राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, 2008
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण
अधिनियम, 2008
[ 2008 का अधिनियम सं. 34 ]
[31 दिसम्बर, 2008]
भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों से मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्रभावित करने वाले अपराधों और अंतरराष्ट्रीय संधियों, करारों, अभिसमयों तथा संयुक्त राष्ट्र, उसके अभिकरणों और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के संकल्पों को कार्यान्वित करने के लिए अधिनियमित किए गए अधिनियमों के अधीन अपराधों का अन्वेषण और अभियोजन करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक अन्वेषण अभिकरण का गठन करने और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों के लिए अधिनियम ।
भारत गणराज्य के उनसठवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
अध्याय 1
प्रारंभिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और लागू होना. – (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, 2008 है ।
(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है और यह :-
(क) भारत से बाहर भारत के नागरिकों को;
(ख) सरकार की सेवा में व्यक्तियों को, जहां भी वे हों;
(ग) भारत में रजिस्ट्रीकृत पोतों और वायुयानों पर, जहां भी वे हों, व्यक्तियों को; और
(घ) ऐसे व्यक्तियों को, जो भारत के बाहर भारतीय नागरिक के विरुद्ध या भारत के हितों को प्रभावित करने वाला कोई अनुसूचित अपराध करते हैं;
भी लागू होता है ।
2. परिभाषाएं– (1) इस अधिनियम में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) “अभिकरण” से धारा 3 के अधीन गठित राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अभिप्रेत है;
(ख) “संहिता” से दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) अभिप्रेत है;
(ग) “उच्च न्यायालय” से वह उच्च न्यायालय अभिप्रेत है जिसकी अधिकारिता के भीतर विशेष न्यायालय स्थित है;
(घ) “विहित” से नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ड.)”लोक अभियोजक” से धारा 15 के अधीन नियुक्त लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक या विशेष लोक अभियोजक अभिप्रेत है;
(च) “अनुसूची” से इस अधिनियम की अनुसूची अभिप्रेत है;
(छ) “अनुसूचित अपराध” से अनुसूची में विनिर्दिष्ट अपराध अभिप्रेत है;
(ज) “विशेष न्यायालय” से, यथास्थिति, धारा 11 या धारा 22 के अधीन [विशेष न्यायालय के रूप में अभिहित सेशन न्यायालय] अभिप्रेत है;
(झ) उन शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं, किन्तु परिभाषित नहीं हैं और संहिता में परिभाषित हैं, वही अर्थ होंगे जो संहिता में हैं।
(2) इस अधिनियम में किसी अधिनियमिति या उसके किसी उपबंध के प्रति किसी निर्देश का, ऐसे किसी क्षेत्र के संबंध में, जिसमें ऐसी अधिनियमिति या ऐसा उपबंध प्रवर्तन में नहीं है, यह अर्थ लगाया जाएगा मानो वह उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि या तत्स्थानी विधि के सुसंगत उपबंध के, यदि कोई हो, प्रतिनिर्देश है।
अध्याय 2
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण
3. राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण का गठन . – ( 1 ) केन्द्रीय सरकार, पुलिस अधिनियम, 1861 (1861 का 5) में किसी बात के होते हुए भी, अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमों के अधीन अपराधों के अन्वेषण और अभियोजन के लिए राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण नामक एक विशेष अभिकरण को गठन कर सकेगी।
(2) ऐसे किन्हीं आदेशों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त करे, अभिकरण के अधिकारियों को अनुसूचित अपराधों के अन्वेषण और ऐसे अपराधों में समप्रक्त व्यक्तियों की गिरफ्तारी के संबंध में संपूर्ण भारत में और किसी अंतरराष्ट्रीय संधि या संबंधित राष्ट्र की देशीय विधि के अधीन रहते हुए भारत के बाहर वे सभी शक्तियां, कर्तव्य, विशेषाधिकार और दायित्व होंगे जो उनके अधीन कारित अपराधों के अन्वेषण के संबंध में पुलिस अधिकारियों को होते हैं।
