Bare Acts

म.प्र. राज्य सुरक्षा अधिनियम, 1990

म.प्र. राज्य सुरक्षा अधिनियम, 1990

[ 1991 का अधिनियम सं. 4]

[22 जनवरी, 1991]

राज्य की सुरक्षा और लोक व्यवस्था बनाए रखने तथा उनसे संसक्त कतिपय अन्य विषयों के लिए उपबन्ध करने हेतु अधिनियम ।

भारत गणराज्य के इक्तालीसवें वर्ष में मध्यप्रदेश विधान मण्डल द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

अध्याय-1 

प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम तथा विस्तार . – ( 1 ) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम, 1990 है।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण मध्यप्रदेश पर है ।

अध्याय-2

व्यक्तियों के आने-जाने और उनके कार्यों का निर्बन्धन 

2. परिभाषा– इस अध्याय में “निर्बन्धन आदेश” से अभिप्रेत है धारा 3 के अधीन किया गया आदेश ।

3. निर्बन्धन आदेश करने की शक्ति. – (1) यदि किसी जिला मजिस्ट्रेट का किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में यह समाधान हो जाता है कि वह किसी ऐसी रीति में कार्य कर रहा है या उसके किसी ऐसी रीति में कार्य करने की सम्भावना है जिससे राज्य सुरक्षा पर या लोक व्यवस्था बनाये रखने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, और यह कि उसे इस प्रकार कार्य करने से रोकने के लिए जनसाधारण के हित में यह आवश्यक है कि इस धारा के अधीन आदेश किया जाए, तो जिला मजिस्ट्रेट ऐसा आदेश कर सकेगा, जिसमें,-

(क) उससे यह अपेक्षा की जा सकेगी कि वह ऐसी रीति में ऐसे समयों पर तथा ऐसे प्राधिकारी या व्यक्ति को जैसा कि उस आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाये अपने आने जाने की सूचना दे या उसके समक्ष उपस्थित हो या अपने आने-जाने की सूचना भी दे और उपस्थित भी हो ;

(ख) ऐसे व्यक्तियों से, जो कि उस आदेश में उल्लिखित किये जायें, सहयुक्त रहने या उनसे सम्पर्क रखने के सम्बन्ध में उस पर ऐसे निर्बन्धन अधिरोपित किये जा सकेंगे जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट किये जायें;

(ग) किसी भी ऐसी वस्तु या वस्तुओं का, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट की जायें, उसके द्वारा कब्जे में रखा जाना या उपयोग में लाया जाना प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित किया जा सकेगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन किया गया निर्बन्धन आदेश ऐसी कालावधि के लिए प्रवर्तन में रहेगा जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाये और जो किसी भी दशा में, उस आदेश की तारीख से एक वर्ष की कालावधि से अधिक नहीं होगी ।

अध्याय-3

समाज विरोधी तत्वों और पूर्व में सिद्धदोष ठहराये गये व्यक्तियों का तितर-बितर किया जाना

4. व्यक्तियों के दलों तथा समूहों का तितर-बितर किया जाना. — जब कभी जिला मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत हो कि जिले में व्यक्तियों के किसी दल या समूह के आने-जाने या पड़ाव से खतरा या संत्रास कारित हो रहा है या ऐसा आना-जाना या पड़ाव, खतरा या संत्रास कारित करने के लिए प्रकल्पित है या ऐसा युक्तियुक्त संदेह है कि ऐसे दल या समूह या उसके सदस्यों द्वारा विधिविरुद्ध परिकल्पना की जा रही है, तो जिला मजिस्ट्रेट, ऐसे व्यक्तियों को, जो ऐसे दल या समूह के नेता या मुखिया प्रतीत होते हो, सम्बोधित किये गये तथा डोंडी पिटवाकर या अन्यथा जैसे कि जिला मजिस्ट्रेट उचित समझे, प्रकाशित किये गये आदेश द्वारा, ऐसे दल या समूह सदस्यों को निर्देश दे सकेगा कि, –

(क) वे ऐसी रीति में आचरण करें जो हिंसा तथा संत्रास का निवारण करने के लिए आवश्यक हो; या

(ख) वे तितर-बितर हो जायें तथा उनमें से प्रत्येक सदस्य जिले या उसके किसी भाग या ऐसे क्षेत्र तथा उसके समीपस्थ किसी जिले या जिलों या उसके / उनके किसी भाग के बाहर ऐसे समय के भीतर चला जाये जो जिला मजिस्ट्रेट विनिर्दिष्ट करें, और यथास्थिति उक्त जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा ऐसे समीपस्थ जिलों या उनके भाग में प्रवेश न करे या उस स्थान को न लौटे जहाँ से चले जाने के लिए उनमें से प्रत्येक को निदेश दिया गया था ।

5. अपराध करने के लिए आमादा व्यक्तियों का हटाया जाना. – जब कभी जिला मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत हो कि, –

(क) किसी व्यक्ति के आने-जाने या कार्यों से मानव शरीर या सम्पत्ति को संत्रास, खतरा या अपहानि कारित हो रही है, या ऐसा आना-जाना या कार्य ऐसा संत्रास, खतरा या अपहानि कारित करने के लिए प्रकल्पित है; या

(ख) यह विश्वास करने के लिए युक्तियुक्त कारण है कि ऐसा व्यक्ति किसी ऐसे अपराध के, जिसमें बल या हिंसा अन्तर्बलित है, या भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (1860 का सं. 45) के अध्याय 12, 16 या 17 या उसकी धारा 506 या 509 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के करने में या ऐसे किसी अपराध के दुष्प्रेरण में संलग्न है या संलग्न होने को आमादा है और जब जिला मजिस्ट्रेट की राय में, ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध साक्षीगण अपने शरीर या सम्पत्ति की सुरक्षा के बारे में उसकी ओर से आशंका होने के कारण, खुले आम साक्ष्य देने हेतु आगे आने के लिए रजामंद नहीं हैं; या 

(ग) किसी अप्रवासी के लगातार निवास से किसी महामारी का प्रादुर्भाव होना संभाव्य है,

तो जिला मजिस्ट्रेट उस पर सम्यक् रूपेण तामील किये गये लिखित आदेश द्वारा डोंडी पिटवाकर या अन्यथा, जैसा जिला मजिस्ट्रेट उचित समझे, ऐसे व्यक्ति या अप्रवासी को निदेश दे सकेगा कि. –

(क) वह ऐसी रीति में आचरण करे जो हिंसा या संत्रास या ऐसे रोग के प्रादुर्भाव या प्रसार का निवारण करने के लिए आवश्यक प्रतीत हो; या

