धारा 6 मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम 1990 — कतिपय अपराधों के लिए दोषसिद्ध ठहराये गये व्यक्तियों का हटाया जाना. –
यदि कोई व्यक्ति,-
(क) (i) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (1860 का सं. 45) के अध्याय 12, 16 या 17 के या उसकी धारा 506 या 509 के अधीन किसी अपराध का; या
(ii) सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 ( 1955 का सं. 22) के अधीन किसी अपराध का; या
(ख) स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन अधिनियम, 1956 (1956 का सं. 104)के अधीन किसी अपराध का दो बार; या
(ग) मध्यप्रदेश राज्य में लागू हुए रूप में सार्वजनिक द्यूत अधिनियम, 1867 (1867 का सं. 3) की धारा 3 या 4 या 4-क के अधीन किसी अपराध का तीन वर्ष की कालावधि के भीतर तीन बार,
सिद्धदोष ठहराया जा चुका है तो जिला मजिस्ट्रेट यदि उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में सम्भाव्य है कि वह उस अपराध जिसके सम्बन्ध में वह सिद्धदोय ठहराया गया था, समरूप कोई अपराध करने में स्वयं को पुनः संलग्न करेगा, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकेगा कि वह जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र या उसके समीपस्थ किसी जिले या जिलों या उसके / उनके भाग के बाहर, ऐसे मार्ग से तथा ऐसे समय के भीतर, जैसा कि जिला मजिस्ट्रेट आदेश दे, चला जाये और यथास्थिति उस जिले या उसके भाग या ऐसे क्षेत्र तथा ऐसे समीपस्थ जिलों या उनके भाग में, जहाँ से कि हट जाने का उसे निर्देश दिया गया था, प्रवेश न करें या न लौटे ।
स्पष्टीकरण.– इस धारा के प्रयोजन के लिए, अभिव्यक्ति “उस अपराध के, जिसके लिए कि वह सिद्धदोष ठहराया गया था, समरूप अपराध” से अभिप्रेत है :-
(एक) खण्ड (क) में वर्णित अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराये गये व्यक्ति के मामले में, उस खण्ड में वर्णित भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (1860 का सं. 45) के अध्यायों या धाराओं में से किसी के भी अन्तर्गत आने वाले अपराध या उस खण्ड के उपखण्ड (2) में वर्णित अधिनियम के उपबन्धों के अन्तर्गत आने वाला अपराध; और
(दो) खण्ड (ख) तथा (ग) में वर्णित अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराये गये व्यक्ति के मामले में उक्त खण्डों में क्रमशः वर्णित अधिनियमों के उपबन्धों के अन्तर्गत आने वाले अपराध |