(3) अभिकरण का, उपनिरीक्षक की या उससे ऊपर की पंक्ति का, कोई अधिकारी, ऐसे किन्हीं आदेशों के अधीन रहते हुए, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त करे, संपूर्ण भारत में उस क्षेत्र के जिसमें वह तत्समय उपस्थित हो, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की किसी शक्ति का प्रयोग कर सकेगा और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करते समय, यथापूर्वोक्त ऐसे किन्हीं आदेशों के अधीन रहते हुए, ऐसा अधिकारी अपने थाने की सीमाओं के भीतर कृत्यों का निर्वहन करने वाला पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी समझा जाएगा ।
4. राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण का अधीक्षण-– (1) अभिकरण का अधीक्षण केन्द्रीय सरकार में निहित होगा।
(2) अभिकरण का प्रशासन केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त नियुक्त महानिदेशक के रूप में अभिहित अधिकारी में निहित होगा जो अभिकरण की बाबत किसी राज्य में पुलिस बल की बाबत पुलिस महानिदेशक द्वारा प्रयोक्तव्य ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जिन्हें केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे |
5. अभिकरण के गठन की रीति और सदस्यों की सेवा की शर्तें.—इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अभिकरण का गठन ऐसी रीति में किया जाएगा जो विहित की जाए और अभिकरण में नियोजित व्यक्तियों की सेवा की शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएं ।
अध्याय 3
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण द्वारा अन्वेषण
6. अनुसूचित अपराधों का अन्वेषण –(1) किसी अनुसूचित अपराध से संबंधित सूचना की प्राप्ति पर और संहिता की धारा 154 के अधीन उसको अभिलिखित किए जाने पर, पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी उस रिपोर्ट को तत्काल राज्य सरकार को अग्रेषित करेगा ।
(2) राज्य सरकार, उपधारा (1) के अधीन रिपोर्ट की प्राप्ति पर, उस रिपोर्ट को यथासंभव शीघ्रता से केन्द्रीय सरकार को अग्रेषित करेगी ।
(3) केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार से रिपोर्ट की प्राप्ति पर राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई या अन्य स्त्रोतों से प्राप्त सूचना के आधार पर, रिपोर्ट की प्राप्ति की तारीख से पंद्रह दिन के भीतर, यह अवधारित करेगी कि अपराध अनुसूचित अपराध है या नहीं और अपराध की गंभीरता और अन्य सुसंगत तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, यह भी अवधारित करेगी कि क्या वह अपराध अभिकरण द्वारा अन्वेषण किए जाने के लिए उपयुक्त मामला है ।
(4) जहां केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि अपराध अनुसूचित अपराध है और वह अभिकरण द्वारा अन्वेषण किए जाने के लिए उपयुक्त मामला है वहां वह अभिकरण को उक्त अपराध का अन्वेषण करने के लिए निदेश देगी ।
(5) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी, यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि कोई अनुसूचित अपराध कारित किया गया है जिसका इस अधिनियम के अधीन अन्वेषण किया जाना अपेक्षित है तो वह, स्वप्रेरणा से अभिकरण को उक्त अपराध का अन्वेषण करने के लिए निदेश दे सकेगी ।
(6) जहां कोई निदेश उपधारा ( 4 ) या उपधारा (5) के अधीन दिया गया है वहां राज्य सरकार और अपराध का अन्वेषण करने वाला राज्य सरकार का कोई पुलिस अधिकारी आगे अन्वेषण नहीं करेगा और तत्काल सुसंगत दस्तावेजों और अभिलेखों को अभिकरण को पारेषित करेगा।
(7) शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषणा की जाती है कि अभिकरण द्वारा मामले का अन्वेषण प्रारंभ करने तक, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह अन्वेषण जारी रखे ।
(8) जहां केंद्रीय सरकार की यह राय है कि भारत के बाहर किसी ऐसे स्थान पर जहां इस अधिनियम का विस्तार है, कोई अनुसूचित अपराध किया जाता है, तो वह अभिकरण को इस प्रकार केस रजिस्टर करने और अन्वेषण प्रारंभ करने के लिए निदेश दे सकेगी, मानो ऐसा अपराध भारत में किया गया हो ।
