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मानव अधिकारों की पीढ़ियों का वर्गीकरण | Generations of human rights in Hindi

मानव अधिकारों की पीढ़ियों का वर्गीकरण

मानव अधिकारों की पीढ़ियों का वर्गीकरण

प्रस्तावना (Introduction) :-

  • मानव अधिकारों से तात्पर्य उन सभी अधिकारों से है जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता एवं प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं। यह अधिकार भारतीय संविधान के भाग -3 में मूलभूत अधिकारों के नाम से वर्णित किए गए हैं और न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय है।
  • ऐसे अधिकार जो अंतरराष्ट्रीय समझौते के फलस्वरुप संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा स्वीकार किए गए और देश के न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय है, को मानव अधिकार माना जाता है।
  • अभिरक्षा में यातनापूर्ण और अपमानजनक व्यवहार ना होने संबंधी अधिकार और महिलाओं के साथ प्रतिष्ठापूर्ण व्यवहार का अधिकार शामिल है।
  • मानव अधिकार सबको समान रूप से प्राप्त है। इन अधिकारों का हनन जाति ,धर्म, भाषा, लिंग के आधार पर नहीं किया जा सकता है। ये सभी अधिकार जन्मजात अधिकार है।

मानव अधिकार का अर्थ:-

मानव अधिकार शब्द हिंदी का युग्म शब्द है। जो  दो शब्दों मानव + अधिकार से मिलकर बना है। मानव अधिकार शब्द को पूर्णता समझने के पूर्व अधिकार शब्द को समझना होगा।

हैराल्ड लास्की के अनुसार,”अधिकार मानव जीवन की ऐसी परिस्थितियां हैं जिसके बगैर सामान्यतः कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता हैं।”

बोंसके के शब्दों में,”अधिकार वह मांग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है।”

अधिकार वे सुविधाएं हैं जो व्यक्ति को जीने के लिए उसके व्यक्तित्व को पल्लवित करने के लिए आवश्यक है। मानव अधिकार का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है, इसकी परिधि के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के नागरिक, राजनीतिक, सामाजिक ,आर्थिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों का समावेश है, अपनी व्यापक परिधि के कारण मानव अधिकार शब्द का प्रयोग भी अत्यंत व्यापक विचार- विमर्श का विषय बन गया है।

मानव अधिकार की परिभाषाएं :-

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम ,1993 की धारा 2(d) मानव अधिकार से प्राण, स्वतंत्रता, समानता और व्यक्ति की गरिमा से संबंधित ऐसे अधिकार अभिप्रेत है जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत किए गए हैं या अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में सनिष्ठ हैं और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय है।

डी.डी. बसु के अनुसार,”मानव अधिकार वे अधिकार हैं जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मानव परिवार के सदस्य होने के कारण राज्य तथा अन्य लोक सेवक के विरुद्ध प्राप्त होने चाहिए।”

मेरी रॉबिंसन के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी मौलिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा एवं उसे प्राप्त करने के व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त अधिकार मानव अधिकार कहलाते हैं।

केस:- Francis,carali mullin v. The administrator union territory of Delhi

इस बाद में कहा गया कि मानव जीवन का अर्थ है-  गौरवपूर्ण जीवन।

केस:- एम. नागराज बनाम भारत संघ (2007)

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी संविधान के बिना भी व्यक्तियों को आधारभूत मानव अधिकार केवल इस कारण से प्राप्त हैं कि वह मनुष्य वर्ग के सदस्य हैं।

मानव अधिकार के गुण(Characteristic of human right):-

निहित –  मानव अधिकार अंतर्निहित है क्योंकि वे किसी व्यक्ति या प्राधिकरण द्वारा प्रदान नहीं किए जाते हैं मानव अधिकारों को खरीदना, अर्जित या विरासत में प्राप्त नहीं करना है। वे लोगों से केवल इसलिए संबंधित है क्योंकि वे मानव है। मानव अधिकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए अंतर्निहित है।

मौलिक –  मानव अधिकार मौलिक अधिकार हैं क्योंकि इनके बिना मनुष्य का जीवन और प्रतिष्ठा निरर्थक होगी।

