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गर्भ का चिकित्सीय समापन | medical termination of pregnancy in hindi

medical termination of pregnancy act 1971

गर्भ का चिकित्सीय समापन (medical termination of pregnancy in hindi )

परिचय:- 

व्यापक रूप से गर्भपात की अनुमति पर दो किस्म की राय हैं। एक राय यह है कि गर्भपात कराना एक गर्भवती महिला की अपनी मर्जी, और उसके प्रजनन अधिकार का मामला है। दूसरी तरह का विचार यह कहता है कि जीवन की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है, इसलिए उसे भ्रूण को संरक्षण प्रदान करना चाहिए। विश्व के विभिन्न देशों में गर्भपात के लिए अपनी-अपनी शर्तें और समय अवधियां निर्धारित हैं जोकि अनेक कारणों पर आधारित हैं जैसे फीटल लायबिलिटी (किस बिंदु पर भ्रूण गर्भाशय के बाहर जीवित रह सकता है), भ्रूण का असामान्य होना या गर्भवती महिला को खतरा।

 

क्या गर्भपात भारतीय दंड संहिता 1860 में अपराध है:-

भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है अगर कोई गर्भवती स्त्री स्वेचछा से गर्भपात कराती है और यदि ऐसा उस स्त्री का जीवन बचाने के लिए आवश्यक नहीं है तब यह एक अपराध होगा एवं 3 साल के कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडनीय होगा |

 

भारत में गर्भ का समापन:-

भारत में ,भारतीय दंड संहिता ,1860 के अंतर्गत स्वेच्छा से गर्भपात करना क्रिमिनल अपराध माना जाता है |गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम 1971 (medical termination of pregnancy act 1971 ) आईपीसी के अपवाद के रूप में काम करता है इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत गर्भ का चिकित्सीय समापन कुछ परिस्थितियों में कराया जा सकता है|

 

गर्भ के चिकित्सीय समापन (medical termination of pregnancy )का अर्थ:-

गर्भ के चिकित्सीय समापन अधिनियम , 1971 में गर्भ के चिकित्सीय समापन की कोई परिभाषा या अर्थ नहीं दिया गया पर गर्भ के चिकित्सीय समापन संशोधन बिल ,2020 की धारा 2(e)  के अनुसार- “गर्भ के चिकित्सीय समापन का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसमें गर्भ का मेडिकल और सर्जिकल माध्यम से समापन किया जाता है”|

 

किन परिस्थितियों में गर्भपात(medical termination of pregnancy )कराया जा सकता है:-

गर्भ का  चिकित्सीय समापन अधिनियम ,1971 (medical termination of pregnancy act 1971 )के अनुसार कोई गर्भ राष्ट्रीय कृत चिकित्सा व्यवसाई द्वारा इन परिस्थितियों में समाप्त किया जा सकता है जब-

(क) जहां गर्भ 12 सप्ताह से अधिक का न हो, वहां यदि ऐसे चिकित्सा-व्यवसायी ने, अथवा

(ख) जहां गर्भ 12 सप्ताह से अधिक का हो किन्तु 20 सप्ताह से अधिक का न हो, वहां यदि दो से अन्यून रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायियों ने,

सद्भावपूर्वक यह राय कायम की हो कि-

(i) गर्भ के बने रहने से गर्भवती स्त्री का जीवन जोखिम में पड़ेगा अथवा उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति की जोखिम होगी; अथवा

(ii) इस बात की पर्याप्त जोखिम है कि यदि बच्चा पैदा हुआ तो वह ऐसी शारीरिक या मानसिक अप्रसामान्यताओं से पीड़ित होगा कि वह गंभीर रूप से विकलांग हो,

तो वह गर्भ रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायी द्वारा समाप्त किया जा सकेगा ।

 

मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति क्या  है?

