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साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 – विशेषज्ञों की राये | Section 45 Indian Evidence Act in Hindi | Opinions of experts in hindi

साक्ष्य अधिनियम की धारा 45

प्रस्तावना (Introduction): – 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,1872 की बात करें तो उसके अंतर्गत सामान्य  नियम यह  है कि एक गवाह को यह अनुमति अवश्य दी  गयी है  कि वह तो  किसी मुद्दे  सम्बंधित सुसंगत तथ्य( RELEVANT FACT )या विवाद्यक  तथ्य ( fact in icsue )   के बारे  में  बता  सकता  है लेकिन  उस तथ्य से जुड़ी उसकी राय क्या है , इस पर  न  ही अदालत ध्यान देती है न ही साधारणत इस बारे में गवाह को बालने की अनुमति होती है।

कुछ  मामले  ऐसे  होते है जंहा अदालत निर्णय लेने में असमर्थ होती है वंहा विशिष्ट प्रकार के ज्ञान अथवा कौशल की आवश्यकता महसूस होती है वंहा न्यायालय किसी विशेषज्ञ का सहारा लेता है।

विशेषज्ञों की रायें (expert opinion):-

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 परिभाषित करती है –

” विशेषज्ञों की राये “ साक्ष्य अधिनियम की धारा 45

जब कि न्यायालय की विदेशी विधि की या विज्ञान की या कला की किसी बात पर या हस्तलेख [या अंगुली चिह्नों] की अनन्यता के बारे में राय बनानी हो तब उस बात पर ऐसी विदेशी विधि, विज्ञान या कला में गया हस्तलेख] [या अंगुली चिह्नों की अनन्यता विषयक प्रस्नों में, विशेष कुशल व्यक्तियों की रायें सुसंगत तथ्य हैं।

ऐसे व्यक्ति विशेषज्ञ कहलाते हैं।

दृष्टांत

(क) प्रश्न यह है कि क्या क की मृत्यु विष द्वारा कारित हुई।

जिस विष के बारे में अनुमान है कि उससे क की मृत्यु हुई है, उस विष से पैदा हुए लक्षणों के बारे में विशेषज्ञों की रायें सुसंगत हैं।

(ख) प्रश्न यह है कि क्या क अमुक कार्य करने के समय चित्तविकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ बह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है, जानने में असमर्थ था।

इस प्रश्न पर विशेषज्ञों की रायें सुसंगत हैं कि क्या क द्वारा प्रदर्शित लक्षणों से चित्तविकृति सामान्यतः दर्शित होती है तथा क्या ऐसी चित्तविकृति लोगों को उन कार्यों की प्रकृति, जिन्हें वे करते हैं, या वह कि जो कुछ वे कर रहे हैं वह या तो दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल हैं, जानने में प्रायः असमर्थ बना देती है।

(ग) प्रश्न यह है कि क्या अमुक दस्तावेज क द्वारा लिखी गई थी। एक अन्य दस्तावेज पेश की जाती है जिसका क द्वारा लिखा जाना साबित या स्वीकृत है।

इस प्रश्न पर विशेषज्ञों की रायें सुसंगत हैं कि क्या दोनों दस्तावेजें एक ही व्यक्ति द्वारा या विभिन्न व्यक्तियों द्वारा लिखी गई थीं।

 

विशेषज्ञ किसे कहते है: – साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 

विशेषज्ञ वह व्यक्ति है जिसने किसे भी विज्ञान , कला , व्यापर , या व्यवसाय में विशेष ज्ञान कुशलता या अनुभव प्राप्त किया है  यह ज्ञान अभ्यास , अवलोकन या सावधानीपूर्वक अध्ययन से प्राप्त किया हुआ हो सकता है।

CASE –  बालकृष्ण अग्रवाल V/S राधा देवी एवं अन्य A.I.R. 1989 इला. 133

इस वाद में एक विशेषज्ञ को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसने अपने प्रशिक्षण और अनुभव के द्वारा एक राय देने के योग्यता अर्जित कर ली है किन्तु एक  सामान्य साक्षी में योग्यता नहीं होती है।

