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मुस्लिम विधि की शाखाएं | Schools of muslim law in hindi

मुस्लिम विधि की शाखाएं

मुस्लिम विधि की शाखाएं (इस्लाम के संप्रदाय) –

632 ई. में मोहम्मद पैगंबर की मृत्यु के पश्चात प्रमुख समस्या उनके उत्तराधिकारी के चयन के संबंध मे थी। मुस्लिम समाज का बहुमत चुनाव के द्वारा अगला उत्तराधिकारी प्राप्त करने के पक्ष में था। इस वर्ग की प्रमुख मोहम्मद साहब की बेगम आयशा बेगम थी एवं यह वर्ग मुस्लिम संप्रदाय की सुन्नी शाखा कहलाया जिन्होंने अपना नाम “अहलेसुन्नत – वल- जमात ( Ahle Sunnat -wal-jamaat) “रखा। जिसका अर्थ परंपराओं तथा सभा के पक्षधर ।

मुस्लिम संप्रदाय के अल्पसंख्यक वर्ग के द्वारा यह कहा गया कि अगला मुस्लिम संप्रदाय का प्रशासक वंश परंपरागत प्रथा के आधार पर चयनित किया जाना चाहिए। इस अल्पसंख्यक वर्ग की प्रमुख मोहम्मद साहब की छोटी बेटी फातिमा थी। यह अल्पसंख्यक वर्ग मुस्लिम संप्रदाय की शिया शाखा कहलाया एवं अली (फातिमा के पति) को इस शाखा का प्रथम इमाम नियुक्त किया गया।

मुस्लिम विधि की कितनी शाखाएं है ? (मुस्लिम विधि की शाखाएं )

मुस्लिम विधि की शाखाओं को प्रमुखता दो शाखयों मे बाटा गया है

  1. मुस्लिम विधि की शाखाएं – सुन्नी शाखा
  2. मुस्लिम विधि की शाखाएं – शिया शाखा

सुन्नी शाखा क्या है (Sunni school) :-

सुन्नी शाखा मुस्लिम विधि की शाखा है जिसे चार उप संप्रदायों में विभाजित किया गया है

  1. हनफी उप संप्रदाय।
  2. मलिकी उप सम्प्रदाय।
  3. शाफ़ई(shafai) उप संप्रदाय।
  4. हनबली उप संप्रदाय

(1) हनफी उप संप्रदाय क्या है?:-

इस संप्रदाय के संस्थापक अबू हनीफा थे। वे एक उच्च कोटि के विद्वान तार्किक बुद्धि में प्रबल एवं कानूनों का तकनीकी ज्ञान रखने वाले व्यक्ति थे। इस कारण उन्हें
मुस्लिम विधि शास्त्र का जनक भी कहा गया। इनका जन्म स्थान कुफा था एवं उस दौरान कुफा मुस्लिम विचारधारा का केंद्र बन गया था। इसलिए कई बार इस विचारधारा को कुफा विचारधारा भी कह जाता है। अबूहनीफा सुन्नतों के अंधानुकरण के पक्ष में नहीं थे एवं उनके द्वारा कयास एवं इजमा के द्वारा विधि प्राप्त करने पर अधिक बल दिया गया। उन्होंने कानूनों की व्याख्या में इस्तिहसान (जूरिस्टिक इक्विटी )के सिद्धांत को लागू किया।

उनके अनुसार केवल उन सुन्नतों को विधि का स्रोत माना जाना चाहिए जो परीक्षणों द्वारा पूर्णतया सत्यापित हो सके। उनका कहना था कि कानून को सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार परिवर्तनशील होना चाहिए।

हनफी विधि की कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं:- फतवा- ए -आलम गिरी, दर- उल -मुक्तार इत्यादि है ।

