दान क्या है?- किसी वस्तु का स्वेच्छा से मुफ्त अंतरण दान है। दान स्वतंत्र सहमति से दिया जाना चाहिए। दान के संबंध में प्रावधान संपत्ति अंतरण अधिनियम,1882 के अध्याय 7 में धारा 122 से 129 तक किया गया है | दान चल व अचल दोनों संपत्ति में लागू होता है तथा दान देने वाला दात़ा(Donor) और लेने वाला आदाता(Donee) कहलाता है। इसकी रजिस्ट्री अनिवार्य है यदि संपत्ति अचल है।
दान की परिभाषा क्या है?
दान को संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 122 में परिभाषित किया गया है। धारा 122 के अनुसार “दान” किसी वर्तमान जंगम या स्थावर संपत्ति का वह अंतरण है, जो एक व्यक्ति द्वारा जो दाता कहलाता है, दूसरे व्यक्ति को, जो आदाता कहलाता है, स्वेच्छया और प्रतिफल के बिना किया गया हो और आदाता द्वारा या की ओर से प्रतिगृहीत किया गया हो।
दान प्रतिग्रहण कब करना होगा? -ऐसा प्रतिग्रहण दाता के जीवन काल में और जब तक वह देने के लिए समर्थ हो, करना होगा। यदि प्रतिग्रहण करने से पहले आदाता की मृत्यु हो जाती है तो दान शून्य हो जाता है।
दान कितने प्रकार से किया जा सकता है? (Types of Gift) –
दान तीन प्रकार का हो सकता है-
- जीवित दाता द्वारा जीवित आदाता को दान,
- मृत्यु-शैय्या पर मृत्यु की आशंका में किया गया दान,
- वसीयत द्वारा दान या दुर्भर दान( धारा 127)
मृत्यु-शैय्या पर दिए गये दान एवं वसीयती दान के मामलों में सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम लागू नहीं होता। संपत्ति अंतरण अधिनियम केवल जीवित व्यक्तियों को ही मान्यता देता है।
केस:-के. बालाकृष्णन बनाम के.कमालम(ए आई आर 2004 सुप्रीम कोर्ट 1257)
इस मामले में न्यायालय ने कहा कि दुर्भरदान में अवयस्क व्यक्ति वयस्कता की आयु के पूर्व किसी तरह के दायित्वों से वाधित नहीं होता।
दान की विशेषताएं:-
- संपत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत दान चल तथा अचल दोनों सम्पत्तियों के विषय में लागू होती है।
- दान में प्रतिफल की अनुपस्थिति, पक्षकार, संपत्ति ,अंतरण एवं स्वीकृति अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
- अधिनियम के दान सम्बन्धी सिद्धान्त मुस्लिम विधि के अन्तर्गत होने वाले दान संव्यवहारों में उस स्थिति में नहीं लागू होंगे जबकि इस अधिनियम एवं मुस्लिम विधि में अंतर हो। हिन्दू एवं बौद्धों पर यह अधिनियम लागू है।
- वसीयत द्वारा किए जाने वाले दान एवं मृत्यु -शैय्या पर होने वाले दान संपत्ति अंतरण अधिनियम से बाहर है।
- सामान्यता दान अखंडनीय होता है।जब तक कि इस आशय का कोई करार न हो या शून्यकरणी तथ्य न हो। दान के विखंडन की अवधि अधिकतम 3 वर्ष है।
दान के आवश्यक तत्व(essential elements of gift):-
एक वैध दान के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं:
1. प्रतिफल की अनुपस्थिति (Absence of consideration)
2. स्वेच्छा(Voluntarily)
3.पक्षकार (Parties)
4. अंतरण(Transfer)
5. आदाता की स्वीकृति (Acceptance)
6. पंजीकरण (Registration)
7. विषय वस्तु
1. प्रतिफल की अनुपस्थिति (Absence of consideration):- एक वैध दान के लिए यह आवश्यक है कि उसमें प्रतिफल का अभाव हो। प्रतिफल को संविदा अधिनियम में परिभाषित किया गया है। प्रतिफल का अर्थ वही है जो संविदा अधिनियम की धारा2(d) एवं धारा 25 में है।
जैसे– अ ने ब को अपना मकान इसलिए दान कर दिया क्योंकि ब ने अंत समय में उसकी सेवा की थी, दान वैध है।
2. स्वेच्छा(Voluntarily):- दान दाता की स्वेच्छा से दिया गया हो न की किसी के दबाव में आकर। यदि कोई व्यक्ति अपनी चल या अचल स्थावर सम्पति का दान किसी जोर, दबाव,छल या कपट में आकर या धोखा देने की नियत से करता है, तो वह दान एक शून्य दान होगा।
3.पक्षकार (Parties) :- दान में दो पक्षकारों का होना आवश्यक होता है। जो पक्ष संपत्ति देता है उसे दाता कहा जाता है, जो पक्ष संपत्ति लेता है उसे आदाता कहा जाता है।
1. दाता कौन हो सकता है?
