of promoters ) :-

प्रवर्तको द्वारा सामान्यतः किये जाने वाले मुख्य कार्य निम्न प्रकार है –

  • कंपनी निर्माण की कल्पना करना :- प्रवर्तक के मस्तिष्क में सर्वप्रथम के निर्माण का विचार आता है और इसकी इस कल्पना को साकार रूप देने हेतु वही प्रयास करता है । 
  • विक्रेताओं के साथ आवश्यक अनुबंध करने का कार्य भी प्रवर्तको द्वारा ही किया जाता है ।
  • प्रवर्तक का कार्य यह निश्चित करना भी है कि कंपनी किस नाम से व्यापार करेगी , उसका रजिस्टर्ड कार्यालय कहाँ स्थित होगा तथा कंपनी का उद्देश्य क्या होगा और पूंजी की सीमा एवं स्वरूप क्या होगा ।
  • आवश्यक प्रलेख तैयार करवाना भी प्रवर्तको का महत्वपूर्ण कार्य होता है।
  • कंपनी की स्थापना हेतु आवश्यक लाइसेंस व अनुमति लेना । 
  • सम्मेलन प्रमाण पत्र एवं व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करना । 
  • प्रतिवरण का निर्गमन करना और तैयार करना ।
  • पूंजी निर्गमन की व्यवस्था करना ।
  • अभिगोपन संबंधी अनुबंध करना । 
  • स्टॉक एक्सचेंज को आवेदन पत्र भेजना । 
  • प्रारंभिक व्ययों का भुगतान भी प्रवर्तको द्वारा ही किया जाता है ।

प्रवर्तकों (promoters) के अधिकार क्या है? :- 

  1. वैधानिक प्रारंभिक व्यय प्राप्त करने का अधिकार :- कंपनी के समामेलन के पूर्व प्रवर्तको को विविध प्रकार के व्यय करने पड़ते है । ये व्यय कंपनी के लिए उस समय किये जाते है जब कंपनी का अस्तित्व नही होता और परिणाम स्वरूप , इनके संबंध में प्रवर्तको तथा कंपनी के बीच कोई अनुबंध नही होता है । ऐसी स्थिति में कंपनी प्रवर्तको के व्ययों का भुगतान कर देती है । 
  2. सह- प्रवर्तको से अनुपातिक राशि प्राप्त करने का अधिकार :- यदि प्रविवरण में मिथ्यावर्णन के आधार पर सह-प्रवर्तको में से किसी एक प्रवर्तक को क्षतिपूर्ति करनी पड़ती है तो वह प्रवर्तको से आनुपातिक राशि प्राप्त कर सकता है । 
  3. पारिश्रमिक पाने का अधिकार :- प्रवर्तक कंपनियों का निर्माण करने व चलाने में कठिन परिश्रम करते है इसलिए कंपनिया उन्हें उनके प्रतिफल के रूप में परिश्रमिक देती है । पारिश्रमिक नगद अथवा अंशो एवं ऋण पत्रों के रूप में भी दिया जा सकता है ।

प्रवर्तकों ( pramoter’s ) के क्या  दायित्व है? :-  

प्रवर्तको का कंपनी प्रवर्तनों में महत्वपूर्ण स्थान होता है । जहां प्रवर्तको को कुछ अधिकार दिए जाते है वहां उन पर कुछ दायित्व भी डाले जाते है । 

