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महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोषण) अधिनियम, 2013

महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न

(निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोषण) अधिनियम, 2013

(क्रमांक 14 सन् 2013)

[ 22 अप्रैल, 2013]

महिलाओं के कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से संरक्षण और लैंगिक उत्पीड़न के परिवादों के निवारण और प्रतितोषण तथा उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबन्ध करने के लिए अधिनियम

यतः, लैंगिक उत्पीड़न के परिणामस्वरूप भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के अधीन समानता और संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्राण और गरिमा से जीवन व्यतीत करने के किसी महिला के मूल अधिकारों और किसी वृत्ति का व्यवहार करने या कोई व्यवसाय, व्यापार या कारवार करने के अधिकार का, जिसके अंतर्गत लैंगिक उत्पीड़न से मुक्त सुरक्षित वातावरण का अधिकार भी है, उल्लंघन होता है;

और यतः, लैंगिक उत्पीड़न से संरक्षण तथा गरिमा से कार्य करने का अधिकार, महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के विभेदों को दूर करने संबंधी अभिसमय जैसे अंतर्राष्ट्रीय अभिसमयों और लिखतों द्वारा सार्वभौमिक रूप से मान्यताप्राप्त ऐसे मानवाधिकार है जिनका भारत सरकार द्वारा 25 जून, 1993 को अनुसमर्थन किया गया

और यतः, कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न से महिलाओं के संरक्षण के लिए उक्त अभिसमय को प्रभावी करने के लिए उपबन्ध करना समीचीन है.

भारत गणराज्य के चौसठवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-

अध्याय 1 

प्रारम्भिक

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ –– (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोषण) अधिनियम, 2013 है। 

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है। 

(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करें।

2. परिभाषाएँ –इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, –

(क) “व्यथित महिला” से अभिप्रेत है.

(i) किसी कार्यस्थल के संदर्भ में, किसी भी आयु की ऐसी महिला, जो चाहे नियोजित हो या नहीं, जो प्रत्यर्थी द्वारा लैंगिक उत्पीड़न के किसी कार्य के अध्यधीन रहने का अभिकथन करती है;

(i) किसी निवास स्थान या गृह के संदर्भ में, किसी भी आयु की ऐसी महिला जो ऐसे निवास स्थान या गृह में नियोजित हो; 

(ख) “समुचित सरकार” से निम्नलिखित अभिप्रेत है

6) ऐसे कार्यस्थल के संबंध में, जो,-

(अ) केन्द्रीय सरकार या संघ राज्यक्षेत्र प्रशासन द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा पूर्णतः या भागतः वित्तपोषित है, केन्द्रीय सरकार;

(आ) राज्य सरकार द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा पूर्णतः या भागतः वित्तपोषित है, राज्य सरकार|

(ii) खण्ड (i) के अंतर्गत न आने वाले और उसके राज्य क्षेत्र के भीतर पढ़ने वाले किसी कार्यस्थल के संबंध में, राज्य सरकार;

(ग) “अध्यक्ष” से धारा 7 की उपधारा (1) के अधीन नामनिर्दिष्ट स्थानीय परिवाद समिति का अध्यक्ष अभिप्रेत है;

(घ) “जिला अधिकारी” से धारा 5 के अधीन अधिसूचित कोई अधिकारी अभिप्रेत है; 

(ङ) “घरेलू कर्मकार” से ऐसी महिला अभिप्रेत है जो चाहे नगद या वस्तु रूप में पारिश्रमिक के लिए किसी गृह में गृह- कार्य को करने के लिए, चाहे प्रत्यक्षतः या किसी अभिकरण के माध्यम से, अस्थायी, स्थायी, अंशकालिक या पूर्णकालिक आधार पर नियोजित है, किन्तु इसमें नियोजक के परिवार का कोई सदस्य सम्मिलित नहीं है,

(च) “कर्मचारी” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है, जो किसी कार्यस्थल पर किसी कार्य के संबंध में प्रत्यक्ष रूप से या किसी अभिकर्ता, जिसके अंतर्गत कोई ठेकेदार भी है, के माध्यम से प्रधान नियोजक की जानकारी से या उसके बिना नियमित, अस्थायी, तदर्थं या दैनिक मजदूरी के आधार पर, चाहे पारिश्रमिक पर या नहीं, नियोजित है या स्वेच्छिक आधार पर या अन्यथा कार्य कर रहा, चाहे नियोजन के निबंधन अभियक्त या विवक्षित हों या नहीं और इसके अंतर्गत कोई सहकर्मकार, कोई संविदा कर्मकार, परिवीक्षाधीन व्यक्ति, शिक्षु, प्रशिक्षु या किसी अन्यः ऐसे नाम से ज्ञात कोई व्यक्ति भी है; 

(छ) “नियोजक” से निम्नलिखित अभिप्रेत है, –

(i) समुचित सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण के किसी विभाग, संगठन, उपक्रम, स्थापन, उद्यम, संस्था, कार्यालय, शाखा या यूनिट के संबंध में, उस विभाग, संगठन, उपक्रम, स्थापन, उद्यम, संस्था, कार्यालय, शाखा या यूनिट का प्रधान या ऐसा अन्य अधिकारी, जो, यथास्थिति, समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा इस निमित्त आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए;

(ii) उपखण्ड (i) के अन्तर्गत न आने वाले किसी कार्यस्थल के संबंध में, कार्यस्थल के प्रबंध, पर्यवेक्षण और नियंत्रण के लिए उत्तरदायी कोई व्यक्ति, 

स्पष्टीकरण- इस उपखण्ड के प्रयोजनों के लिए “प्रबन्ध” में सम्मिलित है ऐसे संगठन के लिए नीतियों को बनाने और प्रशासन के लिए उत्तरदायी कोई व्यक्ति या बोर्ड या समिति;

(iii) उपखण्ड (i) और (ii) के अधीन आने वाले कार्यस्थल के संबंध में वह व्यक्ति जो उसके कर्मचारियों की बाबत संविदाजात बाध्यता का निर्वहन कर रहा हो; 

