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मध्यप्रदेश अत्यावश्यक सेवा संधारण तथा विच्छिन्नता निवारण अधिनियम, 1979

मध्य प्रदेश अत्यावश्यक सेवा संधारण 

तथा विच्छिन्नता निवारण 

अधिनियम, 1979

[1979 का अधिनियम सं. 10 ]

मध्यप्रदेश राज्य में अत्यावश्यक सेवाओं के संधारण के लिये उपबन्ध करने तथा ऐसी सेवाओं के विच्छिन्न किये जाने के लिये शास्ति का उपबन्ध करने हेतु अधिनियम ।

भारत गणराज्य के तीसवें वर्ष में मध्यप्रदेश विधान मण्डल द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार तथा प्रारम्भ – (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम मध्यप्रदेश अत्यावश्यक सेवा संधारण तथा विच्छिन्नता निवारण अधिनियम, 1979 है।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण मध्यप्रदेश पर है।

(3) यह तत्काल प्रवृत्त होगा ।

2. अधिनियम का लागू होना. – यह अधिनियम, अत्यावश्यक सेवा से सम्बन्धित वैज्ञानिक, तकनीकी, कार्यपालिक, प्रवर्ती (आपरेटिव) तथा अनुसचिवीय व्यक्तियों को लागू होगा ।

स्पष्टीकरण.- इस धारा में, अत्यावश्यक सेवा से सम्बन्धित व्यक्तियों के अन्तर्गत आते हैं,

वे व्यक्ति :-

(एक) जो छेके पर रखे गये हैं

(दो) जो पूर्णकालिक नियोजन में नहीं है;

(तीन) जिन्हें आकस्मिक व्यय (कन्टिन्जेन्सीज) में से भुगतान किया जाता है ;

(चार) जो कार्यभारित स्थापनाओं में नियोजित किये गये हैं; और 

(पांच) वे व्यक्ति जो राज्य सरकार या उसकी किसी एजेन्सी से किसी भी नाम से आर्थिक फायदे प्राप्त कर रहे हों और जिनसे लोक स्वास्थ्य के संबंध में सार्वजनिक फायदे के लिए कर्तव्यों का निर्वहन करने की अपेक्षा की जाती है ।

3. परिभाषाएं — इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 

(क) “अत्यावश्यक सेवा” से अभिप्रेत है अनुसूची में वर्णित की गई सेवा,

(ख) किसी अत्यावश्यक सेवा से सम्बन्धित व्यक्तियों के सम्बन्ध में, “कार्य करने से इंकार करना” से अभिप्रेत है ऐसे व्यक्तियों द्वारा किसी ऐसे कार्य का किया जाना जिसका कि प्रतिषेध धारा 5 के अधीन किया गया है।

4. कतिपय अत्यावश्यक सेवाओं में कार्य करने से इन्कार किया जाने का प्रतिषेध करने की शक्ति. — (1) यदि राज्य सरकार का यह समाधान हो जाए कि लोकहित में या लोक व्यवस्था के हित में ऐसा करना आवश्यक है, तो वह साधारण या विशेष आदेश द्वारा, ऐसी अत्यावश्यक सेवा में तथा ऐसी तारीख से जैसी कि आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए, कार्य करने से इन्कार किया जाने का प्रतिषेध कर सकेगी।

(2) उपधारा (1) के अधीन किया गया कोई आदेश, केवल तीन मास तक प्रवृत रहेगा, किन्तु राज्य सरकार वैसे ही आदेश द्वारा, उसे समय-समय पर किसी ऐसी कालावधि के लिये, जो एक बार में तीन मास से अधिक की नहीं होगी, बढ़ा सकेगी, यदि उसका यह समाधान हो जाए कि ऐसा करना लोकहित में आवश्यक या समीचीन है।

(3) उपधारा (1) के अधीन किया गया कोई आदेश, ऐसी रीति में प्रकाशित किया जाएगा जिसे राज्य सरकार, उसे सर्व सम्बन्धित के ध्यान में लाने के लिये उचित समझे ।

5. अत्यावश्यक सेवा में कतिपय क्रियाकलापों का प्रतिषेध — धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन किये गये आदेश में विनिर्दिष्ट की गई तारीख से, कोई भी ऐसा व्यक्ति जो अत्यावश्यक सेवा से सम्बन्धित है, चाहे अकेले या सम्मिलित रूप में,