CASE – श्रीचन्द्र बत्रा V/S  स्टेट ऑफ़ यु. पी. A. I. R. 1974  SC. 639

इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह धारण किया है की इस धारा में प्रयुक्त विशेषज्ञ शब्द को सामान्य अर्थ में लेना चाहिए।  आबकारी इंस्पेकटर जिसने सेम्पिल्स के परिक्षण का काम 21 वर्ष से किया है , इस धारा के अंतर्गत विशेषज्ञ माना जायेगा।

Case – इण्डिया ट्यूरिज्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लि. V/S मिस सुसान लीग बियर A.I.R. 2015 N.O.C. 56 दिल्ली

इस वाद में दिल्ली उच्चन्यायालय द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि विशेषज्ञ की लिए यह आवश्यक है की उसे –

 

(1)विषय का विशेष ज्ञान हो –

(2)अभ्यास हो और

(3)विषय का विशेष अध्ययन हो।

साक्षी को विशेषज्ञ होने के लिए यह आवश्यक नहीं है की उसके पास कोई उपाधि हो मैसूर उच्चन्यायालय ने अब्दुल रेहमान बनाम स्टेट ऑफ़ मैसूर ,1972 क्रि लॉ ज 407 में सोने की शुद्धता के प्रश्न पर एक साधारण सुनार की राय ग्रहण की गयी यधपि उसके पास पुराने अनुभव को छोड़कर कोई अन्य उपाधि उस विषय पर नहीं थी।

उच्तम न्यायालय ने गूंगे और बहरों के स्कूल के प्रिंसिपल को विशेषज्ञ की श्रेणी में रखा और उनका प्रमाणपत्र ग्रहण किया ऐसा किशन सिंह V/S N. सिंह A.I.R. ,1983 पंजाब 373 के मामले में sc ने माना है।

 

विशेषज्ञ साक्ष्य की पूर्वापेक्षाएं – (PRE-REQUISITES OF EXPERT EVIDENCE)

इसके पूर्व की किसी विशेषज्ञ या अभिसाक्ष्य ग्राह्य हो , दो चीजें साबित की जानी  चाहिए –

(1)विषय हो जिसमे विशेषज्ञ का परिसाक्ष्य आवश्यक है।

(2)अभीष्ट गवाह वास्तव में विशेषज्ञ है , और सच्चा एवं निष्पक्ष गवाह है।

 

वे मामले जिनमे विशेषज्ञों की रायें सुसंगत होती है – साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 

1 – विदेशी विधि – (FOREIGN LAW)

जब न्यायालय को किसी विदेशी राष्ट्र की विधि के बारे में राय बनानी होती है तो उस विधि के विशेषज्ञ को न्यायालय के समक्ष यह बताने के लिए बुलाया जाता है कि किसी विशिष्ट विषय पर किसी विदेशी न्यायालय की क्या विधि है ?

Case – खोड़े गंगासागर V/S स्वामीनाथ मदाली A.I.R. 1966 मद्रास 218

विदेशी विधि को तथ्य की भांति साबित किया जाना चाहिए।

2 – विज्ञान या कला – (MATTERS OF SCIENCE OR ART)

जब न्यायालय को कला या विज्ञान के विषय पर राय बनानी होती है तो उस विषय पर कला या विज्ञानं में “ विशेष कुशल व्यक्तियों की राय “ सुसंगत तथ्य है।

3 – हस्तलेख या अंगुली चिन्हों की पहचान

चिकित्स्कीय साक्ष्य – चिकित्सक या शल्यज्ञ की राय किसी आदमी की शारीरिक दशा , बीमारी का स्वरूप , चोट की किस्म और वह हथियार जिससे चोट पँहुचाई गई , इत्यादि दिखाने के लिए स्वीकृत की जाती है।

Case – सिद्धार्थ वशिष्ट V/S स्टेट N.C.T. ऑफ़ दिल्ली A.I.R. 2010 SC. 2352

गोली मारकर हत्या के एक मामले में विशेषज्ञ की राय थी की ऐसा लग रहा था कि दो गोलियां अलग अलग पिस्तौल से चलाए गयी थी।

