क्षति की दूरस्थता – क्षति की दूरस्थता के सिद्धान्त से तात्पर्य है कि कोई व्यक्ति केवल उन्हीं परिणामों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जो उसके आचरण से अधिक दूरस्थ न हों। किसी व्यक्ति को ऐसे अनन्त परिणामों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता जो उसके दोषपूर्ण कृत्य के कारण उत्पन्न होते हैं।
केस :- लैम्पर्ट बनाम ईस्टर्न नेशनलर ओमनीबस कम्पनी, (1954) 1 डब्ल्यू. एल. आर. 1047
इस वाद में वादिनी, प्रतिवादियों की उपेक्षा के कारण क्षतिग्रस्त हो गई और उसका चेहरा विकृत हो गया। कुछ दिनों बाद उसके पति ने उसका अभित्याग कर दिया। वादिनी ने क्षतिपूर्ति का दावा किया। न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि वादिनी के पति ने उसका अभित्याग उसके विकृत चेहरे के कारण नहीं किया अपितु उनके तनावपूर्ण संबंधों के कारण किया अतः अभित्याग किये जाने के लिए प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं हैं इसलिए वादिनी क्षतिपूर्ति की हकदार नहीं है।
क्षति की दूरस्थता के निर्धारण के लिये दो मुख्य मापदण्ड हैं:-
(1) युक्तियुक्त पूर्वानुमान का मापदण्ड
(2) प्रत्यक्षता का मापदण्ड
(1) युक्तियुक्त पूर्वानुमान का मापदण्ड : यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी दोषपूर्ण कार्य के परिणाम का पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता है तो उसे अत्यंत दूरस्थ माना जाएगा। इस मापदण्ड के अनुसार कोई व्यक्ति उसी अपकृत्य के लिये उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जिसका वह पूर्वानुमान कर सकता है।
(2) प्रत्यक्षता का मापदण्ड : इस मापदण्ड के अनुसार अपकृत्यकर्ता उन समस्त प्रत्यक्ष परिणामों के लिये उत्तरदायी होता है जो उसके दोषपूर्ण कार्य से उत्पन्न हुए हैं चाहे उसने पूर्वानुमान किया हो या न किया हो।
केस :- री पोलेमिस एण्ड फर्नेस, विथी एण्ड कम्पनी, (1921) 3 के. बी. 560
इस मामले में प्रतिवादी ने एक जहाज किराये पर लिया। इस जहाज में ज्वलनशील पदार्थ ले जाए जाने के लिये रखा गया। ज्वलनशील पदार्थ जिन टीनों में था उनमें से कुछ में छेद होने के कारण वह पदार्थ निकलकर जहाज के पैदे में जमा हो गया। प्रतिवादी के सेवक की लापरवाही के कारण उस ज्वलनशील पदार्थ ने आग पकड़ ली और पूरा जहाज जलकर नष्ट हो गया।
न्यायालय ने निर्णय दिया कि यद्यपि ऐसी क्षति का पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता था किन्तु फिर भी जहाज के स्वामी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
केस :- ओवरसीज टैंकशिप (यू.के.) लिमिटेड बनाम मार्ट्स डाक एण्ड इंजीनियरिंग कम्पनी लिमिटेड, (1961) ए.सी. 388
यह मामला, जिसे वेगन माउण्ड का वाद भी कहा जाता है, में प्रीवी कौंसिल की न्यायिक समिति ने उपेक्षा के मामले में प्रत्यक्षता के मापदण्ड को गलत मानते हुए उसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया और पूर्वानुमान के मापदण्ड को सही होना अभिनिर्धारित किया।
केस :- लक्ष्मी नारायण बनाम सुमित्रा,AIR 1995 MP 86॰
इस मामले मे सगाई के पश्चात् भावी पति लड़की के साथ विवाह का वचन लगातार करता रहा और उसके साथ लैंगिक सम्बन्ध स्थापित कर लिये जिसके कारण वह लड़की गर्भवती हो गयी। तब उसने उस लड़की से विवाह करने से इन्कार कर दिया। यह अभिनिर्धारित किया गया कि वह विभिन्न आधारों पर नुकसानी की हकदार थी, जैसे कि, शारीरिक कष्ट, दुःख, अनादर, विवाह की सम्भावनायें कम होने और सामाजिक कलंक।
आगे यह अभिनिर्धारित किया गया कि लड़के को और अन्य व्यक्तियों को आपराधिक मामलों में दोषमुक्त कर देने से, अपकृत्य विधि के तहत नुकसानी की कार्यवाही से नहीं रोका जा सकेगा। इस वाद में अवर न्यायालय द्वारा 30,000 रुपये का पंचाट दिया गया और एम० पी० उच्च न्यायालय ने इसकी पुष्टि की।
केस :- हॉब्स बनाम एल. एण्ड एस० डब्ल्यू० रेलवे ,1875
