सीआरपीसी की धारा 164 :- संस्वीकृतियों और कथनों को अभिलिखित करना —
(1) कोई महानगर मजिस्ट्रेट या न्यायिक मजिस्ट्रेट, चाहे उसे मामले में अधिकारिता हो या न हो, इस अध्याय के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन किसी अन्वेषण के दौरान या तत्पश्चात् जांच या विचारण प्रारंभ होने के पूर्व किसी समय अपने से की गई किसी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित कर सकता है :
परन्तु यह कि इस उपधारा के अधीन की गई कोई संस्वीकृति या कथन, किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के अधिवक्ता की उपस्थिति में श्रव्य-दृश्य इलेक्ट्रानिक माध्यम से भी अभिलिखित किया जा सकेगा :
परन्तु यह और कि कोई संस्वीकृति ऐसे किसी पुलिस अधिकारी द्वारा अभिलिखित नहीं की जाएगी जिसे तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन मजिस्ट्रेट की शक्ति प्रदान की गई है ।
(2) मजिस्ट्रेट किसी ऐसी संस्वीकृति को अभिलिखित करने के पूर्व उस व्यक्ति को, जो संस्वीकृति कर रहा है, यह समझाएगा कि वह ऐसी संस्वीकृति करने के लिए आबद्ध नहीं है और यदि वह उसे करेगा तो वह उसके विरुद्ध साक्ष्य में उपयोग में लाई जा सकती है; और मजिस्ट्रेट कोई ऐसी संस्वीकृति तब तक अभिलिखित न करेगा जब तक उसे करने वाले व्यक्ति से प्रश्न करने पर उसको यह विश्वास करने का कारण न हो कि वह स्वेच्छा से की जा रही है।
(3) संस्वीकृति अभिलिखित किए जाने से पूर्व यदि मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने वाला व्यक्ति यह कथन करता है कि वह संस्वीकृति करने के लिए इच्छुक नहीं है तो मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति के पुलिस की अभिरक्षा में निरोध को प्राधिकृत नहीं करेगा।
(4) ऐसी संस्वीकृति किसी अभियुक्त व्यक्ति की परीक्षा को अभिलिखित करने के लिए धारा 281 में उपबंधित रीति से अभिलिखित की जाएगी और संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति द्वारा उस पर हस्ताक्षर किए जाएंगे; और मजिस्ट्रेट ऐसे अभिलेख के नीचे निम्नलिखित भाव का एक ज्ञापन लिखेगा :
मैंने (नाम) को यह समझा दिया है कि वह संस्वीकृति करने के लिए आबद्ध नहीं है और यदि वह ऐसा करता है तो कोई संस्वीकृति, जो वह करेगा, उसके विरुद्ध साक्ष्य में भी उपयोग में लाई जा सकती। है और मुझे विश्वास है कि यह संस्वीकृति स्वेच्छा से की गई है। यह मेरी उपस्थिति में और मेरे सुनते हुए लिखी गई है और जिस व्यक्ति ने यह संस्वीकृति की है उसे यह पढ़कर सुना दी गई है और उसने उसका सही होना स्वीकार किया है और उसके द्वारा किए गए कथन का पूरा और सही वृत्तांत इसमें है।
(हस्ताक्षर) क.ख.
मजिस्ट्रेट
(5) उपधारा (1) के अधीन किया गया (संस्वीकृति से भिन्न) कोई कथन साक्ष्य अभिलिखित करने के लिए इसमें इसके पश्चात् उपबंधित ऐसी रीति से अभिलिखित किया जाएगा जो मजिस्ट्रेट की राय में, मामले की परिस्थितियों में सर्वाधिक उपयुक्त हो; तथा मजिस्ट्रेट को उस व्यक्ति को शपथ दिलाने की शक्ति होगी जिसका कथन इस प्रकार अभिलिखित किया जाता है।
(5क) (क) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 354, धारा 354क, धारा 354ख, धारा 354ग, धारा 354घ, धारा 376 की उपधारा (1) या उपधारा (2), धारा 376क, धारा 376कख, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ, धारा 376घक, धारा 376घख], धारा 376ङ या धारा 509 के अधीन दण्डनीय मामलों में न्यायिक मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति का, जिसके विरुद्ध उपधारा (5) में विहित रीति में, ऐसा अपराध किया गया है, कथन जैसे ही अपराध का किया जाना पुलिस की जानकारी में लाया जाता है, अभिलिखित करेगा :
परन्तु यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से नि:शक्त है, तो मजिस्ट्रेट कथन अभिलिखित करने में किसी द्विभाषिए या विशेष प्रबोधक की सहायता लेगा :
परन्तु यह और कि यदि कथन करने वाला व्यक्ति अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से नि:शक्त है तो किसी द्विभाषिए या विशेष प्रबोधक की सहायता से उस व्यक्ति द्वारा किए गए कथन की वीडियो फिल्म तैयार की जाएगी।
(ख) ऐसे किसी व्यक्ति के, जो अस्थायी या स्थायी रूप से मानसिक या शारीरिक रूप से नि:शक्त है, खंड (क) के अधीन अभिलिखित कथन को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (1872 का 1) की धारा 137 में यथा विनिर्दिष्ट मुख्य परीक्षा के स्थान पर एक कथन समझा जाएगा और ऐसा कथन करने वाले की, विचारण के समय उसको अभिलिखित करने की आवश्यकता के बिना, ऐसे कथन पर प्रतिपरीक्षा की जा सकेगी।
(6) इस धारा के अधीन किसी संस्वीकृति या कथन को अभिलिखित करने वाला मजिस्ट्रेट, उसे उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा जिसके द्वारा मामले की जांच या विचारण किया जाना है।
राज्य संशोधन
छत्तीसगढ़ — धारा 164 की उपधारा (5क) के खण्ड (क) में, अंकों एवं शब्दों “या धारा 509” के स्थान पर विरामचिन्ह, शब्दों एवं अंकों , धारा 376च, धारा 509, धारा 509क या धारा 509ख’ प्रतिस्थापित किया जाए।