न्यायालय ने कहा की ऐसे अनिश्चित राय के आधार पर इस निष्कर्ष पर नहीं आया जा सकता था कि मारने वाले दो व्यक्ति थे और दो गोलियां ही चलायी गयी थी।

“यह लगता  है “ शब्दों का उपयोग जिसके लिए कोई आधार नहीं बताया गया था , से राय निर्णायक नहीं हो गयी थी।

इस राय के बाद एक अन्य राय ली गयी थी जिसमे यह कहा गया था कि इस बात को निर्णायक रूप से कहने के लिए उपयोग किये गए औजार की जाँच आवश्यक थी। न्यायालय ने कहा कि कोई राय निर्णायक नहीं थी।

 

मैथुन समर्थता के लिए मैडिकल राय – (MEDICAL EXAMINATION OF POTENCY)

 Case – अमोल चौहान V/S ज्योति चौहान A.I.R.2010 M.P. 61

तलाक की याचिका पर पत्नी ने पति पर मैथुन असमर्थता का आधार लिया।  न्यायालय नई सच्चाई जानने के लिए पति की डॉक्टरी परीक्षा की इजाजत दी।  न्यायालय इस प्रयोजन के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अपनी अन्तर्निहित शक्ति को उपयोग में ले सकता है। इसमें संविधान के अनुच्छेद  21,20 (3) में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।

 

न्यायालय विशेषज्ञ  रिपोर्ट मात्र से पदकार्य निवृत्त नहीं हो जाते -( COURT NOT FUNCTUS OFFICIO BECAUSE OF EXPERT OPINION)

न्यायालय पर विशेषज्ञ रिपोर्ट बाध्यकारी नहीं होती है। न्यायालय प्राधिकारहीन नहीं हो जाते क्योंकि अंतिम फैसला न्यायालय को ही करना होता है।  न्यायालय ने इस सम्बन्ध में कहा “विशेषज्ञ का कार्य है राय देना न की निर्णय करना।

एक्सपर्ट की राय के आधार पर न्यायालय को स्वच्छंद निर्णय निकलना होता है डॉक्टरी रिपोर्ट यदि विशेष के रूप में पेश की जाती है तो जैसे ही रिपोर्ट  में विशेषज्ञ राय को को स्वीकार कर लिया जाता है यह न्यायालय की राय बन जाती है।

पोली परिक्षण -( POLYGRAPH TEST)

यह परीक्षण यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि क्या किसी व्यक्ति द्वारा किये गए कथन और उत्तर सही है या कि नहीं।  यदि वह झूठ बोलता है तो उसके उत्तर भिन्न प्रकार के होते है।  उसके मन तथा शरीर की दशा भिन्न प्रकार की होती है।  विदेश के न्यायालय ने ऐसे ऐसे परिक्षण को दाण्डिक मामलों में सीमाओं के अधीन कर लिया है।

नार्को एनालिसिस –  (NARCO ANALYSIS)

इस जाँच या परीक्षण की सफलता की दर आत्यंतिक (absolute ) नहीं है अर्थात अच्छी नहीं है ऐसा सल्वी V/S स्टेट ऑफ़ कर्नाटक A.I.R. 2010 SC 1974 के वाद में माना है।

रासायनिक विश्लेषक – ( CEMICAL ANALYSER)

रासायनिक परीक्षक की अप्रदर्शित रिपोर्ट को किसी साक्षी द्वारा औपचारिक रूप से साबित करने की जरुरत नहीं है।  यह ऐसा दस्तावेज है जो धारा 293 दंड प्रक्रिया संहिता के अधीन अपने आप साबित था।

 

प्रत्यक्ष साक्षियों के परिसाक्ष्य और चिकित्सीय साक्ष्य में असंगति – (INCONSISTENCY BETWEEN TESTIMONY OF EYE WITNESSES AND MEDECAL EVIDENCE) साक्ष्य अधिनियम की धारा 45