(iv) किसी निवास स्थान या गृह के संबंध में, कोई व्यक्ति या गृहस्थी जो घरेलू कर्मकार को नियोजित करे या उसके नियोजन से लाभ प्राप्त करे, इस प्रकार नियोजित कर्मकारो की  संख्या, कालावधि या प्रकार, अथवा घरेलू कर्मकार के नियोजन की प्रकृति या उसके द्वारा किये जाने वाले क्रियाकलापों पर विचार किये बिना;

(ज) “आंतरिक समिति” से धारा 4 के अधीन गठित आंतरिक परिवाद समिति अभिप्रेत है;

(झ) “स्थानीय समिति” से धारा 6 के अधीन गठित स्थानीय परिवाद समिति अभिप्रेत है; 

(ञ) “सदस्य” से, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति का कोई सदस्य अभिप्रेत है;

(ट) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है; 

(ठ) “पीठासीन अधिकारी” से धारा 4 की उपधारा (2) के अधीन नामनिर्दिष्ट किया गया आंतरिक परिवाद समिति का पीठासीन अधिकारी अभिप्रेत है; 

(ड) “प्रत्यर्थी” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जिसके विरुद्ध व्यक्ति महिला ने धारा 9 के अधीन कोई परिवाद किया है

(ढ) “लैंगिक उत्पीड़न” के अंतर्गत निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक अवांछनीय कृत्य या व्यवहार (चाहे प्रत्यक्ष रूप से या तात्पर्यित) सम्मिलित है, अर्थात् –

(i) शारीरिक सम्पर्क और अग्रक्रियाएँ करना; या 

(ii) लैंगिक स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध करना ;या

(iii) लैंगिक आभासी टिप्पणियाँ करना; या 

(iv) अश्लील साहित्य दिखाना; या

(v) लैंगिक प्रकृति का कोई अन्य अवांछनीय शारीरिक, शाब्दिक या गैर-शाब्दिक आचरण करना;

(ण) “कार्यस्थल” के अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं,-

(i) ऐसा कोई विभाग, संगठन, उपक्रम, स्थापन, उद्यम, संस्था, कार्यालय, शाखा या यूनिट, जो समुचित सरकार या स्थानीय प्राधिकरण या किसी सरकारी कम्पनी या किसी निगम या सहकारी सोसाइटी द्वारा स्थापित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या पूर्णतः या भागतः, उसके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा वित्तपोषित की जाती है;

(ii) कोई प्राइवेट सेक्टर संगठन या किसी प्राइवेट वेन्चर, उपक्रम, उद्यम, संस्था, स्थापन, सोसाइटी, न्यास, गैर-सरकारी संगठन, यूनिट या सेवा प्रदाता, जो वाणिज्यिक, व्रत्तिक, व्यावसायिक, शैक्षिक, मनोरंजक, औद्योगिक, स्वास्थ्य सेवाएं या वित्तीय क्रियाकलाप करता है, जिसके अंतर्गत उत्पादन, प्रदाय, विक्रय वितरण या सेवा भी है: 

(iii) अस्पताल या परिचर्या गृह;

(iv) कोई खेलकूद संस्था, स्टेडियम, खेलकूद प्रक्षेत्र या प्रतियोगिता अथवा खेल का स्थान, जो चाहे नैवासिक हो या प्रशिक्षण, खेलकूद या झससे संबंधित अन्य क्रियाकलापों में प्रयुक्त न किया जाता हो;

(v) नियोजन, से उद्भूत या के दौरान, कर्मचारी द्वारा दौरा किया गया कोई स्थान जिसमें सम्मिलित है ऐसी यात्रा करने के लिए नियोजक द्वारा उपलब्ध कराया गया परिवहन ;

(vi) कोई निवास स्थान या गृह;

(त) किसी कार्यस्थल के संबंध में, “असंगठित सेक्टर” से ऐसा कोई उधम अभिप्रेत है, जो व्यष्टियों या स्वनियोजित कर्मकारों के स्वामित्वाधीन है और किसी भी प्रकार के माल के उत्पादन या विक्रय अथवा सेवा प्रदान करने में लगा हुआ है और जहाँ उद्यम कर्मकारों को नियोजित करता है, वहाँ ऐसे कर्मकारों की संख्या दस से कम है।

3. लैंगिक उत्पीड़न का निवारण –(1) कोई भी महिला, किसी कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न के अध्यधीन नहीं होगी।

(2) अन्य परिस्थितियों के साथ-साथ निम्नलिखित परिस्थितियाँ, यदि वह लैंगिक उत्पीड़न के किसी कृत्य या आचरण के संबंध में या से सम्बद्ध होने के कारण हुई हैं या विद्यमान हैं, तो वह लैंगिक उत्पीड़न होगा-

(i) उसके नियोजन में अधिमानी व्यवहार का अंतर्निहित या स्पष्ट वचन; या

(ii) उसके नियोजन में अहितकर व्यवहार की अंतर्निहित या स्पष्ट धमकी; या 

(iii) उसकी वर्तमान या भावी नियोजन प्रास्थिति के बारे में अंतर्निहित या स्पष्ट घमकी; या

(iv) किसी व्यक्ति का ऐसा आचरण, जो उसके कार्य में हस्तक्षेप करता है या उसके लिए अभित्रासमय या आपराधिक या शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण सृजित करता है; या 

(v) उसके लिए स्वास्थ्य या सुरक्षा समस्याओं का गठन करने वाला अपमानजनक आचरण।

अध्याय 2

आंतरिक परिवाद समितियों का गठन

4. आंतरिक परिवाद समिति का गठन— (1) किसी कार्यस्थल का प्रत्येक नियोजक, लिखित आदेश द्वारा, “आंतरिक परिवाद समिति” नामक एक समिति का गठन करेगा: 