(9) उपधारा (8) के प्रयोजनों के लिए नई दिल्ली में स्थित विशेष न्यायालय की अधिकारिता होगी ।
7. अन्वेषण राज्य सरकार को अंतरित करने की शक्ति-– इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का अन्वेषण करते समय, अभिकरण, अपराध की गंभीरता और अन्य सुसंगत बातों को ध्यान में रखते हुए :-
(क) यदि ऐसा करना समीचीन है तो राज्य सरकार को यह अनुरोध कर सकेगा कि वह स्वयं अन्वेषण से सहबद्ध हो; या
(ख) केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से मामले को अपराध के अन्वेषण और विचारण के लिए राज्य सरकार को अंतरित कर सकेगा ।
8. संसक्त अपराधों का अन्वेषण करने की शक्ति--अभिकरण, किसी अनुसूचित अपराध का अन्वेषण करते समय किसी ऐसे अन्य अपराध का भी अन्वेषण कर सकेगा जिसका अभियुक्त द्वारा किया जाना अभिकथित है यदि वह अपराध अनुसूचित अपराध से संसक्त है ।
9. राज्य सरकार का राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण को सहायता देना.— राज्य सरकार अनुसूचित अपराधों के अन्वेषण के लिए अभिकरण को सभी प्रकार की सहायता और सहयोग देगी ।
10. अनुसूचित अपराधों का अन्वेषण करने की राज्य सरकार की शक्ति — इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबंधित है उसके सिवाय, इस अधिनियम की कोई बात किसी अनुसूचित अपराध या तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन अन्य अपराधों का अन्वेषण और अभियोजन करने की राज्य सरकार की शक्तियों पर प्रभाव नहीं डालेगी ।
अध्याय 4
विशेष न्यायालय
11. सेशन न्यायालयों को विशेष न्यायालय के रूप में अभिहित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति – (1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा अनुसूचित अपराधों के विचारण के लिए ऐसे क्षेत्र या क्षेत्रों के लिए या ऐसे मामले या मामलों के वर्ग या समूह के लिए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किए जाएं, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से एक या अधिक सेशन न्यायालयों को विशेष न्यायालय के रूप में अभिहित करेगी ।
स्पष्टीकरण.– इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए “उच्च न्यायालय” पद से उस राज्य का,जिसमें विशेष न्यायालय के रूप में अभिहित किया जाने वाला, कोई सेशन न्यायालय कार्य कर रहा है, उच्च न्यायालय अभिप्रेत है ।
(2) जहां किसी विशेष न्यायालय की अधिकारिता के बारे में कोई प्रश्न उद्भूत होता है। वहां वह प्रश्न केन्द्रीय सरकार को निर्देशित किया जाएगा जिसका उस विषय में विनिश्चय अंतिम होगा।
(8) शंकाओं को दूर करने के लिए यह उपबंध किया जाता है कि उपधारा (1) में निर्दिष्ट सेशन न्यायालय के सेशन न्यायाधीश द्वारा उस सेवा में, जिससे वह संबंधित हैं, उसे लागू होने वाले नियमों के अधीन अधिवर्षिता की आयु प्राप्त कर लेना उसके विशेष न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बने रहने को प्रभावित नहीं करेगा और केंद्रीय सरकार के परामर्श से नियुक्ति प्राधिकारी आदेश द्वारा यह निदेश दे सकेगा कि वह किसी विनिर्दिष्ट तारीख तक या उसके समक्ष मामले या मामलों का, जो उस आदेश में विनिर्दिष्ट किए जाएं, विचारण पूरा होने तक न्यायाधीश बना रहेगा ।
(9) जब किसी क्षेत्र या क्षेत्रों के लिए एक से अधिक विशेष न्यायालय अभिहित किए जाते हैं तो उनमें कार्य का वितरण ज्येष्ठतम न्यायाधीश करेगा ।
12. बैठक का स्थान-– विशेष न्यायालय अपनी स्वप्रेरणा से या लोक अभियोजक द्वारा किए गए आवेदन पर और यदि वह ऐसा करना समीचीन या वांछनीय समझे, अपनी किसी कार्यवाही के लिए बैठक के सामान्य स्थान से भिन्न किसी अन्य स्थान पर बैठक कर सकेगा ।
13. विशेष न्यायालयों की अधिकारिता – (1) संहिता में किसी बात के होते हुए भी,अभिकरण द्वारा अन्वेषण किए गए प्रत्येक अनुसूचित अपराध का विचारण केवल उसी विशेष न्यायालय द्वारा किया जाएगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर वह अपराध किया गया था।