जहां किसी गर्भ के बारे में गर्भवती स्त्री द्वारा यह अभिकथन किया जाए कि वह बलात्संग द्वारा हुआ तो ऐसे गर्भ के कारण होने वाले मनस्ताप के बारे में यह उपधारणा की जाएगी कि वह गर्भवती स्त्री के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति है |

जहां किसी विवाहिता स्त्री या उसके पति द्वारा बच्चों की संख्या सीमित रखने के प्रयोजन से उपयोग में लाई गई किसी प्रयुक्ति या व्यवस्था की असफलता के फलस्वरूप कोई गर्भ हो जाए वहां ऐसे अवांछित गर्भ के कारण होने वाले मनस्ताप के बारे में यह उपधारणा की जा सकेगी कि वह गर्भवती स्त्री के मानसिक स्वास्थ्य को गम्भीर क्षति है ।

 

वह स्थान जहां गर्भ समाप्त किया जा सकेगा:-

गर्भवती चिकित्सीय समापन अधिनियम के अनुसार किसी गर्भ का समापन निम्नलिखित से भिन्न किसी स्थान पर नहीं किया जाएगा, –

(क) सरकार द्वारा स्थापित या पोषित अस्पताल; अथवा

(ख) कोई स्थान, जो तत्समय इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए सरकार या उस सरकार द्वारा गठित किसी ऐसी जिला स्तर समिति द्वारा अनुमोदित हो जहां उक्त समिति के अध्यक्ष के रूप में मुख्य चिकित्सा अधिकारी या जिला स्वास्थ्य अधिकारी हो:

रजिस्ट्रीकृत चिकित्साव्यवसायी कौन है:-

गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 (medical termination of pregnancy act 1971 )की धारा 2(घ) “रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा-व्यवसायी” से ऐसा चिकित्सा-व्यवसायी अभिप्रेत है जो भारतीय चिकित्सा परिषद् अधिनियम, 1956 (1956 का 102) की धारा 2 के खण्ड (ज) में यथापरिभाषित मान्यताप्राप्त चिकित्सीय अर्हता रखता है तथा जिसका नाम राज्य चिकित्सक रजिस्टर में दर्ज कर लिया गया है; और जिसने स्त्रीरोग-विज्ञान और प्रसूति-विज्ञान में ऐसा अनुभव या प्रशिक्षण प्राप्त किया है जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए ।

 

मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेंसी (Medical Termination of Pregnancy) (संशोधन) बिल 2020:-

बिल medical termination of pregnancy act 1971  में संशोधन करता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी (संशोधन) बिल, 2020 को 2 मार्च, 2020 को लोकसभा में पेश किया गया और 17 मार्च, 2020 को पारित किया गया। एवं 16 मार्च 2021 को राज्यसभा से भी पारित कर दिया गया है

यह कुछ श्रेणी की महिलाओं के लिए गर्भपात की ऊपरी सीमा को 20 से 24 हफ्ते करने के लिए एक्ट में संशोधन करता है, असामान्य भ्रूण के मामले में इस सीमा को हटाता है, और राज्य स्तर पर मेडिकल बोर्ड्स का गठन करता है।

 

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी (medical termination of pregnancy) (संशोधन) बिल, 2020 के उद्देश्यों और कारण:-

बिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में ऐसे कई मामले दायर किए गए हैं जिनमें असामान्य भ्रूण या बलात्कार के कारण गर्भधारण के आधार पर 20 हफ्ते के बाद गर्भपात कराने की अनुमति मांगी गई है।  इसमें यह भी कहा गया है कि मेडिकल टेक्नोलॉजी के उन्नत होने के साथ, गर्भपात की ऊपरी सीमा को बढ़ाने की गुंजाइश है, खास तौर से संवेदनशील महिलाओं के लिए, और भ्रूण के गंभीर रूप से विकृत (अबनॉर्मल) होने पर |

 

गर्भावस्था के विभिन्न चरणों में गर्भपात कराने की शर्तों में प्रस्तावित परिवर्तन:-

 

