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प्रेस पर युक्तियुक्त निर्बंधन | Reasonable restrictions on the press in hindi

प्रेस पर युक्तियुक्त निर्बंधन | Reasonable restrictions on the press in hindi

प्रेस की स्वतंत्रता : – 

समाचार -पत्र , विचारों को अभिव्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। राजनीतिक स्वतंत्रता तथा प्रजातंत्र की सफलता के लिए प्रेस की स्वतंत्रता अपरिहार्य है।

जीवन के लोकतांत्रिक तरीकों को संरक्षित करने के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और बड़े पैमाने पर लोगों को अपने विचारों से अवगत कराने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। प्रेस जनसंचार का एक शक्तिशाली माध्यम है।

प्रेस की स्वतंत्रता वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आती है। लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक है क्योंकि प्रेस लोकतंत्र के तीनों अंगों पर प्रहरी के रूप में कार्य करता है विधायिका कार्यपालिका और न्यायपालिका लेकिन प्रेस की स्वतंत्रता प्रकृति में पूर्ण नहीं है यह कुछ प्रतिबंधों के अधीन है।

 अनुच्छेद 19 (1) () : –

संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) में प्रेस की स्वतंत्रता का विशेष रूप से उल्लेख नहीं किया गया है और जो उल्लेख किया गया है वह केवल भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।

डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान सभा में इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि प्रेस  को कोई ऐसे विशेष अधिकार नहीं प्राप्त है जो एक साधारण नागरिक को नहीं प्रदान किए जा सकते हैं उनके संपादक या मैनेजर समाचार पत्रों द्वारा ही अपने अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग करते हैं इसलिए संविधान में विशेष उपबंध की कोई आवश्यकता नहीं है।

उच्चतम न्यायालय ने सकल पेपर लिमिटेड बनाम भारत संघ [ AIR 1962 SC 305]  के मामले में यह निर्धारित किया की वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतंत्रता भी शामिल है क्योंकि समाचार पत्र विचारों को अभिव्यक्त करने के माध्यम मात्र ही हैं।

केस- रोमेश थापर  बना मद्रास राज्य और बृजभूषण बनाम दिल्ली राज्य [AIR 1950SC 124]   

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया कि प्रेस की स्वतंत्रता वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का एक अनिवार्य  हिस्सा थी।

 प्रेस पर युक्तियुक्त निर्बंधन  या प्रतिबंध : – 

किसी भी स्वतंत्रता की तरह प्रेस की स्वतंत्रता भी अत्यंतिक नहीं है।स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता नहीं हो सकता ।यदि प्रेस की स्वतंत्रता का प्रयोग इस तरह से किया जाए कि उससे समाज के अन्य व्यापक हितों को असहाय आघात पहुंचाता हो तो स्वतंत्र पर कुछ निरबंधन लगाए जा सकते हैं किंतु निरबंधन ना तो मनमाने तौर पर और ना ही आवश्यकता से अधिक परिणाम में लागू किए जा सकते हैं।

प्रेस की स्वतंत्रता और उस पर अत्यंत आवश्यक निरबंधन दोनों ही समाज और राष्ट्र के हित में है इसलिए हर मामले में दोनों को तराजू में तोल कर यह देखना होगा कि किसका पलड़ा भारी है। यह काम किसी निष्पक्ष प्राधिकरण द्वारा ही किया जाना चाहिए। ऐसा प्राधिकरण ना तो निरबंधन लगाने वाली सरकार खुद हो सकती है और ना ही स्वयं प्रेस। अतः यह काम या पालिका को सौंपा गया है न्यायालय को यह अधिकार है कि वह हर मामले में और हर बार विचार करके फैसला करें कि अमुक निरबंधन उचित है या नहीं।

किसी निरबंधन को वैध ठहराए जाने की पहली शर्त यह है कि वह उपयुक्त हो क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 19 दो के अनुसार मौलिक स्वतंत्रता पर केवल युक्तियुक्त निरबंधन ही लगाए जा सकते हैं ।युक्तियुक्ता की परिभाषा संविधान में नहीं दी गई है क्या युक्तियुक्त है और क्या नहीं इसका निर्णय स्पष्टतः न्यायालय पर छोड़ दिया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा युक्तियुक्तता  को परिभाषित गया है : –     

उच्चतम न्यायालय ने युक्ति युक्ति की जो कसौटी निर्धारित की है वह यह है जिस अधिकार के अतिक्रमण की बात कही गई हो उसका प्रकार ,लगाए गए निरबंधन का मूल उद्देश्य,  उसके द्वारा जिस बुराई को दूर करना वांछित हो उसका विस्तार और अत्यंतिकता, लगाई गई रोक का अनुपात और समकालीन परिस्थितियां इन सब को ध्यान में रखकर निर्णय  किया जाना चाहिए।

