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डकैती क्या है ? | What is dacoity in IPC in hindi?

डकैती क्या है

डकैती क्या है ?

डकैती को भारतीय  दण्ड संहिता के अध्याय 17 की धारा 391 में परिभाषित किया गया है डकैती के लिए आवश्यक सदस्य संख्या कम से कम पांच  है | भारतीय दण्ड संहिता की धारा 395 में डकैती के लिए दण्ड का प्रावधान है | डकैती के लिए लूट का होना या लूट का प्रयत्न करना  आवश्यक है l

डकैती की परिभाषा – 

भारतीय  दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 391 मे डकैती को परिभाषित किया गया है –  डकैती जब कि पांच या अधिक व्यक्ति संयुक्त होकर लूट करते हैं या करने का प्रयत्न करते हैं या जहाँ कि वे व्यक्ति, जो संयुक्त होकर लूट करते हैं, या करने का प्रयत्न करते हैं और वे व्यक्ति जो उपस्थित हैं और ऐसे लूट के किए जाने या ऐसे प्रयत्न में मदद करते हैं, कुल मिलाकर पांच या अधिक हैं, तब हर व्यक्ति जो इस प्रकार लूट करता है, या उसका प्रयत्न करता है या उसमें मदद करता है, कहा जाता है कि वह “डकैती” करता है।

 केस – श्याम बिहारी ए.आई .आर. (1957) SC-

डकैती के अपराध में पाँच या पाँच से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक है और यह भी आवश्यक है कि वे या तो लूट करें या करने का प्रयत्न करें l यह धारा तभी लागू होती है जब सभी व्यक्ति लूट कारित करने के सामान्य आशय के भागीदार हों।

 केस –अटुम लेग्मी .आई .आर.(1962)

यह भी प्रतिषिद्ध किया जाना चाहिये कि अभियुक्त ने या तो लूट कारित किया या लूट कारित करने में सहायता किया और वह उन व्यक्तियों में से एक था जिन्होंने धन का उद्दापन किया या उद्दापन में सहायता किया।

इस धारा के प्रयोजन हेतु अभियुक्तों की गणना करते समय उन सभी व्यक्तियों को ध्यान में रखा जाना चाहिये जिन्होंने सामूहिक रूप में लूट कारित किया या कारित करने का प्रयत्न किया तथा जो लूट कारित होते समय विद्यमान थे और सहायता पहुंचा रहे थे।

डकैती केवल अभियुक्तों की संख्या के आधार पर लूट से भिन्न है। अतः डकैती अधिक कठोर दण्ड से दण्डनीय है क्योंकि यह लूट से अधिक उग्र है। डकैती में अधिक व्यक्तियों की उपस्थिति के कारण अधिक भय बना रहता है। अभियुक्तों की गणना करते समय उन दुष्प्रेरकों की भी गणना की जाती है जो अपराध स्थल पर उपस्थित रहते हैं और अपराध के सम्पादन में सहायता पहुँचाते हैं। डकैती में लूट सम्मिलित है और लूट, चोरी या उद्दापन का उग्र रूप है।

अतः डकैती में चोरी और उद्दापन दोनों ही सम्मिलित हैं। पीड़ित व्यक्ति द्वारा प्रतिरोध प्रस्तुत किया जाना आवश्यक नहीं है। रामचंद्र(1932)के प्रकरण में घर के सदस्यों ने अधिक संख्या में डाकुओं को देखकर कोई प्रतिरोध प्रस्तुत नहीं किया, अत: डाकुओं ने किसी प्रकार के हिंसा या बल का प्रयोग नहीं किया। यह अपराध डकैती का अपराध माना गया न कि चोरी।

 केस कोसोरी पाटर (1867)

इस  वाद में  केवल यह पता लगने पर कि घर में डकैती होने वाली है घर के सभी सदस्य घर छोड़कर चले गये। तत्पश्चात् बहुत से लोगों ने घर पर धावा बोल दिया और घर में रखी सम्पत्ति उठा ले गये। यह अभिनिर्धारण प्रदान किया गया कि यह अपराध, डकैती का अपराध है  क्योंकि यह तथ्य कि घर के सदस्य क्षति या सदोष अवरोध के भय से घर छोड़कर भाग गये इस अपराध का पर्याप्त सबूत है।

