IPC की धारा 97 — शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार –
धारा 99 में अन्तर्विष्ट निर्बंधनों के अध्यधीन, हर व्यक्ति को अधिकार है कि वह –
पहला –मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करें;
दूसरा — किसी ऐसे कार्य के विरुद्ध, जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आने वाला अपराध है, या जो चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार करने का प्रयत्न है अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चाहे जंगम, चाहे स्थावर संपत्ति की प्रतिरक्षा करे।
IPC की धारा 97 से संबंधित महत्वपूर्ण केस
क्राउन बनाम रोज़ 1884)15 कॉक्स 540
प्रतिवादी ने अपने पिता की गोली मारकर हत्या कर दी, जबकि उसका पिता प्रतिवादी की माँ पर जानलेवा हमला कर रहा था, उसे आत्मरक्षा के आधार पर हत्या से बरी कर दिया गया था।
नूर मियाँ 1945)50 C.W.N.168
शरीर के बचाव में नूर मियाँ के वाद में अभियुक्त ने जिस पर अनेक व्यक्तियों ने अनेक हथियारों से प्रहार किया उनमें से एक हथियार छीन लिया तथा उस पर उसी हथियार से प्रहार किया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। यह निर्णय दिया गया कि अभियुक्त को अपने शरीर की प्रतिरक्षा का अधिकार था यद्यपि मृतक समय बिना हथियार के था।
होरम(1949)50 Clj868
जहाँ अतिचारी दूसरे की भूमि में प्रवेश करता है वहां कब्जाधारी उस समय जब कि अतिचारी कब्जा प्राप्त करने का प्रयास हो कर रहा है, बलपूर्वक उसे भूमि से निष्कासित कर सकता है और यदि ऐसा करते समय वह अतिचारी को ऐसी क्षति पहुंचाता है, जो परिस्थिति के अनुकूल है तो वह कोई अपराध नहीं कारित करता है।
अमजद खान बनाम हाजी मोहम्मद खान,एआईआर 1952 एससी 165,
एक भीड़ ने एक क्षेत्र में लोगों को मार डाला या गंभीर चोट पहुंचाई। भीड़ दरवाजे पर हमला कर रही थी ताकि वे उसे तोड़ सकें। निवासियों की जान बचाने के लिए, मालिक ने भयावह भीड़ को विचलित करने के लिए दो गोलियां चलाईं। न्यायालय ने फैसला दिया कि यह अत्यधिक बल का उपयोग नहीं था।
डम्बरुधर महन्त बनाम उड़ीसा राज्य 1984 clj
मृतक ने कुल्हाड़ी लेकर अभियुक्त पर प्रहार किया और उसके सिर पर दो बार किया। तत्पश्चात् अभियुक्त ने मृतक पर प्रहार किया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। यह अभिनिर्णीत हुआ कि अभियुक्त प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार द्वारा प्रतिरक्षित है और यह नहीं कहा जा सकता कि वह अपने इस अधिकार की सीमा को पार कर गया था जब उसने अपने बचाव में कई बार मृतक पर प्रहार किया। न्यायालय ने यह भी कहा कि अभियुक्त पर इस अपवाद को सिद्ध करने का दायित्व इतना कठोर नहीं होगा जितना कि अभियोजन पर आरोप को सिद्ध करने का दायित्व होता है।
बेकफोर्ड वी क्राउन [1988] एसी 130
न्यायालय ने फैसला दिया कि एक व्यक्ति जो हमलावर के हमले से पहले ही एक प्रतिक्रिया देता है उसे उसके हमलावर के पहले हमले का इंतजार नहीं करना पड़ता है; परिस्थितियों के अनुसार एक पूर्ववर्ती हमला जायज हो सकता है।
मच्छिंद्र बाबा साल्वे बनाम महाराष्ट्र राज्य, 1997 CrLJ 486 (Bom)
IPC की धारा 97 में हमलावर को निजी रक्षा का कोई अधिकार नहीं है।
कट्टा सुरेन्द्र बनाम उ० प्र० राज्य ,2008
ग्रामवासियों द्वारा सड़क पर रोक लगाने के प्रयास के कारण घटना घटी थी। अभियुक्त अन्य लोगों के साथ शस्त्र सञ्जित होकर आया और सड़क पर रोक लगाने पर आपत्ति किया। भीड़ ने अभियुक्त और उसके आदमियों पर पत्थर फेंका। अभियुक्त ने पत्थर फेंका जाना बन्द होने के काफी देर बाद मृतक पर प्राणघातक चोट पहुंचायी। यह अभिनिर्धारित किया गया कि इस मामले में अभियुक्त भारतीय दण्ड संहिता की धारा 97 के अधीन प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के बचाव का दावा करने का अधिकारी नहीं था। यह भी अभिनिर्धारित किया गया कि प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का दावा अनुमानों (surmises) और अटकलों (speculation) पर आधारित नहीं हो सकता है। प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार की उपलब्धता का विनिश्चय करने हेतु पूरी घटना का सही परिप्रेक्ष्य (proper setting) में परीक्षण करना चाहिये। तथापि यह स्पष्ट किया गया कि हत्या का अपराध कारित किये जाने को खारिज करने के लिये एकमात्र एक चोट का तर्क सदैव यथेष्ट नहीं होता है।
IPC की धारा 97 FAQ
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भारतीय दण्ड संहिता IPC की धारा 97 क्या है ?
IPC की धारा 97 शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार को बताती है
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शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार किस धारा में दिया गया हैं ?
IPC की धारा 97 में
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किस प्रकार के अपराध में संपत्ति के प्रतिरक्षा का अधिकार है ?
चोरी, लूट, रिष्टि या आपराधिक अतिचार में संपत्ति के प्रतिरक्षा का अधिकार है
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‘प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उपलब्ध नहीं होता है।” यह किस वाद में निर्णीत किया गया?
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राम स्वरुप
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अपराधों में किसके विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार उपलब्ध नहीं है?
(i) सम्पत्ति का आपराधिक दुर्विनियोग,
(ii) जालसाजी -
आईपीसी की धारा 97 हमें क्या अधिकार देती है
आईपीसी की धारा 97 शरीर तथा संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार को बताती है
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आईपीसी की कौन-सी दो धारायें मिलकर प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के सिद्धान्त को निर्मित करती हैं ?
IPC की धारा 97 एवं 99
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आईपीसी (IPC) की धारा 97 में अन्तर्विष्ट निर्बन्धनों के अध्यधीन प्रत्येक व्यक्ति को शरीर की प्राइवेट प्रतिरक्षा सम्बन्धी क्या अधिकार हैं?
IPC की धारा 97 के अध्यधीन प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध के विरुद्ध अपने शरीर और किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करे।
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यदि किसी स्त्री को बलपूर्वक उसके पति द्वारा हटाया जा रहा हो तो क्या वह प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग कर सकेगी?
दयाराम 1952 के प्रकरण में धारित किया गया कि ऐसी अवस्था में भी प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग किया जा सकेगा।
IPC Section 97 — Right of private defence of the body and of property –
Every person has a right, subject to the restrictions contained in section 99, to defend –
First — His own body, and the body of any other person, against any offence affecting the human body; (IPC 97 In Hindi)
Secondly — The property, whether movable or immovable, of himself or of any other person, against any act which is an offence falling under the definition of theft, robbery, mischief or criminal trespass, or which is an attempt to commit theft, robbery, mischief or criminal trespass.
भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –
भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र
भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल
भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]