IPC की धारा 185 — लोक सेवक के प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की गई सम्पत्ति का अवैध क्रय या उसके लिए अवैध बोली लगाना –
जो कोई सम्पत्ति के किसी ऐसे विक्रय में, जो लोक-सेवक के नाते लोकसेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा हो रहा हो, किसी ऐसे व्यक्ति के निमित्त चाहे वह व्यक्ति वह स्वयं हो, या कोई अन्य हो, किसी संपत्ति का क्रय करेगा या किसी संपत्ति के लिए बोली लगाएगा, जिसके बारे में वह जानता हो कि वह व्यक्ति उस विक्रय में उस सम्पत्ति के क्रय करने के बारे में किसी विधिक असमर्थता के अधीन है या ऐसी सम्पत्ति के लिए यह आशय रखकर बोली लगाएगा कि ऐसी बोली लगाने से जिन बाध्यताओं के अधीन वह अपने आप को डालता है उन्हें उसे पूरा नहीं करना है, वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि एक मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दो सौ रुपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
अपराध का वर्गीकरण–इस धारा के अधीन अपराध, असंज्ञेय, जमानतीय, अशमनीय, और कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है| |
IPC Section 185 — Illegal purchase or bid for property offered for sale by authority of public servant —
Whoever, at any sale of property held by the lawful authority of a public servant, as such, purchases or bids for any property on account of any person, whether himself or any other, whom he knows to be under a legal incapacity to purchase that property at that sale, or bids for such property not intending to perform the obligations under which he lays himself by such bidding, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to one month, or with fine which may extend to two hundred rupees, or with both.