अयोग्य –  मानव अधिकारों को छीना नहीं जा सकता है किसी को भी किसी अन्य व्यक्ति को किसी भी कारण से वंचित करने का अधिकार नहीं है।

उदाहरण:- जब गुलामी का अभ्यास किया जाता है तब भी दासों के पास अधिकार होता है। अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है ।मानव अधिकारों का हनन होता है। मानव अधिकार अपर्याप्त है।

(अ) उन्हें एक स्वतंत्र व्यक्ति से अधिकार पूर्वक नहीं लिया जा सकता।

(ब) इन्हें दूर नहीं किया जा सकता है न ही जप्त किया जा सकता है।

अन्योन्याश्रित –  मानव अधिकार अन्योन्याश्रित हैं क्योंकि एक की पूर्ति या अभ्यास दूसरे की प्राप्ति के बिना नहीं हो सकता है।

मानव अधिकार प्राकृतिक और मौलिक अधिकार होते हैं।

केस:- मोतीलाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

इस मामले में कहा गया कि मौलिक अधिकार  प्राकृतिक अधिकार और मानव अधिकार भी होते हैं।

अप्रतिदेय अधिकार –  मानव अधिकार को हमसे कोई नहीं छीन सकता है।

केस:-  केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य

इस वाद में कहा गया कि मौलिक अधिकार प्राकृतिक और अप्रतिदेय होते हैं।

  • मानव अधिकार उच्चतर अधिकार होते हैं इनका विभाजन नहीं किया जा सकता है।

केस:-  मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1979)

इस मामले में मूल अधिकारों की प्रकृति एवं महत्व के बारे में न्यायाधिपति श्री भगवती ने कहा है कि मूल अधिकार इस देश की जनता द्वारा वैदिक काल से संजोए गए आधारभूत मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भारत में न्यायपालिका और मानव अधिकारों के विकास की भूमिका :-

भारत में मानव अधिकारों का विकास विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से संभव हुआ।

केस :- पी. रथीनम बनाम भारत संघ 3 एस. सी.सी. 394 (1994)

इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति को मानवीय सम्मान के साथ जीने का अधिकार और जीवन की अवधारणा में संबंधित व्यक्ति की परंपरा, संस्कृति और विरासत शामिल है।

केस :- ओल्गा टेलिस बनाम बाम्बे नगर निगम (ए आई आर 1986 एस.सी.180)

इस मामले में अदालत के सामने एक सवाल था कि आजीविका के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के तहत कवर किया जाएगा इसलिए अदालत ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(A) और अनुच्छेद 41 में राज्य को आजीविका के अधिकार और भारत के नागरिकों के लिए काम करने का अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करता हैं।

केस:- चमेली सिंह बनाम यूपी राज्य (ए.आई. आर.1996  एस. सी.101)

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय का अधिकार दिया है। न्यायालय ने कहा कि आश्रय का अधिकार जीवन के अधिकार के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है और इसे मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए।

केस:- उपभोक्ता शिक्षा और अनुसंधान केंद्र और भारतीय बनाम भारत संघ (ए आई आर 1995 एस सी 922)

इस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मानवीय गरिमा, सामाजिक सुरक्षा, आराम करने और अवकाश का अधिकार कर्मकार का मूल्यवान अधिकार है। इन्हें भारतीय संविधान के प्रस्तावना और अनुच्छेद 38, 39 में मानव अधिकारों के चार्टर द्वारा आश्वासन दिया गया है।

केस:- परमानंद कटारा बनाम भारत संघ (1989  4Scc286)

इस वाद में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी दुर्घटना के मामले में इलाज के लिए लाए गए हर घायल व्यक्ति को मूल मानव अधिकार को उसके बाद जीवन को संरक्षित करने के लिए तत्काल चिकित्सा सहायता दी जानी चाहिए। आपराधिक कानून प्रक्रियाओं की अनुमति दी जा सकती है अदालत ने माना कि जीवन का संरक्षण सर्वोपरि है।

केस:- पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लीवेर्टी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (AIR1997 SC568)

इस वाद में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को एकांतता का अधिकार है।

केस:- M/S zee telifilms Ltd v. Union of India AIR 2005 SC 2677at pp 2714-15.

