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मोटर यान अधिनियम की धारा 150 | 150 MV Act in hindi

मोटर यान अधिनियम की धारा 150 — पर-पक्षकार जोखिमों की बाबत बीमाकृत व्यक्तियों के विरुद्ध निर्णयों और पंचाटों को तुष्ट करने के बीमाकर्ता के कर्तव्य —

(1) धारा 147 की उपधारा (3) के अधीन ऐसे व्यक्ति जिसके द्वारा पालिसी प्रभावी की गई है, के पक्ष में बीमा प्रमाणपत्र जारी करने के पश्चात् ऐसे दायित्व (जो पालिसी के निबंधनों द्वारा समाविष्ट दायित्व के होते हुए) जो धारा 147 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन या धारा 164 के उपबंधों के अधीन पालिसी द्वारा समाविष्ट किया जाना अपेक्षित है, की बाबत निर्णय या पंचाट, पालिसी द्वारा बीमाकृत व्यक्ति के विरुद्ध अभिप्राप्त किया जाता है, तब इस बात के होते हुए भी कि बीमाकर्ता पालिसी को परिवर्जित या रद्द करने अथवा परिवर्तित या रद्द किए जा सकने का हकदार हो सकेगा, बीमाकर्ता इस धारा के उपबंधों के अध्यधीन रहते हए पंचाट के अधीन फायदे के हकदार व्यक्ति को इसके अधीन देय बीमाकृत राशि से अनधिक राशि का तो दायित्व की बाबत, लागतों के संबंध में देय रकम के साथ और ऐसी राशि पर निर्णयों पर ब्याज से संबंधित किसी अधिनियमितियों के आधार पर देय ब्याज के साथ किसी राशि का इस प्रकार मानो वह व्यक्ति निर्णीत ऋणी था, संदाय करेगा ।

(2) ऐसे निर्णय या पंचाट की बाबत उपधारा (1) के अधीन बीमाकर्ता द्वारा कोई राशि तब तक देय नहीं होगी, जब तक उन कार्यवाहियों, जिनमें निर्णय या पंचाट दिया गया है, में कार्यवाहियां प्रारंभ होने से पहले बीमाकर्ता न्यायालय या, यथास्थिति, दावा अभिकरण द्वारा ऐसे निर्णय या पंचाट के संबंध में कार्यवाहियां लाने और जब तक किसी अपील के लंबित रहने के दौरान उसके निष्पादन को आस्थगित किया जाता है, सूचित किया गया था; और बीमाकर्ता जिसको ऐसी कार्यवाहियां लाने की सूचना इस प्रकार दी गई है, उसका पक्षकार बनाए जाने और निम्नलिखित आधारों पर कार्रवाई में प्रतिरक्षा का हकदार होगा अर्थात् :-

(क) यदि पालिसी की किसी विनिर्दिष्ट शर्त का उल्लंघन हुआ हो, जो निम्नलिखित शर्तों में से एक हो, अर्थात् :-

(i) कोई शर्त जो यान के उपयोग को निम्नलिखित के लिए, अपवर्जित करती है :-

(अ) भाड़े पर लेने या पारिश्रमिक के लिए, जहां बीमा की संविदा की तारीख को यान भाड़े पर या पारिश्रमिक के लिए इस्तेमाल करने की अनुज्ञा समाविष्ट नहीं थी; या

(आ) दौड़ प्रतियोगिता या गति परीक्षण आयोजित करने के लिए; या

(इ) जहां यान एक परिवहन यान है वहां यान उस प्रयोजन के लिए उपयोग में लिया जाता है जो उस अनुज्ञा द्वारा, जिसके अधीन उसका उपयोग किया जाता है, अनुज्ञात नहीं किया गया है; या

(ई) साइड कार संलग्न नहीं की गई है जहां यान एक दो पहिया यान है; या

(ii) नामित व्यक्ति या किसी व्यक्ति जो सम्यक रूप से अनुज्ञप्त नहीं है द्वारा या कोई व्यक्ति जो निर्हरता की अवधि के दौरान चालन अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने के लिए निरहित कर दिया गया है या जो धारा 185 में अधिकथित किए गए अनुसार अल्कोहल या मादक द्रव्यों के प्रभाव के अधीन चालन कर रहा है, द्वारा चालन को अपवर्जित करने वाली कोई शर्त;

(iii) युद्ध, गृह युद्ध, बल्वे या सिविल अशांति की परिस्थितियों द्वारा क्षति कारित होने या उनके कारण क्षति कारित होने के लिए दायित्व अपवर्जित करने वाली कोई शर्त; जो

(ख) पालिसी इस आधार पर शून्य है कि वह तात्विक तथ्यों को प्रकट न करके प्राप्त या की गई थी या ऐसे तथ्यों जो कुछ तात्विक विशिष्टियों में मिथ्या थे, के व्यपदेशन द्वारा प्राप्त की गई थी।

(ग) बीमा अधिनियम, 1938 (1938 का 4) की धारा 64फख के अधीन यथा अपेक्षित प्रीमियम की अप्राप्ति ।