  • समामेलन से पूर्व किये गए कार्यो के लिए दायित्व :-  कंपनी एक समामेलन से पूर्व किये गये कार्यो के लिए प्रवर्तक व्यक्तिगत रूप से बाध्य होते है । यदि समामेलन के बाद कंपनी प्रवर्तक के कार्यो का अनुमोदन कर दे तो प्रवर्तक अपने दायित्व से मुक्त हो जाते है ।
  • गुप्तलाभ प्रकट करने तथा भुगतान करने का दायित्व :- कंपनी स्थापित होने के बाद कंपनी की ओर से यदि प्रवर्तको ने कोई गुप्त लाभ कमाया है , तो उन्हें इसका हिसाब कंपनी को देना पड़ेगा और यह सब गुप्त लाभ कंपनी को वापिस करना होगा ।
  •  बिना विवरण दिए हुए संपत्ति के क्रय से होने वाली हानि के लिए प्रवर्तको पर मुकदमा चलाया जा सकता है ।
  •  कंपनी की ओर से जो अनुबंध प्रवर्तक के साथ किये जाते है प्रवर्तक उनके लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होता है जब तक अनुबंध पूरा न हो जाय ।
  •  प्रविवरण में कपट के लिए दायित्व :- प्रवर्तक जो कंपनी के प्रविवरण के निर्गमन में भाग लेते है, प्रविवरण में किये गए कपट के लिए अंशधारियों के प्रति उत्तरदायी होते है ।
  • मृत होने पर दायित्व :- यदि किसी प्रवर्तक की मृत्यु हो जाती है तो उसके द्वारा दिये जाने वाली रुपयों के लिये कंपनी के प्रति उत्तरदायी होती है |
  • दिवालिया होने पर दायित्व :- किसी प्रवर्तक के दिवालिया हो जाने पर उसकी संपत्ति , कंपनी के लिए उत्तरदायी होती है । 
  • कपट या कर्तव्य – भंग की दशा में दायित्व :- यदि प्रवर्तको के कपट या भंग के कारण कंपनी को यदि कोई हानि होती है तो प्रवर्तक इस हानि की पूर्ति के लिए उत्तरदायी है । 
  • प्रविवरण की वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति न होने पर दायित्व :- यदि प्रविवरण की वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति न होने के कारण अंशधारियों को कोई हानि उठानी पड़ती है तो प्रवर्तक अंशधारियों के प्रति इस हानि के लिए उत्तरदायी होते है । 

प्रमोटर की विधिक स्थिति ( Legal position of promoter ) :-

एक प्रमोटर कंपनी के लिए उसके अस्तित्व में आने से पूर्व कार्य करता है । कंपनी के अस्तित्व में आते ही प्रवर्तक का कार्य समाप्त हो जाता है । अतः प्रमोटर के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की स्थिति न तो स्वामी की होती है और न ही ट्रस्टी और न ही कंपनी का एजेंट होता है क्योंकि उस समय तक कंपनी का कोई अस्तित्व ही नही होता है । 

केस :- केल्जर बनाम वेवस्ट

इस विवाद में ” न्यायाधीश द्वारा यह निर्णय दिया गया था कि एक प्रवर्तक कंपनी का एजेंट नही होता है क्योंकि वह कंपनी जो अभी तक अस्तित्व में नही आई है , एजेंट नही रख सकती है । प्रमोटर की कानूनी स्थिति का वर्णन करने का सही तरीका यह है कि वह कंपनी के बारे में एक पक्षधर स्थिति में खड़ा हो ।

केस :-  लार्ड केयंर्स एर्लांगर v/s न्यू सेम्बेरो फॉफेट कंपनी 

“इस में प्रमोटर की स्थिति को सही बताना है । कम्पनी में प्रमोटर  निसंदेह एक विवादास्पद स्थिति में खड़े होते है । उनके हाथ मे कंपनी का निर्माण एवं ढलाई होती है उनके पास कैसे और कब और निम्न आकार में और किस पर्यवेक्षण के तहत परिभाषित करने की शक्ति है, यह अस्तित्व में आ जायेगा और एक  व्यापारिक निगम के रूप में कार्य करना शुरू कर देगा। “|

केस :- लिडनी एंड विगपूल आयरन ओर ( ore ) कं. V/S  बर्ड [ ( 1866 ) 33 ch.D. 85 ]

इस वाद में लिंडने ने प्रमोटर की स्थिति का वर्णन किया और कहा , प्रमोटर    हालांकि कम्पनी के लिए एक एजेंट नही है , और न ही इसके गठन से पहले इसके लिए एक ट्रस्टी , एजेंसी और ट्रस्टीशिप के कानून के पुराने परिचित सिद्धांत को बढ़ाया गया है और ऐसे मामलों को पूरा करने के लिए बहुत दायित्व रूप से विस्तारित । प्रवर्तक प्रत्ययी की स्थिति में होता है इसका मतलब लाभार्थी के लिए विश्वास में कार्य करने की स्थिति या देखभाल करना है ।

