धारा 2 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम — परिभाषाएँ —
इस अधिनियम में जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो —
(क) “निर्वाचन” से अभिप्रेत है, कोई निर्वाचन जो किसी अधिनियम के अधीन सांसदों के निर्वाचन या किसी विधान सभा, स्थानीय प्राधिकरण या अन्य लोक प्राधिकरण के निर्वाचन के लिए किसी भी प्रकार किए जाते हैं;
(कक) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियम द्वारा विहित अभिप्रेत है और तदनुसार “विहित” पद का अर्थ लगाया जाएगा;]
(ख) “लोक कर्तव्य“ से अभिप्रेत है, कोई ऐसा कर्तव्य जिसके निर्वहन में राज्य की जनता या समाज की रुचि है
स्पष्टीकरण— इसमें “राज्य” में केन्द्रीय, प्रान्तीय या राज्य के किसी अधिनियम के अधीन निर्मित निगम या कोई प्राधिकरण या कोई निकाय जो सरकार द्वारा स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन या सहायता प्राप्त है या कोई सरकारी कम्पनी जैसा कि कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का सं. 1) की पाठा 617 में परिभाषित है
(ग) “लोक सेवक“ से अभिप्रेत है
(एक) कोई व्यक्ति जो किसी लोक कर्तव्य के निर्वहन हेतु सरकार की सेवा में हो अथवा वेतनाधीन हो अथवा इसके लिए कोई फीस, कमीशन या पारिश्रमिक प्रदत्त किया जाता हो;
(दो) कोई व्यक्ति जो, किसी स्थानीय निकाय की सेवा में हो, वेतनाधीन हो;
(तीन) कोई व्यक्ति, जो किसी केन्द्रीय, प्रान्तीय या राज्य की किसी विधि के द्वारा या गठित किसी निगम अथवा कॉरपोरेशन या किसी निकाय जो सरकार द्वारा स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन या सहायता प्राप्त है या कोई सरकारी कम्पनी जैसा कि कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का सं. 1) की धारा 617 में परिभाषित है, की सेवा में हो या बेतनाधीन हो;
(चार) कोई न्यायाधीश, या विधि द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य व्यक्ति, जिसे स्वयं या किसी समूह के सदस्य के नाते न्याय-निर्णयन का कार्य करता हो;
(पाँच) कोई व्यक्ति जिसे न्याय-निर्णयन के संबंध में न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा किसी कर्तव्य के निर्वहन हेतु प्राधिकृत किया गया हो एवं इसमें सम्मिलित है न्यायालय द्वारा नियुक्त समापक, प्रापक या आयुक्त;
(छ:) कोई मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति जिसे किसी न्यायालय या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा कोई प्रकरण या विषय, निर्णयन या रिपोर्ट के लिए निर्देशित किया गया हो;
(सात) कोई व्यक्ति जो ऐसा पद धारण करता हो, जिसके आधार पर वह निर्वाचक नामावली तैयार करने, प्रकाशित करने या बनाए रखने या पुनरीक्षित करने के लिए या निर्वाचन या उसके किसी भाग को संचालित करने के लिए सशक्त हो;
(आठ) कोई व्यक्ति जो ऐसा पद धारण करता है जिसके आधार पर वह किसी लोक कर्तव्य का पालन या निर्वहन करने के लिए प्राधिकृत है;
(नौ) कोई व्यक्ति जो किसी रजिस्टर्ड सहकारी संस्था के लिए कृषि, उद्योग, व्यापार या बैंकिंग में लगा हुआ है जिसे केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा केन्द्रीय, प्रान्तीय या राज्य सरकार की किसी विधि के अधीन गठित किसी कॉरपोरेशन, प्राधिकरण या निगम द्वारा जो सरकार के स्वामित्वाधीन, नियन्त्रणाधीन या सहायता प्राप्त है या किसी शासकीय कम्पनी, जैसा कि कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का सं.1) की धारा 617 में परिभाषित है किसी प्रकार की आर्थिक सहायता प्राप्त है या प्राप्त हो रही है, का अध्यक्ष सचिव या अन्य पदाधिकारी है।
(दस) कोई व्यक्ति जो किसी सेवा आयोग या किसी अन्य नाम से जाना जाने वाला हो, का अध्यक्ष, सचिव या कर्मचारी अथवा ऐसे सेवा आयोग या मंडल द्वारा नियुक्त चयन समिति का सदस्य जिसे किसी परीक्षा संचालन अथवा ऐसे सेवा आयोग या मंडल द्वारा उसकी ओर से किसी चयन हेतु नियुक्त किया गया हो;
(ग्यारह) कोई व्यक्ति जो किसी विश्वविद्यालय का उपकुलपति या सदस्य है या किसी अधिवासी निकाय या लोक प्राधिकरण का प्राध्यापक, प्रस्तुतकार, व्याख्याता या कोई अन्य अध्यापक या कर्मचारी चाहे वह किसी भी पदनाम से जाना जाता हो जो परीक्षाओं के संयोजन या संचालन से संबंधित हो;
(बारह) कोई व्यक्ति जो किसी शैक्षणिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, सांस्कृतिक या अन्य किसी ऐसी संस्था, चाहे जैसे स्थापित की गई हो जिसे केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार या किसी स्थानीय या लोक प्राधिकरण द्वारा आर्थिक सहायता प्राप्त है या प्राप्त कर रही है, का पदाधिकारी या कर्मचारी है।
स्पष्टीकरण 1— ऊपर वर्णित उप-खण्डों में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति लोक सेवक है चाहे वह सरकार द्वारा नियुक्त किया गया हो या नहीं
स्पष्टीकरण 2— जहाँ कहीं “लोक सेवक“ शब्द आए हैं, वे उस व्यक्ति के संबंध में समझे जाएंगे, जो लोक सेवक के पद को वास्तव में धारण किए हुए हैं, चाहे उस पद के धारण करने में भी कैसी विधिक त्रुटि हो ।
(घ) “असम्यक लाभ“ से ऐसा कोई परितोषण अभिप्रेत है, चाहे जैसा भी हो, जो विधिक पारिश्रमिक से भिन्न हो ।
स्पष्टीकरण.– इस खंड के प्रयोजनों के लिए-
(क) “परितोषण“ शब्द धनीय परितोषणों या धन के रूप में प्राक्कलनीय परितोषणों तक सीमित नहीं है;
