IPC की धारा 192 — मिथ्या साक्ष्य गढ़ना –
जो कोई इस आशय से किसी परिस्थिति को अस्तित्व में लाता है, या किसी पुस्तक या अभिलेख में या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख में कोई मिथ्या, प्रविष्टि करता है, या मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट करने वाली कोई दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख रचता है कि ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन न्यायिक कार्यवाही में, या ऐसी किसी कार्यवाही में, जो लोक-सेवक के समक्ष उसके नाते या मध्यस्थ के समक्ष विधि द्वारा की जाती है, साक्ष्य में दर्शित हो और कि इस प्रकार साक्ष्य में दर्शित होने पर ऐसी परिस्थिति, मिथ्या प्रविष्टि या मिथ्या कथन के कारण कोई व्यक्ति, जिसे ऐसी कार्यवाही में साक्ष्य के आधार पर राय कायम करनी है, ऐसी कार्यवाही के परिणाम के लिए तात्विक किसी बात के संबंध में गलत राय बनाए, वह ‘मिथ्या साक्ष्य गढ़ता है”, यह कहा जाता है।
दृष्टांत
(क) क एक बक्स में, जो य का है, इस आशय से आभूषण रखता है कि वे उस बक्स में पाए जाएं और इस परिस्थिति से य चोरी के लिए दोषसिद्धि ठहराया जाए। क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
(ख) क अपनी दुकान की बही में एक मिथ्या प्रविष्टि इस प्रयोजन से करता है कि वह न्यायालय में सम्पोषक साक्ष्य के रूप में काम में लाई जाए। क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
(ग) य को एक आपराधिक षड़यंत्र के लिए दोषसिद्ध ठहराया जाने के आशय से क एक पत्र य के हस्तलेख की अनुकृति करके लिखता है, जिससे यह तात्पर्यित है कि य ने उसे ऐसे आपराधिक षड़यंत्र के सह अपराधी को संबोधित किया है और उस पत्र को ऐसे स्थान पर रखा देता है जिसके संबंध में वह यह जानता है कि पुलिस ऑफिसर संभाव्यतः उस स्थान की तलाशी लेंगे। क ने मिथ्या साक्ष्य गढ़ा है।
IPC Section 192 — Fabricating false evidence –
Whoever causes any circumstance to exist or makes any false entry in any book or record, or electronic record or makes any document or electronic record containing a false statement, intending that such circumstance, false entry or false statement may appear in evidence in a judicial proceeding, or in a proceeding taken by law before a public servant as such, or before an arbitrator, and that such circumstance, false entry or false statement, so appearing in evidence, may cause any person who in such proceeding is to form an opinion upon the evidence, to entertain an erroneous opinion touching any point material to the result of such proceeding, is said “to fabricate false evidence”. IPC की धारा 192