(3) जहां कोई ऐसा निर्णय, जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट है, व्यतिकारी देश के न्यायालय से प्राप्त किया जाता है और विदेशी निर्णय की दशा में, सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 (1908 का 5) की धारा 13 के उपबंधों के कारण उसमें किए गए न्यायनिर्णयन के आधार पर किसी मामले में निश्चायक है, बीमाकर्ता [जो बीमा अधिनियम, 1938 (1938 का 4) के अधीन रजिस्ट्रीकृत बीमाकर्ता है और चाहे ऐसा व्यक्ति व्यतिकारी देश की तत्स्थानी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत हो या नहीं] डिक्री के अधीन फायदा प्राप्त करने के लिए हकदार व्यक्ति के प्रति ऐसी रीति से और उस विस्तार तक जो उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट है जैसे कि निर्णय या पंचाट भारत के न्यायालय द्वारा दिया गया था, दायी होगा :

परंतु किसी ऐसे निर्णय या पंचाट की बाबत बीमाकर्ता कोई राशि देने के लिए दायी नहीं होगा जब तक कार्यवाहियां जिनसे निर्णय या पंचाट दिया जाता है, प्रारंभ होने से पहले बीमाकर्ता को संबद्ध न्यायालय जिसमें कार्यवाहियां प्रारंभ की गई है, के माध्यम से सूचना नहीं प्राप्त होती और बीमाकर्ता जिसे ऐसी सूचना दी गई है व्यतिकारी राज्य की तत्स्थानी विधि के अधीन कार्यवाहियों में पक्षकार बनाए जाने और उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट समान आधारों पर कार्रवाई में प्रतिरक्षा करने के लिए पक्षकार बनाए जाने का हकदार नहीं होगा ।

(4) जहां धारा 147 की उपधारा (3) के अधीन बीमा प्रमाणपत्र ऐसे व्यक्ति जिसके द्वारा पालिसी प्रभावी की गई है, को जारी किया जाता है, बीमाकृत व्यक्तियों के बीमा को निर्बंधित करने के लिए तात्पर्यित पालिसी के अधिकांश भाग का, जो उपधारा (2) में है, से भिन्न अन्य शर्तों द्वारा निर्दिष्ट ऐसे दायित्वों के संबंध में जो धारा 147 की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन पालिसी द्वारा समाविष्ट किए जाने अपेक्षित है, का कोई प्रभाव नहीं होगा ।

(5) कोई बीमाकर्ता, जिसे उपधारा (2) या उपधारा (3) में निर्दिष्ट सूचना दी गई है, किसी व्यक्ति, जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी ऐसे निर्णय या पंचाट या, यथास्थिति, उपधारा (2) या व्यतिकारी देश की तत्स्थानी विधि में उपबंधित रीति से अन्यथा उपधारा (3) में निर्दिष्ट ऐसे निर्णय के अधीन फायदे का हकदार है के प्रति अपने दायित्व के परिवर्जन का हकदार नहीं होगा ।

(6) यदि दावा दाखिल करने की तारीख पर, दावाकर्ता को, बीमा कंपनी जिसके साथ यान बीमाकृत किया गया है, की जानकारी नहीं है, तो यान के स्वामी का यह कर्तव्य होगा कि अधिकरण या न्यायालय को यह सूचना दे कि क्या दुर्घटना की तारीख को यान बीमाकृत था या नहीं और यदि हां, तो उस बीमा कंपनी का नाम जिसके साथ वह बीमाकृत है ।

स्पष्टीकरण.– इस धारा के प्रयोजनार्थ–

(क) “पंचाट” से दावा अधिकरण द्वारा धारा 168 के अधीन किया गया पंचाट अभिप्रेत है;

(ख) “दावा अधिकरण” से धारा 165 के अधीन गठित दावा अधिकरण अभिप्रेत है;

(ग) “पालिसी के निबंधनों द्वारा समाविष्ट दायित्व” से ऐसा दायित्व अभिप्रेत है, जो पालिसी द्वारा समाविष्ट किया जाता है या जो इस प्रकार समाविष्ट किया जाता है, लेकिन इस तथ्य के कारण समाविष्ट नहीं है कि बीमाकर्ता पालिसी को परिवर्जित या रद्द करने या परिवर्जित या रद्द किए जाने के लिए हकदार है या उसने पालिसी को परिवर्जित या रद्द कर दिया है; और

(घ) “तात्विक तथ्य” और “तात्विक विशिष्टि” से क्रमशः एक तथ्य या विशिष्टि अभिप्रेत है, जो ऐसी प्रकृति की है कि एक प्रज्ञावान बीमाकर्ता के यह अवधारित करना कि क्या वह जोखिम लेगा, यदि हां तो किस प्रीमियम दर और किन शर्तों पर, के निर्णय को प्रभावित करते हैं ।


150 MV Act —  Duty of insurers to satisfy judgments and awards against persons insured in respect of third party risks —

(1) If, after a certificate of insurance has been issued under sub-section (3) of section 147 in favour of the person by whom a policy has been effected, judgment or award in respect of any such liability as is required to be covered by a policy under clause (b) of sub-section (1) of section 147 (being a liability covered by the terms of the policy) or under the provisions of section 164 is obtained against any person insured by the policy, then, notwithstanding that the insurer may be entitled to avoid or cancel or may have avoided or cancelled the policy, the insurer shall, subject to the provisions of this section, pay to the person entitled to the benefit of the award any sum not exceeding the sum assured payable thereunder, as if that person were the decree holder, in respect of the liability, together with any amount payable in respect of costs and any sum payable in respect of interest on that sum by virtue of any enactment relating to interest on judgments.