इस वाद में प्रतिवादी रेलवे कम्पनी की उपेक्षा के कारण, वादी और उसके परिवार को गलत रेलवे स्टेशन पर उतार दिया गया। न तो पास में कोई होटल में रहने की व्यवस्था थी और न ही कोई वाहन उनके लिये उपलब्ध था, अतः उनको बरसात में कई मील पैदल चलना पड़ा। वादी के परिवार को हुई असुविधा के कारण सारभूत नुकसानी का हकदार ठहराया गया। उसका, उसकी पत्नी को नजला होने और परिणामवश उसके इलाज में हुई दवाई के ख़र्चों के कारण हुई हानि और व्यापार में पत्नी की सेवाओं मे हुई हानि के लिये किया गया दावा, अस्वीकृत कर दिया गया। पत्नी को नजला होने को काफी दूरस्थ माना गया था |
केस :- कोलार्ड बनाम साऊथ ईस्टर्न रेलवे,1891
इस वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि अगर वाहक को व्यतिक्रम के कारण, माल को क्षति पहुंचती है और ऐसे माल का व्ययन करने में देर हो जाती है, माल के बाजार मूल्य में कमी होने के कारण हुई हानि को प्रतिकर की भाँति माँगा जा सकता है। इस वाद में वादियों ने हाप्स का एक परेक्षण वहन के लिये प्रतिवादियों को दिया।
प्रतिवादियों द्वारा उपेक्षा करने के कारण, रास्ते में हाप्स, अरक्षित छूट जाने के कारण क्षतिग्रस्त हो गये और इसके अतिरिक्त माल का परिदान भी विलम्बित हो गया था। हाप्स का विक्रय और भी अधिक विलम्बित हो गया था, क्योंकि व्ययन से पूर्व उसको सुखाना आवश्यक था। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि प्रतिवादी न केवल परिवहन के समय हुई क्षति के प्रतिकर देने के लिये दायी थे बल्कि उस हानि के लिये भी जो कि माल को विपण्य स्थिति में लाने के पश्चात् उनके व्ययन में देरी के कारण उस माल के बाजार मूल्य में कमी होने के कारण उत्पन्न हुआ था।
केस :- सन्दीप सीमेण्ट (प्राइवेट) लि० बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया ,AIR 1990
इस मामले में याची ने प्रत्यर्थी रेलवे द्वारा कोयले का परिवहन किया। वैगनों में से एक में परिवहित 13,320 मीट्रिक टन कोयला गंतव्य पर नहीं पहुँचा। परेषण में “मिनरल कोयला” था जो कि एक दुर्लभ सामग्री था और बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं था। यह अभिनिर्धारित किया गया था कि इस वाद में आर्थिक प्रतिकर उचित अनुतोष नहीं था और परमादेश की रिट (रिट ऑफ मँडमस) रेलवे प्रशासन को उस प्रकार के माल को परिदान करने के लिये निर्देश करती हुई पारित की गयी।
क्षति की दूरस्थता FAQ
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क्षति की दूरस्थता क्या है?
क्षति की दूरस्थता के सिद्धान्त से तात्पर्य है कि कोई व्यक्ति केवल उन्हीं परिणामों के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जो उसके आचरण से अधिक दूरस्थ न हों। किसी व्यक्ति को ऐसे अनन्त परिणामों के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता जो उसके दोषपूर्ण कृत्य के कारण उत्पन्न होते हैं।
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किस केस को ‘वेगन माउण्ड का वाद’ भी कहा जाता है?
ओवरसीज टैंकशिप (यू.के.) लिमिटेड बनाम मार्ट्स डाक एण्ड इंजीनियरिंग कम्पनी लिमिटेड, (1961) को ‘वेगन माउण्ड का वाद’ भी कहा जाता है|
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क्षति की दूरस्थता के निर्धारण के लिये मुख्य मापदण्ड कौन से है ?
क्षति की दूरस्थता के निर्धारण के लिये दो मुख्य मापदण्ड हैं:-
1. युक्तियुक्त पूर्वानुमान का मापदण्ड
2. प्रत्यक्षता का मापदण्ड
क्षति की दूरस्थता MCQ
Results
#1. परिणामों की दूरवर्तिता का अवधारण करने के लिए 'युक्तियुक्त पूर्वानुमान' की कसोटी प्रतिपादित की गई थी ?
#2. क्षति की दूरस्थता से तात्पर्य है :
#3. वेगन माउण्ड के वाद में क्या अभिनिर्धारित किया गया ?
#4. पॉलेमिस के मामले में यह अधिकथित नियम है कि प्रतिवादी दायी होगा :
#5. निम्न में से कौन-सा क्षति की दूरस्थता से संबंधित वाद है ?
#6. क्षति की दूरस्थता के निर्धारण के लिये कौन सा मापदण्ड है ?
संदर्भ-
- अपकृत्य विधि-आर.के. बंगिया
- अपकृत्य विधि- जयनारायण पाण्डेय
- अपकृत्य विधि- एम एन शुक्ला
- अपकृत्य विधि -भीमसेन खेत्रपाल
- अपकृत्य विधि- MCQ BOOK
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