- दाता बालिग हो,
- दाता को स्वस्थ मस्तिष्क वाला होना चाहिए,
- दाता किसी प्रकार की अक्षमता का शिकार न हो। जैसे- दिवालिया आदि न हो।
- दाता को दान दी जाने वाली सम्पत्ति का स्वामी होना चाहिए या सम्पत्ति के असली स्वामी से दान करने की आशा रखता हो। दान के समय दाता को जीवित होना चाहिए।
2. आदाता कौन हो सकता है?
- आदाता जीवित व्यक्ति होना चाहिए।
- आदाता को स्वीकृति देने में सक्षम होना आवश्यक है, जब तक कि उसकी ओर से कोई स्वीकृति देने वाला नहीं हो। स्वीकृति दाता के जीवन काल में ही संपन्न होनी चाहिए।
- दान की तिथि पर आदाता का होना अनिवार्य है।
4. अंतरण(Transfer) :- दान चल या अचल संपत्ति के स्वामित्व का अंतरण है। दान की जाने वाली सम्पति दान लेने वाले व्यक्ति के नाम सम्पूर्ण अधिकारों को अंतरित कर दे।
5. आदाता की स्वीकृति (Acceptance):- दान जबरदस्ती नहीं दिया जाता, जिसे दान दिया जा रहा है उसकी स्वीकृति आवश्यक होती है। किंतु यह स्वीकृति दाता के जीवन काल में ही हो जानी चाहिए। दाता की मृत्यु के बाद दी जाने वाली स्वीकृति से दान शून्य घोषित कर दिया जाता है। आदाता के द्वारा स्वीकृति अभिव्यक्त तथा विवक्षित दोनों प्रकार से दी जा सकती है।
6. पंजीकरण (Registration):- अचल संपत्ति का दान लिखित, हस्ताक्षरित एवं पंजीकृत होना चाहिए। चल संपत्ति का दान बिना रजिस्ट्री के भी कब्जा देकर संभव है।
केस:- हरदेई बनाम रामलाल
पंजीकरण दाता या आदाता या दोनों की मृत्यु के बाद भी संभव है।
केस:- गोमती बाई बनाम मिट्ठू लाल (1996)एस.सी.सी.681
इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि दान के प्रपत्र का पंजीयन अति आवश्यक है।
7. विषय वस्तु: – दान की विषय वस्तु ऐसी चल या अचल स्थावर सम्पति हो सकती है जो की निश्चित हो और ऐसी सम्पत्ति का अस्तित्व में होना आवश्यक है। दान में दी जाने वाली सम्पत्ति का वर्तमान में अस्तित्व होना जरुरी है भावी सम्पत्ति का दान शून्य होगा।
दान का अंतरण कैसे किया जाता है?(transfer how affected) :- धारा 123 के अनुसार,
- स्थावर संपत्ति के दान के प्रयोजन के लिए वह अंतरण दाता द्वारा या उसकी ओर से हस्ताक्षरित और कम से कम दो साक्षियों द्वारा अनुप्रमाणित रजिस्ट्रीकृत लेखक द्वारा करना होगा।
- जंगम संपत्ति के दान के प्रयोजन के लिए अंतरण या तो यथा पूर्वोक्त प्रकार से हस्ताक्षरित रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा या परिदान द्वारा, किया जा सकेगा।
- ऐसा परिदान उसी प्रकार से किया जा सकेगा जैसे बेचा हुआ माल परिदत्त किया जा सकता हो।
केस:- एम० सी० डिसूजा व अन्य बनाम आर. फर्नांडीज एवं अन्य AIR 1998 केरल, 280
इस वाद में यह कहा गया कि दान एक विलेख पर होता है जिसमें दो प्रमाणन साक्षीगण की अपेक्षा होती है। जहाँ ऐसा कोई सबूत नहीं होता है कि विवादित दान विलेख दो साक्षीगण द्वारा अभिप्रमाणित था, वहाँ दान अवैध होता है।