     परन्तु जहाँ कार्यस्थल के कार्यालय या प्रशासनिक यूनिटें भिन्न-भिन्न स्थानों या खंडीय या उपखंडीय स्थलों पर स्थित हैं, वहाँ आंतरिक समिति सभी प्रशासनिक यूनिटों या कार्यालयों में गठित की जाएंगी ।।

(2) आंतरिक समिति नियोजक द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगी, अर्थात्-

(क) एक पीठासीन अधिकारी, जो कर्मचारियों में से कार्यस्थल पर वरिष्ठ स्तर की नियोजित महिला होगी: 

     परन्तु किसी वरिष्ठ स्तर की महिला कर्मचारी के उपलब्ध न होने की दशा में, पीठासीन अधिकारी उपधारा (1) में निर्दिष्ट कार्यस्थल के अन्य कार्यालयों या प्रशासनिक यूनिटों से नामनिर्देशित किया जाएगा :

     परन्तु यह और कि कार्यस्थल के ऐसे अन्य कार्यालयों या प्रशासनिक यूनिटों में वरिष्ठ स्तर की महिला कर्मचारी न होने की दशा में, पीठासीन अधिकारी उसी नियोजक के किसी अन्य कार्यस्थल या अन्य विभाग या संगठन से नामनिर्देशित किया जाएगा। 

(ख) कर्मचारियों में से दो से अन्यून ऐसे सदस्य, जो महिलाओं की समस्याओं के प्रति अधिमानी रूप से प्रतिबद्ध हैं या जिनके पास समाज सुधार के कार्य में अनुभव है या विधिक ज्ञान है; 

(ग) गैर-सरकारी संगठनों या संगमों से ऐसा एक सदस्य, जो महिलाओं की समस्याओं के प्रति प्रतिबद्ध है या कोई व्यक्ति जो लैंगिक उत्पीड़न से संबंधित विवाद्यकों से सुपरिचित हो :

     परन्तु इस प्रकार नामनिर्देशित कुल सदस्यों में से कम से कम आधे सदस्य महिलाएँ होंगी।

(3) आंतरिक समिति का पीठासीन अधिकारी और प्रत्येक सदस्य अपने नामनिर्देशन की तारीख से तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए पदधारण करेगा, जो नियोजक द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए। 

(4) गैर-सरकारी संगठनों या संगमों में से नियुक्त सदस्य को आंतरिक समिति की कार्यवाहियों के आयोजन के लिए नियोजक द्वारा ऐसी फीस या भत्ते संदत्त किये जाएंगे, जो विहित किए जाएं।

(5) जहाँ आंतरिक समिति का पीठासीन अधिकारी या कोई सदस्य,- 

(क) धारा 16 के उपबंधों का उल्लंघन करता है; या

(ख) किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन किसी अपराध में उसके विरुद्ध जाँच लंबित है; या 

(ग) वह अनुशासनात्मक कार्यवाहियों में दोषी पाया जाता है या उसके विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित है;

(घ) उसने अपनी हैसियत का इस प्रकार दुरुपयोग किया है, जिससे उसका पद पर बने रहना लोक हित के प्रतिकूल हो गया है,

वहाँ, यथास्थिति, ऐसे पीठासीन अधिकारी या सदस्य को समिति से हटा दिया जाएगा और इस प्रकार सृजित रिक्ति या किसी अन्य आकस्मिक रिक्ति को इस धारा के उपबंधों के अनुसार नए नामनिर्देशन द्वारा भरा जाएगा।

अध्याय 3

स्थानीय परिवाद समिति का गठन

5. जिला अधिकारी की अधिसूचना — समुचित सरकार, किसी जिला मजिस्ट्रेट या अपर जिला मजिस्ट्रेट या कलेक्टर या उप कलेक्टर को, इस अधिनियम के अधीन शक्तियों का प्रयोग या कृत्यों का निवर्हन करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए जिला अधिकारी के रूप में अधिसूचित कर सकेगी।

6. स्थानीय परिवाद समिति का गठन और उसकी अधिकारिता — (1) ऐसे स्थापनों से लैंगिक उत्पीड़न के परिवाद प्राप्त करने के लिए जहाँ दस से कम कर्मकारों के होने के कारण आंतरिक परिवाद समिति गठित नहीं की गई है या यदि परिवाद नियोजक के ही विरुद्ध है, तो प्रत्येक जिला अधिकारी, संबंधित जिले में, ‘स्थानीय परिवाद समिति’ नामक एक समिति का गठन करेगा।

(2) जिला अधिकारी, परिवाद प्राप्त करने के लिए और उन्हें सात दिन की कालावधि के भीतर संबंधित स्थानीय परिवाद समिति को अग्रेषित करने के लिए, ग्रामीण या जनजाति क्षेत्र में प्रत्येक ब्लॉक, तालुक और तहसील में और शहरी क्षेत्र में वार्ड और नगरपालिका में एक नोडल अधिकारी पदाभिहित करेगा।

(3) स्थानीय परिवाद समिति की अधिकारिता जिले के उन क्षेत्रों तक विस्तारित होगी जहाँ वह गठित की गई है।

7. स्थानीय परिवाद समिति की संरचना, कालावधि और अन्य निबंधन तथा शर्तें— (1) स्थानीय परिवाद समिति, जिला अधिकारी द्वारा नामनिर्देशित किए जाने वाले निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगी,  अर्थात –

(क) अध्यक्ष, जो सामाजिक कार्य के क्षेत्र में प्रख्यात और महिलाओं की समस्याओं के प्रति प्रतिबद्ध महिलाओं में से नामनिर्दिष्ट की जाएगी; 

(ख) एक सदस्य, जो जिले में ब्लॉक, तालुक या तहसील या वार्ड या नगरपालिका में कार्यरत महिलाओं में से नामनिर्दिष्ट की जाएगी;

