धारा 48 किशोर न्याय अधिनियम 2015 — विशेष गृह. –
( 1 ) राज्य सरकार, प्रत्येक जिले या जिलों के समूह में, जो विधि का उल्लंघन करने वाले ऐसे बालकों के पुनर्वास के लिए अपेक्षित हों, जिनके बारे में यह पाया गया है। कि उन्होंने अपराध किया है और जो किशोर न्याय बोर्ड के धारा 18 के अधीन किए गए आदेश द्वारा वहां पर रखे गए हैं, स्वयं या स्वैच्छिक अथवा गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से विशेष गृह स्थापित कर सकेगी और उनका रखरखाव कर सकेगी, जो उस रूप में ऐसी रीति में रजिस्ट्रीकृत किए जाएंगे, जो विहित की जाए ।
(2) राज्य सरकार, विशेष गृहों के प्रबंध और मॉनीटरी के लिए नियमों द्वारा उपबंध कर सकेगी, जिसके अंतर्गत उनके द्वारा दी गई सेवाओं के स्तर और विभिन्न किस्में, जो किसी बालक को समाज में पुन: मिलाने के लिए आवश्यक हैं और वे परिस्थितियां, जिनके अधीन और वह रीति भी है, जिसमें किसी विशेष गृह का रजिस्ट्रीकरण मंजूर किया और वापस लिया जा सकेगा ।
(3) उपधारा (2) के अधीन बनाए गए नियमों में विधि का उल्लंघन करते पाए गए बालकों की आयु, लिंग, उनके द्वारा कारित अपराध की प्रकृति और बालक की मानसिक और शारीरिक प्रास्थिति के आधार पर उन्हें विलग और पृथक् रखने के उपबंध भी किए जा सकेंगे।
Section 48 Juvenile Justice Act 2015 — Special homes —
(1) The State Government may establish and maintain either by itself or through voluntary or non-governmental organisations, special homes, which shall be registered as such, in the manner as may be prescribed, in every district or a group of districts, as may be required for rehabilitation of those children in conflict with law who are found to have committed an offence and who are placed there by an order of the Juvenile Justice Board made under section 18. धारा 48 किशोर न्याय अधिनियम 2015
(2) The State Government may, by rules, provide for the management and monitoring of special homes, including the standards and various types of services to be provided by them which are necessary for social re-integration of a child, and the circumstances under which, and the manner in which, the registration of a special home may be granted or withdrawn.
(3) The rules made under sub-section (2) may also provide for the segregation and separation of children found to be in conflict with law on the basis of age, gender, the nature of offence committed by them and the childs mental and physical status.