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contract law- उत्पीड़न और असम्यक् असर में अंतर | Difference Between Coercion And Undue Influence in hindi

उत्पीड़न और असम्यक् असर में अंतर

उत्पीड़न और असम्यक् असर में अंतर | Difference Between Coercion And Undue Influence in hindi

 “उत्पीड़न”(coercion) की परिभाषा –

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 15 के अनुसार- “उत्पीड़न ऐसे किसी कार्य को करना या करने की धमकी देना है जो कि भारतीय दंड संहिता (1860 का 45 ) द्वारा निषिद्ध है, या किसी संपत्ति को किसी व्यक्ति पर, चाहे यह कोई हो, प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए इस आशय से कि किसी व्यक्ति से करार में प्रवेश कराया जाए, विधि- विरुद्ध तथा निरुद्ध  करना या निरुद्ध करने की धमकी देना है।”

उदाहरण-

 महासमुद्र में अंग्रेजी पोत पर ऐसे कार्य जो भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आपराधिक अभीत्रास ( criminal intimidation ) हैं, ‘ख’ से एक करार करता है उसके पश्चात ‘क’ संविदा भंग के लिए कोलकाता में ‘ख’ पर वाद चलाता है। ‘क’ ने उत्पीड़न किया, यद्यपि उसका कार्य इंग्लैंड की विधि द्वारा अपराध नहीं है और यद्यपि भारतीय दंड संहिता की धारा 506 उस समय और उस स्थान पर, जहां वह कार्य किया गया था, प्रवृत्त नहीं थी

 

“असम्यक् असर”(undue influence) की परिभाषा-

 भारतीय संविदा अधिनियम ,1872 की धारा 16 के अनुसार-“असम्यक् असर की परिभाषा

(1) संविदा असम्यक् असर द्वारा उत्प्रेरित कही जाती है जहां कि पक्षकारों के बीच विद्यमान संबंध ऐसे हैं कि उनमें से एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में है और उस स्थिति का उपयोग उस दूसरे पक्षकार से अऋजु फायदा अभिप्राप्त करने के लिए करता है।

(2) विशिष्टतया और पूर्ववर्ती सिद्धांत की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि कोई व्यक्ति किसी अन्य की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में समझा जाता है जब कि वह –

(क) उस अन्य पर वास्तविक या दृश्यमान प्राधिकार रखता है, या उस अन्य के साथ वैश्वासिक संबंध की स्थिति में है; अथवा

(ख) ऐसे व्यक्ति के साथ संविदा करता है जिसकी मानसिक सामर्थ्य पर आयु, रुग्णता या मानसिक या शारीरिक कष्ट के कारण         अस्थायी या स्थायी रूप से प्रभाव पड़ा है।

(3) जहां कि कोई व्यक्ति, जो किसी अन्य की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में हो, उसके साथ संविदा करता है, और वह संव्यवहार देखने से ही या दिए गए साक्ष्य के आधार पर लोकात्माविरुद्ध प्रतीत होता है वहां यह साबित करने का भार कि ऐसी संविदा असम्यक् असर से उत्प्रेरित नहीं की गई थी उस व्यक्ति पर होगा जो उस अन्य की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में था।

इस उपधारा की कोई भी बात भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 111 के उपबंधों पर प्रभाव नहीं डालेगी।

उदाहरण-

(क) क, जिसने अपने पुत्र ख को उसकी अप्राप्तवयता के दौरान में धन उधार दिया था, ख के प्राप्तवय होने पर अपने पैत्रिक असर के दुरुपयोग द्वारा उससे उस उधार धन की बाबत शोध्य राशि से अधिक रकम के लिए एक बन्धपत्र अभिप्राप्त कर लेता है। क असम्यक् असर का प्रयोग करता है।

(ख) रोग या आयु से क्षीण हुए मनुष्य क पर ख का, जो असर उसके चिकित्सीय परिचारक के नाते है, उस असर से व को उसकी वृत्तिक सेवाओं के लिए एक अयुक्तियुक्त राशि देने का करार करने के लिए क उत्प्रेरित किया जाता है। ब असम्यक् असर का प्रयोग करता है।