(ख) वह जिले या उसके किसी भाग या ऐसे क्षेत्र तथा उसके समीपस्थ किसी जिले या जिलों या उसके / उनके किसी भाग के बाहर ऐसे मार्ग से तथा ऐसे समय के भीतर जैसा कि जिला मजिस्ट्रेट विनिर्दिष्ट करे, चला जाये और यथास्थिति उक्त जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा ऐसे समीपस्थ जिलों या उनके भाग में, जहाँ से कि हट जाने का उसे निर्देश दिया गया था, प्रवेश न करें या न लौटें ।

6. कतिपय अपराधों के लिए दोषसिद्ध ठहराये गये व्यक्तियों का हटाया जाना. – यदि कोई व्यक्ति,-

(क) (i) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (1860 का सं. 45) के अध्याय 12, 16 या 17 के या उसकी धारा 506 या 509 के अधीन किसी अपराध का; या

(ii) सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 ( 1955 का सं. 22) के अधीन किसी अपराध का; या 

(ख) स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन अधिनियम, 1956 (1956 का सं. 104)के अधीन किसी अपराध का दो बार; या

(ग) मध्यप्रदेश राज्य में लागू हुए रूप में सार्वजनिक द्यूत अधिनियम, 1867 (1867 का सं. 3) की धारा 3 या 4 या 4-क के अधीन किसी अपराध का तीन वर्ष की कालावधि के भीतर तीन बार,

सिद्धदोष ठहराया जा चुका है तो जिला मजिस्ट्रेट यदि उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में सम्भाव्य है कि वह उस अपराध जिसके सम्बन्ध में वह सिद्धदोय ठहराया गया था, समरूप कोई अपराध करने में स्वयं को पुनः संलग्न करेगा, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकेगा कि वह जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र या उसके समीपस्थ किसी जिले या जिलों या उसके / उनके भाग के बाहर, ऐसे मार्ग से तथा ऐसे समय के भीतर, जैसा कि जिला मजिस्ट्रेट आदेश दे, चला जाये और यथास्थिति उस जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा ऐसे समीपस्थ जिलों या उनके भाग में, जहाँ से कि हट जाने का उसे निर्देश दिया गया था, प्रवेश न करें या न लौटे । 

स्पष्टीकरण.– इस धारा के प्रयोजन के लिए, अभिव्यक्ति “उस अपराध के, जिसके लिए कि वह सिद्धदोष ठहराया गया था, समरूप अपराध” से अभिप्रेत है :-

(एक) खण्ड (क) में वर्णित अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराये गये व्यक्ति के मामले में, उस खण्ड में वर्णित भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (1860 का सं. 45) के अध्यायों या धाराओं में से किसी के भी अन्तर्गत आने वाले अपराध या उस खण्ड के उपखण्ड (2) में वर्णित अधिनियम के उपबन्धों के अन्तर्गत आने वाला अपराध; और

(दो) खण्ड (ख) तथा (ग) में वर्णित अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराये गये व्यक्ति के मामले में उक्त खण्डों में क्रमशः वर्णित अधिनियमों के उपबन्धों के अन्तर्गत आने वाले अपराध |

7. धारा 4, 5 या 6 के अधीन आदेशों के प्रवर्तन की कालावधि — यथास्थिति किसी जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा उसके समीपस्थ किसी जिले या जिलों या उसके / उनके किसी भाग में प्रवेश न करने के सम्बन्ध में धारा 4, 5 या 6 के अधीन दिया गया निर्देश ऐसी कालावधि के लिए होगा जो कि उसमें विनिर्दिष्ट की जाये और किसी भी दशा में उस तारीख से, जिसको कि वह किया गया था, एक वर्ष से अधिक की कालावधि के लिए नहीं होगा ।

8. धारा 3, 4, 5 या 6 के अधीन आदेश पारित किये जाने के पूर्व सुनवाई की जाएगी.-– (1) किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 3, 4, 5 या 6 के अधीन कोई आदेश पारित किया जाने के पूर्व, जिला मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को उसके विरुद्ध तात्विक अभिकथनों के सामान्य स्वरूप की लिखित जानकारी देगा और उसे उनके बारे में स्पष्टीकरण देने का युक्तियुक्त अवसर देगा ।

(2) यदि ऐसा व्यक्ति उसके द्वारा पेश किये गये किसी साक्षी की परीक्षा के लिए आवेदन करे तो जिला मजिस्ट्रेट, जब तक कि अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से, उसकी यह राय न हो कि ऐसा आवेदन तंग करने या विलम्ब करने के प्रयोजन से दिया गया है, ऐसे आवेदन को मंजूर करेगा और ऐसे साक्षियों की परीक्षा करेगा ।

(3) ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किया गया कोई भी लिखित कथन मामले के अभिलेख के साथ फाइल किया जाएगा और ऐसा व्यक्ति अपना स्पष्टीकरण देने तथा अपने द्वारा पेश किये गये साक्षियों की परीक्षा के प्रयोजन से किसी विधि व्यवसायी द्वारा जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष उपसंजात होने का हकदार होगा ।

(4) उपधारा (1) के अधीन कार्यवाही करने वाला जिला मजिस्ट्रेट किसी ऐसे व्यक्ति की, जिसके विरुद्ध धारा 3, 4, 5 तथा 6 के अधीन किसी आदेश का किया जाना प्रस्तावित है, हाजिरी सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए, ऐसे व्यक्ति से अपेक्षा कर सकेगा कि वह उसके समक्ष उपसंजात हो और जांच के दौरान ऐसी हाजिरी के लिए प्रतिभू सहित या रहित प्रतिभूति बंधपत्र निष्पादित करे ।

(5) यदि वह व्यक्ति अपेक्षित किये गये अनुसार प्रतिभूति बंधपत्र निष्पादित न करे या जांच के दौरान जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष उपसंजात न हो, तो जिला मजिस्ट्रेट के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह जांच में एकपक्षीय कार्यवाही करे और तदुपरि ऐसा आदेश, जो उस व्यक्ति के विरुद्ध पारित किया जाना प्रस्तावित किया गया था, पारित किया जा सकेगा ।

9. अपील. – (1) धारा 3, 4, 5 या 6 के अधीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा या धारा 13 के अधीन विशेष रूप से सशक्त किये गये किसी अन्य अधिकारी द्वारा किये गये किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, ऐसे आदेश की तारीख से 30 दिन के भीतर, राज्य सरकार को अपील कर सकेगा। ऐसी अपील का विनिश्चय यथासंभव, अपील फाइल किये जाने की तारीख से चार मास की कालावधि के भीतर किया जाएगा ।