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने देखा कि सभी क्षेत्रों में विकासशील देशों में विकास का अधिकार भी मानवीय अधिकार है और जैसे कि मानव की क्षमताओं में वृद्धि के साथ प्रत्यक्ष सांठगांठ भी है।

मानव अधिकारों की पीढ़ियों का वर्गीकरण :-

मानव अधिकारों को आसान बनाने के लिए मानव अधिकारों का कई रूपों में वर्गीकरण किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकारों को दो प्रमुख भागों में बांटा गया है। पहला ,नागरिक और राजनैतिक अधिकार, और दूसरा ,आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार |

लुई बी सोहन ने चार पीढ़ियों में मानव अधिकारों को वर्गीकृत किया-

  • पहली पीढ़ी का मानव अधिकार (Liberate)-नागरिक और राजनैतिक अधिकार।
  • दूसरी सीढ़ी का मानव अधिकार (egalite)- आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारी।
  • तीसरी पीढ़ी का मानव अधिकार (Fraternite)- सामूहिक अधिकार।
  • चौथी पीढ़ी का मानव अधिकार (विषयगत अधिकार)

नवंबर 1977 में यूनेस्को के कानूनी सलाहकार और प्रतिष्ठित मानव अधिकार विद्वान कारेल वासक ने मानव अधिकार को तीन प्रकार की पीढ़ियों में बांटा है

प्रथम पीढ़ी के मानव अधिकार :-

प्रथम पीढ़ी, नागरिक और राजनैतिक अधिकार मुख्य रूप से 17वीं और 18वीं शताब्दी  के सुधारवादी सिद्धांतों से प्राप्त होते हैं।

विधिशास्त्री – थॉमस हॉब्स, जॉन लॉक, मांटेस्क्यू आदि विधिशास्त्रियों ने प्रथम पीढ़ियों के मानव अधिकारों का समर्थन किया है।

थॉमस हॉब्स-  हाब्स ने आत्मरक्षा अधिकार को प्राकृतिक विधि का मूल सिद्धांत माना है।

जॉन लॉक- मनुष्य की आजीविका स्वाधीनता तथा संपत्ति के अधिकारों को उससे पृथक नहीं किया जा सकता है।

नागरिक एवं राजनैतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में सम्मिलित विभिन्न अधिकारों को प्रथम पीढ़ी के मानव अधिकार कहा जाता है। ये अधिकार परंपरागत है तथा लंबे समय में ग्रीक नगर राज्य के समय से विकसित हुए हैं। ये अधिकार विभिन्न राज्यों के राष्ट्रीय संविधानों सिविल एवं राजनैतिक प्रसंविदा पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा मानव अधिकारों पर यूरोपियन अभिसमयों तथा अफ्रीकी दस्तावेजों में सम्मिलित किए हैं। भारत में संविधान के भाग 3 में भी नागरिक एवं राजनैतिक अधिकारों को सम्मिलित किया जाता है।

  • नागरिक और राजनैतिक अधिकार सबसे पहले मिलते हैं ।
  • यह अधिकार प्राकृतिक होते हैं तथा व्यक्ति को जन्म से प्राप्त होते हैं।
  • ये अधिकार राज्य के निर्माण के समय ही प्राप्त हो जाते हैं।
  • इन अधिकारों को परंपरागत अधिकार भी कहा जाता है।
  • नागरिक अधिकार एवं राजनैतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा में सम्मिलित विभिन्न अधिकारों को प्रथम पीढ़ी के मानव अधिकार कहा जाता है।
  • ये अधिकार परंपरागत हैं तथा लंबे समय में ग्रीक नगर राज्य के समय में विकसित हुए हैं।
  • नागरिक और राजनैतिक अधिकारों को एक साथ लिबर्टी ओरिएंटेड ह्यूमन राइट्स के रूप में जाना जाता है।
  • फ्रांस घोषणा (1789) के लिबर्टी से इसका जन्म हुआ ।
  • इन अधिकारों को प्राकृतिक अधिकार होने के कारण नीले कलर के नाम से भी जाना जाता है और यह अधिकार अंतर्निहित होते हैं।
  • इन अधिकारों को प्राइमोडियर अधिकार भी कहते हैं और इन अधिकारों को तुरंत लागू किया जा सकता है।
  • इन अधिकारों को व्यक्तिगतनिष्ठ अधिकार माना जाता है।
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों को नकारात्मक अधिकार भी कहा जाता है क्योंकि यह अधिकार राज्य के विरुद्ध होते हैं।
  • यह अधिकार व्यक्तिगत अधिकार होते हैं।
  • पहली पीढ़ी के मानव अधिकारों को सार्वभौमिक अधिकारों की घोषणा ,1948 में अनुच्छेद 3 से शामिल किया गया है।

