IPC की धारा 216 — ऐसे अपराधी को संश्रय देना, जो अभिरक्षा से निकल भागा है या जिसको पकड़ने का आदेश दिया जा चुका है –
जब किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध या आरोपित व्यक्ति उस अपराध के लिए वैध अभिरक्षा में होते हुए ऐसी अभिरक्षा से निकल भागे;
अथवा जब कभी कोई लोक-सेवक ऐसे लोक-सेवक की विधिपूर्ण शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति को पकड़ने का आदेश दे, तब जो कोई ऐसे निकल भागने को या पकड़े जाने के आदेश को जानते हुए, उस व्यक्ति को पकड़ा जाना निवारित करने के आशय से उसे संश्रय देगा या छिपाएगा, वह निम्नलिखित प्रकार से दण्डित किया जाएगा, अर्थात् –
यदि अपराध मृत्यु से दण्डनीय हो – यदि वह अपराध, जिसके लिए वह व्यक्ति अभिरक्षा में था या पकड़े जाने के लिए आदेशित है, मृत्यु से दण्डनीय हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा;
यदि आजीवन कारावास या कारावास से दण्डनीय हो – यदि वह अपराध आजीवन कारावास से या दस वर्ष तक के कारावास से दण्डनीय हो, तो वह जुर्माने सहित या रहित दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा;
तथा यदि वह अपराध ऐसे कारावास से दण्डनीय हो, जो एक वर्ष तक का, न कि दस वर्ष तक का हो सकता है, तो वह उस अपराध के लिए उपबंधित भांति के कारावास से जिसकी अवधि उस अपराध के लिए उपबंधित कारावास की दीर्घतम अवधि की एक चौथाई तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जाएगा।
इस धारा में “अपराध” के अन्तर्गत कोई भी ऐसा कार्य या लोप भी आता है, जिसका कोई व्यक्ति भारत से बाहर दोषी होना अभिकथित हो, जो यदि वह भारत में उसका दोषी होता, तो अपराध के रूप में दण्डनीय होता और जिसके लिए वह प्रत्यर्पण से संबंधित किसी विधि के अधीन या अन्यथा भारत में पकड़े जाने या अभिरक्षा में निरुद्ध किए जाने के दायित्व के अधीन हो, और हर ऐसा कार्य या लोप इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे दण्डनीय समझा जाएगा, मानो अभियुक्त व्यक्ति भारत में उसका दोषी हुआ था।
अपवाद – इस उपबंध का विस्तार ऐसे मामले पर नहीं है, जिसमें संश्रय देना या छिपाना पकड़े जाने वाले व्यक्ति के पति या पत्नी द्वारा हो।
अपराध का वर्गीकरण–इस धारा के अधीन अपराध, संज्ञेय, जमानतीय, अशमनीय, और प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है| |
IPC Section 216 — Harbouring offender who has escaped from custody or whose apprehension has been ordered –
Whenever any person convicted of or charged with an offence, being in lawful custody for that offence, escapes from such custody; or whenever a public servant, in the exercise of the lawful powers of such public servant, orders a certain person to be apprehended for an offence, whoever, knowing of such escape or order for apprehension, harbours or conceals that person with the intention of preventing him from being apprehended, shall be punished in the manner following, that is to say,
if a capital offence – if the offence for which the person was in custody or is ordered to be apprehended is punishable with death, he shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine;
if punishable with imprisonment for life, or with imprisonment – if the offence is punishable with imprisonment for life, or imprisonment for ten years, he shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three years, with or without fine; IPC की धारा 216
and if the offence is punishable with imprisonment which may extend to one year and not to ten years, he shall be punished with imprisonment of the description provided for the offence for a term which may extend to one-fourth part of the longest term of the imprisonment provided for such offence, or with fine, or with both. IPC की धारा 216
“Offence” in this section includes also any act or omission of which a person is alleged to have been guilty out of India, which, if he had been guilty of it in India, would have been punishable as an offence, and for which he is, under any law relating to extradition, or otherwise, liable to be apprehended or detained in custody in [India]; and every such act or omission shall, for the purposes of this section, be deemed to be punishable as if the accused person had been guilty of it in India.
Exception — This provision does not extend to the case in which the harbour or concealment is by the husband or wife of the person to be apprehended.