(2) यदि, किसी राज्य में विद्यमान स्थिति की अत्यावश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए,-
(क) ऋजु, निष्पक्ष या त्वरित विचारण संभव नहीं है; या
(ख) शांति भंग हुए बिना या अभियुक्त ,साक्षियों, लोक अभियोजक या विशेष न्यायालय के न्यायाधीश या इनमें से किसी की सुरक्षा को गंभीर खतरे में डाले बिना विचारण व्यवहार्य नहीं है; या
(ग) यह अन्यथा न्याय के हित में नहीं है,
तो उच्चतम न्यायालय किसी विशेष न्यायालय के समक्ष लंबित किसी मामले को उसी राज्य में या किसी अन्य राज्य में किसी अन्य विशेष न्यायालय को अंतरित कर सकेगा और उच्च न्यायालय उस राज्य में स्थित किसी विशेष न्यायालय के समक्ष लंबित किसी मामले को उसी राज्य के भीतर किसी अन्य विशेष न्यायालय को अंतरित कर सकेगा ।
(3) यथास्थिति, उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय इस धारा के अधीन कार्यवाही या तो केन्द्रीय सरकार के या हितबद्ध किसी पक्षकार के आवेदन पर कर सकेगा और ऐसा कोई आवेदन समावेदन के माध्यम से किया जाएगा जो उस दशा के सिवाय जब आवेदक भारत का महान्यायवादी है, शपथ पत्र या प्रतिज्ञान द्वारा समर्थित होगा ।
14. अन्य अपराधों के संबंध में विशेष न्यायालयों की शक्तियां. – (1) विशेष न्यायालय, जब वह किसी अपराध का विचारण कर रहा हो, उसी विचारण में ऐसे किसी अन्य अपराध का भी विचारण कर सकेगा जिसका अभियुक्त पर, संहिता के अधीन आरोप लगाया जा सकेगा, यदि वह अपराध ऐसे अन्य अपराध से संसक्त है ।
(2) यदि किसी अपराध के इस अधिनियम के अधीन किसी विचारण के अनुक्रम पाया जाता है कि अभियुक्त व्यक्ति ने इस अधिनियम के अधीन या किसी अन्य विधि के अधीन कोई अन्य अपराध किया है तो विशेष न्यायालय ऐसे व्यक्ति को ऐसे अन्य अपराध के लिए दोषसिद्ध ठहरा सकेगा और, यथास्थिति, इस अधिनियम द्वारा या ऐसी अन्य विधि के अधीन प्राधिकृत कोई दंडादेश पारित कर सकेगा या दंड अधिनिर्णीत कर सकेगा।
15. लोक अभियोजक – (1) केन्द्रीय सरकार किसी व्यक्ति को लोक अभियोजक नियुक्त करेगी और एक या अधिक व्यक्तियों को अपर लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त कर सकेगी :
परंतु केन्द्रीय सरकार किसी मामले या मामलों के किसी वर्ग या समूह के लिए विशेष लोक अभियोजक भी नियुक्त कर सकेगी।
(2) इस धारा के अधीन लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक या विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए कोई व्यक्ति तभी पात्र होगा जब वह कम से कम सात वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय में रहा है या संघ या किसी राज्य के अधीन कम से कम सात वर्ष की अवधि तक ऐसा कोई पद धारण कर चुका है जिसके लिए विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है ।
(3) इस धारा के अधीन लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक या विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति को संहिता की धारा 2 के खंड (प) के अर्थान्तरगत लोक अभियोजक समझा जाएगा और तद्नुसार संहिता के उपबंध लागू होंगे ।
16. विशेष न्यायालयों की प्रक्रिया और शक्तियां. – (1) विशेष न्यायालय ऐसे तथ्यों का परिवाद प्राप्त होने पर जो ऐसे अपराध का गठन करते हैं या ऐसे तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट प्राप्त होने पर अभियुक्त को उसके विचारण के लिए सुपुर्द किए बिना किसी अपराध का संज्ञान ले सकेगा।
(2) जहां विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय कोई अपराध तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से या जुर्माने से, या दोनों से दंडनीय है, वहां विशेष न्यायालय, संहिता की धारा 260 की उपधारा (1) या धारा 262 में किसी बात के होते हुए भी, अपराध का विचारण संहिता में विहित प्रक्रिया के अनुसार संक्षिप्त रूप में कर सकेगा और संहिता की धारा 263 से धारा 265 तक के उपबंध जहां तक हो सके ऐसे विचारण को लागू होंगे :