[देखें दण्ड विधि (छ.ग. संशोधन) अधिनियम, 2013 (क्र. 25 सन् 2015), धारा 9 (दिनांक 21-7-2015 से प्रभावशील)। छ.ग. राजपत्र (असाधारण) दिनांक 21-7-2015 पृष्ठ 777-778(9) पर प्रकाशित ।
164 CrPC in hindi :- Recording of confessions and statements —
(1) Any Metropolitan Magistrate or Judicial Magistrate may, whether or not he has jurisdiction in the case, record any confession or statement made to him in the course of an investigation under this Chapter or under any other law for the time being in force, or at any time afterwards before the commencement of the inquiry or trial :
Provided that no confession shall be recorded by a police officer on whom any power of a Magistrate has been conferred under any law for the time being in force.
Provided that any confession or statement made under this sub-section may also be recorded by audio-video electronic means in the presence of the advocate of the person accused of an offence :
Provided further that no confession shall be recorded by a police officer on whom any power of a Magistrate has been conferred under any law for the time being in force.
(2) The Magistrate shall, before recording any such confession, explain to the person making it that he is not bound to make a confession and that, if he does so, it may be used as evidence against him; and the Magistrate shall not record any such confession unless, upon questioning the person making it, he has reason to believe that it is being made voluntarily.
(3) If at any time before the confession is recorded, the person appearing before the Magistrate states that he is not willing to make the confession, the Magistrate shall not authorise the detention of such person in police custody.
(4) Any such confession shall be recorded in the manner provided in section 281 for recording the examination of an accused person and shall be signed by the person making the confession; and the Magistrate shall make a memorandum at the foot of such record to the following effect :
“I have explained to ……………….. (name) that he is not bound to make a confession and that, if he does so, any confession he may make, may be used as evidence against him and I believe that this confession was voluntarily made. It was taken in my presence and hearing and was read over to the person making it and admitted by him to be correct and it contains a full and true account of the statement made by him.
(Signed) A.B.
“Magistrate”.
(5) Any statement (other than a confession) made under sub-section (1) shall be recorded in such manner hereinafter provided for the recording of evidence as is, in the opinion of the Magistrate, best fitted to the circumstances of the case and the Magistrate shall have power to administer oath to the person whose statement is so recorded. सीआरपीसी की धारा 164
(5A) (a) In cases punishable under section 354, section 354A, section 354B, section 354C, section 354D, sub-section (1) or sub-section (2) of section 376, ?[section 376A, section 376AB, section 376B, section 376C, section 376D, section 376DA, section 376DB), section 376E or section 509 of the Indian Penal Code (45 of 1860), the Judicial Magistrate shall record the statement of the person against whom such committed in the manner prescribed in sub-section (5), as soon as the commission of the offence is brought to the notice of the police : सीआरपीसी की धारा 164
Provided that if the person making the statement is temporarily or permanently mentally or physically disabled, the Magistrate shall take the assistance of an interpreter or a special educator in recording the statement :
Provided further that if the person making the statement is temporarily or permanently mentally or physically disabled, the statement made by the person, with the assistance of an interpreter or a special educator, shall be video graphed. सीआरपीसी की धारा 164
(b) A statement recorded under clause (a) of a person, who is temporarily or permanently mentally or physically disabled, shall be considered a statement in lieu of examination-in-chief, as specified in section 137 of the Indian Evidence Act, 1872 (1 of 1872) such that the maker of the statement can be cross-examined on such statement, without the need for recording the same at the time of trial.
(6) The Magistrate recording a confession or statement under this section shall forward it to the Magistrate by whom the case is to be inquired into or tried.