गर्भावस्था के चरण गर्भपात की शर्तें
एमटीपी एक्ट, 1971 एमटीपी (संशोधन) बिल, 2020 
12 हफ्ते तक एक डॉक्टर की सलाह से एक डॉक्टर की सलाह से
12 से 20 हफ्ते दो डॉक्टरों की सलाह से एक डॉक्टर की सलाह से
20 से 24 हफ्ते तक अनुमति नहीं कुछ श्रेणी की महिलाओं के लिए दो डॉक्टरों की सलाह से
24 हफ्ते से अधिक अनुमति नहीं भ्रूण के अत्यधिक विकृत होने पर मेडिकल बोर्ड की सलाह से
गर्भावस्था के दौरान कभी भी एक डॉक्टर, अगर गर्भवती महिला का जीवन बचाने के लिए तत्काल ऐसा करना जरूरी हो एक डॉक्टर, अगर गर्भवती महिला का जीवन बचाने के लिए तत्काल ऐसा करना जरूरी हो

 

बिल के लाभ-

  1. बिल अविवाहित महिलाओं को गर्भपात कराने की अनुमति देता है- गर्भनिरोध के तरीके या साधन के असफल होने पर गर्भपात: एक्ट के अंतर्गत, गर्भनिरोध के तरीके या साधन के असफल होने पर विवाहित महिला 20 हफ्ते तक गर्भपात करा सकती है। बिल अविवाहित महिलाओं को इस कारण से गर्भपात कराने की अनुमति देता है।
  2. मेडिकल बोर्ड्स: सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें मेडिकल बोर्ड बनाएंगी। बोर्ड यह तय करेगा कि क्या भ्रूण के अत्यधिक असामान्य होने की स्थिति में 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराया जा सकता है। हर बोर्ड में गायनाकोलॉजिस्ट, पीडियाट्रीशियन, रेडियोलॉजिस्ट/सोनोलॉजिस्ट और राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित सदस्य होंगे।
  3. प्राइवेसी: रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टीशनर सिर्फ कानून द्वारा अधिकृत व्यक्ति को ही गर्भपात कराने वाली महिला का विवरण दे सकता है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों भुगतने पड़ेंगे

 

बिल की कमियां-

  1. 20-24 हफ्ते के बीच गर्भपात करा सकने वाली महिलाओं की श्रेणियां निर्दिष्ट नहीं– बिल कुछ श्रेणी की महिलाओं को 20 से 24 हफ्ते के बीच गर्भपात कराने की अनुमति देता है। केंद्र सरकार इन श्रेणियों को अधिसूचित करेगी। यह कहा जा सकता है कि 20 से 24 हफ्ते के बीच गर्भपात करा सकने वाली महिलाओं की श्रेणियों को संसद द्वारा निर्दिष्ट किया जाना चाहिए और यह काम सरकार को नहीं सौंपा जाना चाहिए।
  2. मेडिकल बोर्ड के फैसले की समय सीमा निर्दिष्ट नहींबिल कहता है कि भ्रूण के अत्यधिक असामान्य होने पर मेडिकल बोर्ड की सलाह से 24 हफ्ते के बाद गर्भपात कराया जा सकता है। लेकिन बिल यह नहीं बताता कि बोर्ड को कितने समय में अपना फैसला देना होगा। गर्भपात एक संवेदनशील मामला है और मेडिकल बोर्ड के फैसला लेने में विलंब होने से गर्भवती महिला की अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  3. क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी दायरे में आएंगे, यह स्पष्ट नहींचूंकि एक्ट और बिल सिर्फ महिलाओं के मामले में गर्भपात का प्रावधान करता है, यह स्पष्ट नहीं कि क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति भी इस बिल के दायरे में आएंगे।
  4. गर्भपात कराने के लिए क्वालिफाइड मेडिकल प्रोफेशनल्स न मिलनाबिल के उद्देश्यों और कारणों के कथन के अनुसार, असुरक्षित गर्भपात और संबंधित समस्याओं के कारण मातृत्व मृत्यु दर और रोगों को कम करने के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं की पहुंच वैध और सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक हो।2 अखिल भारतीय ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी (2018-19) में बताया गया है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 1,351 गायनाकोलॉजिस्ट और अब्स्टेट्रिशियन्स हैं और 4,002 की कमी है, यानी क्वालिफाइड डॉक्टरों की 75% कमी है|