(ग) दो सदस्य, जिनमें से कम से कम एक सदस्य महिला होगी, जो महिलाओं की समस्याओं के प्रति प्रतिबद्ध ऐसे गैर-सरकारी संगठनों या संगमों में से नामनिर्दिष्ट की जाएगी या लैंगिक उत्पीड़न से संबंधित विवाधको से सुपरिचित कोई व्यक्ति जो विहित किए जाएं ;

परन्तु कम से कम एक नामनिर्देशिती के पास,अधिमानी रूप से विधि की पृष्ठभूमि या विधिक ज्ञान हो :

     परन्तु यह और कि कम से कम एक नामनिर्देशिती, समय-समय पर, केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों या अन्य पिछड़ा वर्गों या अल्पसंख्यक समुदाय की महिला होगी।

(घ) समाज कल्याण या महिला एवं बाल विकास में संव्यवहार करने वाला संबंधित अधिकारी पदेन सदस्य होगा।

(2) स्थानीय समिति का अध्यक्ष और प्रत्येक सदस्य, अपनी नियुक्ति की तारीख से तीन वर्ष से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए पद धारण करेगा, जो जिला अधिकारी द्वारा विहित की जाए।

(3) जहाँ स्थानीय परिवाद समिति का अध्यक्ष या कोई सदस्य-

(क) धारा 16 के उपबंधों का उल्लंघन करता है; या

(ख) किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जाता है या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन किसी अपराध में उसके विरुद्ध जाँच लंबित है; या

(ग) वह अनुशासनात्मक कार्यवाहियों में दोषी पाया जाता है या उसके विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित है;

(घ) उसने अपनी हैसियत का इस प्रकार दुरुपयोग किया है, जिससे उसका पद पर बने लोकहित के प्रतिकूल हो गया है,

वहाँ, यथास्थिति, ऐसे अध्यक्ष या सदस्य को समिति से हटा दिया जाएगा और इस प्रकार सृजित रिक्ति या किसी अन्य आकस्मिक रिक्ति को इस धारा के उपबंधों के अनुसार नए नामनिर्देशन द्वारा भरा जाएगा।

(4) स्थानीय समिति का अध्यक्ष और उपधारा (1) के खण्ड (ख) एवं (घ) के अधीन नामनिर्देशित सदस्यों से भिन्न सदस्य, स्थानीय समिति की कार्यवाहियों के आयोजन के लिए ऐसी फीस या भत्ते के लिए हकदार होंगे, जो विहित किए जाएं। 

8. अनुदान और संपरीक्षा-– (1) केन्द्रीय सरकार, संसद् द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किए गए सम्यक विनियोग के पश्चात्, राज्य सरकार को धारा 7 की उपधारा (4) में निर्दिष्ट फीसों या भत्तों के संदाय के लिए उपयोग किए जाने के लिए ऐसी धनराशियों के अनुदान दे सकेगी, जो केन्द्रीय सरकार ठीक समझे।

(2) राज्य सरकार, एक अभिकरण की स्थापना कर सकेगी और उपधारा (1) के अधीन किए गए अनुदान उस अभिकरण को आवंटित कर सकेगी। 

(3) अभिकरण जिला अधिकारी को ऐसी राशियों का संदाय करेगा, जो धारा 7 की उपधारा (4) में निर्दिष्ट फीसों या भत्तों के संदाय के लिए अपेक्षित हों।

(4) उपधारा (2) में निर्दिष्ट अभिकरण के लेखाओं को ऐसी रीति में रखा और संपरीक्षित किया जाएगा, जो राज्य के महालेखाकार के परामर्श से विहित की जाए और अभिकरण के लेखाओं को अभिरक्षा में रखने वाला व्यक्ति, ऐसी तारीख से पूर्व, जो विहित की जाए, राज्य सरकार को अपने लेखाओं की संपरीक्षित प्रति, उसके संबंधित संपरीक्षक की रिपोर्ट के साथ प्रस्तुत करेगा।

अध्याय 4

परिवाद

9. लैंगिक उत्पीड़न का परिवाद –(1) कोई व्यथित महिला, कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न का लिखित में परिवाद आंतरिक समिति को, यदि इस प्रकार गठित की गई है या यदि इस प्रकार गठित नहीं की गई है तो स्थानीय समिति को, घटना की तारीख से तीन माह की कालावधि के भीतर और घटनाओं की श्रृंखला होने की दशा में अन्तिम घटना की तारीख से तीन माह की कालावधि के भीतर, कर सकेगी:

     परन्तु जहां ऐसा परिवाद लिखित में नहीं किया जा सकता है, यहाँ यथास्थिति, आंतरिक समिति का पीठासीन अधिकारी या कोई सदस्य, अथवा स्थानीय समिति का अध्यक्ष या कोई सदस्य, महिला को लिखित में परिवाद करने के लिए सभी युक्तियुक्त सहायता प्रदान करेगा :

     परन्तु यह कि स्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, लिखित में अभिलिखित किये जाने वाले कारणों के लिए, समयावधि को तीन माह से अनधिक के लिए विस्तारित कर सकेगी, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि परिस्थितियाँ ऐसी थीं जिन्होंने उक्त कालावधि के भीतर परिवाद फाइल करने से महिला को निवारित कर दिया था। 

(2) जहाँ व्यथित महिला, अपनी शारीरिक या मानसिक असामर्थ्य या मृत्यु के कारण या अन्यवा परिवाद करने में असमर्थ है तो उसका विधिक वारिस या ऐसा अन्य व्यक्ति, जो विहित किया जाए, इस धारा के अधीन परिवाद कर सकेगा।

10. सुलह– (1) यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, धारा 11 के अधीन जांच आरम्भ करने से पूर्व और व्यथित महिला के अनुरोध पर, सुलह के माध्यम से उसके और प्रत्यर्थी के बीच मामले का समाधान करने के उपाय कर सकेगी:

     परन्तु यह कि सुलह के आधार पर कोई मौद्रिक समाधान नहीं किया जाएगा। 

(2) जहाँ उपधारा (1) के अधीन कोई समाधान हो गया है, वहाँ, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, इस प्रकार किए गए समाधान को अभिलिखित करेगी और उसे नियोजक या जिला अधिकारी को ऐसी कार्रवाई करने के लिए भेजेगा, जो सिफारिश में विनिर्दिष्ट की जाए। 