केस:-ब्रजलाल बनाम सेवक राम (1999) एस.सी
इस मामले में यह कहा गया कि यदि कोई दान पत्र पंजीकृत और अनुप्रमाणित है तो उसे सही दान पत्रक माना जाएगा भले ही दाता ने कब्जा न किया हो।
वर्तमान और भावी सम्पत्ति का दान(gift of existing and future property):
धारा 124 के अनुसार भावी संपत्ति के विषय में किया गया दान शून्य होगा।
ऐसे कई व्यक्तियों को दान, जिसमें से एक प्रतिगहीत नहीं करता है:- धारा 125 के अनुसार ऐसे दो या अधिक आदाताओं को किसी चीज का दान, जिनमें से एक उसे प्रतिगृहीत नहीं करता है, उस हित के सम्बन्ध में शून्य है जिसे यदि वह प्रतिगृहीत करता, तो वह लेता।
दान निलंबित या प्रतिसंहृत कब किया जा सकेगा:-
धारा 126 के अनुसार प्रतिसंहरण दो तरीके से हो सकता है-
1. करार द्वारा- कोई भी दान दाता की इच्छा पर निर्भर नहीं होता है यदि दाता की इच्छा पर निर्भर होता है तो वह करार या दान शून्य होगा।
2. विखंडन के द्वारा,-जिन शर्तों पर हम संविदा को भंग करते हैं उन्ही शर्तों पर दान को विखंडित करवा सकते हैं।
जैसे- दान अनुचित दबाव में, कपट या मिथ्या व्यपदेशन (Misinterpretation) या भूल की स्थिति में किया गया हो तो वह दान खण्डित किया जा सकेगा।
दृष्टांत :- ख को क एक लाख रुपया, ख की अनुमति से अपना यह अधिकार आरक्षित करते हुए देता है कि वह उन लाख रुपयों में से, 10,000 रुपए जब जी चाहे वापस ले सकेगा। 90,000 रुपयों के बारे में दान वैध है, किन्तु 10,000 रुपयों के बारे में, जो क के ही बने रहते हैं, शून्य है।
दुर्भर दान क्या है?(Onerous gift):-
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 127 में दुर्भर दान से संबंधित प्रावधान है । जहां कि दान, एक ही व्यक्ति को ऐसी कई चीजों के एकल अन्तरण के रूप में है जिनमें से एक पर बाध्यता का बोझ है और अन्यों पर नहीं है, वहां आदाता उस दान द्वारा कुछ नहीं पा सकता जब तक कि वह उसे पूर्णतः प्रतिगृहीत नहीं करता। जहां कि कोई दान कई चीजों के एक ही व्यक्ति को दो या अधिक प्रथक और स्वतंत्र अंतरणों के रूप में है। वहां आदाता उनमें से एक को प्रतिग्रहीत करने के लिए और अन्यों को लेने से इनकार करने के लिए स्वतंत्र है,चाहे पूर्वकथित फायदाप्रद हो और पश्चातकथित दुर्भर हो।
यह सिद्धांत साम्या के सिद्धांत पर आधारित होने के कारण हिंदू एवं मुस्लिम दोनों पर लागू होगा। इसका आधार भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 122 में स्वीकृत नियम भी है, जिसका संबंध वस्तुतः वसीयत दान से है। दुर्भर दान का यह स्वरूप चयन सिद्धांत से काफी मिलता है। इसके अंतर्गत यदि कोई दाता किसी आदाता को ऐसी संपत्ति दान में दिया हो जिस पर कुछ आभार भी हो तथा इससे लाभ भी हो तो भारयुक्त ऐसी स्थिति या उपलब्धि दुर्भर दान कहीं जाती है। इसमें दान को स्वीकार करने का अर्थ भार को भी स्वीकार करना होगा। दान को अस्वीकार करने पर दुर्भर दान शून्य होगा।
