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दैवकृत क्या है ? – अपकृत्य विधि | Act Of God In Hindi

दैवकृत - अपकृत्य विधि | Act Of God In Hindi

दैवकृत क्या है ?-

दैवकृत के प्रतिवाद को अपकृत्य में विशिष्ट प्रतिवाद माना जाता है। यह भी एक प्रकार की अनिवार्य या अवश्यम्भावी दुर्घटना है अंतर केवल यह है कि यह प्राकृतिक दुर्घटना के परिणामस्वरूप होती है जैसे आँधी, तूफान, ज्वालामुखी का फटना, आदि। यह प्रतिरक्षा लेने के लिये प्रतिवादी को यह सिद्ध करना होता है कि घटना असाधारण एवं प्राकृतिक थी तथा उसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता था और युक्तियुक्त सावधानी बरतने के बाद भी उससे बचा नहीं जा सकता था।

पोलक के अनुसार :- “दैवकृत प्राकृतिक बलों के उस परिचालन को कहते हैं जो इतना अप्रत्याशित होता है कि मनुष्य के किसी पूर्वानुमान या कौशल से उचित रूप से उसके अनुमान की प्रत्याशा नहीं की जा सकती।”

दैवकृत की प्रतिरक्षा लेने के लिये दो बातें आवश्यक हैं:-

(1) प्राकृतिक बल | 

(2) घटना असाधारण हो जिसका न तो पूर्वानुमान किया जा सकता हो और न उसे टाला जा सकता हो।

रायलैण्ड्स बनाम फ्लैचर के वाद में ही न्यायाधिपति ब्लैकबर्न द्वारा दैवकृत को प्रतिरक्षा के रूप में स्वीकार किया गया था।

केस:-निकल्स बनाम मार्सलैण्ड ,1876 

इस वाद में दैवकृत की प्रतिरक्षा का अभिवाक सफलतापूर्वक किया गया था। इस मामले में प्रतिवादी ने एक प्राकृतिक जल प्रवाह को बांधकर अपनी भूमि पर कृत्रिम झीलों का निर्माण किया। एक साल अत्यंत असाधारण वर्षा हुई, इतनी अधिक कि मानव स्मृति में उतनी वर्षा कभी हुई नहीं थी। इस जल प्रवाह के कारण झीलें इस प्रकार उमड़ पड़ी कि इन झीलों के निमित्त जो बांध बनाये गये थे, और जो किसी साधारण वर्षा के निमित्त पर्याप्त सशक्त थे, अचानक टूट गये।

इतने तीव्र जल प्रवाह के परिणामस्वरूप वादी के चार पुल बह गये। वादी ने इस क्षति के निमित्त नुकसानी प्राप्त करने के लिये कार्यवाही की यह धारित किया गया कि प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं थे, क्योंकि इस मामले में दुर्घटना का कारण दैवकृत था।

अवश्यम्भावी दुर्घटना (Inevitable Accident)

लार्ड डोनेडिन ने फारण्डीन बनाम हरकोर्ट रिविंगटन (1932) के मामले में कहा था- “मनुष्य को युक्तियुक्त संभाव्यताओं के प्रति सजग रहना चाहिये किन्तु वह कल्पित संभाव्यताओं के प्रति सजग रहने के लिये बाध्य नहीं है।’

सर फ्रेडरिक पोलक के अनुसार : “अवश्यम्भावी दुर्घटना, वह घटना होती है जिसे साधारण बुद्धि का व्यक्ति उन परिस्थितियों में आवश्यक सावधानी या सतर्कता बरतने के बावजूद भी रोक नहीं सकता, जिनमें वह घटित होती हैं।”

अतः हम कह सकते हैं कि यदि दुर्घटना ऐसी हो जिसका पूर्वानुमान नहीं किया जा सकता तो इसे अनिवार्य दुर्घटना या अवश्यम्भावी दुर्घटना कहा जाएगा। यह ऐसी घटना होती है जो किसी व्यक्ति द्वारा सामान्य सावधानी या कौशल के प्रयोग द्वारा रोकी नहीं जा सकती।

केस:- स्टेनले बनाम पॉवेल, (1891) 11 क्यू. बी. 86 

के मामले में वादी और प्रतिवादी शिकार पार्टी के सदस्य थे। प्रतिवादी ने एक पक्षी पर गोली चलाई जो एक पेड़ से टकराकर वादी को लग गई जिसके कारण वह क्षतिग्रस्त हो गया। वादी ने क्षतिपूर्ति के लिये वाद दायर किया जिसमें न्यायालय द्वारा निर्णय दिया गया कि वादी को जो क्षति पहुँची वह अवश्यम्भावी दुर्घटना के कारण हुई अतः प्रतिवादी उत्तरदायी नहीं है।

केस:-ब्राउन बनाम केन्डल, (1860) 

के मामले में वादी और प्रतिवादी के कुत्ते आपस में लड़ रहे थे। प्रतिवादी उनको छड़ी मारकर अलग करने का प्रयास कर रहा था तभी समीप खड़े वादी को आँख में चोट लग गई। वादी ने क्षतिपूर्ति के लिये वाद दायर किया जिसमें निर्णय दिया गया कि यह एक अवश्यम्भावी दुर्घटना थी जिसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती।

अवश्यम्भावी घटना एवं दैवकृत में अन्तर : अवश्यम्भावी घटना में प्राकृतिक बल कार्य नहीं करता यह ऐसी घटना होती है जो साधारण बुद्धि का व्यक्ति उन परिस्थितियों में आवश्यक सावधानी या सतर्कता बरतने के बावजूद भी रोक नहीं सकता जबकि दैवकृत प्राकृतिक बल पर आधारित घटना होती है जिसका मनुष्य से कोई संबंध नहीं होता जिसे मनुष्य चाहे कितनी भी सावधानी बरते रोक नहीं सकता। बाढ़, ज्वालामुखी, भूकम्प, आँधी, तूफान, सुनामी आदि दैवकृत के उदाहरण हैं।

FAQ

  1. दैवकृत क्या है ?

    पोलक के अनुसार :- “दैवकृत प्राकृतिक बलों के उस परिचालन को कहते हैं जो इतना अप्रत्याशित होता है कि मनुष्य के किसी पूर्वानुमान या कौशल से उचित रूप से उसके अनुमान की प्रत्याशा नहीं की जा सकती।”

  2. दैवकृत की प्रतिरक्षा के लिये आवश्यक तत्व क्या है ?

    दैवकृत की प्रतिरक्षा के लिये दो आवश्यक तत्व है –
    (1) प्राकृतिक बल | 
    (2) घटना असाधारण हो जिसका न तो पूर्वानुमान किया जा सकता हो और न उसे टाला जा सकता हो।

संदर्भ- 

1. अपकृत्य विधि-आर.के. बंगिया

2. अपकृत्य विधि- जयनारायण पाण्डेय

3. अपकृत्य विधि- एम एन शुक्ला