(3) यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, उपधारा (2) के अधीन अभिलिखित किए गए समाधान की प्रतियां व्यथित महिला और प्रत्यर्थी को उपलब्ध कराएगी। 

(4) जहाँ उपधारा (1) के अधीन कोई समाधान हो जाता है, वहाँ, यथास्थिति आंतरिक समिति या स्थानीय समिति द्वारा कोई और जाँच संचालित नहीं की जाएगी।

11. परिवाद के बारे में जाँच — (1) धारा 10 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, जहाँ प्रत्यर्थी कोई कर्मचारी है, वहाँ प्रत्यर्थी को लागू सेवा नियमों के उपबंधों के अनुसरण में परिवाद के बारे में जाँच करने की कार्यवाही करेगी और जहाँ ऐसे कोई नियम विद्यमान नहीं हैं तो ऐसी रीति में जो कि विहित की जाए या किसी घरेलू कर्मकार की दशा में, स्थानीय समिति, यदि प्रथम दृष्ट्या मामला विद्यमान हो तो भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 509 और उक्त संहिता के यथा प्रयोज्य अन्य सुसंगत उपबंधों के अधीन मामला पंजीबद्ध करने के लिए सात दिनों की कालावधि के भीतर पुलिस को परिवाद अग्रेषित करेगी:

     परन्तु जहाँ व्यथित महिला, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को यह सूचित करती है कि धारा 10 की उपधारा (2) के अधीन किए गए समाधान के किसी निबंधन और शर्त का प्रत्यर्थी द्वारा अनुपालन नहीं किया गया है तो आंतरिक समिति या स्थानीय समिति परिवाद के बारे में जाँच करने के लिए कार्यवाही करेगी या यथास्थिति, पुलिस को परिवाद अग्रेषित करेगी :

     परन्तु यह और कि जहाँ दोनों पक्षकार कर्मचारी है तो पक्षकारों को, जाँच के दौरान, सुनवाई का अवसर दिया जाएगा और निष्कर्षो की एक प्रति दोनों पक्षकारों को, समिति के समक्ष निष्कषों के विरुद्ध अभ्यावेदन देने हेतु समर्थ बनाने के लिए उपलब्ध कराई जाएगी। 

(2) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 509 में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, न्यायालय, जबकि प्रत्यर्थी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, धारा 15 के उपबन्धों को ध्यान में रखते हुए, प्रत्यर्थी द्वारा व्यथित महिला को ऐसी राशि के आदेश दे सकेगा जो वह उचित समझे। 

(3) उपधारा (1) के अधीन जाँच करने के प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को वही शक्तियां होंगी, जो निम्नलिखित मामलों के संबंध में किसी वाद का विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी सिविल न्यायालय में निहित हैं –

(क) किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना; 

(ख) किन्हीं दस्तावेजों के प्रकटीकरण और पेश किए जाने की अपेक्षा करना;

(ग) ऐसा कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए।

(4) उपधारा (1) के अधीन जाँच नब्बे दिन की अवधि के भीतर पूरी की जाएगी।

अध्याय 5

परिवाद के बारे में जाँच

12. जाँच के लंबित रहने के दौरान कार्रवाई — (1) जाँच के लंबित रहने के दौरान,व्यथित महिला द्वारा किए गए लिखित अनुरोध पर, यथास्थि आंतरिक समिति या स्थानीय समिति नियोजक को निम्नलिखित की सिफारिश कर सकेगी,-

(क) व्यथित महिला या प्रत्यर्थी का किसी अन्य कार्यस्थल में अंतरण; या 

(ख) व्यथित महिला की तीन माह तक की कालावधि की छुट्टी मंजूर करने; या

(ग) व्यथित महिला को ऐसी अन्य राहत प्रदान करने, जो विहित की जाए।

(2) इस धारा के अधीन व्यथित महिला को मंजूर की गई छुट्टी उस छुट्टी के अतिरिक्त होगी, जिसके लिए वह अन्यथा हकदार होती।

(3) उपधारा (1) के अधीन, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति की सिफारिश पर नियोजक उपधारा (1) के अधीन की गई सिफारिशों को कार्यान्वित करेगा और ऐसे कार्यान्वयन की रिपोर्ट, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को भेजेगा। 

13. जाँच रिपोर्ट– (1) इस अधिनियम के अधीन जाँच के पूरा होने पर, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, अपने निष्कर्षो की एक रिपोर्ट, यथास्थिति, नियोजक या जिला अधिकारी को जांच के पूरा होने की तारीख से दस दिनों की कालावधि के भीतर उपलब्ध कराएगी और ऐसी रिपोर्ट संबंधित पक्षकारों को उपलब्ध कराई जाएगी।

(2) जहाँ, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि प्रत्यर्थी के विरुद्ध अभिकथन साबित नहीं किया गया है तो वह नियोजक और जिला अधिकारी को यह सिफारिश करेगी कि मामले में कोई कार्रवाई की जानी अपेक्षित नहीं है।

(3) जहां, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि प्रत्यर्थी के विरुद्ध अभिकथन साबित हो गया है, वहाँ वह, यथास्थिति, नियोजक या जिला अधिकारी से निम्नलिखित की सिफारिश करेगी,-

( i) प्रत्यर्थी को लागू सेवा नियमों के उपबन्धों के अनुसार कदाचार के रूप में या जहाँ ऐसे सेवा नियम नहीं बनाए गए हैं, वहाँ ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, लैंगिक उत्पीड़न के लिए कार्रवाई करने;

(ii) प्रत्यर्थी को लागू सेवा नियमों में किसी बात के होते हुए भी, प्रत्यर्थी के वेतन या मजदूरी से व्यथित महिला को या उसके विधिक वारिस को संदत किए जाने वाला प्रतिकर की ऐसी राशि की कटौती करने, जो धारा 15 के उपबंधों के अनुसार वह अवधारित करे :