उदाहरण – जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार ,समानता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, कानून के समक्ष समान दिखने का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।

प्रत्येक मानव को प्राण का अंतर्निहित अधिकार है इस अधिकार की विधि द्वारा रक्षा की जाएगी। किसी को मनमाने ढंग से उसके जीवन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

केस :- मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (ए आई आर 1978 एस.सी. 597)

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा प्राण के अधिकार में  जीवन के वे सभी पहलू सम्मिलित है। जो मानव जीवन को अर्थ प्रदान करते हैं। जीवन योग्य बनाते हैं या पूर्णता प्रदान करते हैं।

Origins and source:

  1. फ्रांसीसी क्रांति (1789) – इस क्रांति ने मानव अधिकार के विकास में मील के पत्थर का काम किया था।
  2. मैग्नाकार्टा, 1215– भारतीय संविधान के अध्याय 3 को भारत का मैग्नाकार्टा कहा जाता है।
  3. पेटीशन ऑफ राइटस(1628)– यह एक संसदीय घोषणा है जिसमें लोगों की स्वतंत्रताओं की बात की गई है।
  4. American declaration of independence (1776)

अंतर्राष्ट्रीय विधि:-

  • मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ,1948 (अनुच्छेद 2-21)
  1. अनुच्छेद 2 में व्यक्ति को स्वतंत्रता ओं का अधिकारी बताया गया है।
  2. अनुच्छेद 3 से 15 तक में जीवन स्वतंत्रता, व्यक्ति की संरचना तथा विधि के समक्ष समानता, समता और संरक्षण आदि का उल्लेख किया गया है।
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा( ICCPR ),1966।

विदेश यात्रा का अधिकार -सिविल एवं राजनैतिक अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा ,(1966) के अनुच्छेद 12(2) में इस अधिकार का उल्लेख है। इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति आपने समेत कोई देश छोड़ने को स्वतंत्र है।

केस :- सतवंत सिंह साहनी बनाम डी. रामनम ए. पी.ओ. भारत सरकार न्यू दिल्ली (1967)

इस वाद में न्यायमूर्ति सुब्बाराव ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के सिवाय किसी व्यक्ति को विदेश यात्रा करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

गुप्तता का अधिकार – गुप्तता के अधिकार का उल्लेख सिविल एवं राजनीतिक अधिकार की अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के अनुच्छेद 17 ( 1) में है। इसके अनुसार किसी की गुप्तता परिवार ग्रह पत्राचार के साथ मनमाना हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा तथा न ही उनके सम्मान या प्रतिष्ठा पर हमला या आक्रमण किया जाएगा।

केस :- starder v. West Virginia

इस मामले में कहा गया कि बिल ऑफ राइट्स राज्य के विरुद्ध लागू होता है।

भारतीय स्थिति :-

भारतीय संविधान 1950 के अध्याय 3 में वर्णित अनुच्छेद 12 से 35 तक में प्रथम पीढ़ी के मानव अधिकार को बताया गया है।

केस :- फ्रांसिस करेली बनाम भारत संघ(AIR 1981 SC802)

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राण शब्द से तात्पर्य पशुपत जीवन से नहीं अपितु मानव जीवन से है। इसका भौतिक अस्तित्व ही नहीं वरन आध्यात्मिक अस्तित्व भी है ।

केस:- गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (ए आई आर 1967  एस. सी.164३)

इस मामले में न्यायाधिपति सुब्बाराव ने मूल अधिकारों को नैसर्गिक और अप्रतिदेय अधिकार माना है।

केस:- उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (1993) 4 SC 645

इस मामले में निर्धारित किया गया कि जीवन के अधिकार में शिक्षा का अधिकार भी शामिल है तथा अनुच्छेद 21 इसे मूल अधिकार की मान्यता देता है।