 केस –लिंगय्या   .आई .आर.(1958) 

यदि डकैती करने वाले केवल पाँच ही व्यक्ति हैं और इन पाँच में से केवल तीन ही दण्डित होते हैं तथा शेष दो को उन्मुक्ति प्रदान कर दी जाती है तो तीन व्यक्तियों की दोषसिद्धि न्यायसंगत नहीं मानी जायेगी क्योंकि डकैती का अपराध पाँच से कम व्यक्ति सम्पादित नहीं कर सकते l

किन्त यदि अनेक व्यक्तियों को उन्मुक्ति प्रदान किये जाने के बावजूद यह पाया जाता है कि उन व्यक्तियों के साथ जिन्होंने अपराध में भाग लिया, भाग लेने वालों का योग पाँच या इससे अधिक हो जा रहा है तो पहचाने गये व्यक्तियों की दोषसिद्धि भले ही उनकी संख्या पाँच से कम हो, विधि-विरुद्ध नहीं होगी।

लूट और डकैती में क्या अन्तर है ?

(1) डकैती का प्रत्येक अपराध मूलतः लूट का मामला होता है किन्तु लूट का अपराध डकैती नहीं होता।

(2) डकैती में भाग लेने वालों की संख्या पाँच या पाँच से अधिक होनी चाहिये किन्तु लूट में इनकी संख्या सदैव पाँच से कम हुआ करती है क्योंकि पाँच या अधिक व्यक्तियों द्वारा ही डकैती का अपराध कारित होता है।

डकैती के लिए कितना दण्ड है ? – 

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 395 मे डकैती के लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है  जो कोई डकैती करेगा, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

केस –रामलखन बनाम उतर प्रदेश राज्य (1983)-

एक डकैती में 9 व्यक्तियों ने भाग लिया था जिसमें से पाँच को छोड़ दिया गया तथा शेष 4 को सत्र ‘न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि प्रदान की गयी। उच्च न्यायालय ने 4 में से 3 को उन्मुक्त कर दिया केवल एक को दण्डित किया। ऐसी स्थिति में एक व्यक्ति की दोषसिद्धि न्यायोचित नहीं कही जा सकती, क्योंकि डकैती में कम से कम 5 व्यक्तियों की आवश्यकता पड़ती है।

केस –राजस्थान बनाम सुखपाल सिंह तथा अन्य (1983)-

प्रतिवादी ने छः अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुर को लूटा था। बैंक लूटने के वाद में एक नीली अम्बेसडर कार से भागे जो रास्ते में दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। उस स्थान पर पुलिस से उनका मुकाबला हुआ तथा पर्याप्त लुका छिपी तथा भागदौड़ के बाद पुलिस उन्हें पकड़ने में सफल हो गयी। सत्र न्यायालय ने उन्हें डकैती के अपराध का दोषी पाया तथा इस धारा के अन्तर्गत दण्डित किया परन्तु उच्च न्यायालय ने उन्हें निर्दोष किया। अपील में उच्चतम न्यायालय ने उन्हें पुनः डकैती के अपराध के लिये दण्डित किया परन्तु इस धारा के अन्तर्गत दण्डित करने के बजाय प्रत्येक को उनके सामाजिक स्तर एवं भविष्य की सम्भावनाओं को ध्यान में रखकर 3000 रुपये के जुर्माने से दण्डित किया।