(2) इस धारा के अधीन अपील उस आदेश के, जिसके कि विरुद्ध अपील की गई है, सम्बन्ध में आपत्ति के आधार पर संक्षेप में देते हुए ज्ञापन के रूप में की जाएगी और उसके साथ उसकी प्रमाणित प्रतिलिपि संलग्न की जायेगी ।

(3) ऐसी अपील के प्राप्त होने पर, राज्य सरकार, अपीलार्थी को या तो व्यक्तिशः या किसी विधि व्यवसायी के द्वारा सुने जाने का युक्तियुक्त अवसर देने तथा ऐसी और जांच यदि कोई हो, जैसी कि वह आवश्यक समझे, करने के पश्चात् उस आदेश की जिसके कि विरुद्ध अपील की गई है, पुष्टि कर सकेगी या उसमें फेरफार कर सकेगी या उसे विखण्डित कर सकेगी : 

     परन्तु, वह आदेश जिसके विरुद्ध अपील की गई है, जब तक कि राज्य सरकार अन्यथा निदेश न दे, अपील का निपटारा होने तक प्रवर्तन में रहेगा ।

(4) इस धारा के अधीन अपील के लिये उपबन्धित तीस दिन की कालावधि की संगणना करने में उस आदेश की, जिसके कि विरुद्ध अपील की गयी है, प्रमाणित प्रति दिये जाने के लिये लिया गया छोड़ दिया जायेगा ।

10. कतिपय मामलों में पारित आदेश की अन्तिमता — धारा 3, 4, 5 या 6 के अधीन पारित किया गया कोई आदेश किसी न्यायालय में निम्नलिखित आधारों पर ही प्रश्नगत किया जाएगा, अन्यथा नहीं,-

(एक) यह कि जिला मजिस्ट्रेट ने धारा 8 की उपधारा (1) में दी गयी प्रक्रिया का अनुसरण नहीं किया था; या

(दो) यह कि जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष ऐसी कोई सामग्री नहीं थी जिस पर वह आदेश आधारित कर सकता था; या

(तीन) यह कि जिला मजिस्ट्रेट की यह राय नहीं थी कि साक्षीगण उस व्यक्ति के विरुद्ध जिसके कि सम्बन्ध में धारा 5 के अधीन आदेश पारित किया गया था, खुलेआम साक्ष्य देने हेतु आगे आने के लिए रजामंद नहीं थे।

11. व्यक्ति द्वारा जिला आदि न छोड़ने पर तथा हटाये जाने के पश्चात् उसके द्वारा उसमें प्रवेश करने पर प्रक्रिया – यदि कोई व्यक्ति, जिसे किसी जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा उसके समपीस्थ किसी जिले या जिलों या उसके/उनके किसी भाग से हट जाने का निदेश धारा 4, 5 या 6 के अधीन जारी किया जा चुका हो,–

(एक) निदेशित किये गये अनुसार नहीं हट जाता है; या

(दो) इस प्रकार हट जाने पर, धारा 12 में यथा उपबन्धित लिखित अनुज्ञा के सिवाय, यथास्थिति जिले या उसके भाग या उसके समीपस्थ किसी जिले या जिलों या उसके / उनके किसी भाग में, आदेश में विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर प्रवेश करता है,

तो जिला मजिस्ट्रेट उसे गिरफ्तार करवा सकेगा और पुलिस अभिरक्षा में उसे ऐसे क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान को, जिसे जिला मजिस्ट्रेट प्रत्येक मामले में विनिर्दिष्ट करे, हटवा सकेगा ।

12. उस जिले आदि में जिससे हट जाने के लिए किसी व्यक्ति को निदेश दिया गया था, प्रवेश करने या लौटने की अनुज्ञा. — (1) राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को, जिसके सम्बन्ध में धारा 4, 5 या 6 के अधीन कोई आदेश दिया गया हो, उस जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा किसी समीपस्थ जिले या जिलों या उसके /उनके भाग में, जहाँ से कि हट जाने के लिए उसे निदेश दिया गया था ऐसी अस्थायी कालावधि के लिए तथा ऐसी शर्तों के अध्यधीन रहते हुए प्रवेश करने या लौटने के लिए लिखित अनुज्ञा दे सकेगा जैसी की ऐसी अनुज्ञा में विनिर्दिष्ट की जायें।

(2) पूर्वोक्त अनुज्ञा किसी भी समय यथास्थिति राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिसंहत की जा सकेगी।

(3) उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति को यथास्थिति उस जिले या उसके ऐसे भाग या ऐसे क्षेत्र तथा किसी समीपस्थ जिले या जिलों या उसके / उनके भाग में, जिससे हट जाने के लिए उसे निदेश दिया गया था, प्रवेश करने या लौटने की अनुज्ञा देते समय उक्त अनुज्ञा देने वाला प्राधिकारी उससे यह अपेक्षा कर सकेगा कि वह उस पर अधिरोपित की गई शर्तों के सम्यक् अनुपालन के लिए प्रतिभू सहित या रहित बंध-पत्र निष्पादित करे।

(4) कोई भी व्यक्ति जो उपधारा (1) के अधीन मंजूर की गई अनुज्ञा के अनसुरण में यथास्थिति उस जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा किसी समीपस्थ जिले या जिलों या उसके / उनके भाग में; जहाँ से हट जाने के लिये उसे निदेश दिया गया था, प्रवेश करता है या लौटता है, उक्त अनुज्ञा में अधिरोपित की गई शर्तों का अनुपालन करेगा, और उस अस्थायी कालावधि की, जिसके लिए कि प्रवेश करने या लौटने की अनुज्ञा उसे दी गई थी, समाप्ति पर या ऐसी अनुज्ञा का पूर्वतर प्रतिसंहरण हो जाने पर यथास्थिति ऐसे जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा किसी समीपस्थ जिला या जिलों या उसके / उनके भाग के बाहर चला जायेगा, और धारा 4, 5 या 6 के अधीन दिये गये मूल आदेश में विनिर्दिष्ट कालावधि की अपर्यवेसित अवशिष्ट अवधि में, नवीन अनुज्ञा के बिना, उसमें प्रवेश नहीं करेगा या वहाँ नहीं लौटेगा ।