(एक) इन्कार करके या अन्य प्रकार से, पूर्ण या आंशिक कार्य-विराम का आश्रय नहीं लेगा;

(दो) प्रसामान्य कार्य समय के परे, कार्य करने से उस दशा में इन्कार नहीं करेगा, जबकि ऐसा कार्य अत्यावश्यक सेवा के संधारण के लिये आवश्यक हो; या

(तीन) किसी संस्थापना (इन्स्टालेशन), मशीनरी, संयंत्र, यान, भवन, कार्यालय -अभिलेख या किसी अन्य सम्पत्ति का अवह्रसन नहीं करेगा, उसे नुकसान नहीं पहुँचायेगा या उसे विनष्ट नहीं करेगा या ऐसे कार्य के किये जाने का प्रयत्न नहीं करेगा या उसका दुष्प्रेरण नहीं करेगा; या

(चार) छुट्टी की पूर्व मन्जूरी के बिना कर्तव्य से अनुपस्थित नहीं रहेगा या (पाँच) कलम बन्द करने, टेलीफोन बन्द करने, औजार बन्द करने, चक्काजाम करने, धीमी गति से काम करने जैसे किसी भी क्रियाकलाप या किसी अन्य क्रियाकलाप, चाहे वह किसी भी नाम से पुकारा जाए, जिसकी कि परिणति कार्य- विराम या कार्य-मंदता में होती है, का आश्रय नहीं लेगा; या

(छः) ऐसे कार्य या कार्यलोप का आश्रय नहीं लेगा जिसकी कि परिणति प्रसामान्य कामकाज की विच्छिन्नता में होती हो ;या

(सात) किसी भी व्यक्ति को अपने कर्तव्य पर उपस्थित होने तथा कर्तव्यों का निर्वहन करने से निवारित या बाधित नहीं करेगा ।

6. वादों या कार्यवाहियों का जिला न्यायाधीश के न्यायालय द्वारा संज्ञान-– (1) धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन किये गए किसी आदेश की विधिमान्यता को प्रश्नगत करने वाले किसी वाद या कार्यवाही को ग्रहण करने की अधिकारिता जिला न्यायाधीश के न्यायालय को होगी और जिला न्यायाधीश के न्यायालय के अधीनस्थ किसी न्यायालय को नहीं होगी । 

(2) उपधारा (1) के अधीन के किसी वाद या कार्यवाही में, जिला न्यायाधीश का न्यायालय रोक (स्टे) या व्यादेश देने वाला कोई आदेश एकपक्षीय रूप से नहीं करेगा ।

7. शास्तियां – (1) जो कोई धारा 5 के उपबंधों में से उसके खंड (तीन) के उपबंधों को छोड़कर किसी भी उपबंध का उल्लंघन करेगा, उल्लंघन किये जाने का दुष्प्रेरण करेगा या उल्लंघन करने का प्रयत्न करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि छः मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पांच सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

(2) जो कोई धारा 5 के खंड (तीन) के उपबंधों में से किसी भी उपबंध का उल्लंघन करेगा, उल्लंघन किये जाने का दुष्प्रेरण करेगा या उल्लंघन करने का प्रयत्न करेगा, वह किसी भी ऐसी शास्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना जो कि तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियमिति के अधीन अधिरोपित की जाने योग्य हो, कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी,तथा जुर्माने से, जो पांच हजार रुपये तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा ।

8. विच्छिन्न करने हेतु उद्दीप्त करने या उत्प्रेरित करने या कोई वित्तीय सहायता या समर्थन देने के लिए शास्ति.– जो कोई :-

(एक) किसी ऐसे व्यक्ति को, जो किसी अत्यावश्यक सेवा के सम्बन्ध में सेवा कर रहा हो, धारा 5 के अधीन प्रतिषिद्ध किये गए किसी क्रियाकलाप का आश्रय लेने के लिए उकसायेगा, उदीप्त करेगा या उत्प्रेरित करेगा या

(दो) धारा 5 के अधीन प्रतिषिद्ध किये गये किसी क्रियाकलाप को अग्रसर करने के लिए या उसके समर्थन में कोई धन व्यय करेगा या अत्यावश्यक सेवा के सम्बन्ध में सेवा कर रहे किसी व्यक्ति या व्यक्ति निकाय को कोई धन या सामग्री प्रदाय करेगा,