केस -मद्रास राज्य बनाम  वी.जी.राय के केस में यह बात बोली गई (AIR,1952SC 196) मे।

न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि युक्ति – युक्तता के परीक्षण  का कोई ऐसा संकेत मानक या व्यापक स्वरूप निर्धारित नहीं किया जा सकता है जो समस्त परिस्थितियों में उपयुक्त होगा ।हर मामले में इसे अलग से लागू करने की आवश्यकता होगी । निरबंधन ऐसा विनियमन नहीं होना चाहिए जो संबंध मूल अधिकार को ही  समाप्त कर दे।

युक्ति युक्तता ना केवल सारवान होना चाहिए बल्कि निरबंधन लगाने की प्रक्रिया भी युक्तियुक्त होना चाहिए।

उदाहरण – उच्चतम न्यायालय ने पंजाब विशेष शक्तियां (प्रेस ) अधिनियम, 1953 की धारा 3(1) को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि उससे कुछ समाचार पत्रों के पंजाब में प्रवेश पर रोक लगाई गई थी उसकी अधिकधिक  अवधि निर्धारित नहीं की गई थी।

प्रेस की स्वतंत्रता पर निर्बंधन  लगाए जाने के आधार : – 

प्रेस की स्वतंत्रता प्रकृति में पूर्ण नहीं है। यह कुछ प्रतिबंधों के अधीन है जो संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में उल्लेखित हैं अनुच्छेद 19(2) में दिए गए प्रतिबंधों के आधार निम्नलिखित है : –

1. भारत की संप्रभुता और अखंडता : –

इसको 1963 में 16 संशोधन से 19 दो में शामिल किया गया था। इसका उद्देश्य अलगाववादी प्रवृत्तियों और भारत के किसी बात को देश से अलग करने की मांग करने या उसके लिए कार्य करने वाले संगठनों से निपटना था। ऐसा महसूस किया गया था कि उनकी गतिविधियों को भारत की सुरक्षा के प्रवधान के अंतर्गत नियंत्रित  नहीं किया जा सकता है । इसलिए इस नये विषय को संविधान में शामिल किया गया।

संसद ने सन 1961 में अपराधिक विधि संशोधन अधिनियम बनाकर ऐसी किसी प्रकार की बात को जिसे भारत की अखंडता को इस तरह चुनौती दी जाएगी उसकी सुरक्षा खतरे में पड़ जाए दंडनीय अपराध बना दिया था।

 2. राज्य की सुरक्षा : –

राज्य की सुरक्षा से अभिप्राय यह है कि राज्य को बाहरी और आंतरिक दोनों ही प्रकार के संकटों से अपनी रक्षा करने का अधिकार है। इसके अंतर्गत राज्य हिंसा या ताकत से उसे उलट ने के प्रचार पर युक्तियुक्त रोक लगा सकता है ।भारत में शासकीय गुप्त बात कानून अपराधिक विधि संशोधन अधिनियम , भारत सुरक्षा अधिनियम और राजद्रोह संबंधी भारतीय दंड संहिता का प्रवधान राज्य की सुरक्षा संबंधी निरबंधन मे.आते हैं।

 3. विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध : –  

इसके अंतर्गत उन देशों के उच्चाधिकारियों के विरुद्ध अपमानजनक प्रचार करने , विदेशी फौजों में भारतीयों को भर्ती होने , ऐसे देशों से लड़ाई का प्रचार करने जिनके भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंध हो और भारत द्वारा किसी देश के राज्य अध्यक्ष या शासन अध्यक्ष को मान्यता दिए जाने के बाद वहां के किसी अन्य व्यक्ति के पक्ष में प्रचार करने की इस पद का दावेदार  वह हैं ऐसे मामलों में युक्तियुक्त निरबंधन लगाने का अधिकार राज्य को हैं।

 4. सार्वजनिक व्यवस्था : –

सार्वजनिक व्यवस्था से अभिप्राय सार्वजनिक सुरक्षा और प्रशांति से है। सार्वजनिक सुरक्षा में आंतरिक गड़बड़ी पैदा करना, आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति और वितरण में बाधा उत्पन्न करना,  पुलिस को अपने कर्तव्य करने के विरुद्ध उकसाना ,सामुदायिक जीवन के लिए आवश्यक सेवाओं में रत लोक सेवकों को अपना कार्य ना करने को कहना,  अनुशासन भंग करना आदि शामिल है।

इसे भी पढ़े – भारत के संविधान के तहत जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति का उन्मूलन  

5. शिष्टाचार या सदाचार:- 

अश्लीलता ,अशोभनीयता और समाज द्वारा सामान्यता अंगीकृत नैतिक आचरण के नियमों को भंग करने वाली गतिविधियां इसके अंतर्गत आती हैं ।इनसे संबंधित अपराधों की सुनवाई बंद अदालतों में हो सकती हैं और अदालते सुनवाई के दौरान पत्रकारों को अदालत में उपस्थित रहने से रोक सकती हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 292 और युवा व्यक्ति हानिकारक प्रकाशन अधिनियम शिष्टाचार या सदाचार संबंधी निरबंधन के अंतर्गत आते हैं।