(5) यदि ऐसा व्यक्ति अधिरोपित की गई शर्तों में से किसी शर्त का अनुपालन नहीं करता है या तद्नुसार हटता नहीं है या इस प्रकार हट जाने के पश्चात् उस जिले या उसके किसी भाग या ऐसे क्षेत्र तथा किसी समीपस्थ जिले या जिलों या उसके / उनके भाग में, नवीन अनुज्ञा के बिना, प्रवेश करता है या लौटता है, तो किसी अन्य कार्यवाही पर, जो कि इस अधिनियम के अधीन उसके विरुद्ध की जा सकती हो, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जिला मजिस्ट्रेट उसे गिरफ्तार करवा सकेगा और पुलिस अभिरक्षा में उसे ऐसे क्षेत्र के बाहर ऐसे स्थान को, जिसे कि जिला मजिस्ट्रेट प्रत्येक मामले में विनिर्दिष्ट करे, हटवा सकेगा ।

13. निर्वासन (एक्सटर्नमेन्ट) की राज्य सरकार की शक्ति – ( 1 ) राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में विशेष रूप से सशक्त किया गया कोई अधिकारी धारा 3, 4, 5 या 6 के अधीन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जिले में प्रयोक्तव्य शक्तियों का प्रयोग वैसी ही परिस्थितियों में तथा वैसी ही रीति में इस उपान्तरण के साथ कर सकेगा कि राज्य सरकार या विशेष रूप से सशक्त किये गये अधिकारी के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह यथास्थिति ऐसे दल या समूह के सदस्यों या व्यक्तियों या अप्रवासियों या सिद्धदोष ठहराये गये व्यक्तियों को किसी जिले या जिलों या उसके / उनके भाग से, चाहे वे उसके/उनके समीपस्थ हों, या न हों, हट जाने के लिए और किसी जिले या जिलों या उसके / उनके भाग में, चाहे वे उसके / उनके समीपस्थ हों या न हों, प्रवेश न करने या न लौटने के लिए निदेश दें ।

(2) धारा 7, 8, 9, 10, 11 और 12 के उपबन्ध और धारा 9 के उपबन्ध, उस दशा में जबकि आदेश राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त किये गये अधिकारी द्वारा उपधारा (1) के अधीन पारित किया गया हो, इस धारा के अधीन किन्हीं शक्तियों के प्रयोग को यथावश्यक परिवर्तन सहित इस प्रकार लागू होंगे जैसे कि वे धारा 3, 4, 5 या 6 के अधीन किन्हीं शक्तियों के प्रयोग को लागू होते हैं ।

(3) जहाँ आदेश राज्य सरकार द्वारा उपधारा (1) के अधीन पारित किया गया हो वहाँ राज्य सरकार या तो स्वप्रेरणा से या व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर स्वयं के द्वारा पारित किये गये किसी भी आदेश का पुनर्विलोकन कर सकेगी और उसके सम्बन्ध में ऐसा आदेश पारित कर सकेगी जैसा कि वह उचित समझे :

    परन्तु किसी भी आदेश में तब तक फेरफार नहीं किया जायेगा या उसे तब तक उलटा नहीं जायेगा जब तक कि सम्बन्धित व्यक्ति को आदेश के समर्थन में उपसंजात होने तथा सुने जाने के लिए सूचना न दे दी गई हो ।

14. धारा 3, 4, 5, 6 और 13 के अधीन निदेशों का उल्लंघन के लिये शास्ति– यदि कोई व्यक्ति धारा 3, 4, 5, 6 और 13 के अधीन जारी किये गये किसी निदेश का विरोध करेगा या उसकी अवज्ञा करेगा या उसका अनुवर्तन नहीं करेगा या किसी ऐसे निदेश के विरोध या उसकी अवज्ञा का दुष्प्रेरण करेगा तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, किन्तु जो, लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों के सिवाय चार मास से कम नहीं होगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।

15. जिस क्षेत्र के हट जाने के लिए किसी व्यक्ति को निदेश दिया गया हो उस क्षेत्र में, अनुज्ञा के बिना, प्रवेश करने के लिये या जब अस्थायी रूप से लौटने के लिए अनुज्ञा दी गई हो तो अधिक ठहरने के लिये शास्ति. – धारा 11 में उपबन्धित की गई परिस्थितियों तथा रीति में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और हटाने की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, कोई व्यक्ति, जो,-

(क) धारा 4, 5, 6 या 13 के अधीन उसको जारी किये गये निदेश के उल्लंघन में उस जिले या उसके भाग, या ऐसे क्षेत्र तथा किसी अन्य जिले या जिलों या उसके / उनके भाग में, जिससे हट जाने के लिये उसे निदेश दिया गया था, अनुज्ञा के बिना प्रवेश करेगा या लौटेगा;

(ख) धारा 12 के अधीन मंजूर की गई अनुज्ञा से, किसी ऐसे पूर्वोक्त क्षेत्र या जिले या उसके भाग में प्रवेश करेगा या लौटेगा किन्तु उसके उपबन्धों के प्रतिकूल उस अस्थायी कालावधि की, जिसके लिये कि उसे प्रवेश करने या लौटने की अनुज्ञा दी गई थी, समाप्ति पर या ऐसी अनुज्ञा का पूर्वतर प्रतिसंहरण हो जाने पर ऐसे क्षेत्र से बाहर नहीं हटेगा या ऐसी अस्थायी कालावधि की समाप्ति पर या अनुज्ञा का प्रतिसंहरण हो जाने पर हट जाने के पश्चात्, नवीन अनुज्ञा के बिना तत्पश्चात् प्रवेश करेगा या लौटेगा, 

वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी किन्तु जो, लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों के सिवाय, छह मास से कम की नहीं होगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।

16. धारा 3 के अधीन पारित किये गये आदेश या धारा 4, 5, 6 या 13 के अधीन जारी किये निदेशों के उल्लंघन के लिये अभियोजनों में उपधारणा — तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, धारा 3 के अधीन पारित किये गये आदेश या धारा 4, 5, 6 या 13 के अधीन जारी किये गये निदेश के उल्लंघन सम्बन्धी किसी अपराध के अभियोजन में,आदेश की अधिप्रमाणित प्रति पेश किये जाने पर, जब तक कि प्रतिकूल साबित न कर दिया जाये तथा जिसे साबित करने का भार अभियुक्त पर होगा, यह उपधारणा की जायेगी,

(क) आदेश, यथास्थिति जिला मजिस्ट्रेट या धारा 18 के अधीन राज्य सरकार द्वारा सशक्त किये गये उपखण्ड मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार या धारा 13 के अधीन राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त किये गये किसी अधिकारी द्वारा किया गया था;

(ख) यथास्थिति जिला मजिस्ट्रेट या धारा 18 के अधीन राज्य सरकार द्वारा सशक्त किये गये अपर जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार या धारा 13 के अधीन राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से सशक्त किये गये किसी अधिकारी का यह समाधान हो गया था कि वे आधार जिन पर या वह प्रयोजन जिसके लिए वह किया गया था, विद्यमान था तथा उस आदेश का किया जाना आवश्यक था; और 