परंतु जब, इस उपधारा के अधीन संक्षिप्त विचारण के अनुक्रम में, विशेष न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि मामले की प्रकृति ऐसी है कि उसका संक्षिप्त रूप में विचारण करना वांछनीय नहीं है तो विशेष न्यायालय ऐसे किन्हीं साक्षियों को, जिनकी परीक्षा की जा चुकी है, पुनः बुलाएगा और ऐसे अपराध के विचारण के लिए संहिता के उपबन्धों द्वारा उपबन्धित रीति में मामले की पुनः सुनवाई करने के लिए अग्रसर होगा और उक्त उपबंध विशेष न्यायालय को और उसके संबंध में इस प्रकार लागू होंगे जैसे वे किसी मजिस्ट्रेट को या उसके संबंध में लागू होते हैं:
परंतु यह और कि इस धारा के अधीन किसी संक्षिप्त विचारण में किसी दोषसिद्धि के मामले में विशेष न्यायालय के लिए एक वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास या ऐसे जुर्माने का, जो पांच लाख रुपए तक का हो सकेगा, दंडादेश पारित करना विधिपूर्ण होगा।
(3) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, विशेष न्यायालय को, किसी अपराध के विचारण के प्रयोजन के लिए, सेशन न्यायालय की सभी शक्तियां होंगी और वह जहां तक हो सके ऐसे अपराध का विचारण सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए संहिता में विहित प्रक्रिया के अनुसार इस प्रकार करेगा मानो वह सेशन न्यायालय हो ।
(4) इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, धारा 13 की उपधारा (2) के अधीन विशेष न्यायालय को अंतरित प्रत्येक मामले पर इस प्रकार कार्यवाही की जाएगी मानो ऐसा मामला संहिता की धारा 406 के अधीन उस विशेष न्यायालय को अंतरित किया गया हो ।
(5) संहिता में किसी बात के होते हुए भी, किंतु संहिता की धारा 299 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, विशेष न्यायालय, यदि वह ठीक समझे और उसके द्वारा लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से, अभियुक्त या उसके प्लीडर की अनुपस्थिति में विचारण की कार्यवाही कर सकेगा और प्रतिपरीक्षा के लिए साक्षी को पुनः बुलाने के अभियुक्त के अधिकार के अधीन रहते हुए किसी साक्षी का साक्ष्य अभिलिखित कर सकेगा ।
17. साक्षियों की संरक्षा – (1) संहिता में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन कार्यवाहियां, यदि विशेष न्यायालय ऐसी वांछा करे तो लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से, बन्द कमरे में की जा सकेंगी ।
(2) यदि विशेष न्यायालय का उसके समक्ष किसी कार्यवाही में किसी साक्षी द्वारा या ऐसे साक्षी के संबंध में लोक अभियोजक द्वारा किए गए आवेदन पर या स्वः प्रेरणा से यह समाधान हो जाता है कि ऐसे साक्षी का जीवन खतरे में है तो वह लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से, उस साक्षी की पहचान और पते को गुप्त रखने के लिए ऐसे उपाय कर सकेगा जो वह ठीक समझे ।
(3) विशिष्टतया और उपधारा (2) के उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे उपायों में, जो उस उपधारा के अधीन विशेष न्यायालय कर सकेगा, निम्नलिखित भी सम्मिलित हो सकेंगे,-
(क) विशेष न्यायालय द्वारा विनिश्चित किए जाने वाले किसी स्थान पर कार्यवाहियां करना;
(ख) अपने आदेशों या निर्णयों में या जनसाधारण की पहुंच योग्य मामले के किन्हीं अभिलेखों में साक्षियों के नाम और पतों के उल्लेख से बचना;
(ग) यह सुनिश्चित करने के लिए कि साक्षियों की पहचान और पते प्रकट न किए जाएं, कोई निर्देश जारी करना;
(घ) यह विनिश्चय कि ऐसा आदेश करना लोकहित में है कि उस न्यायालय के समक्ष लंबित सभी या कोई कार्यवाहियां किसी भी रीति में प्रकाशित नहीं की जाएंगी ।
(4) कोई व्यक्ति, जो उपधारा (3) के अधीन जारी किए गए किसी विनिश्चय या निर्देश का उल्लंघन करेगा, ऐसी अवधि के कारावास से, जो तीन वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से, जी एक हजार रुपए तक का हो सकेगा, दंडनीय होगा ।
18. अभियोजन के लिए मंजूरी – इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में की गई या किए जाने के लिए तात्पर्यित किसी बात की बाबत अभिकरण के किसी सदस्य या उसकी ओर से कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भी अभियोजन, वाद या अन्य विधिक कार्यवाही किसी न्यायालय में केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी के सिवाय संस्थित नहीं की जाएगी।