केस -प्रवीन बनाम म० प्र० राज्य (2008)-

इस वाद में दिन-दहाड़े डकैती कारित की गई थी। बैंक के मैनेजर ने अभियुक्तों में से एक को पहचाना जिसकी बैंक के एक अन्य कर्मचारी ने भी पुष्टि की। यह अभिनिर्धारित किया गया कि पहचान करने में तमाम कमियों के बावजूद विशेष तथ्यों के आधार पर साक्ष्य मान्य माना जायेगा। पहचान परेड कराने में आरोपित विलम्ब का कोई महत्व नहीं था। अभियुक्त के पास से 40,000 रुपये (चालीस हजार रुपये मात्र) की धनराशि बैंक स्लिपें और अन्य अभिलेख भी बरामद हुआ था। अतएव यह अभिनिर्धारित किया गया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के अन्तर्गत उपधारणा की जा सकती है। आगे यह भी कि अभियुक्त के पास से मिला बैंक के अधिकारी का झोला जिसमे उसके प्राइवेट अभिलेख थे अत्यन्त महत्वपूर्ण था। अतएव इन तथ्यों और परिस्थितियों के आलोक में यह निष्कर्ष कि अभियुक्त डकैती अपराध का दोषी था हस्तक्षेप करने योग्य नहीं है।

केस –लछमन राम इत्यादि बनाम उड़ीसा राज्य (1985)-

डकैती के अपराध के लिये अभियुक्तों को एक प्रकार के दण्ड से दण्डित किया जाता है। जहाँ किसी डकैती के वाद में कुछ अभियुक्तों को 10 वर्ष के कठोर कारावास के दण्ड से दण्डित किया जाता है और कुछ अन्य को 8 वर्ष के कारावास के दण्ड से और ऐसा विभेद करने का कोई कारण नहीं बताया जाता है, ऐसी स्थिति में निर्णय को रद्द कर दिया जाएगा और उन्हें समरूप दण्ड से दण्डित किया जायेगा।

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 396- हत्या सहित डकैती

यदि ऐसे पांच या अधिक व्यक्तियों में से, जो संयुक्त होकर डकैती कर रहे हों| कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देगा, तो उन व्यक्तियों में से हर व्यक्ति मृत्यु से, या आजीवन करावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

हत्या सहित डकैती इस धारा के अन्तर्गत प्रत्येक भागीदार के लिये एक जैसे दायित्व का सृजन करती है। 

अवयव-

  • अभियुक्तों ने अपने संयुक्त कार्य द्वारा डकैती किया हो,
  • हत्या डकैती करने के दौरान की गई हो।

यदि पाँच या अधिक व्यक्तियों में से जो संयुक्त होकर डकैती कर रहे हों, कोई एक व्यक्ति इस प्रकार डकैती करने में हत्या कर देता है तो उस समूह का प्रत्येक व्यक्ति हत्या के लिये उत्तरदायी होगा। एक जैसे उत्तरदायित्व के लिये हत्या स्थल पर सभी अभियुक्तों की उपस्थिति आवश्यक नहीं है। ख के मकान में पाँच डकैतों के एक समूह ने धावा बोल दिया। उनमें से एक के पास बन्दूक थी। लूट करने के पश्चात जबकि डाकू  लूट में प्राप्त सम्पत्ति के साथ भाग रहे थे| एक ग्रामवासी को मार डाले तथा दूसरे को घातक रूप में घायल कर दिये जिसकी बाद में मृत्यु हो गयी। यह अभिनिर्णीत हुआ कि यह हत्या सहित डकैती का मामला है और उस समूह का प्रत्येक व्यक्ति हत्या सहित डकैती का अपराधी है।

केस – ओम प्रकाश तथा अन्य बनाम उतर प्रदेश राज्य (1983)

अभियुक्त तथा मृतक के बीच दुश्मनी थी। अभियक्त ने अपने साथियों के साथ एक चाँदनी रात्रि में मृतक  के घर में डकैती डाला। डकैती के समय घर में एक लालटेन जल रही थी। डकैती के दौरान मृतक मारा गया| उसकी पत्नी तथा साला गम्भीर रूप में घायल हुये थे। डकैती में आभूषण, नकद रुपये तथा कपड़े जिसकी कीमत लगभग 2700 रुपये आंकी गयी थी डकैत उठा ले गये थे। डकैतों ने एक ग्रामवासी को भी घायल कर दिया था। चाँदनी रात तथा लालटेन की रोशनी में डकैतों को मृतक की पत्नी तथा उसके साले ने पहचान लिया था। इन परिस्थितियों में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्णीत किया कि धारा 396 के अन्तर्गत प्रदान की गयी दोषसिद्धि वैध है क्योंकि सभी युक्तियुक्त सन्देहों के परे मामले को सिद्ध कर दिया गया था।