प्रत्यक्ष साक्षियों का बयान की -अभियुक्त ने मृतक के गर्दन की पीछे की ओर कट्टा से फायर किया जबकि चिकित्सीय साक्ष्य ने साक्ष्य ने प्रदर्शित  किया की उक्त घाव का स्थान गर्दन के पीछे के और था।  प्रत्यक्षदर्शी गवाहों ने घटना कुछ दूर से देखी और उस समय मृतक अभियुक्तों से घिरा हुआ था।  अभिनिर्धारित केस की परिस्थितियों में गवाहों द्वारा मृतक पर वास्तविक हमला किया जाना  देखने के बारे में संदेह करना उचित नहीं है ये बिहार राज्य बनाम  राम पदारथ सिंह के बाद में बताया।

आग्नेयास्त्र विशेषज्ञ – (FIRE – ARMS EXPERT)

अभियुक्त का विचारण, मृतक की देशी पिस्तौल से हत्या के लिए किया गया।  मृतक की खाट के पास एक कारतूस पाया गया।  अभियुक्त को गांव से पंद्रह मील दूर गिरफ्तार किया गया था जो घटना स्थल था।

उसने अपने घर से ऐसी परिस्थितियों में पिस्तौल प्रस्तुत की जिसके द्वारा स्पष्टया यह प्रदर्शित होता था कि सिर्फ उसे ही उसके पिस्तौल के अस्तित्व की जानकारी थी।

रेडियोलॉजिस्ट का साक्ष्य

आयु अवधारण में रेडियोलॉजिस्ट के द्वारा किये गए परीक्षण के साक्ष्यिक मूल्य पर  विचार किया गया।  रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सक ने एक्सरे रिपोर्ट प्रमाणित किया।  अभिनिर्धारित किया कि आयु में किसी भी तरफ 2 वर्ष का अंतर हो सकता है।

ये सुलखान  V/S स्टेट ऑफ़ M.P.2002 के मामले में बताया गया है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट

Case – गणेश के. गोविल V/S  स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र A.I.R. 2002 SC 3068 Pag- 3072

के वाद में डॉक्टर का कहना था की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उन्होंने मात्र चोटों का जिक्र किया खरोंच आदि का जिक्र नहीं था।

मृत्यु के पश्चात् तैयार किये गए पंचनामे में जिन्हे साक्ष्य के  रूप में धारा 294 के अंतर्गत स्वीकार किया गया था ,  उनमे भी खरोंचों का जिक्र था क्योंकि वे मृतक की पीठ पर स्पष्ट दिखाई पड़ती थी।  घटना 7 बजे हुई किन्तु पंचनामे 9 और 11:30 के बीच तैयार किये गए थे अतः मृत शरीर को घसीटने से इंकार नहीं किया जा सकता था।  चोटों का उचित जिक्र पोस्टमार्टम रिपोर्ट में न किये जाने के कारण गणेश के गोविल को बरी नहीं किया जा सकता है।

 

हस्तलेख -( HANDWRITING)

जब न्यायालय को लिखावट के विषय में रे बनानी हो तो विशेषज्ञ की राय ग्रहण होती है

 case – भगवान कौर V/S  एम. केश्मी A.I.R. 1973 SC. 1346

के वाद में न्यायालय ने हस्तलेख के विशेषज्ञ की राय को सबसे कमजोर तथा सबसे काम विश्वसनीय माना है।

 

अंगुली चिन्हों – (FINGER IMPRESSIONS)

आपराधिक अनुसन्धान को अंगुली -चिन्हों की पहचान एक बाहर महत्वपूर्ण भाग है।  अंगुली चिन्ह की पहचान सुनिश्चित रूप से पूर्ण पहचान होती है।  यह कहा जाता है की यधपि मानव शरीर जन्म से मृत्यु तक नित्य परिवर्तन होता रहता है किन्तु अँगुलियों पर निशान कभी परिवर्तित  नहीं होते है।  सिविल में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है।  अंगुलिछाप की सम्पुष्टि आवश्यक नहीं है ऐसा इम्परर V फ़क़ीर मोहम्मद, 1935 के वाद में कहा है।

 

विशेषज्ञ की राय का सबूत कब माना जायेगा – (PROOF OF EXPERT OPINION)

