धारा 34 एनडीपीएस एक्ट — अपराध के किए जाने से प्रविरत रहने के लिए प्रतिभूति –
(1) जब कभी कोई व्यक्ति अध्याय 4 के किसी उपबन्ध के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का सिद्धदोष ठहराया जाता है और उसे सिद्धदोष ठहराने वाले न्यायालय को वह राय है कि ऐसे व्यक्ति से इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध करने से प्रविरत रहने के लिए बन्धपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा की जानी आवश्यक है तो वह न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दण्ड पारित करते समय उसे आदेश दे सकेगा कि वह तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के दौरान, जिसे नियत करना वह न्यायालय ठीक समझे, अध्याय 4 के अधीन कोई अपराध करने से प्रविरत रहने के लिए प्रतिभुओं सहित या उनके बिना, अपने साधनों की आनुपातिक राशि के लिए बन्धपत्र निष्पादित करे ।
(2) बन्धपत्र ऐसे प्ररूप में होगा जो केन्द्रीय सरकार विहित करे और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के उपबन्ध, जहां तक वे लागू होते हैं, ऐसे बन्धपत्र से संबंधित सभी बातों को इस प्रकार लागू होंगे मानो वे परिशांति बनाए रखने के लिए उस संहिता को धारा 106 के अधीन निष्पादित किए जाने के लिए आदिष्ट बन्धपत्र हों ।
(3) यदि दोषसिद्धि, अपील पर या अन्यथा, अपास्त कर दी जाती है तो इस प्रकार निष्पादित बन्धपत्र शून्य हो जाएगा ।
(4) इस धारा के अधीन कोई आदेश किसी अपील न्यायालय द्वारा या उच्च न्यायालय द्वारा या सेशन न्यायाधीश द्वारा भी, जब वह पुनरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, किया जा सकेगा ।
Section 34 NDPS Act — Security for abstaining from commission of offence —
(1) Whenever any person is convicted of an offence punishable under any provision of Chapter IV and the court convicting him is of opinion that it is necessary to require such person to execute a bond for abstaining from the commission of any offence under this Act, the court may, at the time of passing sentence on such person, order him to execute a bond for a sum proportionate to his means, with or without sureties, for abstaining from commission of any offence under Chapter IV during such period not exceeding three years as it thinks fit to fix. धारा 34 एनडीपीएस एक्ट
(2) The bond shall be in such form as may be prescribed by the Central Government and the provisions of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), shall, in so far as they are applicable, apply to all matters connected with such bond as if it were a bond to keep the peace ordered to be executed under section 106 of that Code.
(3) If the conviction is set aside on appeal or otherwise, the bond so executed shall become void.
(4) An order under this section may also be made by an appellate court or by the High Court or Sessions Judge when exercising the powers of revision.