दृष्टांत– ‘क’ ऐसे ग्रह का पट्टा ‘ख’ को देता है जो कुछ वर्षों की अवधि के लिए पट्टे पर उस द्वारा ऐसे भाटक पर लिया हुआ है, जिस भाटक को अवधि भर तक देने के लिए वह और उसके प्रतिनिधि आबध्य हैं, और जो उतने से अधिक है जितने पर कि ग्रह पट्टे पर चढ़ाया जा सकता है, और एक पृथक और स्वतंत्र संव्यवहार के रूप में उसे एक धनराशि भी देता है। ‘ख’ पट्टे को प्रतिगृहीत करने से इनकार करता है। इस इंकार के कारण उसे धन का समपहरण नहीं हो जाता।
दुर्भर दान की स्वीकृति-
केस- सर्व मोहन बनाम मनमोहन(ए आई आर 1933 कलकत्ता 488)
इस मामले में कहा गया कि दुर्भर दान को स्वीकार करने के लिए स्वीकृति ही अपने आप में पर्याप्त है उसी समय दुर्भर दान की शर्तों को स्वीकार करना आवश्यक है।
अवयस्क के लिए किया गया दुर्भर दान :-
केस:- के. बालकृष्णन बनाम के. कमलम, (ए आई आर 2004 एस.सी. 1257)
इस मामले में अभी निर्धारित किया गया कि अवयस्क व्यक्ति के पक्ष में दान किया जा सकता है। संपत्ति अंतरण अधिनियम में उस पर कोई रोक नहीं है यद्यपि अवयस्क संविदा करने के लिए अक्षम होता है।
सर्वस्व आदाता(Universal Donee):-
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 128 के अनुसार, जिस व्यक्ति को दाता अपनी पूरी संपत्ति दायित्वों सहित आदाता को दान में देता है, ऐसे दान को स्वीकार करने वाले व्यक्ति को ही सर्वस्व आदाता कहा जाता है। इस प्रकार से वह दाता का उत्तराधिकारी हो जाता है।
सर्वस्व आदाता हिंदू विधि की देन है। अंग्रेजी विधि में सर्वस्व आदाता की अवधारणा नहीं है। हिंदू विधि में वानप्रस्थ व सन्यास की अवधारणाएं सर्वस्व आदाता कि प्रेरक है। धारा 128 चल तथा अचल संपत्ति दोनों में लागू है।
केस:-श्याम बिहारी बनाम महाप्रसाद ( ए आई आर 1930) इलाहाबाद 180
इस मामले में यह कहा गया है कि सर्वस्व आदाता के लिए एक मुख्य शर्त यह है कि दान दानदाता की पूर्ण संपत्ति का होना चाहिए, भले ही यह चल तथा अचल संपत्ति हो। अगर संपत्ति का कोई भी हिस्सा दानग्रहीता को नहीं दिया जाता है तो वह सर्वस्व आदाता नहीं होगा।
आसन्मरण दान (धारा 129):-
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 129 में दो अपवाद दिये गये हैं, जिन पर धारा 122 से 128 तक की कोई व्यवस्था लागू नहीं होगी। ये अपवाद इस प्रकार हैं-
(i) आसन्न मरण दान,
(ii) मुस्लिम विधि में हिबा।
सन्दर्भ:-
- डॉ. जी .पी.त्रिपाठी- संपत्ति अंतरण अधिनियम
- vidhikdairy.com
- https://blog.ipleaders.in/concept-of-gift-under-the-transfer-of-property-act-1882/