भारत एवं पाकिस्तान में रहने वाले अधिकांश मुस्लिम इसी उप संप्रदाय के हैं।

2) मालिकी उप संप्रदाय क्या है? :-

सुन्नी संप्रदाय के इस उप संप्रदाय की स्थापना मलिक- इब्न-अनस (Malik-Ibn- Anas) के द्वारा की गई थी। मलिक- इब्न-अनस को सुन्नतों (परंपराओं) के विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता था। इन्होंने न केवल मोहम्मद साहब के अनुयायियों द्वारा वर्णित सुन्नत को बल्कि मोहम्मद पैगंबर के अनुयायियों के उत्तराधिकारियों के द्वारा वर्णित सुन्नत को भी मान्यता दी। इनके अनुसार जहां तक संभव हो कानून केवल मोहम्मद पैगंबर की सुन्नतों से प्राप्त किया जाना चाहिए। ऐसा संभव न होने पर इजमा और कयास का सहारा लिया जाना चाहिए।

इन्होंने केवल मदीना के विधिवेत्ताओं के मतैक्य को ही मान्यता दी। मलिक- इब्न-अनस एवं उनके बाद के अन्य विद्वान काजी के पद पर रहे, इसलिए यह विचारधारा अधिक व्यवहारिक है। मलिकी विद्वानों ने कानूनों के निर्वचन में इस्ती दलाल ( Inferring a thing from another thing for public welfare) का सिद्धांत प्रचलित किया। इस उप संप्रदाय के अनुसार एक विवाहित स्त्री तथा उसकी संपत्ति सदैव उसके पति के नियंत्रण में रहती है।

इस उप संप्रदाय की प्रमुख पुस्तक:- ‘किताब -अल -मुबत्ता’ है।

3) शाफाई उप संप्रदाय क्या है?:-

इस संप्रदाय के संस्थापक अस- शफी है। जोकि मलिक इब्स-अनस के शिष्य थे। इन्होने मोहम्मद पैगंबर की सुन्नतों को अपनी विचारधारा का आधार बनाया लेकिन सुन्नतों का विश्लेषण विधिक तर्कों के परिपेक्ष में कुछ इस तरह किया कि एक संतुलित एवं व्यवस्थित न्याय प्रणाली विकसित की जा सके।अस- शफी का कहना था कि एक भी समस्या ऐसी नहीं है जिसका समाधान कुरान में या पैगंबर की सुन्नतों में न हो प्रत्येक समस्या का समाधान या तो सीधे कुरान में या कुरान के मूल पाठ के कयास द्वारा किया जाना चाहिए। इन्होंने मलिकी संप्रदाय के इस्ति दलाल के सिद्धांत को मान्यता दी।

इस संप्रदाय की प्रमुख पुस्तक:- ‘किताब- उल-उम्म’ है।

4) हनबली उप संप्रदाय क्या है?:-

यह सुन्नी संप्रदाय की चौथी एवं नवीनतम विचारधारा है। जिसके संस्थापक इब्न- हनबल है। इब्न-हनबल के द्वारा सुन्नतों का बड़ी ही कड़ाई से पालन किया गया इसलिए वे एक विधिवेत्ता में अधिक परंपरावादी के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने सुन्नतों पर आवश्यकता से अधिक बल देने के कारण इजमा और कयास में महत्त्व की लगभग अवहेलना ही कर दी। इसलिए इस विचारधारा को कठोर, गैर समझौतावादी एवं अव्यावहारिक माना जाता है।

‘मसनत-उल-इमाम-हनबल’ इस विचारधारा की प्रमुख किताब है जोकि 50,000 सुन्नतों का संकलन है।

शिया संप्रदाय क्या है ( shia school) :-

मुस्लिम विधि की शाखाओं में शिया एक मुसलमान सम्प्रदाय है। सुन्नी सम्प्रदाय के बाद यह इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा सम्प्रदाय है जो पूरी मुस्लिम आबादी का केवल 10-15% है। इस संप्रदाय की प्रमुख विचार पद्धतियां निम्नलिखित हैं –