(ग) आदेश अन्यथा विधिमान्य था और इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुरूप था ।

17. उस व्यक्ति द्वारा निष्यादित किये गये बंध-पत्र का समपहरण जिसे उस क्षेत्र में प्रवेश करने या लौटने की अनुज्ञा दी गई थी जिस क्षेत्र से हट जाने का उसे निदेश दिया गया था.– यदि धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञात कोई व्यक्ति, उक्त उपधारा के अधीन या उक्त धारा की उपधारा (3) के अधीन उसके द्वारा निष्पादित किये गये बन्ध-पत्र में अधिरोपित की गई किसी शर्त का अनुपालन नहीं करता है, तो उसके बन्ध-पत्र का समपहरण कर लिया जाएगा और उसके द्वारा आबद्ध कोई भी व्यक्ति तत्सम्बन्धी शास्ति का भुगतान करेगा या न्यायालय के समाधान योग्य कारण बतलायेगा कि ऐसी शास्ति का भुगतान क्यों नहीं किया जाना चाहिए ।

18. जिला मजिस्ट्रेटों की शक्तियों तथा कर्त्तव्यों का प्रत्यायोजन – दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का सं. 2) में किसी बात के होते हुए भी, राज्य सरकार, आदेश द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम के अधीन जिला मजिस्ट्रेट को प्रदत्त किसी शक्ति का या उस पर अधिरोपित किये गये किसी कर्तव्य का प्रयोग या पालन ऐसे अपर जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट द्वारा तथा ऐसे क्षेत्रों के लिए, जो कि आदेश में विनिर्दिष्ट किये जायें, किया जाएगा ।

19. जानकारी का स्त्रोत प्रकट नहीं किया जाएगा.— इस अधिनियम की किसी भी बात के सम्बन्ध में यह नहीं समझा जायेगा कि वह यथास्थिति राज्य सरकार या किसी ऐसे अधिकारी, जिसे उसके द्वारा धारा 13 के अधीन विशेष रूप से सशक्त किया गया हो, या जिला मजिस्ट्रेट या धारा 18 के अधीन सशक्त किये गये अपर जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट से यह अपेक्षा करती है कि वह उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध इस अधिनियम की धारा 3, 4, 5, 6 और 13 के अधीन आदेश किया गया है, या किसी न्यायालय को अपनी जानकारी का स्वोत या कोई तथ्य प्रकट करे जिसकी कि संसूचना से, यथास्थिति राज्य सरकार या ऐसा अधिकारी जिसे धारा 13 के अधीन सशक्त किया गया है, या जिला मजिस्ट्रेट या धारा 18 के अधीन सशक्त किये गये अपर जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट की राय में, किसी इत्तिला देने वाले की पहचान का नाम प्रकट होता हो।

अध्याय 4

समाज विरोधी क्रियाकलापों का नियंत्रण

20. संक्षारक पदार्थ आदि के विधिविरुद्ध कब्जे के लिये दण्ड– कोई भी व्यक्ति, जो कोई संक्षारक (कारोसिव) पदार्थ या द्रव परिस्थितियों में अपने शरीर पर रख कर ले जायेगा या जानते हुए उसे अपने कब्जे या नियंत्रण में रखेगा जिनसे ऐसा युक्तियुक्त संदेह उत्पन्न होता हो कि वह किसी विधिपूर्ण उद्देश्य के लिये उसे अपने शरीर पर रख कर नहीं ले जा रहा है या उसे किसी विधिपूर्ण उद्देश्य से अपने कब्जे या नियंत्रण में नहीं रखे हुए है, उस दशा में जबकि यह दर्शित न कर सकता हो कि वह उसे किसी विधिपूर्ण उद्देश्य से अपने शरीर पर रख कर ले जा रहा था या अपने कब्जे या नियंत्रण में रखे हुए था कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डनीय होगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा ।

21. क्षेत्र के निवासियों पर सामूहिक जुर्मानों का अधिरोपण– (1) (क) यदि राज्य सरकार को यह प्रतीत हो कि किसी क्षेत्र के निवासी या निवासियों का कोई वर्ग या उपवर्ग ऐसे अपराधों के किये जाने से सम्बन्धित है या ऐसे अपराधों के किये जाने को दुष्प्रेरित कर रहा है जिनकी परिणति मृत्यु या घोर उपहति या सम्पत्ति की हानि या उसके नुकसान में या उद्दीपन या फिरौती के व्यवहरण में होती है अथवा होने की सम्भावना है, ऐसे अपराधों के किये जाने से सम्बन्धित व्यक्तियों को संश्रय दे रहा है, या अपराधियों का पता लगाने या पकड़वाने में अपनी शक्ति भर पूरी सहायता नहीं दे रहा है या ऐसे अपराधों के किये जाने से सम्बन्धित तात्विक साक्ष्य दबा रहा है, तो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा उस क्षेत्र के निवासियों या निवासियों के वर्ग या उपवर्ग पर सामूहिक जुर्माना अधिरोपित कर सकेगी ।

(ख) खण्ड (क) के अधीन सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने वाला आदेश कम से कम एक ऐसे समाचार-पत्र में, जिसका सम्बन्धित क्षेत्र में परिचालन हो और ऐसी अन्य रीति में, जिसे राज्य सरकार, उस आदेश को सम्बन्धित क्षेत्र के निवासियों की जानकारी में लाने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त समझे, भी प्रकाशित किया जायेगा ।

(2) राज्य सरकार या कोई ऐसा अधिकारी, जो राज्य सरकार द्वारा साधारण या विशेष आदेश द्वारा, इस निमित्त सशक्त किया गया हो, किसी भी ऐसे निवासी को या ऐसे निवासियों के किसी भी वर्ग या उपवर्ग को ऐसे जुर्माने या उसके किसी भाग का भुगतान करने के दायित्व से छूट दे सकेगा ।

(3) जिला मजिस्ट्रेट, ऐसी जांच करने के पश्चात् जैसी कि वह आवश्यक समझे, ऐसे जुर्माने को उन निवासियों के बीच प्रभाजित करेगा जो जुर्माने का भुगतान करने के लिए सामूहिक रूप से दायी हों और ऐसा प्रभाजन ऐसे निवासियों के अपने-अपने साधनों के सम्बन्ध में जिला मजिस्ट्रेट के निर्णय के अनुसार किया जायेगा ।

(4) प्रभाजन करते समय, जिला मजिस्ट्रेट वह भाग नियत कर सकेगा जिसका भुगतान किसी संयुक्त या अविभक्त कुटुम्ब द्वारा किया जाना हो । 

