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IPC की धारा 71 | धारा 71 भारतीय दण्ड संहिता | 71 IPC In Hindi

IPC की धारा 71 (DHARA 71) — कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि –

जहां कि कोई बात, जो अपराध है, ऐसे भागों से, जिनमें का कोई भाग स्वयं अपराध है, मिलकर बनी है, वहां अपराधी अपने ऐसे अपराधों में से एक से अधिक के दण्ड से दण्डित न किया जाएगा, जब तक कि ऐसा अभिव्यक्त रूप से उपबंधित न हो।

जहां कि कोई बात अपराधों को परिभाषित या दंडित करने वाली किसी तत्समय प्रवृत्त विधि की दो या अधिक पृथक् परिभाषाओं में आने वाला अपराध है, अथवा

जहां कि कई कार्य, जिनमें से स्वयं एक से या स्वयं एकाधिक से अपराध गठित होता है, मिलकर भिन्न अपराध गठित करते हैं;

वहां अपराधी को उससे गुरुत्तर दण्ड से दण्डित न किया जाएगा, जो ऐसे अपराधों में से किसी भी एक के लिए वह न्यायालय,जो उसका विचारण करे,उसे दे सकता हो ।

दृष्टांत –

(क) क, य पर लाठी से पचास प्रहार करता है। यहां, हो सकता है कि क ने संपूर्ण मारपीट द्वारा उन प्रहारों में से हर एक प्रहार द्वारा भी, जिनसे वह संपूर्ण मारपीट गठित है, य को स्वेच्छया उपहति कारित करने का अपराध किया हो। यदि क हर प्रहार के लिए दण्डनीय होता तो वह हर एक प्रहार के लिए एक वर्ष के हिसाब से पचास वर्ष के लिए कारावासित किया जा सकता था। किन्तु वह संपूर्ण मारपीट के लिए केवल एक ही दण्ड से दण्डनीय है।
(ख) किन्तु यदि उस समय जब क, य को पीट रहा है, म हस्तक्षेप करता है, और क, म पर साशय प्रहार करता है, तो यहां म पर किया गया प्रहार उस कार्य का भाग नहीं है, जिसके द्वारा क, य को स्वेच्छया उपहति कारित करता है, इसलिए क, य को स्वेच्छया कारित की गई उपहति के लिए एक दण्ड से और म पर किए गए प्रहार के लिए दूसरे दण्ड से दंडनीय है।

IPC की धारा 71 से संबंधित महत्वपूर्ण केस –

इन री नटराजन तथा अन्य, 1976 एल0 डब्लू) (क्रि0) 108
जहाँ पर अपराध दो पृथक अधिनियमितियों के अधीन दण्डनीय है तो वहाँ पर दण्डादेश में धारा 71(DHARA 71) के अधार पर किसी प्रकार की आपत्ति नहीं उठायी जा सकती है।
ए0 आई0 आर0 1936 कल0 808
एक ही समय पर दो बैलों की चोरी में पृथक-पृथक दण्डादेश का देना उचित नहीं होगा।
ए0 आई0 आर0 1959 केरल 372
जहाँ पर अभियुक्त मृतक पर एक प्रहार करता है तथा दूसरा प्रहार उसके शरीर के नाजुक भाग पर करता है जिसके उसकी मृत्यु हो जाती है तो ऐसी दशा में कारित एक अपराध माना जायेगा तथा अभियुक्त को मात्र धारा 304 के अधीन दोषसिद्ध ठहराया जायेगा न कि धारा 304 तथा धारा 323 के अधीन ।
ए0 आई0 आर0 1962 मनिपुर 7
सदोष परिरोध तथा डकैती भिन्न अपराध माने जायेंगे । 

ए0 आई0 आर0 1955 कल0 527]
किन्तु उपहति तथा डकैतों को सुभिन्न अपराध नहीं माना जायेगा।
11 वी0 रि० (क्रि0) 38
जहाँ पर दो सम्पत्तियाँ एक ही घर से चुरायी गयी हों तो, भले ही वह भिन्न व्यक्तियों से सम्बन्धित हो किन्तु गुरुत्तर अपराध के लिए अपराधी को केवल चोरी के लिए दण्डाष्टि किया जायेगा ।

IPC की धारा 71 FAQ

  1. आईपीसी (IPC) की किस धारा के अंतर्गत कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि का प्रावधान है?

    IPC की धारा 71

  2. IPC की धारा 71 (DHARA 71) क्या है?

    IPC की किस धारा 71 (DHARA 71) के अंतर्गत कई अपराधों से मिलकर बने अपराध के लिए दण्ड की अवधि का प्रावधान है|

71 IPC In Hindi — Limit of punishment of offence made up of several offences —

Where anything which is an offence is made up of parts, any of which parts is itself an offence, the offender shall not be punished with the punishment of more than one of such his offences, unless it be so expressly provided.

Where anything is an offence falling within two or more separate definitions of any law in force for the time being by which offences are defined or punished, or

where several acts, of which one or more than one would by itself or them-selves constitute an offence, constitute, when combined, a different offence,

the offender shall not be punished with a more severe punishment than the Court which tries him could award for anyone of such offences. IPC की धारा 71

Illustrations –

(a) A gives Z fifty strokes with a stick. Here A may have committed the offence of voluntarily causing hurt to Z by the whole beating, and also by each of the blows which make up the whole beating. If A were liable to punishment for every blow, he might be imprisoned for fifty years, one for each blow. But he is liable only to one punishment for the whole beating. IPC की धारा 71
(b) But if, while A is beating Z, Y interferes, and A intentionally strikes Y, here, as the blow given to Y is no part of the act whereby A voluntarily causes hurt to Z, A is liable to one punishment for voluntarily causing hurt to Z, and to another for the blow given to Y.

भारतीय दण्ड संहिता के लिए महत्वपूर्ण पुस्तकें –

भारतीय दंड संहिता,1860 – प्रो सूर्य नारायण मिश्र

भारतीय दंड संहिता, 1860 – डॉ. बसंती लाल

भारतीय दण्ड संहिता ( DIGLOT) [ENGLISH/HINDI] [BARE ACT]

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