 6. न्यायालय अवमान :-

ऐसी अभिव्यक्ति जिससे न्यायालयों को अपना कर्तव्य निभाने में बाधा उत्पन्न हो या जिससे न्यायाधीशों की निंदा की जाए तथा आम लोगों में न्यायाधीश या न्याय व्यवस्था के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो उसे इस विषय के अंतर्गत से निषिद्ध किया जा सकता है। और ऐसा निरबंधन युक्ति युक्त माना जाएगा ।न्यायाधीशों की निष्पक्षता और ईमानदारी के प्रति जन विश्वास वास्तव में लोकतंत्र को बनाए रखने का आवश्यक आधार है।

 7. मानहानि :-

व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसकी अमूल्य संपत्ति होती है ।इसलिए इसकी रक्षा को सर्वोच्च कानूनी और संवैधानिक संरक्षण दिया गया है । हर व्यक्ति दूसरों की नजरों में सम्मानित बना रहने का अधिकारी  है। इस अधिकार का हरण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अनुचित रूप से नहीं किया जा सकता है ।इसलिए मानहानि के संदर्भ में देश की स्वतंत्रता के कड़े मानदंड निर्धारित किए गए हैं । प्रेस द्वारा किसी के प्रति मानहानिकारक बातें लिखने पर इसका दायित्व दोनों ही प्रकार का होता है सिविल और अपराधिक ।अपराधिक मुकदमे में कारावास भुगतना पड़ सकता है जबकि सिविल में भारी मुआवजा देना पड़ सकता है।

 8. अपराध उद्दीपन : –

इसके अंतर्गत राज्य ऐसी अभिव्यक्ति को निर्बंधित करने वाले कानून बना सकता है जिसमें किसी कानून के अंतर्गत घोषित अपराध करने के लिए लोगों को उकसाया जाता हो  ।उदाहरणार्थ पुलिस कानून के अंतर्गत पुलिस कर्मियों का यह कर्तव्य है कि वे अपना निर्धारित कार्य करें यदि कोई उन्हें यह काम ना करने को उकसाता है तो वह इसके लिए दंडित किया जा सकता है।

 वाद विधियां : –

केस – धर्में दत्त एंड अदर्स वर्सेस भारत संघ (AIR2004SC 1295) 

इस मामले में न्यायालय ने कहा कि प्रतिबंध को युक्तियुक्त सिद्ध करना राज्य की जिम्मेदारी है।

 केस – चिंतामनराव बनाम मध्यप्रदेश राज्य ( AIR 1951SC118) 

इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह सिद्धांत निर्धारित किया था कि उचित प्रतिबंध का गठन करने का विधायी दृष्टिकोण निर्णायक और अंतिम नहीं होगा और इसे पर्यवेक्षण के अधीन किया जाएगा सुप्रीम कोर्ट के द्वारा।

 केस – रंजीत उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य(AIR 1868 SC ) 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 292 संवैधानिक है क्योंकि सार्वजनिक स्थानों पर अश्लीलता को प्रतिबंधित करती है और सार्वजनिक शालीनता और नैतिकता को बढ़ावा देती है।

 केस – टाटा प्रेस प्राइवेट लिमिटेड बनाम महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड

न्यायालय ने इस बाद में कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में वाणिज्यिक भाषण और वाणिज्यिक विज्ञापन भी शामिल है जो केवल.अनुच्छेद 19(2)के तहत प्रतिबंधित किए जा सकते हैं।

 केस – ओम प्रकाश बनाम रेक्स(AIR 1948 नागपुर 199)   

इस मामले में न्यायालय द्वारा कहा गया कि कोई भी बात,  जिससे समाज में अशांति या क्षोभ  उत्पन्न होता है,  लोक व्यवस्था के विरुद्ध होती है।

 केस – सकल पेपर बनाम भारत संघ(AIR 1962SC 305 )

इस केस में द डेली न्यूज़ पेपर्स (प्राइस एंड पेज)  ऑर्डर , 1960 जिसमे उन पेजों और आकर की संख्या तय की गई,जिन्हें अखबार किसी कीमत पर प्रकाशित कर सकता है , को प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन माना जाता था और अनुच्छेद 19 (2) के तहत उचित प्रतिबंध नहीं था।

निष्कर्ष:-

भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 1(ए) के तहत गारंटीकृत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है ।भाषण के माध्यम से एक नया विचार व्यक्त करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है। यह केवल शब्दों के माध्यम से किसी के विचारों को व्यक्त करने तक सीमित नहीं है बल्कि एक व्यक्ति को लिखित रूप में या विज्ञापनों के माध्यम से विचारों को प्रसारित करने का अधिकार है । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (2) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित  प्रतिबंध लगाया जा सकता है । अनुच्छेद 19  के तहत दिए गए अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में और समाज के हित में प्रतिबंधित किया जा सकता है।

Reference :-

  1. http://www.legalservicesindia.com
  2. J.N. Pandey – Indian Constitution
  3. Article- Sidhart Sabu, associated with national university of advanced legal studies
  4. General – published by Ayush Verma
  5. legalserviceindia.com
  6. पुस्तक : – प्रेस एवं विधि
“यह आर्टिकल Neha VIishwakarma  के द्वारा लिखा गया है जो की LL.M. 1st Sem. Dr. Harisingh Gour University की छात्रा है |