      परन्तु यदि नियोजक प्रत्यर्थी के कर्तव्य से अनुपस्थित रहने या नियोजन के समाप्त हो जाने के कारण उसके वेतन से ऐसी कटौती करने में असमर्थ है तो वह व्यथित महिला को ऐसे प्रतिकर का संदाय करने का प्रत्यर्थी को निदेश दे सकेगा :

     परन्तु यह और कि उस दशा में जबकि प्रत्यर्थी खण्ड (ii) में निर्दिष्ट राशि का संदाय प्रत्यर्थी को करने में विफल होता है तो यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, राशि की वसूली भू-राजस्व की बकाया के रूप में करने के लिए संबंधित जिला अधिकारी को आदेश अग्रेषित कर सकेगी। 

(4) नियोजक या जिला अधिकारी, उसके द्वारा सिफारिश की प्राप्ति के साठ दिन के भीतर उस पर कार्रवाई करेगा।

14. मिथ्या या द्वेषपूर्ण परिवाद और मिथ्या साक्ष्य के लिए दण्ड- (1) जहाँ, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि प्रत्यर्थी के विरुद्ध अभिकथन द्वेषपूर्ण है अथवा व्यथित महिला या परिवाद करने वाले किसी किसी अन्य व्यक्ति ने परिवाद को मिथ्या होना जानते हुए किया है अथवा व्यथित महिला या परिवाद करने वाले किसी अन्य व्यक्ति ने कोई कूटरचित या भ्रामक दस्तावेज पेश किया है तो वह, यथास्थिति, नियोजक या जिला अधिकारी को उस महिला या व्यक्ति के विरुद्ध, जिसने, यथास्थिति, धारा 9 की उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन परिवाद किया है, उसे लागू सेवा नियमों के उपबंधों के अनुसार या जहाँ ऐसे सेवा नियम विद्यमान नहीं है, वहाँ ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, कार्रवाई करने की सिफारिश कर सकेगी :

     परन्तु किसी परिवाद को सिद्ध करने या पर्याप्त सबूत उपलब्ध कराने में मात्र असमर्थता, इस धारा के अधीन परिवादकर्ता के विरुद्ध कार्रवाई को आकर्षित नहीं करेगीः 

     परन्तु यह और कि किसी कार्रवाई की सिफारिश किए जाने से पूर्व, विहित प्रक्रिया के अनुसार जाँच किए जाने के पश्चात् परिवादकर्ता की ओर से द्वेषपूर्ण आशय सिद्ध किया जाएगा।

(2) जहाँ, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि जाँच के दौरान किसी साक्षी ने मिथ्या साक्ष्य दिया है या कोई कूटरचित या भ्रामक दस्तावेज पेश किया है, वहाँ वह, यथास्थिति, साक्षी के नियोजक या जिला अधिकारी को, उक्त साक्षी को लागू सेवा नियमों के उपबंधों के अनुसार या जहाँ ऐसे सेवा नियम विद्यमान नहीं है, वहाँ ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, कार्रवाई करने की सिफारिश कर सकेगी।

15. प्रतिकर का अवधारण –– धारा 13 की उपधारा (3) के खण्ड (ii) के अधीन व्यथित महिला को संदत्त किए जाने वाले प्रतिकर का अवधारण करने के प्रयोजन के लिए, यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति निम्नलिखित को ध्यान में रखेगी,-

(क) व्यथित महिला को पहुँचाए गए मानसिक आघात, पीड़ा, यातना और भावनात्मक कष्ट ;

(ख) लैंगिक उत्पीड़न की घटना के कारण वृत्ति के अवसर की हानि;

(ग) पीड़ित द्वारा शारीरिक या मनः चिकित्सीय उपचार के लिए उपगत चिकित्सा व्यय;

(घ) प्रत्यर्थी की आय और वित्तीय प्रास्थिति; 

(ङ) एक मुश्त या किस्तों में ऐसे संदाय की साध्यता ।

16. परिवाद की अंतर्वस्तुओं और जाँच कार्यवाहियों के प्रकाशन या सार्वजनिक करने का प्रतिषेध-– सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (2005 का 22) में किसी बात के होते हुए भी, धारा 9 के अधीन किए गए परिवाद की अंतर्वस्तुएँ, व्यथित महिला, प्रत्यक्षी और साक्षियों की पहचान और पते, सुलह और जाँच कार्यवाहियों से संबंधित जानकारी और यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति की सिफारिशों तथा इस अधिनियम के अधीन नियोजक या जिला अधिकारी द्वारा की गई कार्रवाई को, किसी भी रीति में, प्रकाशित, प्रेस और मीडिया को संसूचित या सार्वजनिक नहीं किया जाएगा:

     परन्तु इस धारा के अधीन लैंगिक उत्पीड़न के किसी पीड़ित को अभिप्राप्त न्याय के संबंध में जानकारी का, व्यथित महिला और साक्षियों के नाम, पते, पहचान या उनकी पहचान को प्रदर्शित करने वाली किन्हीं अन्य विशिष्टियों को प्रकट किए बिना, प्रसार किया जा सकेगा।

17. परिवाद की अंतर्वस्तुओं और जाँच कार्यवाहियों के प्रकाशन या सार्वजनिक करने के लिए शास्ति — जहाँ कोई व्यक्ति, जिसे इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन परिवादों, जाँच या किन्हीं सिफारिशों या की जाने वाली कार्रवाई का संचालन करने या उस पर कार्यवाही करने का कर्तव्य सौंपा गया है, धारा 16 के उपबन्धों का उल्लंघन करता है, वहाँ वह उक्त व्यक्ति को लागू सेवा नियमों के उपबंधों के अनुसार या जहाँ ऐसे सेवा नियम विद्यमान नहीं हैं, ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, शास्ति के लिए दायी होगा।