  1. जैदिया संप्रदाय
  2. इस्माइलिया उप्र संप्रदाय
  3. अथना अशरिया विचारधारा

जैदिया उपसंप्रदाय क्या है? :-

इस विचारधारा के जन्मदाता जैद इमाम के उल अबदीन के पुत्र जैद थे। शिया समुदाय से अपने को सर्वप्रथम जैदी उप संप्रदाय ने पृथक किया इस उप संप्रदाय की एक विशेष बात यह है कि इस उप संप्रदाय ने सुन्नी संप्रदाय के कुछ सिद्धांतों को भी मान्यता दी ।इस उप संप्रदाय के मुस्लिम अधिकांश यमन में है भारत में ये नहीं पाए जाते हैं।

इस्माइलिया उपसंप्रदाय क्या है?  :-

इसे सात इमामों को मानने वाला संप्रदाय भी कहा जाता है। छठे इमाम जफर – अस- सादिक ने अपने बड़े पुत्र इस्माइल को अपने उत्तराधिकार से वंचित कर दिया था। इसलिए शिया मुसलमानों के बहुसंख्यक वर्ग ने इनको अपना इमाम नहीं माना, लेकिन अल्पसंख्यक वर्ग ने इस्माइल को ही अपने इमाम के रूप में स्वीकार किया एवं यह अल्पसंख्यक वर्ग इस्मालिया उप संप्रदाय के रूप में जाना गया। इस उप संप्रदाय के अनुसार इमाम केवल सात ही हुए हैं एवं सातवें तथा अंतिम इमाम
इस्माइल है। इसलिए उप संप्रदाय को सात इमामो को मानने वाला उप संप्रदाय भी कहा जाता है।

यह उप संप्रदाय खोज एवं बोहरा में विभक्त हो गया जो कि मुख्यतया व्यापारिक समुदाय के रूप में जाने जाते व भारत में यह मुख्यता मुंबई और उसके आसपास के क्षेत्र में निवास करते हैं।

अथना अशरिया उपसंप्रदाय क्या है?:-

इस विचारधारा को इमामिया विचारधारा भी कहा जाता है। यह विचारधारा प्रथम इमाम अली से लेकर अंतिम इमाम मोहम्मद अल-मुतजर तक को मानती है। इनके अनुसार सभी इमामो को दैवीय शक्ति प्राप्त है। इसलिए इमाम के द्वारा कहीं गई हर बात कानून है।

इस उप संप्रदाय की प्रमुख विशेषता यह भी है कि यह मुता निकाह ( अस्थाई विवाह) को मान्यता देती है। यह विचारधारा अकबरी एवं उसूली विचारधारा में विभक्त हो गई अकबरी विचारधारा के द्वारा पैगंबर मोहम्मद की सुन्नतों का बड़ी कठोरता के साथ पालन किया इसलिए उन्हें कट्टरपंथी कहा जाता है। जबकि उसूली विचारधारा के द्वारा कुरान के मूल पाठों का निर्वचन रोजमर्रा की समस्याओं के परिपेक्ष्य में किया। सराय-उल-इस्लाम इस विचारधारा की प्रमुख पुस्तक है।

मोताजिला संप्रदाय क्या है? :-

यह मुस्लिम संप्रदाय की तीसरे संप्रदाय के रूप में सामने आया। इस संप्रदाय का जन्म 9 वीं शताब्दी में मेमन के शासनकाल में हुआ। इसके संस्थापक अता- उल- गज्जल थे। इस संप्रदाय के द्वारा केवल कुरान को ही मुस्लिम विधि का आधार माना गया एवं इनके द्वारा अधिकांश सुन्नतों को अस्वीकार कर दिया। इस संप्रदाय
द्वारा एक पत्नीत्व के सिद्धांत को मान्यता दी एवं इस विचारधारा के अनुसार विवाह विच्छेद के लिए काजी का निर्णय आवश्यक है।

संदर्भ:-

आईपीसी में धर्म से सम्बन्धित अपराधों के विषय में

मुस्लिम विधि की उत्पत्ति कैसे हुई