धारा 38 विनिर्दिष्ट अनुतोष अधिनियम — शाश्वत व्यादेश कब अनुदत्त किया जाता है–
( 1 ) इस अध्याय द्वारा अन्तर्विष्ट या निर्दिष्ट अन्य उपबंधों के अध्यधीन, वादी को कोई शाश्वत व्यादेश, उसके पक्ष में विद्यमान किसी बाध्यता के, चाहे अभिव्यक्त रूप से या विवक्षित तौर पर, भंग को निवारित करने के लिये अनुदत्त किया जा सकेगा ।
(2) जब ऐसी कोई बाध्यता संविदा से उत्पन्न होती हो तो न्यायालय अध्याय 2 में अन्तर्विष्ट नियमों और उपबंधों द्वारा मार्गदर्शित होगा।
(3) जब प्रतिवादी, वादी के सम्पत्ति के अधिकार या के उपभोग पर आक्रमण करे या आक्रमण करने की धमकी दे, तो न्यायालय, निम्नलिखित दशाओं में कोई शाश्वत व्यादेश अनुदत्त कर सकेगी, अर्थात् : –
(क) जहाँ प्रतिवादी वादी के लिये सम्पत्ति का न्यासी हो;
(ख) जहाँ आक्रमण द्वारा कारित वास्तविक नुकसान या जो कारित होना संभाव्य है, को अभिनिश्चित करने के लिये कोई मानक विद्यमान न हो;
(ग) जहाँ आक्रमण ऐसा हो कि धन के रूप में प्रतिकर यथायोग्य अनुतोष प्रदान नहीं करेगा;
(घ) जहाँ न्यायिक कार्यवाहियों का बाहुल्य निवारित करने के लिये व्यादेश आवश्यक हो ।
Section 38 Specific Relief Act — Perpetual injunction when granted —
(1) Subject to the other provisions contained in or referred to by this Chapter, a perpetual injunction may be granted to the plaintiff to prevent the breach of an obligation existing in his favour, whether expressly or by implication.
(2) When any such obligation arises from contract, the court shall be guided by the rules and provisions contained in Chapter II.
(3) When the defendant invades or threatens to invade the plaintiffs right to, or enjoyment of, property, the court may grant a perpetual injunction in the following cases, namely:–
(a) where the defendant is trustee of the property for the plaintiff;
(b) where there exists no standard for ascertaining the actual damage caused, or likely to be caused, by the invasion;
(c) where the invasion is such that compensation in money would not afford adequate relief;
(d) where the injunction is necessary to prevent a multiplicity of judicial proceedings.