19. विशेष न्यायालय द्वारा विचारण की अग्रता होना. – विशेष न्यायालय द्वारा किसी अपराध का इस अधिनियम के अधीन विचारण सभी कार्यदिवसों पर, दिन-प्रतिदिन के आधार पर किया जाएगा और किसी अन्य न्यायालय में (जो विशेष न्यायालय नहीं है) अभियुक्त के विरुद्ध किसी अन्य मामले के विचारण पर उसकी अग्रता होगी तथा उसे ऐसे अन्य मामले के विचारण पर अधिमानता देकर पूरा किया जाएगा और तदनुसार ऐसे अन्य मामले का विचारण, यदि आवश्यक हो, आस्थगित रहेगा।
20. नियमित न्यायालयों को मामले अंतरित करने की शक्ति – जहां किसी अपराध का संज्ञान लेने के पश्चात् विशेष न्यायालय की यह राय है कि अपराध उसके द्वारा विचारणीय नहीं है तो वह इस बात के होते हुए भी कि उसकी उस अपराध का विचारण करने की अधिकारिता नहीं है, ऐसे अपराध के विचारण के लिए मामले को संहिता के अधीन अधिकारिता रखने वाले किसी न्यायालय को अंतरित करेगा और वह न्यायालय, जिसको मामला अंतरित किया गया है, अपराध के विचारण पर इस प्रकार कार्यवाही करेगा मानो अपराध का संज्ञान उसने लिया हो ।
21. अपीलें. – (1) संहिता में किसी बात के होते हुए भी, किसी विशेष न्यायालय के किसी निर्णय, दंडादेश या आदेश से, जो अंतरवर्ती आदेश नहीं है, तथ्य और विधि दोनों के संबंध में, अपील उच्च न्यायालय को होगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक अपील की सुनवाई उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों की न्यायपीठ द्वारा की जाएगी और जहां तक संभव हो, अपील ग्रहण करने की तारीख से तीन मास के भीतर उसका निपटारा किया जाएगा।
(3) यथापूर्वोक्त के सिवाय, किसी विशेष न्यायालय के किसी निर्णय, दंडादेश या आदेश से, जिसके अंतर्गत अंतरवर्ती आदेश भी है, किसी न्यायालय में कोई अपील या पुनरीक्षण नहीं होगा ।
(4) संहिता की धारा 378 की उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी, जमानत मंजूर करने या उससे इंकार करने के विशेष न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय को होगी ।
(5) इस धारा के अधीन प्रत्येक अपील उस निर्णय, दंडादेश या आदेश की, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, तारीख से तीस दिन की अवधि के भीतर की जाएगी :
परंतु उच्च न्यायालय तीस दिन की उक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् किसी अपील को ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी के पास तीस दिन की अवधि के भीतर अपील न करने का पर्याप्त कारण था:
परंतु यह और कि नब्बे दिन की समाप्ति के पश्चात् कोई अपील ग्रहण नहीं की जाएगी ।
22. सेशन न्यायालयों को विशेष न्यायालय के रूप में अभिहित करने की राज्य सरकार की शक्ति –(1) राज्य सरकार, अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी या सभी अधिनियमितियों के अधीन अपराधों के विचारण के लिए, एक या अधिक सेशन न्यायालयों को विशेष न्यायालय के रूप में अभिहित कर सकेगी।
(2) इस अध्याय के उपबंध उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकार द्वारा अभिहित किए गए विशेष न्यायालयों को लागू होंगे और निम्नलिखित उपांतरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे, अर्थात् :-
(i) धारा 11 और धारा 15 में, “केंद्रीय सरकार” के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राज्य सरकार के प्रति निर्देश हैं;
(ii) धारा 13 की उपधारा (1) में, “अभिकरण” के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह राज्य सरकार के अन्वेषण अभिकरण के प्रति निर्देश है;
(iii) धारा 13 की उपधारा (3) में, “भारत के महान्यायवादी” के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह राज्य के महाधिवक्ता के प्रति निर्देश है ।
