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ENVIRONMENTAL LAW-पर्यावरण संरक्षण संविधान के दृष्टिकोण मे ( Environmental Protection from Constitutional Perspectives in hindi )

1: प्रस्तावना:-

भारत प्राचीन समय से ही पर्यावरण संरक्षण को लेकर सदैव सजग रहा, इसी कारण उसने संवैधानिक स्तर पर भी पर्यावरण संरक्षण की तरफ ध्यान दिया। हमारे देश में पर्यावरण के अनुकूल एक समृद्ध संस्कृति भी रही है यही कारण है कि देश में हर स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के प्रति ध्यान दिया गया और हमारे संविधान निर्माताओं ने इसका ध्यान रखते हुए संविधान में पर्यावरण की जगह सुनिश्चित की। पर्यावरण को संवैधानिक स्तर पर मान्यता देते हुए इसे सरकार और नागरिकों के संवैधानिक दायित्व से जोड़ा गया।

2: पर्यावरण की परिभाषा:-

SEC 2 (a) के अनुसार पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 :-

“पर्यावरण के अंतर्गत जल, वायु और भूमि तथा मानवीय प्राणी, अन्य जीवित प्राणी, पौधे, सूक्ष्म जीवाणु तथा सम्पत्ति में और उनके बीच विद्यमान अंतर्संबंध सम्मिलित हैं।”

अर्थात पर्यावरण के अंतर्गत निम्न दो सम्मिलित हैं — 1. जल, वायु तथा भूमि, और 2. जल, वायु और भूमि और मानव प्राणियों, अन्य जीवित प्राणियों, पौधों, सूक्ष्म जीव और संपत्ति के बीच विद्यमान अंतर्संबंध।

यह परिभाषा संपूर्ण नहीं बल्कि एक समावेशी परिभाषा है।

3: पर्यावरण संरक्षण और भारतीय संविधान के बीच संबंध:-

भारत का संविधान संभवतः विश्व के अनोखे संविधानों में से एक है जिसमें पर्यावरण संरक्षण के लिये विशेष उपबंध अन्तरविष्ट हैं। मूलतः संविधान में पर्यावरण के संरक्षण

और संवर्धन के लिये कोई विशेष उपबन्ध नही था। परन्त 1976 में संविधान (42 वां संशोधन) अधिनियम पारित किया गया जिसके द्वारा संविधान और अभिर्यक्त रूप से मुल कर्तव्य और राज्य की नीति के निदेशक तत्व के रूप में पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के लिये विशेष उपबंध सम्मिलित किए गए। संविधान का 42वाँ संशोधन अधिनियम स्टाकहोम घोषणा की प्रतिकिया में जिसको मानवीय पर्यावरण के अन्तर्राष्टीय सम्मेलन द्वारा 1972 में स्वीकार किया गया था अंगीकृत किया गया।

स्टाकहोम घोषणा में स्पष्ट रूप से कहा गया है –

सिद्धांत 1:- मनुष्य को उपयुक्त पर्यावरण में जीवन की स्वतंत्रता, गुणवत्ता और उपयुक्त स्थिति का मूल अधिकार है,जो गरिमा तथा सुव्यवस्थित जीवन को अनुमत करता है, और

सिद्धांत 2:- मनुष्य का वर्तमान तथा भविष्य पीढ़ी के लिये पर्यावरण का संरक्षण करने तथा सुधार करने के प्रति गम्भीर उत्तरदायित्व है।

सिद्धांत 4:- वन्य जीव की विरासत और उसके आवास का संरक्षण किया जाना चाहिये।

सिद्धांत 6:- आर्थिक तंत्र का संरक्षण किया जाना चाहिये तथा प्रदूषण के विरुद्ध संघर्ष किया जाना चाहिये |

सिद्धांत 7:- समुद्र के प्रदूषण का निवारण किया जाना चाहिये |

सिद्धांत 8:- जीवन की गुणवत्ता के सुधार के लिये मनुष्य के अनुकूल जीवन तथा कार्य करने के पर्यावरण को सुनिश्चित करने के लिये आर्थिक तथा सामाजिक विकास आवश्यक है।