 प्रमोटर  की स्थिति से दो महत्वपूर्ण परिणाम इस प्रकार है :- 

  • एक प्रमोटर को कोई गुप्त लाभ कमाने की अनुमति नही दी जा सकती है । यदि यह पाया जाता है कि कंपनी के किसी विशेष लेन – देन में , उसने अपने लिए एक गुप्त लाभ प्राप्त किया है , तो वह कंपनी को उसी को वापस करने के लिये बाध्य होगा । 
  • प्रमोटर को कंपनी को अपनी संपत्ति की बिक्री से लाभ प्राप्त करने की अनुमति नही है जब तक कि सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा नही किया जाता है । 

प्रमोटर के क्या कर्तव्य है?( Duties of promoter ) :- 

  • प्रमोटर को कंपनी की कीमत पर कोई गुप्त लाभ नही करना चाहिए । 
  • प्रमोटर का यह कर्तव्य है कि वह कंपनी को ट्रस्टी के रूप में जो कुछ भी प्राप्त हुआ है उसे अच्छा करे न कि वह जो किसी भी समय मिल सकता है । 
  • प्रमोटर ने कोई गुप्त लाभ कमाया है तो उसका यह कर्तव्य है कि वह लाभ से गुप्त रूप से प्राप्त सभी धन का खुलासा करे । तथा सामान्य बैठक के Notice ( धारा 102 (4) के तहत ) के साथ व्याख्यात्मक बयान में उसकी रुचि का खुलासा करना भी आवश्यक है । यदि वह अपनी रुचि का खुलासा करने में विफल रहता है , तो वह कंपनी अधि. के तहत दंडनीय है । 
  • यदि किसी कंपनी के सभी निदेशक किसी कारणवश अपना पद छोड़ देते है , वे अयोग्य हो जाते है , या अपने पद से इस्तीफा दे देते है , तो प्रमोटर को आवश्यक संख्या में निदेशकों की नियुक्ति करनी चाहिए । 
  • प्रमोटर को अपनी स्थिति का अनुचित या अनयुक्तियुक्त उपयोग नही करना चाहिए और ऐसी किसी भी चीज से बचने के लिए ध्यान रखना चाहिए जो कपट और अनुचित प्रभाव का आभास दे।

पूर्व निगमन संविदा ( pre – incorporation contract ) :-

पूर्व – निगमन अनुबंध का अर्थ है , कंपनी के निगमन से पहले कंपनी की ओर से प्रमोटरों द्वारा किया गया अनुबंध । दूसरे शब्दों में , किसी कंपनी के निगमन से पहले किये गए अनुबंधों को ‘ पूर्व निगमन अनुबंध ‘ कहा जाता है । सभी प्रकार की कंपनी के लिए पूर्व – निगमन अनुबंध संभव है ।

पूर्व – निगमन अनुबंध का एक उदाहरण है , सह- संस्थापकों का का समझौता । वह व्यक्ति जो कंपनी की ओर से समझौते पर हस्ताक्षर कर रहा है , कम्पनी को भविष्य में समझौते के लिए बाध्य करने का इरादा रखता है जब कंपनी अंततः शामिल हो जाती है । 

पूर्व – निगमन अनुबंध को प्रारंभिक अनुबंध भी कहते है । पूर्व निगमन अनुबंध की कानूनी स्थिति को परिभाषित करना आसान नही है । इसमें काम से कम दो पक्ष / व्यक्ति होना चाहिए । प्रमोटर आमतौर पर कंपनी के एजेंट या ट्रस्टी के रूप में प्रारंभिक अनुबंधों में प्रवेश करते है । प्रारंभिक अनुबंध वे अनुबंध है जो कंपनी की ओर से विभिन्न पक्षों के साथ प्रवर्तको द्वारा किये जाते है , जिन्हें अभी तक शामिल नही किया गया है ।

 पूर्व – निगमन अनुबंध के लिए दो सम्भावित परिस्थितियां है –

  • अनुबंध बाध्यकारी है  :- जब इसे वर्निरिस्ट अनुतोष अधि. 1963 की धारा 15 और 19 के अनुसार अपनाया जाता है । प्रमोटर ने निगमन से पहले अनुबंध में प्रवेश किया और यह कंपनी के लिए था और कंपनी ने इस तरह के अनुबंध को शामिल करने और संचार के बाद अन्य पार्टी को इसकी स्वीकृति के बाद अन्य पार्टी को इसकी स्वीकृति के बाद स्वीकार कर लिया है । मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन के तहत कंपनी के निगमन की शर्तों के तहत अनुबंध की गारंटी है । 