विशेषज्ञ की राय तब तक साक्ष्य में नहीं पढ़ी जाएगी जब तक की उसकी गवाह के रूप में न्यायालय के सामने परीक्षा नहीं होती है और उससे प्रति परीक्षा नहीं होती।

 

विशेषज्ञ साक्षी तथा सामान्य साक्षी  में अंतर

विशेषज्ञ साक्षी  -(expert witness)       

 सामान्य साक्षी– (ordinary witness)

1 -विशेषज्ञ साक्षी अपनी राय का साक्ष्य  देता है।                                          1-एक सामान्य  साक्षी उन तथ्यों का साक्ष्य देता है जो घटित हुआ है।
2 -विशेषज्ञ साक्ष्य उन प्रयोगों का विवरण  दे सकता है जो उसने विपक्षी की  अनुपस्थति में किये है। 2 -एक सामान्य साक्षी जो कुछ उसने देखा है या सुना या अनुभव किया है उसका साक्ष्य देता है।
3- विशेषज्ञ साक्षी उन पुस्तकों या लेखकों के विचार या लेख का उद्धरण दे सकता है जिनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों पर  उसकी राय आधारित होती है। 3 -एक सामान्य साक्षी के बारे में यह बात नहीं होती।
4-विशेषज्ञ साक्षी अपने समर्थन में प्रश्नगत  मामलों में  पाए गए लक्षण या इसी के  अनुरूप मामलों का ही उल्लेख कर सकता है 4- जबकि एक सामान्य साक्षी के बारे में यह बात नहीं होती।

 

विशेषज्ञ साक्ष्य का मूल्य:साक्ष्य अधिनियम की धारा 45

विशेषज्ञ की रायों की सुसंगति तथा उसका मूल्य दो विभिन्न प्रश्न है।  अधिनियम में केवल सुसंगति के बारे में बताया गया है , मूल्य के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है मूल्य कई बातों को ध्यान में रखते हुए देखना पड़ता है एक तो यह कि विशेषज्ञ से गलती भी हो सकती है तथा वह जानबूझ कर झूठ बोल सकता है।  ये विशेष अधिकार प्राप्त व्यक्ति अंधेपन के शिकार , अक्षम या भ्रष्ट हो सकते है। ये हप्पू V एम्परर A.I.R. 1933 इला. के मामले में न्यायालय ने कहा है।

न्यायालयल अपनी रायें विशेषज्ञ की रायों  पर नहीं छोड़  सकते जो कहानी आँखों  से देखने वाले गवाहों ने बताई है उसको विशेषज्ञ की रायों से सत्यापित किया जा सकता है।

Case – विनायक शिवजी राव पल V/S  स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र  (1998)2 SC 233

के वाद में अभियुक्त ने अपनी पत्नी का गला घोटने का इक़बाल  किया परन्तु नवीनतम इकबालिया बयान में गला में घोटने का उल्लेख न करने के द्वारा पूर्व में इक़बाल को झूठा सिद्ध नहीं किया गया इससे स्पष्ट होता है की डॉक्टरी गवाही निश्चायक नहीं हो सकती।

उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा की यह देखना चाहिए की गवाहों के बयान डॉक्टरी गवाही से मिलते है या नहीं।

Case- सुखपाल V/S स्टेट ऑफ़ हरियाणा (1985) S.C.C. 10   

के मामले में कहा गया की विशेषज्ञ की यह राय कि बन्दूक चालू हालत में थी और प्रयोग में लायी  जा सकती थी ,को विश्वाश किया गया चाहे उसने बन्दूक को चला कर टेस्ट नहीं किया था।

 

डी एन रिपोर्ट – (D.N.A. REPORT)

case -पतांगी बालाराम बेंकटा गणेश V/S  स्टेट ऑफ़ A,P. , A.I.R. 2009 SC 3129

के वाद में जो एक हत्या का केस था DNA रिपोर्ट में विशेषज्ञ ने सुझाव दिया की अपीलिष्ट का ब्लड ग्रुप और एक जो उसके द्वारा गुलाबी रंग की  पहनी हुई कमीज में पाया गया ब्लड समान था।  विशेषज्ञ ने एक जैसा शब्द का प्रयोग नहीं किया।  अभिनिर्धारित किया गया की इस वाद में उससे कोई फर्क नहीं पड़ता जब न्यायालय ने दोषी सिद्ध अभिलिखित करने के लिए DNA विशेषज्ञ के साक्ष्य पर ही केवल विचार नहीं किया , DNA रिपोर्ट पर अन्य साक्ष्यों के साथ विचार किया गया।