केस :- मोतीलाल पदमपत शुगर मिल्स बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (ए आई आर 1979 SC 621)

इस वाद में साम्या के आधार पर वचनात्मक विबंध के सिद्धांत को लागू किया गया।

दूसरी पीढ़ी के मानव अधिकार(Egalite):-

  • आर्थिक और सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों को दूसरी पीढ़ी का अधिकार माना जाता है।
  • इन अधिकारों का विकास नागरिक और राजनैतिक अधिकारों को प्रभावशील बनाने के लिए हुआ।
  • नागरिक अधिकारों का अपने आप में कोई विशेष अर्थ नहीं है जब तक की व्यक्ति के पास आर्थिक और सामाजिक अधिकार न हो।
  • आर्थिक और सामाजिक अधिकारों को सकारात्मक अधिकार भी कहा जाता है। इन अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए राज्य द्वारा सकारात्मक कार्यवाही की आवश्यकता होती है।
  • इन अधिकारों को लाल कलर के नाम से जानते हैं।
  • इन अधिकारों को मिलने में समय लगता है क्योंकि ये नागरिक और राजनैतिक अधिकारों के बाद मिलते हैं। इन अधिकारों को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मान्यता प्राप्त हुई है।
  • ये समानता के विचारों और आवश्यक सामाजिक और आर्थिक वस्तुओं और सेवाओं और अवसरों तक पहुंच की गारंटी पर आधारित है।
  • ये तेजी से औद्योगीकरण के प्रभाव और एक श्रमिक वर्ग के उदय के साथ अंतरराष्ट्रीय मान्यता के विषय बन गए।
  • ये नई मांगो और नए विचारों के कारण गरिमा के जीवन के बारे में थे।
  • आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों (ICESCR) पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा में सामाजिक ,आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों को रेखांकित किया गया।

उदाहरण :- काम का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, काम करने का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा पाने का अधिकार।

समर्थक – FanklineO.Roasevelt

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO)1919- मानव अधिकार क्षेत्र में कई बहुत प्रमुख अभिसमय अंगीकार करके इस ने मानव अधिकार के विस्तारण में अपना बहुमूल्य योगदान किया।

स्रोत (source)- Russian revolution, French revolution, European revolution, Vienna Congress 1815.

अंतर्राष्ट्रीय विधि( international law):-

  • मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (1948) इसके अनुच्छेद 22 से 27 में आर्थिक ,सामाजिक, सांस्कृतिक अधिकार बताए गए हैं।
  • आर्थिक ,सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा ,1966।
  • UDHR अनुच्छेद 23(2 )समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार| अनुच्छेद 24 विश्राम एवं खाली समय का अधिकार।

भारतीय स्थिति:-

भारतीय संविधान के भाग 4 में आर्थिक ,सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार मिलते हैं।(अनुच्छेद 36 से 51 राज्य के नीति निदेशक तत्व)।

केस :- रणधीर सिंह बनाम भारत संघ (AIR 1982sc879)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि समान कार्य के लिए समान वेतन संविधान के अधीन एक मूल अधिकार नहीं है ,किंतु एक निदेशक तत्व है (अनुच्छेद 39 (घ))।

केस:-  एम. सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य (ए आई आर 2012) एस. सी.

इस मामले में उच्चतम न्यायालय में अंतरराष्ट्रीय समझौते का हवाला देते हुए केंद्रीय और राज्य सरकारों को स्पष्ट निर्देश दिया कि बालश्रम को तत्काल समाप्त कर उनके पुनर्वास एवं कल्याण की व्यवस्था करें।

केस:-  चमेली सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1966)2 scc549.

इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि आश्रय पाने का अधिकार अनुच्छेद 21 के अंतर्गत एक मूल अधिकार है और राज्य का यह कर्तव्य है कि वह दलितों और आदिवासियों के लिए बाल सुविधा प्रदान करें।

केस :- सुखदास बनाम अरुणाचल प्रदेश क्षेत्र (AIR1986)sc1322

इस मामले में यह निर्णय दिया गया कि दायित्व अभियोजन में विधिक सहायता पाने के लिए अभियुक्त हकदार है।

केस:-  उन्नीकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य ((1993)1 scc 645.

