धारा 3 किशोर न्याय अधिनियम 2015 — अधिनियम के प्रशासन में अनुसरित किए जाने वाले साधारण सिद्धांत –
यथास्थिति, केंद्रीय सरकार, राज्य सरकारें, बोर्ड, समिति या अन्य अभिकरण, इस अधिनियम के उपबंधों को क्रियान्वित करते समय निम्नलिखित मूलभूत सिद्धांतों द्वारा मार्गदर्शित होंगे, अर्थात्
(i) निर्दोषिता की उप-धारणा का सिद्धांत : किसी बालक के बारे में, अठारह वर्ष की आयु तक, यह उपधारणा की जाएगी कि वह किसी असद्भावपूर्ण या आपराधिक आशय का दोषी नहीं है।
(ii) गरिमा और योग्यता का सिद्धांत: सभी मनुष्यों के साथ गरिमा और अधिकारों में समान बर्ताव किया जाना चाहिए ।
(iii) भाग लेने का सिद्धांत : प्रत्येक बालक को सुने जाने का और उसके हितों को प्रभावित करने वाली सभी आदेशिकाओं और विनिश्चयों में भाग लेने का अधिकार प्राप्त है और बालक के दृष्टिकोण को बालक की आयु और परिपक्वता को सम्यक् ध्यान में रखते हुए विचार किया जाएगा ।
(iv) सर्वोत्तम हित का सिद्धांत : बालक के संबंध में सभी विनिश्चय मुख्यतया इस प्रारम्भिक विचारणा पर आधारित होंगे कि वे बालक के सर्वोत्तम हित में हैं और बालक के लिए अपनी पूर्ण शक्तता को विकसित करने में सहायक हैं ।
(v) कौटुंबिक जिम्मेदारी का सिद्धांत : बालक की देखरेख, उसका पोषण और उसकी संरक्षा करने की प्राथमिक जिम्मेदारी जैविक कुटुंब या, यथास्थिति, दत्तक अथवा पालक माता पिता की है ।
(vi) सुरक्षा का सिद्धांत : यह सुनिश्चित करने के लिए कि बालक सुरक्षित है और देखरेख तथा संरक्षा-पद्धति के संपर्क में रहते हुए और उसके पश्चात् उसकी कोई अपहानि, उससे दुर्व्यवहार या बुरा बर्ताव नहीं किया जाता है, सभी उपाय किए जाने चाहिए ।
(vii) सकारात्मक उपाय : सभी स्त्रोतों को, इसके अंतर्गत वे भी हैं जो कुटुंब और समुदाय के हैं, कल्याण की प्रोन्नति, पहचान के विकास को सुकर बनाने और बालकों की असुरक्षा को कम करने के लिए समावेशित और समर्थकारी वातावरण उपलब्ध कराने के लिए गतिमान किया जाना चाहिए ।
(viii) गैर-कलंकीय शब्दार्थों का सिद्धांत : किसी बालक से तात्पर्वित आदेशिकाओं में प्रतिकूल या अभियोगात्मक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए ।
(ix) अधिकारों का अधित्यजन न किए जाने का सिद्धांत : बालक के किसी अधिकार का किसी भी प्रकार का अधित्यजन अनुज्ञेय या विधिमान्य नहीं है चाहे उसकी ईप्सा बालक द्वारा की गई हो या बालक की ओर से कार्य करने वाले व्यक्ति या किसी बोर्ड या समिति द्वारा की गई हो और किसी मूलभूत अधिकार का प्रयोग न किया जाना अधित्यजन की कोटि में नहीं आएगा ।
(x) समानता और विभेद न किए जाने का सिद्धांत : किसी बालक के विरुद्ध किसी भी आधार पर, जिसके अंतर्गत लिंग, जाति, नस्ल, जन्म-स्थान, निःशक्तता या कारित अपराध भी है, किसी प्रकार का विभेद नहीं किया जाएगा और पहुंच, अवसर और बर्ताव में समानता प्रत्येक बालक को दी जानी चाहिए ।
(xi) एकांतता और गोपनीयता के अधिकार का सिद्धांत: प्रत्येक बालक को सभी साधनों द्वारा और संपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया में अपनी एकांतता और गोपनीयता की संरक्षा करने का अधिकार प्राप्त होगा ।
(xii) अंतिम अवलंब के उपाय के रूप में संस्थात्मक बनाने का सिद्धांत : बालक को युक्तियुक्त जांच करने के पश्चात् अंतिम अवलंब के उपाय के रूप में संस्थागत देखरेख में रखा जाएगा ।
(xiii) संप्रत्यावर्तन और प्रत्यावर्तन का सिद्धांत : किशोर न्यायिक पद्धति में प्रत्येक बालक को शीघ्रातिशीघ्र अपने कुटुंब से पुनः मिलाने का और उसी सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक प्रास्थिति में, जिसमें वह इस अधिनियम के क्षेत्राधीन आने के पूर्व रहता था, प्रत्यावर्तित होने का, जब तक कि ऐसा प्रत्यावर्तन और संप्रत्यावर्तन उसके सर्वोत्तम हित में न हो, अधिकार प्राप्त होगा ।
(xiv) नए सिरे से शुरूआत करने का सिद्धांत : किशोर न्याय पद्धति के अधीन किसी बालक के पिछले सभी अभिलेख को, विशेष परिस्थितियों के सिवाय, समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
(xv) अपयोजन का सिद्धांत: विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों से न्यायिक कार्यवाहियों का अवलंब लिए बिना, जब तक कि वह बालक या संपूर्ण समाज के सर्वोत्तम हित में न हो, निपटाने के उपायों को बढ़ावा दिया जाएगा ।
(xvi) नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत : इस अधिनियम के अधीन न्यायिक हैसियत में कार्य करते हुए सभी व्यक्तियों या निकायों द्वारा ऋजुता के बुनियादी प्रक्रियात्मक मानकों का, जिनके अंतर्गत उचित सुनवाई का अधिकार, पक्षपात के विरुद्ध नियम और पुनर्विलोकन का अधिकार भी है, पालन किया जाना चाहिए ।
