धारा 36A एनडीपीएस एक्ट —विशेष न्यायालयों द्वारा विचारणीय अपराध –
(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी —
(क) इस अधिनियम के अधीन ऐसे सभी अपराध, जो तीन वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय हैं, उस क्षेत्र के लिए, जिसमें अपराध किया गया है, गठित विशेष न्यायालय द्वारा हो या जहां ऐसे क्षेत्र के लिए एक से अधिक विशेष न्यायालय हैं वहां, उनमें से ऐसे एक के द्वारा ही, जिसे सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, विचारणीय होंगे;
(ख) जहां इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के अभियुक्त या उसके किए जाने के संदेहयुक्त किसी व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 167 की उपधारा (2) या उपधारा (2क) के अधीन किसी मजिस्ट्रेट को भेजा जाता है, वहां ऐसे मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को ऐसी अभिरक्षा में, जो वह उचित समझे, कुल मिलाकर पन्द्रह दिन से अनधिक की अवधि के लिए, जहां ऐसा मजिस्ट्रेट, न्यायिक मजिस्ट्रेट है और कुल मिलाकर सात दिन की अवधि के लिए, जहां ऐसा मजिस्ट्रेट, कार्यपालक मजिस्ट्रेट है, निरोध के लिए प्राधिकृत कर सकेगा :
परंतु ऐसे मामलों में, जो विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय हैं, जहां ऐसे मजिस्ट्रेट का-
(i) जब ऐसा व्यक्ति पूर्वोक्त रूप में उसको भेजा जाता है, या
(ii) उसके द्वारा प्राधिकृत निरोध की अवधि की समाप्ति पर या उसके पूर्व किसी भी समय, यह विचार है कि ऐसे व्यक्ति का निरोध अनावश्यक है, वहां वह ऐसे व्यक्ति को अधिकारिता रखने वाले विशेष न्यायालय को भेजे जाने का आदेश करेगा;
(ग) विशेष न्यायालय, खंड (ख) के अधीन उसको भेजे गए व्यक्ति के संबंध में, उसी शक्ति का प्रयोग कर सकेगा जिसका प्रयोग किसी मामले का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाला मजिस्ट्रेट, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 167 के अधीन, ऐसे मामले में किसी अभियुक्त व्यक्ति के संबंध में, जिसे उस धारा के अधीन उसको भेजा गया है, कर सकता है;
(घ) विशेष न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन अपराध गठित करने वाले तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट का परिशीलन करने पर या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा किए गए परिवाद पर, अपराधी को विचारण के लिए उसको सुपुर्द न किए जाने की दशा में भी उस अपराध का संज्ञान कर सकेगा ।
(2) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण करते समय, विशेष न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध से भिन्न ऐसे अपराध का भी विचारण कर सकेगा जिसके लिए अभियुक्त को, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) के अधीन उसी विचारण में आरोपित किया जाए ।
(3) इस धारा की कोई बात दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 439 के अधीन जमानत से संबंधित उच्च न्यायालय की विशेष शक्तियों को प्रभावित करने वाली नहीं समझी जाएगी और उच्च न्यायालय ऐसी शक्तियों का प्रयोग, जिसके अंतर्गत उस धारा की उपधारा (1) के खंड (ख) के अधीन शक्ति भी है, ऐसे कर सकेगा मानो उस धारा में “मजिस्ट्रेट” के प्रति निर्देश के अंतर्गत धारा 36 के अधीन गठित “विशेष न्यायालय” के प्रति निर्देश भी है ।
(4) धारा 19 या धारा 24 या धारा 27क के अधीन दंडनीय किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्तियों के संबंध में या वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित अपराधों के लिए, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 167 की उपधारा (2) में “नब्बे दिन” के प्रति निर्देशों का, जहां-जहां वे आते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे “एक सौ अस्सी दिन” के प्रति निर्देश हैं:
परंतु यदि अन्वेषण को, उक्त एक सौ अस्सी दिन की अवधि के भीतर पूरा करना संभव नहीं है, तो विशेष न्यायालय उक्त अवधि को लोक अभियोजक की अन्वेषण की प्रगति और उक्त एक सौ अस्सी दिन की अवधि से परे अभियुक्त के निरोध के लिए विनिर्दिष्ट कारणों को उपदर्शित करने वाली रिपोर्ट पर एक वर्ष तक बढ़ा सकेगा ।
(5) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराधों का संक्षिप्त विचारण किया जा सकेगा ।
Section 36A NDPS Act — Offences triable by Special Courts.–
(1) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974),
(a) all offences under this Act which are punishable with imprisonment for a term of more than three years shall be triable only by the Special Court constituted for the area in which the offence has been committed or where there are more Special Courts than one for such area, by such one of them as may be specified in this behalf by the Government;
(b) where a person accused of or suspected of the commission of an offence under this Act is forwarded to a Magistrate under sub-section (2) or sub-section (2A) of section 167 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), such Magistrate may authorise the detention of such person in such custody as he thinks fit for a period not exceeding fifteen days in the whole where such Magistrate is a Judicial Magistrate and seven days in the whole where such Magistrate is an Executive Magistrate:
Provided that in cases which are triable by the Special Court where such Magistrate considers
(i) when such person is forwarded to him as aforesaid; or
(ii) upon or at any time before the expiry of the period of detention authorised by him,
that the detention of such person is unnecessary, he shall order such person to be forwarded to the Special Court having jurisdiction;
(c) the Special Court may exercise, in relation to the person forwarded to it under clause (b), the same power which a Magistrate having jurisdiction to try a case may exercise under section 167 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), in relation to an accused person in such case who has been forwarded to him under that section; धारा 36A एनडीपीएस एक्ट
(d) a Special Court may, upon perusal of police report of the facts constituting an offence under this Act or upon complaint made by an officer of the Central Government or a State Government authorised in his behalf, take cognizance of that offence without the accused being committed to it for trial.
(2) When trying an offence under this Act, a Special Court may also try an offence other than an offence under this Act with which the accused may, under the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), be charged at the same trial. धारा 36A एनडीपीएस एक्ट
(3) Nothing contained in this section shall be deemed to affect the special powers of the High Court regarding bail under section 439 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), and the High Court may exercise such powers including the power under cluase (b) of sub-section (1) of that section as if the reference to “Magistrate” in that section included also a reference to a Special Court constituted under section 36.
(4) In respect of persons accused of an offence punishable under section 19 or section 24 or section 27A or for offences involving commercial quantity the references in sub-section (2) of section 167 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974) thereof to “ninety days”, where they occur, shall be construed as reference to “one hundred and eighty days”: धारा 36A एनडीपीएस एक्ट
Provided that, if it is not possible to complete the investigation within the said period of one hundred and eighty days, the Special Court may extend the said period up to one year on the report of the Public Prosecutor indicating the progress of the investigation and the specific reasons for the detention of the accused beyond the said period of one hundred and eighty days.
(5) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974), the offences punishable under this Act with imprisonment for a term of not more than three years may be tried summarily.