जहाँ अभियुक्तों ने पूर्व नियोजित डकैती किया था तथा दो व्यक्तियों की क्रूरतापूर्वक हत्या कर उनके शरीर को दफना दिया था जिससे हत्या के साक्ष्य समाप्त हो जायें वहाँ मृत्यु की सजा को कम नहीं किया जा सकता है।

केस:- उ० प्र० राज्य बनाम सुखपाल सिंह एवं अन्य (2009)

इस वाद में अभियुक्तगणों ने परिसर में प्रवेश किया, लाइसेंसी बन्दूक और अन्य वस्तुयें लूट लिया ओर दो लोगों की मृत्यु कारित कर दी और अन्य को चोटें कारित किया। सभी अभियोजन साक्षियों ने यह कथन किया कि वे अभियुक्तगणों को जानते थे और वे उनके लिये अजनबी नहीं थे। चन्द्रमा की तथा लालटेन की रोशनी में उन्हें भलीभांति पहचान लिये। अतएव यह अभिनिर्धारित किया गया कि पहचान परेड कराने की आवश्यकता नहीं थी। अतएव अभिलेख पर उपलब्ध समस्त साक्ष्य को गलत अर्थ लगाकर और पहचान परेड न कराने के आधार पर उच्च न्यायालय द्वारा अभियुक्तगणों को दोषमुक्त करना निरस्त करने योग्य था और विचारण न्यायालय का भारतीय दण्ड संहिता की धारा 396 के अधीन दोषसिद्धि का निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनः स्थापित किया गया।

केस – कालिका तिवारी बनाम स्टेट ऑफ बिहार(1997)-

इस  वाद में सौफुल्ला देवी का विवाह जगनारायण के साथ हुआ था। उसके दो पुत्र और तीन पुत्रियाँ थीं। बड़े पुत्र गौरीशंकर का विवाह हो गया था और छोटा केशवराय भी विवाह योग्य उम्र का हो गया था। जब उसके पुत्र शैशवावस्था में थे तो उस अवधि में सौफुल्ला देवी की सम्पत्ति की देखभाल उसके भाई इन्द्र देव राय (अभियुक्त 4) द्वारा की जाती थी। परन्तु जब उसके पुत्रगण परिपक्व हो गये तो वे जिस प्रकार से उसकी सम्पत्ति के साथ संव्यवहार किया जा रहा था, उससे प्रसन्न नहीं थे। घटना के कुछ दिन पूर्व इन्द्रदेव राय के पुत्र रमा शंकर राय (अभियुक्त-1) का गौरी शंकर से कुछ विवाद हो गया। घटना के दिन हरिनारायण नामक व्यक्ति सौफिल्ला देवी के घर उसके छोटे पुत्र केशव राय की शादी का प्रस्ताव लेकर आया था। शाम को भोजनोपरान्त जब घर के लोग आराम करने गये तो बन्दूक तथा अन्य घातक शस्त्रों से सुसज्जित डकैत वहाँ आ गये। रमा शंकर राय (अभियुक्त 1) ने सौफुल्ला देवी से तिजोरी की चाभी देने को कहा। डकैतों ने नकदी और जेवरात लूट लिये उसके बाद उन लोगों ने उस कमरे का दरवाजा जहाँ महिलायें बैठी थीं बाहर से बन्द कर दिया और तत्पश्चात् गौरीशंकर राय, केशव राय और उसके मेहमान हरिनारायण की गोली मार कर हत्या कर दी। उसके बाद वे सब लूटी हुई सम्पत्ति के साथ वहाँ से चले गये। कुल 14 लोगों के विरुद्ध आरोप लगाये गये परन्तु विचारण न्यायालय ने केवल 12 लोगों को धारा 302 के बजाय धारा 396/120-ख के अधीन दोष सिद्ध किया।