18. अपील –– (1) धारा 13 की उपधारा (2) के अधीन या धारा 13 की उपधारा (3) के खण्ड (i) या खंड (ii) के अधीन या धारा 14 की उपधारा (1) या उपधारा (2) या धारा 17 के अधीन की गई सिफारिशों या ऐसी सिफारिशों को कार्यान्वित न किए जाने से व्यथित कोई व्यक्ति, उक्त व्यक्ति को लागू सेवा नियमों के उपबंधों के अनुसार न्यायालय या अधिकरण को अपील कर सकेगा या जहां ऐसे सेवा नियम विद्यमान नहीं हैं, वहाँ तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, व्यथित व्यक्ति ऐसी रीति में अपील कर सकेगा, जो विहित की जाए।

(2) उपधारा (1) के अधीन अपील, सिफारिशों के नब्बे दिन की अवधि के भीतर की जाएगी।

अध्याय 6 

नियोजक के कर्त्तव्य

19. नियोजक के कर्तव्य — प्रत्येक नियोजक, – 

(क) कार्यस्थल पर सुरक्षित कार्य वातावरण उपलब्ध कराएगा, जिसके अंतर्गत कार्यस्थल पर संपर्क में आने वाले व्यक्तियों से सुरक्षा भी है;

(ख) लैंगिक उत्पीड़न के दाण्डिक परिणाम और धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन आंतरिक समिति का गठन करने वाले आदेश को कार्यस्थल में किसी सहजदृश्य स्थान पर प्रदर्शित करेगा;

(ग) इस अधिनियम के उपबंधों के संबंध में कर्मचारियों को सुग्राही बनाने के लिये नियमित अंतरालों पर कार्यशालाएँ और जागरुकता कार्यक्रम तथा विहित रीति में आंतरिक समिति के सदस्यों के लिए अभिविन्यास कार्यक्रम संचालित करेगा; 

(घ) यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को परिवादों पर कार्यवाही करने और जाँच का संचालन करने के लिए आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराएगा;

(ङ) यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति के समक्ष प्रत्यर्थी या साक्षियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने में सहायता करेगा; 

(च) यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को ऐसी जानकारी उपलब्ध कराएगा, जो धारा 9 की उपधारा (1) के अधीन परिवाद को ध्यान में रखकर अपेक्षित हो; 

(छ) महिला को, यदि वह भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45 ) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन अपराध के संबंध में कोई परिवाद फाइल करने का इस प्रकार चयन करती है, सहायता प्रदान करेगा;

(ज) अपराधकर्ता के विरुद्ध, भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45 ) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन कार्रवाई आरम्भ करेगा, या यदि व्यथित महिला ऐसा चाहे तो, जहाँ अपराधकर्ता कर्मचारी न हो, ऐसे कार्यस्थल में जिसमें लैंगिक उत्पीड़न की घटना घटित हुई हो; 

(झ) लैंगिक उत्पीड़न को सेवा नियमों के अधीन कदाचार के रूप में मानेगा और ऐसे कदाचार के लिए कार्रवाई आरम्भ करेगा।

(ञ) आंतरिक समिति द्वारा रिपोर्टों के समय से दिए जाने को मानीटर करेगा।

अध्याय 7

जिला अधिकारी के कर्त्तव्य और शक्तियाँ

20. जिला अधिकारी के कर्त्तव्य और शक्तियाँ- जिला अधिकारी,-

(क) स्थानीय समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्टों के समय से दिए जाने को मानीटर करेगा;

(ख) ऐसे उपाय करेगा, जो लैंगिक उत्पीड़न और महिलाओं के अधिकारों के संबंध में जागरूकता सृजित करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों को लगाने के लिए आवश्यक हों।

अध्याय 8

प्रकीर्ण

21. समिति द्वारा वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना – (1) यथास्थिति, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, प्रत्येक कैलेंडर वर्ष में ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय के भीतर, जो विहित किया जाए, एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगी और उसे नियोजक और जिला अधिकारी को प्रस्तुत करेगी। 

(2) जिला अधिकारी, उपधारा (1) के अधीन प्राप्त वार्षिक रिपोर्टों संबंधी एक संक्षिप्त रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजेगा।

22. वार्षिक रिपोर्ट में नियोजक द्वारा जानकारी का सम्मिलित किया जाना –– नियोजक, अपने संगठन की वार्षिक रिपोर्ट में इस अधिनियम के अधीन फाइल किए गए मामलों, यदि कोई हों, और उनके निपटारे की संख्या, को सम्मिलित करेगा या जहाँ ऐसी रिपोर्ट तैयार किए जाने की अपेक्षा नहीं की गई है, वहाँ ऐसे मामलों की, यदि कोई हों, संख्या जिला अधिकारी को संसूचित करेगा।

23. समुचित सरकार द्वारा कार्यान्वयन की मानिटरी और डाटा रखा जाना –– समुचित सरकार इस अधिनियम के कार्यान्वयन की मानिटरी करेगी और कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न के फाइल किए गए और निपटाए गए सभी मामलों की संख्या से संबंधित डाटा रखेगी। 

24. समुचित सरकार अधिनियम को प्रचारित करने के उपाय करेगी — समुचित सरकार, वित्तीय और अन्य संसाधनों की उपलब्धता के अध्यधीन, –

(क) महिलाओं के कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न के विरुद्ध संरक्षण के लिए उपबन्ध करने वाले इस अधिनियम के उपबंधों का जनता को बोध कराने के लिए सुसंगत जानकारी, शिक्षा, संसूचना एवं प्रशिक्षण सामग्री का विकास एवं जागरुकता कार्यक्रमों का संचालन कर सकेगी; 

(ख) स्थानीय परिवाद समिति के सदस्यों के लिए अभिविन्यास और प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बना सकेगी। 

25. सूचना माँगने और अभिलेखों का निरीक्षण करने की शक्ति — (1) समुचित सरकार, यह समाधान हो जाने पर कि ऐसा करना लोक हित में या कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के हित में आवश्यक है, लिखित आदेश द्वारा,-