(ख) विधिक पारिश्रमिक पद किसी लोक सेवक को संदत्त पारिश्रमिक तक निर्बन्धित नहीं है, किन्तु इसके अंतर्गत ऐसे सभी पारिश्रमिक भी है, जिसका सरकार या संगठन द्वारा, जिसकी वह सेवा करता है, प्राप्त करने के लिए अनुज्ञात है ।
Section 2 prevention of corruption act — Definitions —
In this Act, unless the context otherwise requires,–
(a) “election” means any election, by whatever means held under any law for the purpose of selecting members of Parliament or of any Legislature, local authority or other public authority;
1[(aa) ”prescribed” means prescribed by rules made under this Act and the expression ”prescribe” shall be construed accordingly;]
(b) “public duty” means a duty in the discharge of which the State, the public or the community at large has an interest;
Explanation.–In this clause “State” includes a corporation established by or under a Central, Provincial or State Act, or an authority or a body owned or controlled or aided by the Government or a Government company as defined in section 617 of the Companies Act, 1956 (1 of 1956);
(c) “public servant” means–
(i) any person in the service or pay of the Government or remunerated by the Government by fees or commission for the performance of any public duty;
(ii) any person in the service or pay of a local authority;
(iii) any person in the service or pay of a corporation established by or under a Central, Provincial or State Act, or an authority or a body owned or controlled or aided by the Government or a Government company as defined in section 617 of the Companies Act, 1956 (1 of 1956);
(iv) any Judge, including any person empowered by law to discharge, whether by himself or as a member of any body of persons, any adjudicatory functions;
(v) any person authorised by a court of justice to perform any duty, in connection with the administration of justice, including a liquidator, receiver or commissioner appointed by such court;
(vi) any arbitrator or other person to whom any cause or matter has been referred for decision or report by a court of justice or by a competent public authority;
(vii) any person who holds an office by virtue of which he is empowered to prepare, publish, maintain or revise an electoral roll or to conduct an election or part of an election;
(viii) any person who holds an office by virtue of which he is authorised or required to perform any public duty;
(ix) any person who is the president, secretary or other office-bearer of a registered co-operative society engaged in agriculture, industry, trade or banking, receiving or having received any financial aid from the Central Government or a State Government or from any corporation established by or under a Central, Provincial or State Act, or any authority or body owned or controlled or aided by the Government or a Government company as defined in section 617 of the Companies Act, 1956 (1 of 1956);
(x) any person who is a chairman, member or employee of any Service Commission or Board, by whatever name called, or a member of any selection committee appointed by such Commission or Board for the conduct of any examination or making any selection on behalf of such Commission or Board;
(xi) any person who is a Vice-Chancellor or member of any governing body, professor, reader, lecturer or any other teacher or employee, by whatever designation called, of any University and any person whose services have been availed of by a University or any other public authority in connection with holding or conducting examinations;
(xii) any person who is an office-bearer or an employee of an educational, scientific, social, cultural or other institution, in whatever manner established, receiving or having received any financial assistance from the Central Government or any State Government, or local or other public authority.
2[(d) “undue advantage” means any gratification whatever, other than legal remuneration.
Explanation.–For the purposes of this clause,–
(a) the word “gratification” is not limited to pecuniary gratifications or to gratifications estimable in money;
(b) the expression “legal remuneration” is not restricted to remuneration paid to a public servant, but includes all remuneration which he is permitted by the Government or the organisation, which he serves, to receive.]
Explanation 1.–Persons falling under any of the above sub-clauses are public servants, whether appointed by the Government or not.
Explanation 2.–Wherever the words “public servant” occur, they shall be understood of every person who is in actual possession of the situation of a public servant, whatever legal defect there may be in his right to hold that situation.