परन्तु उच्च न्यायालय ने उनकी धारा 396/120-ख के अधीन दोषसिद्धि की पुष्टि किया और उसके अतिरिक्त उन्हें धारा 302 सपठित धारा 34 भा० द० संहिता के अधीन भी दोष सिद्ध कर दिया। ग्यारह लोगों ने उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील किया। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्णीत किया कि यदि कोई डकैत डकैती कारित करने के दौरान हत्या भी कर देता है तो उसके सभी साथी जो उस डकैती में भाग ले रहे होते हैं वे भारतीय दण्ड संहिता की धारा 396 के अधीन दोषसिद्ध किये जा सकते हैं चाहे वे लूट में भाग लेने के अतिरिक्त हत्या करने में भागीदार नहीं भी रहे हों। यह आवश्यक नहीं है कि उन सबका अथवा कुछ का अभिप्राय हत्या करना रहा हो, जबकि डकैती की योजना बनाई गई थी। यह भी आवश्यक नहीं है कि उन सबने वास्तव में उसमें भाग लिया हो अथवा उस अपराध को कारित करने के लिए दुष्प्रेरित किया हो।

वास्तव में उनका हत्या के स्थान पर उपस्थित होना भी आवश्यक नहीं है अथवा उन्हें इस बात का ज्ञान भी नहीं था कि हत्या कारित किया जाना है अथवा वास्तव में कारित किया गया है। तथापि वे सभी बढ़े हुये दण्ड के लिये दायित्वाधीन होंगे बशर्ते कि डकैती के दौरान उस गैंग के किसी सदस्य द्वारा किसी व्यक्ति की हत्या कारित की गई हो। ऐसे मामलों में अभियोजन द्वारा धारा 34 के अधीन सामान्य आशय अथवा धारा 149 के अधीन आशयित सामान्य उद्देश्य का विद्यमान होना सिद्ध किया जाना आवश्यक नहीं है।

उपरोक्त मामले में अपीलांट के वकील द्वारा यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि कमरे के अन्दर मिट्टी की चिमनी जल रही थी जो रोशीन सौफुल्ला देवी द्वारा अपराधियों को पहचानने के लिये बहुत ही कम थी। इस सम्बन्ध में यह अभिनिर्णीत किया गया कि ग्रामवासियों के लिये इस कम रोशनी में अभियुक्तगणों को पहचानने में कोई समस्या नहीं होगी विशेषकर तब जब कि डकैतों में से कई उनके सगे सम्बन्धी हों। दूसरे शहरी लोगों की रोशनी में देखने की क्षमता चूंकि वे तेज रोशनी के अभ्यस्त होते हैं दूसरे प्रकार की होती है। और वही मानदंड ग्रामवासियों के सम्बन्ध में लागू नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे गाँव के दीपक की रोशनी के अभ्यस्त रहते हैं।

गाँव के लोग उस रोशनी के अभ्यस्त हो चुके रहते हैं अतएव उन्हें ऐसी रोशनी में किसी चीज या व्यक्ति को पहचानने में कोई कठिनाई नहीं होती है। शहर के लोग उस रोशनी में भले न पहचान सकें परन्तु ग्रामवासियों द्वारा उस कम रोशनी में भी लोगों का पहचान लेना सम्भव है।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 397- मृत्यु या घोर उपहति कारित करने के प्रयत्न के साथ लूट या डकैती

यदि लूट या डकैती करते समय अपराधी किसी घातक आयुध का उपयोग करेगा, या किसी व्यक्ति को घोर उपहति कारित करेगा, या किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने या उसे घोर उपहति कारित करने का प्रयत्न करेगा, तो वह कारावास, जिससे ऐसा अपराधी दण्डित किया जाएगा, सात वर्ष से कम का नहीं होगा।

केस – हनीमन (1900) –

इस प्रकरण में एक व्यक्ति एक खच्चर को चुराने के आशय से उस पर सवार था। अभियक्त ने लाठी से उस पर एक या दो बार प्रहार किया जिससे सवार की एक बाँह टूट गई और जब जमीन पर गिर पड़ा, तत्पश्चात् अभियुक्त उस खच्चर पर सवार होकर भागना चाहा परन्त खच्चर की जीन टट जाने के कारण वह ऐसा न कर सका। यह अभिनिणीत हुआ कि अभियुक्त इस धारा में वर्णित अपराध का दोषी है।

