मिताक्षरा और दायभाग में अंतर
मिताक्षरा और दायभाग शाखाओं में अंतर:-
मिताक्षरा | दायभाग | |
| मिताक्षरा शाखा में पुत्र का पिता की पैतृक संपत्ति में जन्म से ही अधिकार होता है। पुत्र पिता के साथ सह स्वामी होता है। संपत्ति के हस्तांतरण करने का पिता का अधिकार उसके पुत्र के अधिकार के कारण नियंत्रित होता है। एक के मरने के बाद संयुक्त परिवार का दूसरा उसके अंश को उत्तरजीविता से प्राप्त करता है।
हिंदू उत्तराधिकार( संशोधन) अधिनियम 2005 के द्वारा मिताक्षरा सहदायिक की पुत्री को सहदयिक की हैसियत प्रदान की गई है और उत्तरजीविता का सिद्धांत पूर्णरूपेण समाप्त कर दिया गया। | दायभाग शाखा में पुत्र का पिता की संपत्ति में अधिकार पिता की मृत्यु के पश्चात उत्पन्न होता है। पिता का अपने जीवन काल में संपत्ति पर परम अधिकार होता है, पुत्र का उससे से कोई संबंध नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति का अंश उसकी मृत्यु पर दाय के रूप में उसके दयादों को प्राप्त होता है । उत्तरजीविता का नियम यहां लागू नहीं होता। |
2. हस्तांतरण के संबंध में | संयुक्त परिवार के सदस्य संयुक्त संपत्ति में अपने अंश को तब तक हस्तांतरित नहीं कर सकते जब तक वह अविभक्त है। | संयुक्त परिवार का कोई भी सदस्य अविभक्त संपत्ति में अपने अंश को हस्तांतरित कर सकता है। |
3. उत्तराधिकार के संबंध में | उत्तराधिकार का सिद्धांत रक्त संबंध है लेकिन बंधु की अपेक्षा गोत्र गोत्रज को अधिक महत्व दिया जाता है। | उत्तराधिकार का सिद्धांत आध्यात्मिक प्रलभ अथवा पिंड दान देने के आधार पर निर्धारित किया जाता है। |
4. दाय के संबंध में | दाय का सिद्धांत रक्त पर आधारित है। | दाय पारलौकिक लाभ प्राप्त कराने के सिद्धांत पर आधारित हैं, अर्थात दाय वे प्राप्त कर सकते हैं जो मृतक को पिंड दान दे सके। |
5. फैक्टम वैलट का सिद्धांत | यह सिद्धांत मिताक्षरा पद्धति में सीमित रूप में माना गया है। | फैक्टम वैलेट का सिद्धांत दायभाग में पूर्ण रूप से माना गया है। |
6. | सजातियों की अपेक्षा निकट संबंधी को उत्तराधिकार के मामले में अधिक महत्व दिया जाता है। | दायभाग समस्त संहिता का एक सार संग्रह है। |
7. | मिताक्षरा एक टीका है। | दायभाग संशोधित पद्धति है। |
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