(5) ऐसे जुर्माने का वह भाग, जो किसी निवासी अथवा संयुक्त या अविभक्त कुटुम्ब द्वारा देय होने के रूप में नियत किया गया हो,-

(क) उस रीति में, जो किसी न्यायालय द्वारा अधिरोपित किये गये जुर्मानों की वसूली के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का सं. 2) द्वारा उपबन्धित की गई है, इस प्रकार वसूल किया जा सकेगा मानो कि ऐसा भाग किसी न्यायालय द्वारा अधिरोपित किया गया जुर्माना हो:

     परन्तु राज्य सरकार, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का सं. 2) की धारा 421 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट नियमों के स्थान पर, उस रीति का जिसमें कि उक्त संहिता की उक्त धारा की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन वारण्टों का निष्पादन किया जाना हो, विनियमन करते हुए तथा किन्हीं ऐसे दावों के, जो जुर्माने का भुगतान करने के लिए दायी व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसी सम्पत्ति के सम्बन्ध में किये गये हों जो कि वारण्ट के निष्पादन में कुर्क की गई हो, संक्षिप्त अवधारण के लिए नियम इस अधिनियम के अधीन बना सकेगी; या

(ख) भू-राजस्व की बकाया के तौर पर वसूल किया जा सकेगा । 

(6) उपधारा (1) के अधीन सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने वाला आदेश राज्य सरकार द्वारा किसी भी समय प्रतिसंहत या उपांतरित किया जा सकेगा ।

अध्याय-5

 लोक क्षेम और व्यवस्था

22. शिविरों, कवायदों (ड्रिल), परेडों आदि का नियंत्रण. – ( 1 ) यदि राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि लोक सुरक्षा या लोक व्यवस्था बनाये रखने के हित में ऐसा करना आवश्यक है, तो वह साधारण या विशेष आदेश द्वारा, किसी क्षेत्र में सैनिक प्रकार के ऐसे शिविरों का लगाया जाना या किसी ऐसे अभ्यास, संचलन, व्यवस्थित चालन (इवॉल्यूशन) या कवायद का कराया जाना प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित कर सकेगी जो आदेश में विनिर्दिष्ट किये गये हों ।

(2) यह सुनिश्चित करने की दृष्टि से कि किसी भी स्थान पर सैनिक प्रकार का कोई अप्राधिकृत अभ्यास संचालन व्यवस्थित चालन या कवायद नहीं की जाती है, राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा किसी ऐसे वर्ग के व्यक्तियों या संगठनों द्वारा, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट किये गये हों, किसी शिविर के लगाये जाने, परेड, सम्मिलन, सभा किये जाने या जुलूस निकाले जाने या उसमें भाग लिये जाने को प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित कर सकेगी या उसी पर शर्तें अधिरोपित कर सकेगी।

(3) इस धारा के अधीन किये गये किसी आदेश का कोई भी उल्लंघन कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा वा जुमनि से, या दोनों से दण्डनीय होगा ।

23. वर्दियों (यूनिफार्म) का नियंत्रण. – ( 1 ) यदि राज्य सरकार का यह समाधान हो जाता है कि किसी ऐसी पोशाक या परिधान की वस्तु (आर्टिकल ऑफ एपारेल) या सम्प्रतीक से, जो संघ के सशस्त्र बल के सदस्य या किसी पुलिस बल के या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन गठित किसी बल के सदस्य द्वारा पहने जाने या प्रदर्शित किये जाने के लिये अपेक्षित किसी वर्दी या वर्दी के भाग या सम्प्रतीक से मिलता जुलता है, सार्वजनिक रूप से पहने जाने या प्रदर्शित किये जाने से लोक क्षेम, व्यवस्था बनाये रखने या शान्ति या प्रशान्ति के बनाये रखने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है तो राज्य सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा किसी भी ऐसी पोशाक या परिधान की वस्तु या सम्प्रतीक को प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित कर सकेगी ।

(2) इस धारा के प्रयोजनों के लिए, किसी पोशाक, परिधान की वस्तु या सम्प्रतीक के सम्बन्ध में यह समझा जायेगा कि वह सार्वजनिक रूप से पहनी गई है या जनता में प्रदर्शित की गई है यदि वह इस प्रकार पहनी या प्रदर्शित की जाती है जिससे कि वह किसी ऐसे स्थान में दिखाई दे जिसमें जनता की पहुंच हो ।

(3) यदि कोई व्यक्ति इस धारा के अधीन किये गये किसी आदेश का उल्लंघन करेगा तो वह कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से या दोनों से दण्डनीय होगा ।

24. पथ्या (पाथ वे), सड़क आदि के उपयोग को प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित करने की शक्ति. – (1) राज्य सरकार, लोक व्यवस्था बनाये रखने के लिये या जनसाधारण के हित में, आदेश द्वारा, –

(क) किसी सड़क, पथ्या (पाथ वे) या जल मार्ग के उपयोग को;

(ख) किसी भूमि पर से किसी व्यक्ति, पशु या यान के आने-जाने को

तीन मास से अनधिक की ऐसी कालावधि तक के लिये जो कि आदेश में विनिर्दिष्ट की जाये प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित कर सकेगी। 

(2) यदि कोई व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन किये गये किसी आदेश का उल्लंघन करेगा, तो वह कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डनीय होगा ।

अध्याय-6

कतिपय स्थानों तथा क्षेत्रों तक पहुंच

25. संरक्षित स्थान. – (1) यदि राज्य सरकार जनसाधारण के हित में किसी स्थान या किसी और वर्ग के स्थानों के सम्बन्ध में यह आवश्यक या समीचीन समझती है कि अप्राधिकृत व्यक्तियों के प्रवेश रोकने के लिए विशेष पूर्वावधानियाँ बरती जानी चाहिए, तो राज्य सरकार, आदेश द्वारा उस स्थान को या यथास्थिति उस वर्ग के प्रत्येक स्थान को संरक्षित स्थान घोषित कर सकेगी, और तदुपरि, उस समय तक जब तक कि वह आदेश प्रवृत्त रहता है, यथास्थिति वह स्थान या उस वर्ग का प्रत्येक स्थान इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये संरक्षित स्थान होगा ।

(2) कोई भी व्यक्ति, राज्य सरकार की या जिला मजिस्ट्रेट की या ऐसे अन्य अधिकारी की, जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया जाये, अनुज्ञा के बिना किसी भी संरक्षित स्थान में प्रवेश नहीं करेगा या उस पर या उसमें नहीं रहेगा या उस पर से नहीं जायेगा या उसके सामीप्य में नहीं घूमेगा ।