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि 14 वर्ष के बालकों को निशुल्क शिक्षा देना राज्य का संवैधानिक दायित्व है। क्योंकि अनुच्छेद 21 के अधीन शिक्षा पाने का अधिकार एक मूल अधिकार है किंतु उच्च शिक्षा पाने के मामले में यह अधिकार राज्य की आर्थिक क्षमता पर निर्भर करेगा।

तीसरी पीढ़ी के मानव अधिकार (Fraternite)

  • कारेल वासक के अनुसार, मानव अधिकारों की तीसरी पीढ़ी का तात्पर्य भ्रातत्व या भाईचारे से है। अधिकारों की यह श्रेणी एकजुटता की भावना पर आधारित है। जो अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रमुख चिंता जैसे शांति, विकास और पर्यावरण की प्राप्ति के लिए आवश्यक है।
  • लुईस बी सोहन के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति परिवार, धार्मिक समुदायों, सामाजिक या राजनीतिक समुदायों आदि से संबंधित है। अंतरराष्ट्रीय कानून व्यक्तियों के सामूहिक अधिकारों को मान्यता देता है जिन्हें एक बड़े समूह में बांटा जाता है उन अधिकारों का संयुक्त रूप से उपयोग किया जा सकता है।
  • तीसरी पीढ़ी के अधिकारों को सामाजिक सुरक्षा भाईचारा का अधिकार भी कहा जाता है। इन अधिकारों को बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में राष्ट्रीय राज्य के उदय और पतन दोनों का उत्पाद माना जाता है।
  • इन्हें हरा अधिकार के नाम से भी जाना जाता है, इनको बनाने के लिए सॉफ्ट लॉ की आवश्यकता है।
  • इन अधिकारों में पर्यावरण के अधिकार जैसे-हवा ,पानी, भोजन, प्राकृतिक संसाधन ,प्रदूषण मुक्त पर्यावरण और प्रकृति के अन्य प्रकार शामिल हैं। ये अधिकार व्यक्तियों को देश के सर्वांगीण विकास में भाग लेने के लिए सशक्त बनाते हैं।

उदाहरण :- आत्म निर्णय का अधिकार, विकास का अधिकार, शांति और एकजुटता का अधिकार, आर्थिक और सामाजिक विकास का अधिकार, स्वस्थ्य पर्यावरण का अधिकार, प्राकृतिक संसाधनों का अधिकार, संवाद का अधिकार, सांस्कृतिक विरासत में भाग लेने का अधिकार, और स्थिरता आदि तीसरी पीढ़ी के मानव अधिकार है।

Origin:-

  • स्टॉकहोम घोषणा ,1972 – मनुष्य को उपयुक्त पर्यावरण में जीवन की स्वतंत्रता, गुणवत्ता और उपयुक्त स्थिति का मूल अधिकार है, जो गरिमा तथा सुव्यवस्थित जीवन को अनुमत करता है।
  • विकास के अधिकार की घोषणा, 1986
  • नरसंहार सम्मेलन ,1948

भारतीय स्थिति:-

अनुच्छेद 21 और 47

लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण का अधिकार -लोक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को अनुच्छेद 21 के अंतर्गत मूल अधिकार मानते हुए एवं भूरेलाल समिति की रिपोर्ट को लागू करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 2 अक्टूबर, 1998 से देश की राजधानी दिल्ली में ऐसे सभी व्यापारिक वाहन ट्रक, बस, टैक्सी एवं ऑटो रिक्शा इत्यादि जो कि 15 साल या उससे अधिक पुराने हो चुके उनको सड़कों पर चलाने से प्रतिबंधित कर दिया।

आत्मनिर्णय का अधिकार सबसे बुनियादी सामूहिक अधिकारों में से एक है। आत्मनिर्णय के आधार पर लोगों को न केवल स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक स्थिति का निर्धारण करने का अधिकार है बल्कि अपने आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को भी स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ाने का अधिकार है।

चौथी पीढ़ी का मानव अधिकार :-

चौथी पीढ़ी के मानव अधिकार अंतरराष्ट्रीय न्याय या भविष्य की पीढ़ियों के अधिकारों से जुड़े हैं। इसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग से संबंधित अधिकार शामिल है।