केस:- मुकुन्द बनाम स्टेट आफ मध्य प्रदेश(1997)-

इस वाद में अनुज दुबे, उसकी पत्नी सरिता, पुत्री ज्योति तथा पुत्र दीपक विलासपुर पंचवटी कालोनी में रह रहे थे। घटना के दिन श्री दुबे अपने कारोबार के सम्बन्ध में सम्बई गई थे। अपीलांट/अभियुक्त मुकुन्द अनुज प्रसाद के चचेरे भाई सन्तोष दुबे का दामाद था। घटना क लगभग 7 या 8 माह पूर्व मुकुन्द ने अनुज प्रसाद से 10000 (दस हजार) रुपये का ऋण लिया था। इस ऋण का कुछ समय के बाद भुगतान कर दिया गया था।

परन्तु उसके शीघ्र ही बाद अभियुक्त ने कर्ज के लिये फिर मांग करना शुरू कर दिया था जिसे देने से उसने मना कर दिया था। 17 जनवरी, 1994 की शाम को अनुज दुबे की एक पड़ोसी शैलजा उसके घर गयी थी और सरिता के साथ एक प्याला चाय पीने के पश्चात् वह चली गई और कम्पाउण्ड के दरवाजे में सरिता ने सदा की भाँति ताला बन्द कर दिया। 18 जनवरी, 1994 को दोपहर लगभग 12 बजे शैलजा ने एक चूडी विक्रेता को कुछ चूड़ियाँ खरीदने हेतु बुलाया और इस आशा में कि सरिता को भी चूड़ियाँ खरीदने में दिलचस्पी होगी सरिता को बुलाने हेतु अपनी लड़की को भेजा। यह सूचित किये जाने पर कि सरिता नहीं मिली शैलजा खुद उसके घर गई और उसने सरिता को अपने सोने वाले कमरे में हाथ और बंधे हुये मृत अवस्था में फर्श पर पड़ा हुआ पाया।

दोनों बच्चे बिस्तर पर मरे पड़े हुये थे। उसने घर के सामान को तितर बितर तथा स्टील की आलमारी खुली हुई पाया। शैलजा ने अन्य पड़ोसियों को भी इसकी सूचना दी। उनमें से एक डॉ० अवधेश सिंह ने पुलिस को सूचना दे दी और बम्बई में अनुज प्रसाद को भी इस घटना की सूचना दिया। दोनों अभियुक्त/अपीलांट को गिरफ्तार किया गया और उनकी सूचना के आधार पर बहुत सा सामान तथा हत्या में प्रयुक्त खून में सनी कटार (dagger) बरामद किया गया। यह पाया गया कि दुबे का सम्बन्धी होने के नाते अभियुक्त उसके घर बहुधा यहाँ तक कि उसकी अनुपस्थिति में भी जाया करता था। दूसरे पड़ोसियों के साक्ष्य से यह स्पष्ट रूप से सिद्ध था कि अपनी सुरक्षा के प्रति सचेत रहने के कारण सरिता के कम्पाउण्ड की दीवाल के चैनल गेट में प्रतिदिन रात्रि में काफी जल्दी ताला बन्द कर दिया जाता था और ताला तभी खोला जाता था जब वह इस बात से संतुष्ट हो जाती थी कि प्रवेश का इच्छुक व्यक्ति उसका परिचित है। इसके अतिरिक्त कई अन्य पारिस्थितिक साक्ष्य भी उपलब्ध थे। दोनों ही अभियुक्तों की दुर्घटना स्थल पर उपस्थिति सिद्ध कर दी गई थी।