उसके बारे में यह समझा जायेगा कि उसने उस धारा के उपबंधों का उल्लंघन किया है और तदनुसार वह इस बात के दायित्वाधीन होगा कि उसके विरुद्ध कार्यवाही की जाकर उसे दण्डित किया जाए।

9. अपराधों का संज्ञान – इस अधिनियम के अधीन का प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा । 

10. अपराधों का विचारण, आदि. – (1) इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय प्रत्येक अपराध का विचारण प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जायेगा ।

(2) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (क्रमांक 2 सन् 1974) के उपबंध इस अधिनियम के अधीन के समस्त अपराधों के निवारण, अन्वेषण, जांच तथा विचारण को लागू होंगे 

11. निरसन – मध्यप्रदेश लोक सेवा विच्छिलता निवारण अध्यादेश, 1978 (क्रमांक 6 सन् 1978) एतद्द्वारा निरस्त किया जाता है।

अनुसूची

[धारा 3 (क) देखिए ]

क—वैज्ञानिक, तकनीकी, कार्यपालिक, प्रवर्ती (आपरेटिव) तथा अनुसचिवीय व्यक्ति, जो:-

(एक) विद्युत के उत्पादन, पारेषण तथा वितरण;

(दो) लोक तथा राज्य मोटर परिवहन तथा कर्मशालाओं;

(तीन) लोक स्वास्थ्य;

(चार) लोक स्वास्थ्य अभियान्त्रिकी;

(पांच) नगरपालिक निगमों, नगरपालिका परिषदों, अधिसूचित क्षेत्र समितियों तथा विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारियों से संबंधित हो ।

क-क – वैज्ञानिक तकनीकी, कार्यपालिक, प्रवर्ती (ऑपरेटिव) तथा अनुसचिवीय कार्मिक, जो :-

(एक) उचित मूल्य की दुकानों की सार्वजनिक वितरण प्रणाली से;

(दो) (क) खाद्यानों ;और

(ख) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अधीन यथा- परिभाषित अन्य आवश्यक वस्तुओं के सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अधीन उपापन से;

(तीन) दुग्ध वितरण, पशुधन और पशु चिकित्सा तथा पशु पालन और कुक्कुटपालन सेवाओं से;

(चार) वन-रोपण तथा वन संरक्षण और वन उपज के परिरक्षण, परिवहन, भण्डारण एवं वितरण से;

(पांच) मध्यप्रदेश सचिवालय सेवा भरती नियम, 1976 द्वारा शासित मध्यप्रदेश सचिवालय सेवाओं से;

(छह) मध्यप्रदेश विधान सभा सचिवालय की सेवाओं से; और

(सात) विभागाध्यक्षों तथा उनके अधीनस्थ कार्यालयों की सेवाओं से सम्बन्धित हों।

ख- निम्नलिखित द्वारा परीक्षाओं के संचालन के लिए नियुक्त व्यक्ति:-

1. माध्यमिक शिक्षा मण्डल, मध्यप्रदेश;

2. मध्यप्रदेश राज्य में समस्त विश्वविद्यालय;

3. व्यावसायिक परीक्षा मण्डल, मध्यप्रदेश ।

स्पष्टीकरण – अभिव्यक्ति ‘परीक्षाओं का संचालन’ के अन्तर्गत आते हैं,वीक्षण (इनविजीलेशन) तथा पर्यवेक्षण, प्रश्नपत्रों का बनाया जाना, अनुसीमन (माडरेशन), उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन तथा कोई अन्य ऐसा क्रियाकलाप जिनका कि परीक्षाओं के सम्बन्ध में मण्डल या विश्वविद्यालयों द्वारा हाथ में लिया जाना अपेक्षित हो ।

ग. संसद के या राज्य विधान मण्डल, के निर्वाचनों के संचालन के लिये नियुक्त व्यक्ति ।

घ. वह व्यक्ति जिसे भूकंप या अन्य प्राकृतिक आपदा या किसी अन्य आपदा या संकट के कारण प्रभावित होने वाले व्यक्तियों के अनुतोष, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन और कारित हानि के निर्धारण और मूल्यांकन से संबंधित कार्य सौंपा गया है।

मध्यप्रदेश अत्यावश्यक सेवा संधारण तथा विच्छिन्नता निवारण अधिनियम 1979 मध्यप्रदेश अत्यावश्यक सेवा संधारण तथा विच्छिन्नता निवारण अधिनियम 1979 मध्यप्रदेश अत्यावश्यक सेवा संधारण तथा विच्छिन्नता निवारण अधिनियम 1979