IPC की धारा 241 — किसी सिक्के का असली सिक्के के रूप में परिदान, जिसका परिदान करने वाला उस समय जब वह उसके कब्जे में पहली बार आया था, कूटकृत होना नहीं जानता था –
जो कोई किसी दूसरे व्यक्ति को कोई ऐसा कूटकृत सिक्का, जिसका कूटकृत होना वह जानता हो, किन्तु जिसका वह उस समय, जब उसने उसे अपने कब्जे में लिया, कूटकृत होना नहीं जानता था, असली सिक्के के रूप में परिदान करेगा या किसी दूसरे व्यक्ति को उसे असली सिक्के के रूप में लेने के लिए उत्प्रेरित करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या इतने जुर्माने से, जो कूटकृत सिक्के के मूल्य के दस गुने तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दृष्टांत
क, एक सिक्काकार, अपने सह-अपराधी ख को कूटकृत कंपनी के रुपये चलाने के लिए परिदत्त करता है। ख उन रुपयों को सिक्का चलाने वाले एक दूसरे व्यक्ति ग को बेच देता है, जो उन्हें कूटकृत जानते हुए खरीदता है। ग उन रुपयों को घ को, जो उनको कूटकृत न जानते हुए प्राप्त करता है, माल के बदले दे देता है। घ को रुपए प्राप्त होने के पश्चात् यह पता चलता है कि वे रुपए कूटकृत हैं, और वह उनको इस प्रकार चलाता है, मानो वे असली हों। यहां घ केवल इस धारा के अधीन दण्डनीय है, किन्तु ख और ग, यथास्थिति, धारा 239 या 240 के अधीन दण्डनीय है।
अपराध का वर्गीकरण–इस धारा के अधीन अपराध, संज्ञेय, अजमानतीय, अशमनीय, और कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है| |
IPC Section 241 — Delivery of coin as genuine, which, when first possessed, the deliverer did not know to be counterfeit –
Whoever delivers to any other person as genuine, or attempts to induce any other person to receive as genuine, any counterfeit coin which he knows to be counterfeit, but which he did not know to be counterfeit at the time when he took it into his possession, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to two years, or with fine to an amount which may extend to ten times the value of the coin counterfeited, or with both.