(2) No sum shall be payable by an insurer under sub-section (1) in respect of any judgment or award unless, before the commencement of the proceedings in which the judgment or award is given the insurer had notice through the court or, as the case may be, the Claims Tribunal of the bringing of the proceedings, or in respect of such judgment or award so long as its execution is stayed pending an appeal; and an insurer to whom notice of the bringing of any such proceedings is so given shall be entitled to be made a party thereto, and to defend the action on any of the following grounds, namely:- मोटर यान अधिनियम की धारा 150

(a) that there has been a breach of a specified condition of the policy, being one of the following conditions, namely:-

(i) a condition excluding the use of the vehicle–

(A) for hire or reward, where the vehicle is on the date of the contract of insurance a vehicle not covered by a permit to ply for hire or reward; or मोटर यान अधिनियम की धारा 150

(B) for organised racing and speed testing; or

(C) for a purpose not allowed by the permit under which the vehicle is used, where the vehicle is a transport vehicle; or

(D) without side-car being attached where the vehicle is a two-wheeled vehicle; or

(ii) a condition excluding driving by a named person or by any person who is not duly licenced or by any person who has been disqualified for holding or obtaining a driving licence during the period of disqualification or driving under the influence of alcohol or drugs as laid down in section 185; or

(iii) a condition excluding liability for injury caused or contributed to by conditions of war, civil war, riot or civil commotion; or

(b) that the policy is void on the ground that it was obtained by nondisclosure of any material fact or by representation of any fact which was false in some material particular; or मोटर यान अधिनियम की धारा 150

(c) that there is non-receipt of premium as required under section 64VB of the Insurance Act, 1938 (4 of 1938).

(3) Where any such judgment or award as is referred to in sub-section (1) is obtained from a court in a reciprocating country and in the case of a foreign judgment is, by virtue of the provisions of section 13 of the Code of Civil Procedure, 1908 (5 of 1908) conclusive as to any matter adjudicated upon by it, the insurer (being an insurer registered under the Insurance Act, 1938 (4 of 1938) and whether or not that person is registered under the corresponding law of the reciprocating country) shall be liable to the person entitled to the benefit of the decree in the manner and to the extent specified in sub-section (1), as if the judgment or award were given by a court in India :

Provided that no sum shall be payable by the insurer in respect of any such judgment or award unless, before the commencement of the proceedings in which the judgment or award is given, the insurer had notice through the court concerned of the bringing of the proceedings and the insurer to whom notice is so given is entitled under the corresponding law of the reciprocating country, to be made a party to the proceedings and to defend the action on grounds similar to those specified in sub-section (2). मोटर यान अधिनियम की धारा 150

(4) Where a certificate of insurance has been issued under sub-section (3) of section 147 to the person by whom a policy has been effected, so much of the policy as purports to restrict the insurance of the persons insured thereby, by reference to any condition other than those in sub-section (2) shall, as respects such liabilities as are required to be covered by a policy under clause (b) of subsection (1) of section 147, be of no effect. मोटर यान अधिनियम की धारा 150

(5) No insurer to whom the notice referred to in sub-section (2) or subsection (3) has been given shall be entitled to avoid his liability to any person entitled to the benefit of any such judgment or award as is referred to in subsection (1) or in such judgment as is referred to in sub-section (3) otherwise than in the manner provided for in sub-section (2) or in the corresponding law of the reciprocating country, as the case may be.

(6) If on the date of filing of any claim, the claimant is not aware of the insurance company with which the vehicle had been insured, it shall be the duty of the owner of the vehicle to furnish to the tribunal or court the information as to whether the vehicle had been insured on the date of the accident, and if so, the name of the insurance company with which it is insured. मोटर यान अधिनियम की धारा 150

Explanation. — For the purposes of this section,–

(a) “award” means an award made by the Claims Tribunal under section 168;

(b) “Claims Tribunal” means a Claims Tribunal constituted under section 165;

(c) “liability covered by the terms of the policy” means the liability which is covered by the policy or which would be so covered but for the fact that the insurer is entitled to avoid or cancel or has avoided or cancelled the policy; and

(d) “material fact” and “material particular” mean, respectively, a fact or particular of such a nature as to influence the judgment of a prudent insurer in determining whether he shall take the risk and, if so, at what premium and on what conditions.

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