अभियुक्तगणों के विरुद्ध परिवादकर्ता के घर में अतिचार करने का आरोप था। अपीलांट लोगों को धारा 397 तथा धारा 302 सपठित धारा 34 भारतीय दण्ड संहिता के अन्तर्गत हत्या के साथ डकैती करने के लिये दोषी पाया गया। यह अभिनिर्णीत किया गया कि यदि अभियोजन पक्ष सफलता पूर्वक यह सिद्ध कर देता है कि लूट और हत्या के अपराध एक ही संव्यवहार के दौरान कारित किये गये थे तथा उसके तत्काल बाद सम्पत्ति भी बरामद की गई तो न्यायालय इस आशय का निष्कर्ष निकाल सकता है कि वह व्यक्ति जिसके पास से लूट का माल बरामद होता है उसने न केवल लूट कारित किया है वरन् हत्या भी कारित किया है। साथ ही यदि लूट की सम्पत्ति का बंटवारा भी सिद्ध कर दिया जाता है जैसा कि इस मामले में स्पष्ट है, तो दोनों ही अभियुक्तों को अपराध कारित करने में सयुक्त भागीदारी सिद्ध माना जाता है। अतएव दोनों ही अभियुक्तों की दोषसिद्धि को उचित अभिनिर्णीत किया गया!

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 398 – घातक आयुध से सज्जित होकर लूट या डकैती करने का प्रयत्न 

यदि लूट या डकैती करने का प्रयत्न करते समय, अपराधी किसी घातक आयुध से सज्जित होगा. तो वह कारावास, जिससे ऐसा अपराधी दण्डित किया जाएगा, सात वर्ष से कम का नहीं होगा।

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 399- डकैती करने के लिए तैयारी करना

जो कोई डकैती करने के लिए कोई तैयारी करेगा. वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा. और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

जो कोई डकैती के लिये कोई तैयारी करता है वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डित किया जायेगा। तीन मामलों में तैयारी को दण्डनीय बनाया गया है 

(1)  भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से तैयारी करना (धारा 122),

(2)   भारत सरकार के साथ शान्ति का सम्बन्ध रखने वाली शक्ति के राज्य क्षेत्र में लूटपाट करने की तैयारी करना  (धारा126),

(3)  डकैती करने की तैयारी (धारा 399)।

प्रचलित अर्थों में डकैती करने के लिये मात्र एकत्रित होना ही तैयारी है। किन्तु केवल एकत्र होना बिना किसी अन्य तैयारी के इस धारा के अन्तर्गत तैयारी नहीं है। डकैती करने के लिये मात्र एकत्र होना ही बिना तैयारी के सबूत के धारा 402 के अन्तर्गत दण्डनीय बनाया गया है।

केस –जैन लाल (1942)-

कोई व्यक्ति डकैती डालने का अपराधी न होते हुये भी डकैती डालने की तैयारी का अपराधी हो सकता है। इसी प्रकार डकैती करने की तैयारी का दोषी न होते हुये भी डाका डालने के लिये एकत्र होने का दोषी हो सकता है।

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 400 – डाकुओं की टोली का होने के लिए दण्ड

जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी भी समय ऐसे व्यक्तियों की टोली का होगा, जो अभ्यासतः डकैती करने के प्रयोजन से सहयुक्त हों, वह आजीवन कारावास से, या कठिन कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

इस धारा के अन्तर्गत उन व्यक्तियों को दण्डित किया गया है जो अभ्यासतः डकैती डालने वाले समूह से सहयुक्त होते हैं। इस धारा का उद्देश्य डाकुओं के समूह को नष्ट करना है

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी)  की धारा 401- चोरों की टोली का होने के लिए दण्ड

जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी भी समय ऐसे व्यक्तियों की किसी घूमती-फिरती या अन्य टोली का होगा, जो अभ्यासत: चोरी या लूट करने के प्रयोजन से सहयुक्त हों और वह टोली ठगों या डाकुओं की टोली न हो, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

भारतीय दण्ड संहिता (आईपीसी) की धारा 402-डकैती करने के प्रयोजन से एकत्रित होना 

जो कोई इस अधिनियम के पारित होने के पश्चात् किसी भी समय डकैती करने के प्रयोजन से एकत्रित पांच या अधिक व्यक्तियों में से एक होगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

सन्दर्भ :

  1. भारतीय दण्ड संहिता – प्रो. सूर्य नारायण मिश्रा
  2. भारतीय दण्ड संहिता – डॉ. शेलेन्द्र कुमार अवस्थी
  3. Dacoity- wikipedia

 

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“यह आर्टिकल  Adv. Rajesh Kumar Patel  के द्वारा लिखा गया है|