केस :- वनी पट्टाभिराम राव v/s रामानुज जिनिंग एंड राइस फैक्ट्री  (प्रा.) लि. (1986) 60 comp. Cas 568 (AP)

यदि अनुबंध कंपनी के उद्देश्य के लिए है । एक व्यक्ति , जो किसी कंपनी को बढ़ावा देने का इरादा रखता है , ने इसके लिए लीज होल्ड ब्याज हासिल कर लिया है । यह माना जाता है कि कुछ समय के लिए एक साझेदारी फर्म के लिए , फर्म को एक कंपनी में परिवर्तित कर दिया जिसने लीज को अपनाया । पट्टेदार को पट्टे के तहत कंपनी के लिए बाध्य रखा गया था । 

  • अनुबंध बाध्यकारी नही है , :-  जब इसे अपनाया नही जाता है , इसका मतलब है कि कंपनी इसकी पुष्टि नही कर सकती है । प्रवर्तक व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है । कंपनी अनुबंध पर मुकदमा नही कर सकती है । 

केस :-  अंग्रेजी और औपनिवेशिक उत्पाद और कं. रि . ( 1906 ) 2 ch.D. 435

इस केस में माना गया है कि कंपनी उत्तरदायी नही थी । अदालत ने पाया कि जब अनुबंध किया गया था तब कंपनी  अस्तित्व में नही थी कि और इस कारण से , इस तरह के अनुबंध की पुष्टि भी नही की जा सकती थी । क्योंकि एक वकील ने प्रमोटरों के निर्देशों पर आवश्यक दस्तावेज तैयार किये और कंपनी को पंजीकृत करवाने के लिए पंजीकरण शुल्क और आकस्मिक खर्चो का भुगतान किया । कंपनी के खिलाफ उनके द्वारा प्रतिपूर्ति के लिये दायर वाद में , कंपनी उत्तरदायी नही थी ।

केस :- नेटाल बैंड एंड  कॉलोनाइजेशन कंपनी लि. V/S पॉलीन कोलियरी एंड डेवलपमेंट सिंडीवेट लि. [ (1904) Ac 120 ]

इस केस में माना कि , एक कंपनी पर मुकदमा करने की हकदार नही है ।

निष्कर्ष ( Conclusion) :-

इस प्रकार से स्पष्ट है कि प्रवर्तक से  तात्पर्य किसी ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियो के समूह से है जो किसी कंपनी के निर्माण की योजना की कल्पना करते है , उसके समामेलन के बाद अब यह अपना कारोबार करती है तब उसके अधिकांश अंशो में धारक के रूप में अथवा उसके संचालक के रूप में अथवा उसके संचालक के रूप  में संचालक मंडल को सलाह , निर्देश अथवा अनुदेश देता है । यह बात ध्यान देने योग्य है कि कंपनी के निर्माण से संबंधित सभी व्यक्ति प्रवर्तक नही होते है । कोई व्यक्ति प्रवर्तक है अथवा नही  ,इसका निर्धारण कई तथ्यों के आधार पर किया जाता है ।

प्रत्येक वह व्यक्ति जो कंपनी के निर्माण की कल्पना करता है , स्वपन देखता है और उसको साकार करने हेतु आवश्यक कदम उठाता है। वह निश्चित ही उस कंपनी का प्रवर्तक होता है किंतु कोई भी पेशेवर व्यक्ति जो ऐसी कंपनी के निर्माण की प्रक्रिया में पेशेवर की हैसियत से कार्य करता है , उसे प्रवर्तक माना नही जा सकता है। इस प्रकार हम कह सकते कि ‘ प्रमोटर ‘ शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर किसी भी व्यक्ति , संघ  या कंपनी बनाने को संबोधित करने के लिए किया जाता है जो कंपनी बनाने और इसे आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाता है । वह  सभी तकनीकी और गैर – तकनीकी कार्य करता है और कंपनी का पंजीकरण भी करता है। 

Reference :- 

  • Https://www.hindilawnotes.com 
  • Https://www.businesslok.com
  • Https://sadak24.com.cdn.amproject
  • Https://www.scatbuzz.org
  • Https://www.business.manage.com
  • Https://www.lawtimesjournal.in
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  • Https://www.lawcolumn.in