सीआरपीसी की धारा 110 – आभ्यासिक अपराधियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति —
जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह इत्तिला मिलती है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो :
(क) अभ्यासतः लुटेरा, गृहभेदक, चोर या कूटरचयिता है; अथवा
(ख) चुराई हुई सम्पत्ति का, उसे चुराई हुई जानते हुए, अभ्यासतः प्रापक है; अथवा
(ग) अभ्यासतः चोरों की संरक्षा करता है या चोरों को संश्रय देता है या चुराई हुई संपत्ति को छिपाने या उसके व्ययन में सहायता देता है; अथवा
(घ) व्यपहरण, अपहरण, उद्दापन, छल या रिष्टि का अपराध या भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 12 के अधीन या उस संहिता की धारा 489क, धारा 489ख, धारा 489ग या धारा 489घ के अधीन दण्डनीय कोई अपराध अभ्यासतः करता है या करने का प्रयत्न करता है या करने का दुष्प्रेरण करता है; अथवा
(ङ) ऐसे अपराध अभ्यासतः करता है या करने का प्रयत्न करता है या करने का दुष्प्रेरण करता है जिनमें परिशांति भंग समाहित है; अथवा
(च) कोई ऐसा अपराध अभ्यासतः करता है या करने का प्रयत्न करता है या करने का दुष्प्रेरण करता है जो :
(i) निम्नलिखित अधिनियमों में से एक या अधिक के अधीन कोई अपराध है, अर्थात् :
(क) औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (1940 का 23);
(ख) विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 (1973 का 46);
(ग) कर्मचारी भविष्य-निधि और कुटुम्ब पेंशन निधि अधिनियम, 1952 (1952 का 19);
(घ) खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 (1954 का 37);
(ङ) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (1955 का 10);
(च) अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 (1955 का 22)
(छ) सीमा-शुल्क अधिनियम, 1962 (1962 का 52),
(ज) विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946 (1946 का 31); या
(ii) जमाखोरी या मुनाफाखोरी अथवा खाद्य या औषधि के अपमिश्रण या भ्रष्टाचार के निवारण के लिए उपबंध करने वाली किसी अन्य विधि के अधीन दण्डनीय कोई अपराध है; या
(छ) ऐसा दुःसाहसिक और भयंकर है कि उसका प्रतिभूति के बिना स्वच्छन्द रहना समाज के लिए परिसंकटमय है
तब ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है कि वह कारण दर्शित करे कि तीन वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए, जितनी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझता है, उसे अपने सदाचार के लिए प्रतिभुओं सहित बंधपत्र निष्पादित करने का आदेश क्यों न दिया जाए।
110 CrPC in hindi -Security for good behaviour from habitual offenders —
When 1 [an Executive Magistrate] receives information that there is within his local jurisdiction a person who–
(a) is by habit a robber, house-breaker, thief, or forger, or
(b) is by habit a receiver of stolen property knowing the same to have been stolen, or
(c) habitually protects or harbours thieves, or aids in the concealment or disposal of stolen property, or
(d) habitually commits, or attempts to commit, or abets the commission of, the offence of kidnapping, abduction, extortion, cheating or mischief, or any offence punishable under Chapter XII of the Indian Penal Code (45 of 1860), or under section 489A, section 489B, section 489C or section 489D of that Code, or सीआरपीसी की धारा 110
(e) habitually commits, or attempts to commit, or abets the commission of, offences, involving a breach of the peace, or
(f) habitually commits, or attempts to commit, or abets the commission of—
(i) any offence under one or more of the following Acts, namely:—
(a) the Drugs and Cosmetics Act, 1940 (23 of 1940);
2[(b) the Foreign Exchange Regulation Act, 1973 (46 of 1973);]
(c) the Employees Provident Fund 3 [and Family Pension Fund] Act, 1952 (19 of 1952); सीआरपीसी की धारा 110
(d) the Prevention of Food Adulteration Act, 1954 (37 of 1954);
(e) the Essential Commodities Act, 1955 (10 of 1955);
(f) the Untouchability (Offences) Act, 1955 (22 of 1955);
(g) the Customs Act, 1962 (52 of 1962); 4 ***
5[(h) the Foreigners Act, 1946 (31 of 1946);] or
(ii) any offence punishable under any other law providing for the prevention of hoarding or profiteering or of adulteration of food or drugs or of corruption, or
(g) is so desperate and dangerous to render his being at large without security hazardous to the community, such Magistrate may, in the manner hereinafter provided, require such person to show cause why he should not be ordered to execute a bond, with sureties, for his good behaviour for such period, not exceeding three years, as the Magistrate thinks fit. सीआरपीसी की धारा 110
1. Subs. by Act 63 of 1980, s. 2, for “a Judicial Magistrate of the first class” (w.e.f. 23-9-1980).
2. Subs. by Act 56 of 1974, s. 3 and the Second Sch., for item (b) (w.e.f. 10-1-1975).
3. Ins. by s. 3 and the Second Sch., ibid. (w.e.f. 10-1-1975).
4. The word “or” omitted by Act 25 of 2005, s. 14 (w.e.f. 23-6-2006).
5. Ins. by s. 14, ibid. (w.e.f. 23-6-2006).