मोटर यान अधिनियम की धारा 166 –प्रतिकर के लिए आवेदन —
(1) धारा 165 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट प्रकार की दुर्घटना से उद्भूत प्रतिकर के लिए आवेदन निम्नलिखित द्वारा किया जा सकेगा, अर्थात् :-
(क) उस व्यक्ति द्वारा, जिसे क्षति हुई है; या
(ख) संपत्ति के स्वामी द्वारा; या
(ग) जब दुर्घटना के परिणामस्वरूप मृत्यु हुई है, तब मृतक के सभी या किसी विधिक प्रतिनिधि द्वारा; या
(घ) जिस व्यक्ति को क्षति पहुंची है उसके द्वारा अथवा सम्यक् रूप से प्राधिकृत किसी अभिकर्ता द्वारा अथवा मृतक के सभी या किसी विधिक प्रतिनिधि द्वारा :
परन्तु जहां प्रतिकर के लिए किसी आवेदन में मृतक के सभी विधिक प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हुए हैं वहां वह आवेदन मृतक के सभी विधिक प्रतिनिधियों की ओर से या उनके फायदे के लिए किया जाएगा और जो विधिक प्रतिनिधि ऐसे सम्मिलित नहीं हुए हैं उन्हें आवेदन के प्रत्यर्थियों के रूप में पक्षकार बनाया जाएगा :
परन्तु यह और कि जहां कोई व्यक्ति धारा 149 के अधीन उपबंधित प्रक्रिया के अनुसार धारा 164 के अधीन प्रतिकर स्वीकार करता है, वहां दावा अधिकरण के समक्ष उसकी दावा याचिका व्यपगत हो जाएगी।
(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन, दावाकर्ता के विकल्प पर, उस दावा अधिकरण को जिसकी उस क्षेत्र पर अधिकारिता थी जिसमें दुर्घटना हुई है, अथवा उस दावा अधिकरण को जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर दावाकर्ता निवास करता है या कारबार करता है अथवा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रतिवादी निवास करता है, किया जाएगा और वह ऐसे प्ररूप में होगा और उसमें ऐसी विशिष्टिया होगी जो विहित की जाए ।
(3) प्रतिकर के लिए कोई आवेदन तब तक ग्रहण नहीं किया जाएगा जब तक कि उसे दुर्घटना के होने से छह मास के भीतर प्रस्तुत न किया गया हो ।
(4) दावा अधिकरण, धारा 159 के अधीन उसको भेजी गई दुर्घटनाओं की किसी रिपोर्ट को इस अधिनियम के अधीन प्रतिकर के लिए आवेदन के रूप में मानेगा ।
(5) इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किसी दुर्घटना में क्षति के लिए प्रतिकर का दावा करने वाले व्यक्ति का अधिकार, जिस व्यक्ति को क्षति पहुँची है, उसकी मृत्यु होने पर उसके विधिक प्रतिनिधियों के लिए, इस बात को ध्यान में न रखते हुए कि मृत्यु का कारण क्षति वाले अन्तर्संबंध से संबंधित है या नहीं या इसका उसके साथ कोई अन्तर्संबंध था या नहीं, विद्यमान होगा ।
166 MV Act — Application for compensation —
(1) An application for compensation arising out of an accident of the nature specified in sub-section (1) of section 165 may be made —
(a) by the person who has sustained the injury; or
(b) by the owner of the property, or
(c) where death has resulted from the accident, by all or any of the legal representatives of the deceased; or
(d) by any agent duly authorised by the person injured or all or any of the legal representatives of the deceased, as the case may be :
Provided that where all the legal representatives of the deceased have not joined in any such application for compensation, the application shall be made on behalf of or for the benefit of all the legal representatives of the deceased and the legal representatives who have not so joined, shall be impleaded as respondents to the application :
Provided further that where a person accepts compensation under section 164 in accordance with the procedure provided under section 149, his claims petition before the Claims Tribunal shall lapse.
(2) Every application under sub-section (1) shall be made, at the option of the claimant, either to the Claims Tribunal having jurisdiction over the area in which the accident occurred, or to the Claims Tribunal within the local limits of whose jurisdiction the claimant resides or carries on business or within the local limits of whose jurisdiction the defendant resides, and shall be in such form and contain such particulars as may be prescribed. मोटर यान अधिनियम की धारा 166
(3) No application for compensation shall be entertained unless it is made within six months of the occurrence of the accident. मोटर यान अधिनियम की धारा 166
(4) The Claims Tribunal shall treat any report of accidents forwarded to it under section 159 as an application for compensation under this Act.
(5) Notwithstanding anything in this Act or any other law for the time being in force, the right of a person to claim compensation for injury in an accident shall, upon the death of the person injured, survive to his legal representatives, irrespective of whether the cause of death is relatable to or had any nexus with the injury or not.