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भगवानदास बनाम मेसर्स गिरधारीलाल एण्ड कम्पनी 1966 | Bhagwandas v. M/s. Girdhari Lal & Co. A.1.R. 1966, S.C. 543

भगवानदास बनाम मेसर्स गिरधारीलाल एण्ड कम्पनी 1966 | Bhagwandas v. M/s. Girdhari Lal & Co. A.1.R. 1966, S.C. 543

भगवानदास बनाम मेसर्स गिरधारीलाल एण्ड कम्पनी 1966

भगवानदास बनाम मेसर्स गिरधारीलाल एण्ड कम्पनी का वाद प्रस्ताव के टेलीफोन या टेलेक्स द्वारा स्वीकृति से सम्बन्धित है।

भगवानदास बनाम मेसर्स गिरधारीलाल एण्ड कम्पनी वाद के तथ्य तथा विवाद –

इस वाद में प्रतिवादी का कथन था कि वादी ने टेलीफोन द्वारा बिनौले की खली (Cotton Cake Seed) के क्रय के लिये प्रस्ताव किया था तथा उस प्रस्ताव को खामगाँव में स्वीकार किया गया था। संविदा के अन्तर्गत वस्तुयें खामगाँव में परिदत्त की जानी थी तथा उनका मूल्य भी खामगाँव में चुकाया जाना था।

अतः प्रतिवादी का कथन था कि खामगाँव के नगर न्यायालय (City Court) को ही इस वाद को निर्णीत करने की अधिकारिता थी। दूसरी ओर वादी का कथन था कि अहमदाबाद के नगर- न्यायालय को इस वाद की अधिकारिता थी, क्योंकि प्रतिवादी ने बिनौले की खली बेचने का प्रस्ताव किया था जिसे कि उसने अहमदाबाद में स्वीकार किया था।

अतः न्यायालय के सम्मुख यह प्रश्न था कि यदि स्वीकृति टेलीफोन से की जाती है तो संविदा कब पूर्ण होती है? परीक्षण न्यायालय ने निर्णय दिया था कि जब टेलीफोन से स्वीकृति होती है तो संविदा उस स्थान पर पूर्ण होती है जहाँ पर कि प्रतिज्ञाग्रहीता को स्वीकृति सूचित की जाती है। अतः न्यायालय ने निर्णय दिया था कि संविदा अहमदाबाद में पूर्ण हुई। अतः अहमदाबाद के नगर न्यायालय को ही अधिकारिता थी। इस आदेश के विरुद्ध प्रतिवादी ने उच्च न्यायालय में पुनरीक्षण के लिए एक प्रार्थना पत्र दिया जिसे कि गुजरात उच्च न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया। उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध प्रतिवादी ने प्रस्तुत अपील विशेष अनुमति से उच्चतम न्यायालय में दायर की।

भगवानदास बनाम मेसर्स गिरधारीलाल एण्ड कम्पनी वाद का निर्णय-

उच्चतम न्यायालय ने बहुमत से अपील को खारिज कर दिया तथा धारित (held) किया कि. जब संविदा टेलीफोन के द्वारा होती है तो डाक या तार के सम्बन्ध में स्वीकृति का नियम लागू नहीं होता।

भगवानदास बनाम मेसर्स गिरधारीलाल एण्ड कम्पनी वाद में प्रतिपादित सिद्धान्त-

उच्चतम न्यायालय ने बहुमत से यह नियम प्रतिपादित किया कि जब संविदा टेलीफोन द्वारा होती है तो संविदा उस समय तथा उस स्थान पर पूर्ण होती है जिस स्थान पर प्रतिज्ञाग्रहोता को स्वीकृति की सूचना दी जाती है। बहुमत से निर्णय देते हुये न्यायाधीश शाह (Shah. J.) ने कहा कि टेलीफोन द्वारा बातचीत में एक अर्थों में पक्षकार एक-दूसरे की उपस्थिति में होते हैं, और एक पक्षकार दूसरे पक्षकार की आवाज को सुन सकता है। अतः इसमें डाक या तार द्वारा स्वीकृति का नियम लागू नहीं हो सकता।

विपरीत निर्णय (Dissenting Judgment)

न्यायाधीश हिदायतउल्लाह (Hidayatullah, J3 उपर्युक्त सिद्धान्त से सहमत नहीं थे अतः उन्होंने अपना विपरीत निर्णय दिया। उनके मतानुसार संविदा अधिनियम की धारा 4 टेलीफोन या टेलेक्स द्वारा संविदा के विषय में वही नियम प्रतिपादित करती है जो डाक या तार के लिये है।

अतः न्यायाधीश हिदायतउल्लाह के अनुसार संविदा खामगाँव में पूर्ण हुई, क्योंकि वहाँ पर स्वीकृतिक ने स्वीकृति के शब्द बोले थे। अतः खामगाँव के नगर न्यायालय को इस वाद में क्षेत्राधिकार था।

भगवानदास बनाम मेसर्स गिरधारीलाल एण्ड कम्पनी वाद का निष्कर्ष –

अपील को खारिज करते हुये उच्चतम न्यायालय ने यह नियम प्रतिपादित किया कि टेलीफोन या टेलेक्स से स्वीकृति के विषय में डाक या तार द्वारा स्वीकृति का नियम लागू नहीं होता। स्वीकृति का सामान्य नियम यह है कि इसकी संसूचना प्रतिज्ञाग्रहीता को की जानी चाहिए। डाक या तार द्वारा स्वीकृति इस नियम का अपवाद है। टेलीफोन द्वारा स्वीकृति में यह अपवाद लागू नहीं होता है।

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