मानव जीनोम, आनुवंशिक हेरफेर, महत्वपूर्ण निषेचन, मानव भ्रूण, इच्छा मृत्यु जो नैतिक और धार्मिक मूल्यों के साथ जटिल कानूनी मुद्दों को उत्पन्न कर सकती हैं। इसलिए सदस्य को यूरोपीय परिषद की राय उन सिद्धांतों को अपनाने के लिए कहती है जो अनुवांशिक इंजीनियरिंग और मानवाधिकारों के बीच संबंधों को कवर करते हैं। ताकि व्यक्तियों के अनुवांशिक विशेषताओं पर जीवन और सम्मान के अधिकार को दरार के रूप में समझा जा सके।

चार पीढ़ियों में से भारत के संविधान में पहली तीन पीढ़ियों को अपनाया है। पहली और दूसरी पीढ़ी के अधिकारों को मूल संविधान में शामिल किया गया था जबकि कई मामलों में अदालत के फैसलों के माध्यम से अपनाए गए थे। भारत में 1975 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य में “जानने के लिए नागरिकों के अधिकार” पर ऐतिहासिक निर्णय दिया।

राजनारायण केस, इसने सूचना का अधिकार अधिनियम ,2005 को जन्म दिया। जिसने नागरिकों को गतिविधियों के बारे में जानने का अधिकार दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने एम सी मेहता बनाम भारत संघ और हिमाचल प्रदेश बनाम गणेश फूड प्रोडक्ट में भावी पीढ़ियों के अधिकारों को मान्यता दी।

कोर्ट ने वन आधारित उद्योग को अमान्य कर दिया, अंतर् पीढ़ीगत इक्विटी के सिद्धांत को वन संसाधनों के संरक्षण और सतत विकास के लिए केंद्रीय होने के रूप में मान्यता दी |चौथी पीढ़ी के अधिकारों के बीच भारत ने राइट टू प्राइवेसी बिल का प्रस्ताव रखा।

सतत विकास का अधिकार- सतत विकास यह विचार है कि मानव समाज को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए भावी पीढ़ियों की क्षमता से समझौता किए बिना रहना चाहिए और उनकी जरूरतों को पूरा करना चाहिए। सतत विकास की आधिकारिक परिभाषा पहली बार 1987 में विकसित की गई थी । सतत विकास में भविष्य की आबादी की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता को खतरे में डाले बिना वर्तमान आबादी की जरूरतों को पूरा करना शामिल है।

मानव अधिकार हमारे अधिकार हैं क्योंकि हम इंसान के रूप में मौजूद हैं यह सार्वभौमिक अधिकार हम सभी के लिए अंतर्निहित हैं, चाहे राष्ट्रीयता, लिंग, राष्ट्रीय या जातीय मूल रंग, धर्म ,भाषा या कोई अन्य स्तर हो।

स्रोत:-

वियना घोषणा ,1993 – इस घोषणा में मिलने वाले मानव अधिकार- आत्मनिर्धारण का अधिकार, विकास का अधिकार। बियना घोषणा ने अभिपुष्टि  कि अभी मानवीय अधिकार सार्वभौमिक अविभाज्नीय, अंतर्निहित तथा अंतरसंबंधित है।

स्टॉकहोम घोषणा ,1972 – संयुक्त राष्ट्र की 21वीं पूर्ण बैठक में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की घोषणा को एक स्वास्थ्य पर्यावरण के अधिकार को मान्यता देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण कानून में पहली दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया गया।

बाह्यअंतरिक्ष संधि ,1966 – यह संधि मोटे तौर पर बाहरी अंतरिक्ष की खोज और उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों की घोषणा पर आधारित थी।

भारतीय स्थिति :-

स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार

केस:- A.P. pollution control board(ii) V. Professor M.V. Naidu (2001)sc

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि स्वस्थ पर्यावरण और सतत विकास के अधिकार जीवन के अधिकार में निहित मौलिक मानव अधिकार है।

केस :- एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (2004)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 एवं 45(A) के अंतर्गत स्वास्थ्यप्रद स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण का मूल अधिकार नागरिकों को प्राप्त है।