(3) जहाँ उपधारा (2) के अनुसरण में किसी व्यक्ति को किसी संरक्षित स्थान में प्रवेश करने, उस पर या उसमें रहने या उस पर से जाने की अनुज्ञा दी जाती है, वहाँ वह व्यक्ति, ऐसी अनुज्ञा के अधीन कार्य करते समय, अपने आचरण को विनियमित करने के लिए ऐसे निदेशों का अनुपालन करेगा जो उस प्राधिकारी द्वारा दिये जायें, जिसने अनुज्ञा दी है ।

(4) यदि कोई व्यक्ति इस धारा के किसी उपबन्ध के उल्लंघन में किसी संरक्षित स्थान में, प्रवेश करेगा या रहेगा, तो ऐसी किन्हीं भी अन्य कार्यवाहियों पर, जो उसके विरुद्ध की जा सकती हों, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उसे किसी पुलिस अधिकारी द्वारा या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किये गये किसी अन्य व्यक्ति द्वारा वहाँ से हटाया जा सकेगा ।

(5) यदि कोई व्यक्ति इस धारा के उपबन्धों में से किसी उपबन्ध का उल्लंघन करेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुमनि से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

26. संरक्षित क्षेत्र. – (1) यदि राज्य सरकार, जनसाधारण के हित में यह आवश्यक या समीचीन समझती है कि किसी क्षेत्र में व्यक्तियों के प्रवेश को विनियमित किया जाए, तो राज्य सरकार, इस अधिनियम के किन्हीं भी अन्य उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, आदेश द्वारा ऐसे क्षेत्र को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर सकेगी, और तदुपरि उस समय तक जब कि यह आदेश प्रवृत्त रहता है, ऐसा क्षेत्र इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए संरक्षित क्षेत्र होगा ।

(2) ऐसी तारीख को तथा ऐसी तारीख के पश्चात् जो उपधारा (1) के अधीन किये गये आदेश में विनिर्दिष्ट की जाये तथा किन्हीं ऐसी छूटों के अध्यधीन रहते हुए जिनके लिये उक्त आदेश द्वारा उपबन्ध किया जाये, कोई भी ऐसा व्यक्ति, जो उक्त तारीख के ठीक पूर्व, उक्त आदेश द्वारा संरक्षित क्षेत्र के रूप में घोषित किये गये क्षेत्र का निवासी नहीं था, उक्त आद्वेश में विनिर्दिष्ट किये गये प्राधिकारी या व्यक्ति द्वारा उसे दिये गये लिखित अनुज्ञा -पत्र के निर्बन्धनों के अनुसार ही उस क्षेत्र में प्रवेश करेगा या उसमें रहेगा अन्यथा नहीं ।

(3) यदि कोई व्यक्ति इस धारा के उपबन्धों के उल्लंघन में किसी संरक्षित क्षेत्र में प्रवेश करेगा या रहेगा तो ऐसी किन्हीं भी अन्य कार्यवाहियों पर, जो उसके विरुद्ध की जा सकती हों, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उस संरक्षित क्षेत्र में कर्तव्यारूद किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा या उसके निदेशों के अधीन या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किये गये किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा वहाँ से हटाया जा सकेगा ।

((4) यदि कोई व्यक्ति इस धारा के उपबन्धों में से किसी भी उपबन्ध के उल्लंघन में किसी संरक्षित स्थान में प्रवेश करेगा या रहेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

27. गार्ड के साथ बल प्रयोग करना या उससे बचकर निकलना.— कोई भी व्यक्ति, जो किसी संरक्षित स्थान या संरक्षित क्षेत्र में,-

(क) ऐसे स्थान या क्षेत्र का संरक्षण करने या ऐसे स्थान या क्षेत्र में प्रवेश को रोकने या नियंत्रित करने के प्रयोजन से तैनात किये गये किसी व्यक्ति पर आपराधिक बल प्रयोग करके या प्रयोग करने की धमकी देकर; या

(ख) किसी ऐसे व्यक्ति से अपने प्रवेश या प्रयतित / प्रवेश को छिपाने के लिये पूर्वावधानियाँ बरतते प्रवेश करेगा या प्रवेश करने का प्रयत्न करेगा, 

वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

28. कतिपय स्थानों तथा क्षेत्रों के लिए आदेश. –-(1) इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, राज्य सरकार, –

(क) किसी ऐसे अन्य स्थान या क्षेत्र के बारे में, जो उनके द्वारा संरक्षित स्थान या संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है; या 

(ख) किसी ऐसे अन्य स्थान या क्षेत्र के बारे में, जिसके सम्बन्ध में उसे यह आवश्यक प्रतीत होता हो कि ध्वंसक कार्यवाहियों को रोकने या दबाने के लिए या समुदाय के जीवन के लिए आवश्यक प्रदायों तथा सेवाओं को बनाये रखने के लिए विशेष पूर्वावधानियाँ बरती जायें, 

ऐसे स्थान या क्षेत्र में व्यक्तियों के प्रवेश को या ऐसे स्थान या क्षेत्र या उसके सामीप्य में उनके आचरण को नियंत्रित या विनियमित करने के लिये आदेश कर सकेगी।

(2) पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, किसी स्थानीय क्षेत्र के सम्बन्ध में उपधारा (1) के अधीन किये गये आदेशों में निम्नलिखित बातों के लिये उपबन्ध हो सकेंगे, –

(क) ऐसे स्थान या क्षेत्र में व्यक्तियों के प्रवेश को निर्बन्धित करने के लिये और किसी ऐसे व्यक्ति को, जो आदेशों के उल्लंघन में उस स्थान या क्षेत्र में हों या जो इस अधिनियम के उपबन्धों के किसी उल्लंघन के लिये सिद्धदोष ठहराया जा चुका हो, वहाँ से हटाने के लिये;

(ख) यह अपेक्षा करने के लिये कि ऐसे स्थान या क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग की उपस्थिति विहित प्राधिकारी को अधिसूचित की जाये, और किसी ऐसे व्यक्ति से, जो किसी ऐसे अपराध के लिये सिद्धदोष ठहराया गया हो, जैसा कि इस उपधारा के खण्ड (क) में उल्लिखित है, यह अपेक्षा करने के लिये कि वह ऐसे स्थान या क्षेत्र में रहते समय अपने आने-जाने की रिपोर्ट दे और किसी ऐसी अन्य शर्त का अनुपालन करे जो कि विहित प्राधिकारी द्वारा उस पर अधिरोपित की गई हो;