(ग) क अपने ग्राम के साहूकार ख का ऋणी होते हुए एक नई संविदा करके ऐसे निबंधनों पर धन उधार लेता है जो लोकात्माविरुद्ध प्रतीत होते हैं। यह साबित करने का भार कि संविदा असम्यक असर से उत्प्रेरित नहीं की गई थीख पर है।

(घ) क एक बैंककार से उधार के लिए ऐसे समय में आवेदन करता है जब धन के बाजार में तंगी है। बैंककार ब्याज की अप्रायिक ऊंची दर पर देने के सिवाय उधार देने से इन्कार कर देता है। क उन निबंधनों पर उधार प्रतिगृहीत करता है। यह संव्यवहार कारबार के मामूली अनुक्रम में हुआ है, और वह संविदा असम्यक असर से उत्प्रेरित नहीं है।

 

उत्पीड़न और असम्यक् असर में अंतर:-

 

उत्पीड़न (coercion) असम्यक् असर (undue influence)
1 . इसकी परिभाषा  भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 15  में दी  गयी  है। 1. इसकी परिभाषा भारतीय संविदा अधिनियम ,1872 की धारा 16 में दी गयी  है।
2 . परिभाषा-  “उत्पीड़न ऐसे किसी कार्य को करना या करने की धमकी देना है जो कि भारतीय दंड संहिता द्वारा निषिद्ध है, या किसी संपत्ति को किसी व्यक्ति पर, चाहे यह कोई हो, प्रतिकूल प्रभाव डालने के लिए इस आशय से कि किसी व्यक्ति से करार में प्रवेश कराया जाए, विधि- विरुद्ध तथा निरुद्ध  करना या निरुद्ध करने की धमकी देना है।” 2. परिभाषा- “संविदा असम्यक असर द्वारा उत्प्रेरित कही जाती है जहां की पक्षकारों के बीच विधमान संबंध ऐसे हैं कि उनमें से एक पक्षकार दूसरे की इच्छा को अधिशासित करने की स्थिति में है और उस स्थिति का उपयोग उस दूसरे पक्षकार से अऋजु फायदा अभीप्राप्त करने के लिए करता है।”
3. यह अपराधिक प्रकृति का है 3. यह अपराधिक प्रकृति का नहीं है।
4 .उत्पीड़न में एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार से भारतीय दंड संहिता द्वारा वर्जित कोई कार्य करके अथवा धमकी देकर कराया जाता है या संपत्ति को अवैध रूप से रोका जाता है| 4 .असम्यक् असर में एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार पर अपनी अधिशासित प्रयोग करने की स्थिति का अनुचित प्रयोग किया जाता है।
5. उत्पीड़न का प्रयोग संविदा के पक्षकार अथवा पर व्यक्ति के साथ भी किया जा सकता है। 5 . इसका प्रयोग केवल संविदा के पक्षकार के साथ ही किया जा सकता है।
6 .उत्पीड़न वस्तुओं और संपत्ति के विरुद्ध भी किया जा सकता है। 6. असम्यक असर  वस्तुओं और संपत्ति के विरुद्ध नहीं हो सकता।
7 .इसमें शारीरिक दबाव डाला जाता है या संपत्ति को रोका जाता है। 7. इसमें मानसिक दबाव डाला जाता है।
8 . यह हिंसक प्रवृत्ति का कार्य है। 8. यह चालाकी तथा बनावटीपन का कार्य है।
9 .उत्पीड़न के मामले में कोई उपधारणा उत्पन्न नहीं होती है। 9. असम्यक् असर  के मामले में जहां तक संविदा का एक पक्षकार दूसरे पक्षकार पर वास्तविक या प्रतिभाषित  प्राधिकार रखता है।
10 .  इसमें सबूत का भार  पीड़ित पक्षकार पर होता है। 10 .सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो अधिशासित करने की स्थिति में होता है।
11 .इसमें पक्षकारों के बीच संबंध आवश्यक नहीं है। 11. असम्यक् असर का कार्य केवल तब किया जाता है जब संविदा के पक्षकारों में कुछ संबंध होते हैं।                                          जैसे-  शिक्षक-छात्र, चिकित्सक-रोगी आदि।

 

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