सूचना का अधिकार –

केस :- प्रभुदत्त बनाम भारत संघ (AIR 1982)sc

इस मामले में अभिनिर्धारित किया गया कि प्रेस की स्वतंत्रता में सूचनाओं तथा समाचारों को जानने का अधिकार भी शामिल है।

प्रत्येक अधिकार परिसीमा के साथ आता है :-

मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा ,1948 का अनुच्छेद 29 –

अनुच्छेद 29 (1) – हर किसी का उस समुदाय के प्रति कर्तव्य है। जिसमें अकेले उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र और पूर्ण विकास संभव है।

अनुच्छेद 29 (2)- अपने अधिकारों और स्वतंत्रताओं की कवायद में सभी को केवल ऐसी सीमाओं के अधीन होना चाहिए जो कानून द्वारा पूरी तरह से निर्धारित की जाती हैं। ताकि दूसरों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं के लिए उचित मान्यता और सम्मान हासिल करने के उद्देश्य से और नैतिकता सार्वजनिक आदेश की उचित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए और एक लोकतांत्रिक समाज में सामान्य कल्याण।

अनुच्छेद 29 (3)- ये अधिकार और स्वतंत्रता किसी भी मामले में संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों के विपरीत प्रयोग नहीं किए जा सकते हैं।

आलोचना :-

कारेल वासक की पीढ़ियों की एक प्रारंभिक आलोचना फिलिप अल्स्टन ने 1980 के दशक की शुरुआत में पेश की थी। अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार के दृष्टिकोण से प्रश्न का अनुमोदन करते हुए उन्होंने मानव अधिकारों को बनाने और लागू करने की प्रक्रिया में 3 चरणों पर भरोसा किया।

तीसरी पीढ़ी के अधिकारों के प्रचार के लिए प्रक्रिया की गति से चिंतित अल्स्टन ने सवाल किया कि क्या प्रासंगिक विधायी मंच पर विशिष्ट कानूनी मानदंडों में जरूरत का अनुवाद हुआ था और क्या सभी 3 चरणों में कोई व्यवहारिक धुंधलापन नहीं है।

बाकस की पीढ़ियों की अर्थ संबंधी दृष्टिकोण से भी आलोचना की गई है।

फ्रेडमेन ने पहली और दूसरी पीढ़ी के अधिकारों दृष्टिकोण को कड़ाई से नकारात्मक और सकारात्मक रूप से इसके अनुरूप करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया कि मानव अधिकारों की अवधारणा के समकालीन उपयोग में उन सकारात्मक और नकारात्मक कर्तव्यों के बीच सीमांकन तेजी से धुंधला हो जाता है।

आलोचना की परवाह किए बिना अधिकारों की तीसरी पीढ़ी में मानव अधिकार प्रवचन में खुद को शामिल किया। वासक ने तीन पीढ़ियों को फ्रांसीसी क्रांति की तीन अवधारणाओं लिबर्टे, एगिलिटे, फ्रेटरनिटे से जोड़कर सिद्धांत को संशोधित किया, इस प्रकार इसे 150 साल पीछे कर दिया।

निष्कर्ष :-

भारतीय संविधान में भाग 3 मौलिक अधिकारों और स्वतंत्रता से संबंधित है। जो मानव अधिकारों से मिलता जुलता है मानव अधिकारों और भारतीय संविधान की अंतरराष्ट्रीय वाचाओं के आधार पर सरकार ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, राज्य मानव अधिकार आयोग और जिला स्तर के मानव अधिकार आयोग की स्थापना के लिए प्रभावी कार्यान्वयन के लिए और प्रत्येक व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए मानव अधिकार अधिनियम ,1993 संरक्षण किया।

मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए न्यायपालिका एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके अलावा मानव अधिकार अधिनियम. 1993 की संरक्षण कई अन्य कानून, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मानव अधिकारों की रक्षा करता है।

संदर्भ :-

  • डॉक्टर टी.पी. त्रिपाठी -मानव अधिकार
  • डॉक्टर एन.वी. परांजपे – विधिशास्त्र
  • डॉक्टर एस.के. कपूर – मानवाधिकार एवं अंतर्राष्ट्रीय विधि
  • https://en.wikipedia.org/wiki/Three_generations_of_human_rights