निहित हित तथा समाश्रित हित में अंतर | Distinction between Vested and Contingent Interest in hindi
निहित हित की परिभाषा क्या है ?(Vested Interest):-
संपत्ति अंतरण अधिनियम,1882 की धारा 19 में निहित हित को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार –
जहाँ की किसी संपत्ति अंतरण व्यक्ति के पक्ष में उस संपत्ति में कोई हित , वह समय विनिर्दिष्ट किये बिना जब से वह प्रभावी होगा या शव्दों में यह विनिर्दिष्ट करते हुए की वह , तत्काल प्रभावी होगा या किसी घटना के घटित होने पर, जो अवश्यम्भावी है , प्रभावी होगा , स्पष्ट किया जाता है वहां जब तक की अन्सरन के नीवंधनों से प्रतिकूल आशय प्रतीत न होता है ऐसा हित निहित है स्पष्टीकरण केवल ऐसे उपवन्ध से , जिसके द्वारा हित का उपभोग मुल्तवी किया जाता है , या उसी संपत्ति में कोई पूर्विक हित किसी अन्य व्यक्ति के लिए दिया जाता है या आरक्षित किया जाता है | तब यह न समझा जायेगा की हित, निहित हित नहीं है |
आवश्यक तत्त्व :-
- संपत्ति अंतरण के साथ कोई निश्चित हित किसी व्यक्ति के पक्ष में स्रष्ट किया गया हो |
- वह हित कब प्रभावी होना है स्पष्ट प्रावधान हो या वह हित तुरंत प्रभावी होना चाहिए |
- हित का मिलना यदि किसी घटना पर आधारित है तो घटना निश्चित होना चाहिए |
केस -सुन्दर बीबी v/s लाल राजेंद्र नारायण सिंह, (1925 )
“निहित हित की सृष्टि होने पर अन्तरक का स्वामित्व अंतरती को अंतरित हो जाता है,यधपि सम्पत्ति का उपभोग रोका गया हो|”
निहित हित की प्रकृति:-
निहित हित की यह प्रकृति होती है कि यह तत्काल अधिकार प्रदान करता है अतः यदि अन्तरिति की मृत्यु कब्ज़ा प्राप्त करने के पहले भी हो जाये तो निहित हित विफल नहीं होता |
निहित हित के प्रकार :-
- कब्ज़ा सहित निहित हित |
- कब्ज़ा रहित निहित हित |
समाश्रित हित की परिभाषा क्या है ? (Contingent Interest):-
संपत्ति अंतरण अधिनियम,1882 की धारा 21 में समाश्रित हित को परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार –
जहाँ कि संपत्ति अंतरण से उस संपत्ति में किसी व्यक्ति के पक्ष में हित विनिर्दिष्ट अनिश्चित घटना के घटित होने पर ही अथवा किसी अनिश्चित विनिर्दिष्ट घटना के घटित न होने पर ही प्रभावी होने के लिए स्रष्ट किया गया हो , वहां ऐसा व्यक्ति द्वारा समाश्रित हित अर्जित करता है | ऐसा हित पूर्व कथित दशा में उस घटना के घटित होने पर तथा पश्चात् कथित दशा में उस घटना के घटित होना असंभव हो जाने पर निहित हित हो जाता है |
अपवाद: जहाँ की सम्पत्ति के अंतरण में कोई व्यक्ति किसी हित का हक़दार कोई विशेष आयु प्राप्त करने पर हो जाता है वहां यह निर्देश भी हों की उस संपत्ति से अद्भुत आय उसी व्यक्ति के फायदे के लिए संचय की जाएगी वहां वह हित समाश्रित हित नहीं होता है |
निहित हित तथा समाश्रित हित में अंतर ( Distinction between Vested and Contingent Interest)
निहित हित |
समाश्रित हित |
1. अंतरित संपत्ति के पाते ही निहित हित प्राप्त करता है | | 1. समाश्रित हित किसी घटना पर जो हो भी सकती है और नहीं भी , पर आश्रित होता है | |
2. निहित हित अंतरण योग्य होता है | | 2. समाश्रित हित अंतरण योग्य नहीं होता है | |
3. इसमें कब्ज़ा पाने से पहले अन्तरिति की मृत्यु से विफलता नहीं होती | | 3. यह विफल हो जाता है | |
4. निहित हित वंशानुगत होता है | | 4. यह वंशानुगत नहीं होता है | |
5. निहित हित को कुर्क किया जा सकता है | | 5. समाश्रित हित को कुर्क नहीं किया जा सकता है | |
6. यह उत्तराधिकार योग्य होता है | | 6. उत्तराधिकार संभावना पर आश्रित होता है | |
7. निहित हित समाश्रित हित में परिवर्तित नहीं होता | | 7. समाश्रित हित निहित हित में परिवर्तित हो सकता है। |
8. निहित हित धारा- 19 में प्रावधानित है | | 8. धारा 21 में समाश्रित हित को परिभाषित किया गया है |
9.निहित हित में वर्तमान में तत्काल अधिकार प्राप्त हो जाता है चाहे उपभोग का अधिकार स्थगित हो| | 9. समाश्रित हित मे ऐसा नहीं होता केवल अधिकार को किसी पूर्ववर्ती शर्त की पूर्ती होने पर देने की प्रतिज्ञा की जाती है | |