Section 3 Juvenile Justice Act 2015 — General principles to be followed in administration of Act —
The Central Government, the State Governments, the Board, and other agencies, as the case may be, while implementing the provisions of this Act shall be guided by the following fundamental principles, namely:—
(i) Principle of presumption of innocence: Any child shall be presumed to be an innocent of any mala fide or criminal intent up to the age of eighteen years.
(ii) Principle of dignity and worth: All human beings shall be treated with equal dignity and rights.
(iii) Principle of participation: Every child shall have a right to be heard and to participate in all processes and decisions affecting his interest and the childs views shall be taken into consideration with due regard to the age and maturity of the child.
(iv) Principle of best interest: All decisions regarding the child shall be based on the primary consideration that they are in the best interest of the child and to help the child to develop full potential.
(v) Principle of family responsibility: The primary responsibility of care, nurture and protection of the child shall be that of the biological family or adoptive or foster parents, as the case may be.
(vi) Principle of safety: All measures shall be taken to ensure that the child is safe and is not subjected to any harm, abuse or maltreatment while in contact with the care and protection system, and thereafter.
(vii) Positive measures: All resources are to be mobilised including those of family and community, for promoting the well-being, facilitating development of identity and providing an inclusive and enabling environment, to reduce vulnerabilities of children and the need for intervention under this Act.
(viii) Principle of non-stigmatising semantics: Adversarial or accusatory words are not to be used in the processes pertaining to a child.
(ix) Principle of non-waiver of rights: No waiver of any of the right of the child is permissible or valid, whether sought by the child or person acting on behalf of the child, or a Board or a Committee and any non-exercise of a fundamental right shall not amount to waiver.
(x) Principle of equality and non-discrimination: There shall be no discrimination against a child on any grounds including sex, caste, ethnicity, place of birth, disability and equality of access, opportunity and treatment shall be provided to every child.
(xi) Principle of right to privacy and confidentiality: Every child shall have a right to protection of his privacy and confidentiality, by all means and throughout the judicial process.
(xii) Principle of institutionalisation as a measure of last resort: A child shall be placed in institutional care as a step of last resort after making a reasonable inquiry.
(xiii) Principle of repatriation and restoration: Every child in the juvenile justice system shall have the right to be re-united with his family at the earliest and to be restored to the same socio-economic and cultural status that he was in, before coming under the purview of this Act, unless such restoration and repatriation is not in his best interest.
(xiv) Principle of fresh start: All past records of any child under the Juvenile Justice system should be erased except in special circumstances..
(xv) Principle of diversion: Measures for dealing with children in conflict with law without resorting to judicial proceedings shall be promoted unless it is in the best interest of the child or the society as a whole.
(xvi) Principles of natural justice: Basic procedural standards of fairness shall be adhered to, including the right to a fair hearing, rule against bias and the right to review, by all persons or bodies, acting in a judicial capacity under this Act.