(क) किसी नियोजक या जिला अधिकारी से लैंगिक उत्पीड़न के संबंध में ऐसी लिखित सूचना प्रस्तुत करने की माँग कर सकेगी, जो उसे अपेक्षित हो;

(ख) किसी भी अधिकारी को लैंगिक उत्पीड़न के संबंध में अभिलेखों और कार्यस्थल का निरीक्षण करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगी, जो उसे ऐसी अवधि के भीतर, जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, ऐसे निरीक्षण की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

(2) प्रत्येक नियोजक और जिला अधिकारी मांग किए जाने पर निरीक्षण करने वाले अधिकारी के समक्ष, उसकी अभिरक्षा में की ऐसी सभी सूचना, अभिलेख और अन्य दस्तावेज प्रस्तुत करेंगे, जो ऐसे निरीक्षण की विषय-वस्तु को प्रभावित करते हैं।

26. अधिनियम के उपबंधों के अननुपालन के लिए शास्ति — (1) जहाँ कोई नियोजक,- 

(क) धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन एक आंतरिक समिति का गठन करने में असफल रहता;

(ख) धाराओं 13, 14 और 22 के अधीन कार्रवाई करने में असफल रहता है; और

(ग) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों या तद्‌धीन बनाए गए किन्हीं नियमों का उल्लंघन करता है या उल्लंघन करने का प्रयास करता है या उनके उल्लंघन को दुष्प्रेरित करता है, 

वहाँ वह ऐसे जुर्माने से, जो पचास हजार रुपये तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा।

(2) यदि कोई नियोजक पूर्व में, इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध में सिद्धदोष ठहराए पर, बाद में उसी अपराध को पुनः कारित करता है और उसके लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है तो वह,-

(i) उसी अपराध के लिए उपबंधित अधिकतम दण्ड के अधीन रहते हुए, पहली दोषसिद्धि पर अधिरोपणीय दण्ड से दुगुने दण्ड का दायी होगा:

परन्तु यदि तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन उस अपराध के लिए, जिसके संबंध में आरोपी का अभियोजन किया जा रहा है, कोई उच्चतर दण्ड विहित है तो न्यायालय दण्ड देते समय उसका सम्यक् संज्ञान लेगा।

(ii) सरकार या स्थानीय प्राधिकारी द्वारा उसके कारबार या क्रियाकलाप को चलाने के लिये अपेक्षित, यथास्थिति, उसकी अनुज्ञप्ति के रद्द किए जाने या रजिस्ट्रीकरण को प्रत्याहृत किए जाने या नवीकरण न किए जाने या अननुमोदन या रद्दकरण के लिए दायी होगा।। 

27. न्यायालयों द्वारा अपराध का संज्ञान — (1) कोई भी न्यायालय इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का संज्ञान, व्यथित महिला या आंतरिक समिति अथवा स्थानीय समिति द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत किए जाने के सिवाय नहीं लेगा।

(2) मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी से निम्नतर कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा।

(3) इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक अपराध असंज्ञेय होगा।

28. अधिनियम का किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में न होना — इस अधिनियम के उपबंध, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे, न कि उनके अल्पीकरण में। 

29. समुचित सरकार की नियम बनाने की शक्ति — (1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियम बना सकेगी। 

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियम निम्नलिखित सभी विषयों या उनमें से किसी विषय के संबंध में उपबंध कर सकेंगे, अर्थात्-

(क) धारा 4 की उपधारा (4) के अधीन सदस्यों को संदेय फीस या भते;

(ख) धारा 7 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अधीन सदस्यों का नामनिर्देशन;

(ग) धारा 7 की उपधारा (4) के अधीन अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय फीस या भत्ते;

(घ) ऐसा व्यक्ति, जो धारा 9 की उपधारा (2) के अधीन परिवाद कर सकेगा;

(ङ) धारा 11 की उपधारा (1) के अधीन जाँच की रीति;

(च) धारा 11 की उपधारा (2) के खण्ड (ग) के अधीन जाँच करने की शक्तियां;

(छ) धारा 12 की उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अधीन सिफारिश किए जाने वाला अनुतोष;

(ज) धारा 13 की उपधारा (3) के खण्ड (i) के अधीन कार्रवाई करने की रीति ;

(झ) धारा 14 की उपधारा (1) और उपधारा (2) के अधीन कार्रवाई करने की रीति;

(ञ) धारा 17 के अधीन कार्रवाई करने की रीति ;

(ट) धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन अपील करने की रीति;

(ठ) धारा 19 के खण्ड (ग) के अधीन कर्मचारियों को सुग्राही बनाने के लिए कार्यशालाएँ,जागरूकता कार्यक्रम और आंतरिक समिति के सदस्यों के लिए अभिविन्यास कार्यक्रम संचालित करने की रीति; 

(ड) धारा 21 की उपधारा (1) के अधीन आंतरिक समिति और स्थानीय समिति द्वारा वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने के लिए प्ररूप और समय।

(3) केन्द्रीय सरकार द्वारा इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, उसके बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी और यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं या सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह नियम, यथास्थिति, ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या निष्प्रभाव हो जाएगा; किन्तु तथापि, नियम के इस प्रकार परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ेगा। 

(4) किसी राज्य सरकार द्वारा धारा 8 की उपधारा (4) के अधीन बनाया गया कोई नियम, उसके बनाए जाने के पश्चात्, यथासंभव शीघ्र, राज्य विधान मण्डल के, जहाँ उसके दो सदन हैं, वहाँ प्रत्येक सदन के समक्ष या जहाँ उसका केवल एक सदन है, वहाँ उस सदन के समक्ष रखा जाएगा।

30. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति-– (1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबंध कर सकेगी, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों, जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक प्रतीत हो:

     परन्तु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारम्भ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा। 

(2) इस धारा के अधीन किए गए प्रत्येक आदेश को, उसे किए जाने के पश्चात्, यथासंभव शीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।