 

विशेषज्ञों का कार्य एवं कर्तव्य:

एक विशेषज्ञ तथ्य का गवाह नहीं होता है उसके गवाही / राय का चरित्र वास्तव में एक सलाहकार का है |विशेषज्ञ गवाह का प्रमुख कर्तव्य है कि मामले में निष्कर्ष की सटीकता का परीक्षण करने के लिये आवश्यक वैज्ञानिक मापदंड के साथ न्यायाधीश की मदद करने का है , ताकि उस मामले में साक्ष द्वारा साबित किये गए तथ्यों को इस मापदंड के अनुसार न्यायाधीश निर्णय लेने मदद मिल सके।

Case- सफी मोहम्मद V/S राजस्थानी राज्य A.I.R. 2013 SC 2519

इस तरह के गवाह की विश्वनीये उसके निष्कर्षों के समर्थन में बताये गए कारणो , आंकड़ों और सामग्रियों पर निर्भर करती है , जो उसके निष्कर्ष का आधार बनते है जो अदालत के सहायक होते है।

 

 धारा   45-A.  इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के परीक्षक का मत: – 

जब किसी कार्यवाही में न्यायालय को किसी बात पर मत बनाना होता है जो किसी सूचना के सम्बन्ध में या किसी कम्प्यूटर साधन में भरी गयी सूचना अथवा किसी अन्य इलैक्ट्रोनिक या अंकीय रूप द्वारा सूचना के रूप में भरा जाता है तो सूचना प्रोधोगिकी अधिनियम 2000 की धारा 79 में संदर्भित इलैक्ट्रोनिक साक्ष्य के परीक्षक की राय एक सुसंगत तथ्य है।

 

स्पष्टीकरण इस धारा के प्रयोजन के लिए इलैक्ट्रोनिक साक्ष्य का परीक्षक एक विशेषज्ञ व्यक्ति होगा।

CASE –  रोमिल थापर V/S यूनियन ऑफ़ इण्डिया A.I.R. 2018 SC 4683

के मामले में निरुद्ध अभियुक्त के कब्जे में से इलैक्ट्रोनिक अभिलेख जब्त किये गए।

अभियुक्त द्वारा एक पिटीशन दायर कर यह मांग की गयी थी कि इन अभिलेखों का परिक्षण महाराष्ट्र राज्य से बाहर के F.S.L. में कराया जाय न्यायालय ने अपनी व्यथा को समुचित स्तर पर विचारण न्यायालय के समक्ष रखने का निर्देश दिया।

निष्कर्ष:

धारा 45 के अध्ययन के बाद निष्कर्ष निकलता है की विशेषज्ञ को न्यायालय ने ये स्पष्ट परिभाषित नहीं किया है की विशेषज्ञ के लिए कौन सी उपाधि या प्रमाणपत्र होने पर ही वह व्यक्ति विशेषज्ञ कहलायेगा।

विशेषज्ञ कोई भी व्यक्ति हो सकता है जो लगातार किसी कार्य को करते करते उसमे निपुणता प्राप्त करता है वह व्यक्ति विशेषज्ञ हो सकता है।

किसी विशेषज्ञ की राय को मानना या न मानना न्यायालय के ऊपर निर्भर करता है।  कोई मामले में न्यायाधीश विशेषज्ञ की सहायता से फैसला पर अपनी राय बना सकता है पर अंतिम फैसला न्यायालय का होगा न की विशेषज्ञ का।

 

सन्दर्भ:

1- भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,1872

2- भारतीय साक्ष्य अधिनयम – राजाराम यादव

3-Livelaw.in

4-hindi lawrato.com

 

“यह आर्टिकल राजेश कुमार पटेल के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B. Vth सेमेस्टर Dr. Harisingh Gour central University,sagar  के छात्र है |”