(ग) ऐसे स्थान या क्षेत्र के किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग से यह अपेक्षा करने के लिये कि वे पहचान के लिये ऐसी दस्तावेजी साक्ष्य अपने साथ रखें जो कि विहित की जाये ;और

(घ) किसी व्यक्ति वा व्यक्तियों के वर्ग को कोई विनिर्दिष्ट वस्तु अपने कब्जे या नियंत्रण में रखने से प्रतिषिद्ध करने के लिये ।

(3) किसी संरक्षित स्थान या संरक्षित क्षेत्र के सम्बन्ध में इस धारा के अधीन किये गये किसी आदेश द्वारा ऐसे स्थान या क्षेत्र को इस अधिनियम के ऐसे समस्त उपबन्धों से या उनमें से किन्हीं भी ऐसे उपबन्धों से, जिनका कि यथास्थिति किसी संरक्षित स्थान या संरक्षित क्षेत्र को या उसके सम्बन्ध में लागू होना अभिव्यक्त हो, छूट दी जा सकेगी या यह निर्दिष्ट किया जा सकेगा कि उक्त समस्त उपबन्ध या उनमें से कोई भी उपबन्ध ऐसे उपान्तरणों के अध्यधीन रहते हुए लागू होंगे जो आदेश में निर्दिष्ट किये जायें।

(4) किसी ऐसे स्थान या क्षेत्र के सम्बन्ध में जो संरक्षित स्थान या संरक्षित क्षेत्र न हो, इस धारा के अधीन किये गये आदेश द्वारा यह निर्दिष्ट किया जा सकेगा कि इस अधिनियम के समस्त उपबन्ध या उनमें से कोई उपबन्ध, जिनका यथास्थिति किसी संरक्षित स्थान या संरिक्षत क्षेत्र को या उसके सम्बन्ध में लागू होना अभिव्यक्त हो, उस स्थान या क्षेत्र को, या उसके सम्बन्ध में, जिसके कि बारे में आदेश किया गया हो या तो उपान्तरण के बिना या ऐसे उपान्तरण के साथ लागू होंगे जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाये ।

(5) यदि कोई व्यक्ति इस धारा के अधीन किये गये किसी आदेश का उल्लंघन करेगा, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

अध्याय-7

अनुपूरक 

29. राज्य सरकार की शक्तियों तथा कर्त्तव्यों का प्रत्यायोजन. – राज्य सरकार, आदेश द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि वह धारा 21 के अधीन सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करने की और धारा 30 के अधीन नियम बनाने की शक्ति को छोड़कर, किसी भी ऐसी शक्ति या कर्तव्य का, जो इस अधिनियम द्वारा राज्य सरकार को प्रदत्त की गई या उस पर अधिरोपित किया गया है, प्रयोग तथा निर्वहन ऐसी शर्तों यदि कोई हों, जैसी कि उस निर्देश में विनिर्दिष्ट की जाएं, के अध्यधीन रहते हुए, उसके अधीनस्थ किसी ऐसे अधिकारी द्वारा किया जायेगा जो जिला मजिस्ट्रेट की पदश्रेणी से निम्न पदश्रेणी का न हो ।

30. नियम – (1) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, पूर्व प्रकाशन के पश्चात् बना सकेगी ।

(2) इस अधिनियम के अधीन बनाये गये समस्त नियम, उनके यथासम्भव शीघ्र विधान सभा के पटल पर रखे जायेंगे ।

31. अपराध करने के प्रयत्न के लिये शास्ति. — जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के किये जाने का दुष्प्रेरण करेगा या कोई ऐसा अपराध करने का प्रयत्न करेगा और ऐसा प्रयत्न करने में अपराध किये जाने की दशा में कोई कार्य करेगा, वह उस अपराध के लिये उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा ।

32. अपराधियों को संश्रय देने के लिये शास्ति – जो कोई किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसने इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया है, जानकर मदद या सहायता देगा या संश्रय देगा या उसे छिपायेगा, वह ऐसे अपराध के लिये उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा ।

स्पष्टीकरण – इस उपधारा के प्रयोजन के लिये शब्द “संश्रय” के अन्तर्गत है किसी व्यक्ति को आश्रय, भोजन, पेय, धन, वस्त्र, आयुध, गोला-बारूद या प्रवहण के साधन देना या किन्हीं साधनों से, चाहे वे उसी प्रकार के हो या नहीं जिस प्रकार के इस धारा में परिणित हैं, किसी व्यक्ति की सहायता पकड़े जाने से बचने के लिये करना ।

33. परित्राण-–  (1) किसी व्यक्ति के विरुद्ध किसी ऐसी बात के लिये, जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये किन्हीं नियमों या किये गये किन्हीं आदेशों के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई हो या जिसका सद्भावपूर्वक किया जाना आशयित रहा हो, कोई बाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं होगी।

(2) इस अधिनियम के अधीन अभिव्यक्त रूप से अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, सरकार के विरुद्ध किसी भी ऐसे नुकसान के लिये, जो किसी ऐसी बात के कारण हुआ हो या जिसका किसी ऐसी बात के कारण होना सम्भाव्य हो जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये किन्हीं नियमों या किये गये किन्हीं आदेशों के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई हो या जिसका सद्भावपूर्वक किया जाना आशयित रहा हो, कोई वाद या अन्य विधिक कार्यवाहियाँ नहीं होंगी।

34. अन्य विधियों का लागू होना वर्जित नहीं होगा. — इस अधिनियम के उपबन्ध, तत्समय प्रवृत्त किसी भी अन्य अधिनियम, अध्यादेश या विनियम के अतिरिक्त होंगे, उनका अल्पीकरण करने वाले नहीं ।

35. किसी भी पुलिस अधिकारी द्वारा तलाशी ली जाने की शक्ति — कोई भी पुलिस अधिकारी या कोई व्यक्ति, जिसे राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया गया हो, यथास्थिति संरक्षित स्थान या संरक्षित क्षेत्र में प्रवेश करने वाले या प्रवेश चाहने वाले या उस पर या उसमें रहने वाले या उसको छोड़ने वाले किसी व्यक्ति की तथा ऐसे व्यक्ति द्वारा उसमें लाये गये किसी यान, जलयान, पशु या वस्तु की तलाशी ले सकेगा, और तलाशी के प्रयोजन के लिये ऐसे व्यक्ति, यान, जलयान, पशु या वस्तु को निरुद्ध रख सकेगा :

     परन्तु इस धारा के अनुसरण में किसी स्त्री की तलाशी किसी स्त्री द्वारा ही ली जायेगी अन्यथा नहीं और यह कि ऐसी तलाशी शिष्टता का सम्यक् ध्यान रखते हुए ली जायेगी ।

मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990