(3) किसी विशेष न्यायालय को इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त अधिकारिता का, इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के मामले में उपधारा (1) के अधीन राज्य सरकार द्वारा कोई विशेष न्यायालय अभिहित किए जाने तक संहिता में किसी बात के होते हुए भी, उस खंड के सेशन न्यायालय द्वारा प्रयोग किया जाएगा जिसमें ऐसा अपराध किया गया है और उसको सभी शक्तियां होंगी तथा वह इस अध्याय के अधीन उपबंधित प्रक्रिया का पालन करेगा ।
(4) उस तारीख से ही, जब राज्य सरकार द्वारा विशेष न्यायालय अभिहित किया जाता है, इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन राज्य सरकार द्वारा अन्वेषण किए गए किसी अपराध का विचारण, जिसका विशेष न्यायालय के समक्ष किया जाना अपेक्षित होता, उस तारीख को जब उसको अभिहित किया गया है, उस न्यायालय में अंतरित हो जाएगा ।
अध्याय 5
प्रकीर्ण
23. नियम बनाने की उच्च न्यायालयों की शक्ति –उच्च न्यायालय, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे नियम बना सकेगा, जिन्हें वह अपने राज्यक्षेत्र के भीतर विशेष न्यायालयों के संबंध में इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक समझे ।
24. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति— (1) यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित ऐसे आदेश द्वारा ऐसे उपबंध कर सकेगी, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हो और जो उस कठिनाई को दूर करने के लिए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत होते हों :
परंतु इस धारा के अधीन ऐसा कोई आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ से दो वर्ष की समाप्ति के पश्चात् नहीं किया जाएगा ।
(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश किए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।
25. नियम बनाने की शक्ति – (1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम, निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात् :-
(क) धारा 5 के अधीन अभिकरण के गठन की रीति और अभिकरण में नियोजित व्यक्तियों की सेवा की शर्तें;
(ख) कोई अन्य विषय, जिसका विहित किया जाना अपेक्षित है या जो विहित किया जाए ।
26. नियमों का रखा जाना–. इस अधिनियम के अधीन केंद्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, उसके बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह नियम निष्प्रभाव हो जाएगा। किंतु नियम के इस प्रकार परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।
अनुसूची
[धारा 2(1) (च) देखिए ]
1. विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 (1908 का6);
1क, परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962(1962 का 33);
2. विधिविरुद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 (1967 का 37);
3. यान हरण निवारण अधिनियम, 2016 (2016 का 30 ) ;
4. सिविल विमानन सुरक्षा विधिविरुद्ध कार्य दमन अधिनियम, 1982 (1982 का 66 ) ;
5. दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन अभिसमय (आतंकवाद दमन) अधिनियम, 1993(1993 का 36);
6. सामुद्रिक नौपरिवहन और महाद्वीपीय मग्नतट भूमि पर स्थिर प्लेटफार्मों की सुरक्षा के विरुद्ध विधिविरुद्ध कार्यों का दमन अधिनियम, 2002 (2002 का 69);
7. सामूहिक संहार के आयुध और उनकी परिदान प्रणाली (विधिविरुद्ध क्रियाकलापों का प्रतिषेध) अधिनियम, 2005 (2005 का 21 ) ;
8. निम्नलिखित के अधीन अपराध :-
(क) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 6 धारा 121 से धारा 130 (जिनमें ये दोनों धाराएं सम्मिलित हैं);
(ख) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 16 की धारा 370 और धारा 370क;
(ग) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 489क से धारा 489ङ (जिसमें ये दोनों धाराएं सम्मिलित हैं);
(घ) आयुध अधिनियम, 1959 (1959 का 54) के अध्याय 5 की धारा 25 की उपधारा (1कक);
(ङ) सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का 21 ) के अध्याय 11 की धारा 66च ।
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