दंड के प्रावधान:-

गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 में-

  1. किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा गर्भ का समापन, जो रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी नहीं है, उस संहिता के अधीन ऐसा अपराध होगा, जो कठोर कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय अपराध होगा और वह संहिता इस सीमा तक उपांतरित हो जाएगी ।
  2. जो कोई, धारा 4 में उल्लिखित से भिन्न स्थान में किसी गर्भ का समापन करेगा वह कठोर कारावास से, जिसकी अवधि 2 वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु जो 7 वर्ष तक की हो सकेगी, दंडनीय होगा

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेन्सी (संशोधन) बिल, 2020 में-

  1. बिल के अनुसार, पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर को किसी व्यक्ति के समक्ष उस महिला के नाम और उसके अन्य विवरण का खुलासा करने की अनुमति नहीं है जिसका गर्भपात किया जाना है। वह सिर्फ उसी व्यक्ति के समक्ष यह खुलासा कर सकता है जिसे किसी कानून के अंतर्गत अधिकृत किया गया है। इस प्रावधान का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों भुगतने पड़ेंगे।

विश्व मे गर्भ के चिकित्सीय समापन की स्थिति:-

अनेक देशों में एक निश्चित समय अवधि तक गर्भपात की अनुमति है, साथ ही कुछ शर्तें भी हैं। उदाहरण के लिए यूके में निम्नलिखित आधार पर किसी भी समय गर्भपात कराया जा सकता है:

  • महिला के जीवन को बचाने के लिए,
  • महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को होने वाले गंभीर नुकसान को रोकने के लिए, या
  • अगर बच्चे के गंभीर रूप से विकलांग होने का खतरा है।

दक्षिण अफ्रीका में एक महिला के अनुरोध पर 12 हफ्ते तक गर्भपात कराया जा सकता है और निम्नलिखित के आधार पर 12 से 20 हफ्ते के बीच गर्भपात कराया जा सकता है, अगर:

  • इससे महिला के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को खतरा है,
  • भ्रूण के असामान्य होने का खतरा है,
  • बलात्कार के कारण ऐसा हुआ है, या
  • गर्भावस्था बरकरार रहने से महिला की सामाजिक-आर्थिक स्थिति प्रभावित होगी। वहां 20 हफ्ते के बाद भी गर्भपात की अनुमति है, अगर महिला या भ्रूण के जीवन को खतरा है, या भ्रूण के असामान्य होने का खतरा है

कुछ देशों, जैसे यूएस में, अलग-अलग राज्यों में गर्भपात कानून अलग-अलग हैं

निष्कर्ष:-

बढ़ती टेक्नोलॉजी एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ एवं महिलाओं के प्रजनन के अधिकार को ध्यान में रखते हुए आवश्यकता है कि पुराने कानूनों को संशोधित किया जाए एवं गर्भपात की समय अवधि बढ़ाई जाए परंतु इसके साथ-साथ या केंद्र एवं राज्य सरकार एवं जिम्मेदार अथॉरिटीज का भी कर्तव्य है कि कानून का सही रूप से पालन किया जाए कोई भी व्यक्ति इसका दुरुपयोग ना कर पाए |

सन्दर्भ:-

https://www.prsindia.org/

https://www.livelaw.in/

https://www.barandbench.com/

https://www.pib.gov.in/

 

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यह आर्टिकल ANIL SHAHNI के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B. VI th सेमेस्टर Dr. Harisingh Gour central University,sagar के छात्र है | anil shahni