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IPC की धारा 112 | धारा 112 भारतीय दण्ड संहिता | 112 IPC In Hindi

IPC की धारा 112 (DHARA 112) —  दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है –

यदि वह कार्य, जिसके लिए दुष्प्रेरक अंतिम पूर्वगामी धारा के अनुसार दायित्व के अधीन है, दुष्प्रेरित कार्य के अतिरिक्त किया जाता है और वह कोई सुभिन्न अपराध गठित करता है, तो दुष्प्रेरक उन अपराधों में से हर एक के लिए दण्डनीय है।

दृष्टांत

ख को एक लोक-सेवक द्वारा किए गए करस्थम् का बलपूर्वक प्रतिरोध करने के लिए क उकसाता है। ख परिणामस्वरूप उस करस्थम का प्रतिरोध करता है। प्रतिरोध करने में ख करस्थम का निष्पादन करने वाले ऑफिसर को स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है। ख ने करस्थम् का प्रतिरोध करने और स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के दो अपराध किए हैं। इसलिए ख दोनों अपराधों के लिए दण्डनीय है, और यदि क यह संभाव्य जानता था कि उस करस्थम का प्रतिरोध करने में ख स्वेच्छया घोर उपहति कारित करेगा, तो क भी उनमें से हर एक अपराध के लिए दण्डनीय होगा।

धारा 112 आईपीसी के प्रमुख अवयव क्या हैं?
यदि वह कार्य,
1. जिसके लिए दुष्प्रेरक अंतिम पूर्वगामी धारा के अनुसार दायित्व के अधीन है,
2. दुष्प्रेरित कार्य के अतिरिक्त किया जाता है और वह कोई सुभिन्न अपराध गठित करता है,
3. दुष्प्रेरक उन अपराधों में से हर एक के लिए दण्डनीय है।

IPC की धारा 112 FAQ

  1. IPC की धारा 112 (DHARA 112) क्या है ?

    यदि वह कार्य, जिसके लिए दुष्प्रेरक अंतिम पूर्वगामी धारा के अनुसार दायित्व के अधीन है, दुष्प्रेरित कार्य के अतिरिक्त किया जाता है और वह कोई सुभिन्न अपराध गठित करता है, तो दुष्प्रेरक उन अपराधों में से हर एक के लिए दण्डनीय है।

  2. आईपीसी की कौन सी धारा में दुष्प्रेरक कब दुष्प्रेरित कार्य के लिए और किए गए कार्य के लिए आकलित दण्ड से दण्डनीय है ?

    IPC की धारा 112 (DHARA 112) |

112 IPC In Hindi — Abettor when liable to cumulative punishment for act abetted and for act done –

If the act for which the abettor is liable under the last preceding section is committed in addition to the act abetted, and constitutes a distinct offence, the abettor is liable to punishment for each of the offences.

Illustration –

A instigates B to resist by force a distress made by a public servant. B, in consequence, resists that distress. In offering the resistance, B voluntarily causes grievous hurt to the officer executing the distress. As B has committed both the offence of resisting the distress, and the offence of voluntarily causing grievous hurt, B is liable to punishment for both these offences; and, if A knew that B was likely voluntarily to cause grievous hurt in resisting the distress A will also be liable to punishment for each of the offences.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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