हमारा कानून

प्रत्यक्ष साक्ष्य एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्य में अंतर | Difference Between Direct Evidence and Circumstantial Evidence in hindi

प्रत्यक्ष साक्ष्य एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्य में अंतर

प्रत्यक्ष साक्ष्य एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्य में अंतर

प्रत्यक्ष साक्ष्य  किसे कहते हैं?-

प्रत्यक्ष साक्ष्य वह साक्ष्य है जिसकी अनुभूति साक्षी ने स्वयं अपनी इंद्रियों द्वारा की हो। अर्थात किसी मामले से संबंधित घटना को अपनी आंखों से घटित होते हुए देखने वाले व्यक्ति का साक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य कहलाता है।

प्रत्यक्ष साक्ष्य निकटतम होना चाहिए। उसे दूरस्थ या किसी दूसरे माध्यम से निकाला हुआ नहीं होना चाहिए।

उदाहरण:- ख पर हत्या के अपराध का आरोप लगाया गया। क ने न्यायालय के समक्ष कहा कि उसने ग् का वध करते हुए ख को देखा।क ने वध करते हुए देखा है,क का साक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य है।

परिस्थितिजन्य साक्ष्य किसे कहते हैं?-

परिस्थितिजन्य साक्ष्य:-जब किसी तथ्य को साबित करने के लिए प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं होता है तो ऐसी अवस्था में कुछ परिस्थितियों का सहारा लिया जाता है। यह परिस्थितियां घटना के इर्द गिर्द घूमने वाले तथ्य या सबूत होती हैं जिनका अवलोकन करने से यह पता चलता है कि कोई घटना वास्तव में घटी है, इसी को ‘परिस्थितिजन्य साक्ष्य या सुसंगत तथ्यों का साक्ष्य’ कहते हैं।

परिस्थिति जन्य साक्ष्य यद्यपि प्रत्यक्ष साक्ष्य या मूल साक्ष्य नहीं होता, किन्तु यह अनुश्रुत साक्ष्य से अधिक महत्वपूर्ण होता है। पेवी के शब्दों में, साक्षी झूठ बोल सकते हैं लेकिन परिस्थितियां नहीं।

केस:- उमेद भाई बनाम स्टेट ऑफ गुजरात (ए. आई. आर. 1978) एस सी 424.

इस मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य की महत्ता के बारे में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि प्रत्यक्ष साक्ष्य के अभाव में मात्र परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त को दंडित किया जा सकता है, बशर्तें की अभियोजन पक्ष जिन जिन परिस्थितियों को सामने लाए उनमें आपस में मेल हो और अभियुक्त को संदेह से परे दोषी साबित करने के लिए न्यायालय की निगाह में पूर्ण हो।

प्रत्यक्ष साक्ष्य एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्य में अंतर-

 

प्रत्यक्ष साक्ष्य (Direct Evidence) परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence)
 1. प्रत्यक्ष साक्ष्य विवादित घटना (तथ्यों) का प्रत्यक्ष साक्ष्य है।  1. पारिस्थितिक साक्ष्य उन परिस्थितियों का व्यपदेशन है जिनमें वास्तविक घटना घटित होती है।
 2. प्रत्यक्ष साक्ष्य यदि संतोषजनक है तो उस पर दोष सिद्धि आधारित हो सकती है।  2. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर प्रत्यक्ष साक्ष्य का अनुमान लगाया जा सकता है परंतु उसके आधार पर केवल तभी दंडित किया जा सकता है जब पारिस्थितिक साक्ष्य की प्रत्येक कड़ी पूरी हो जो अभियुक्त द्वारा मृतक की हत्या साबित करता है।
 3. प्रत्यक्ष साक्ष्य सर्वोत्तम साक्ष्य है।  3. परिस्थितिजन्य साक्ष्य अनुश्रुत साक्ष्य की अपेक्षा उत्तम साक्ष्य होता है परंतु उसका महत्व प्रत्यक्ष साक्ष्य की अपेक्षा कम होता है।
 4. प्रत्यक्ष साक्ष्य साक्ष्य का उच्चतम रूप है जिसमें घटना के बारे में उच्चतम स्तर की सच्चाई होती है।  4. परिस्थितिजन्य साक्ष्य प्रमाण के अनुमानित स्तर देता है इस प्रकार निर्णय में शामिल सत्य का स्तर कम होता है।
 5. प्रत्यक्ष प्रमाण के लिए किसी दूसरे सत्यापन की आवश्यकता नहीं होती है।  5. परिस्थितिजन्य साक्ष्य के लिए अनुमान को साबित करने के लिए कई ऐड-ऑन की आवश्यकता होती है।
 6. प्रत्यक्ष साक्ष्य अत्यधिक उद्देश्यपूर्ण है। यह या तो सीधे तौर पर किसी बात को साबित या अस्वीकृत करता है।  6. परिस्थितिजन्य साक्ष्य व्यक्तिपरक है और यह सीधे तौर पर कुछ भी साबित या अस्वीकृत नहीं करता है। यह स्थिति के आधार पर हुआ हो सकता है या नहीं भी हो सकता है।
7. प्रत्यक्ष साक्ष्य स्टैंड-अलोन (stand-alone) साक्ष्य है जो बिना किसी हस्तक्षेप के सीधे तथ्य को साबित करता है।  7. परिस्थितिजन्य साक्ष्य एक ऐसे तथ्य का निष्कर्ष है जो तार्किक तर्क से जुड़ा होता है।
8. प्रत्यक्षदर्शी अवलोकन का प्राथमिक तरीका है जो सीधे तथ्य की ओर इशारा करता है।  8. परिस्थितिजन्य साक्ष्य कई हो सकते हैं, जेसे -एक फिंगरप्रिंट की उपलब्धता , फोरेंसिक लैब रिपोर्ट, बाद में अवलोकन और एक निश्चित घटना की स्वीकारोक्ति जो तथ्य से जुड़ती है।

 

सन्दर्भ :

इसे भी पढ़े :-संस्वीकृति तथा मृत्युकालिक कथन में अंतर | difference between confession and dying declaration in hindi