सिद्धांत 11:- राज्य को अपनी विकास योजना के लिये एकीकत तथा समन्वयित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये |

सिद्धांत 12:- पर्यावरण से सम्बन्धित मामले में शिक्षा आवश्यक है और मुख्य प्रचार तंत्र का इसमें सहयोग होन चाहिये |

इस तरह स्टॉकहोम घोषणा एक प्रभावी दस्तावेज है, जिसके अनुसरण में पर्यावरण संरक्षण केवल देश की मूल विधि की स्थिति तक ही पूर्ण मानव गरिमा के साथ उन्रत नहीं हुआ है, बल्कि यह मानव अधिकार दृष्टकोण से जुडा हुआ है

और अब यह सुस्थापित हो गया हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में पूर्ण मानव गरिमा के साथ रहने का मूल मानव अधिकार है।

4: पर्यावरण संरक्षण और प्रस्तावना:-

हमारे संविधान की उद्देशिका में कहा गया है कि हमारा देश समाज के ‘समाजवादी’ स्वरूप पर आधारित है, जहां राज्य किसी व्यक्ति की समस्याओं की अपेक्षा सामाजिक समस्याओं पर अधिक ध्यान देता है। पर्यावरण प्रदूषण, जो सबसे बड़ी सामाजिक समस्याओं में से एक के रूप में उभरा है, को व्यापक रूप में समाज को प्रभावित करने वाली एक वास्तविक समस्या माना जा रहा है और इस प्रकार राज्य को समाजवाद के मूल उद्देश्य को पूरा करने का दायित्व है-सभी को एक प्रदूषण मुक्त वातावरण से जीवन स्तर प्रदान करना।

उद्देशिका में आगे घोषणा की गई है कि भारत के लोगों के लिए सभी नागरिकों को सुरक्षित करने के लिए जो महान अधिकार और स्वतंत्रताएं हैं, उनमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय शामिल है।न्याय में पर्यावरण न्याय भी शामिल है।हालांकि यहां पर्यावरण शब्द विशेष का कोई स्थान नहीं मिलता, फिर भी हम इसकी व्याख्या पर्यावरण न्याय को शामिल करने के लिए कर सकते हैं।पर्यावरण हमारे रोजमर्रा के जीवन में इस तरह प्रवेश कर चुका है कि देश के सामाजिकआर्थिक या सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य पर चर्चा करते समय हम पर्यावरण संबंधी मामलों पर विचार-विमर्श की उपेक्षा नहीं कर सकते।

पर्यावरणीय न्याय को K. S. दक्षिणमूर्ति के शब्दों में भी समर्थन मिलता है कि “पर्यावरण को विषय के रूप में, देश के सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक ढांचे के अंग रूप में चिंता और पर्यावरण का महत्व है.सच पूछा जाए तो उसने इस ढांचे में ऐसा प्रवेश किया कि ” के बिना कोई भी बौद्धिक, राजनैतिक या शैक्षणिक बहस पूर्ण नहीं होती।

उद्देशिका को भी भारत को ‘लोकतांत्रिक गणराज्य’ घोषित किया गया है |लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को सरकारी निर्णयों में भाग लेने का अधिकार होता है। उन्हें पर्यावरण नीतियों की सफलता के लिए बहुत महत्वपूर्ण सरकारी नीतियों को जानने और उन तक पहुंचने का अधिकार भी है।

5: पर्यावरण विधायी शक्तियां:-

साधारणतया पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कानूनो (Statutes) द्वारा किया जाता है। अतएव पर्यावरण की दृष्टि से विधायी शक्तियों के आबंटन की जानकारी महत्वपुर्ण है।

भारत ने परिसंघात्मक प्रणाली को अपनाया है जिसमें विधायी शक्तियों को संघ और राज्यों के चीव विभाजित किया गया है । संविधानिक योजना के अधीन विधायी शक्तियों की 3 सूचियां निर्मित की गई है|

(1) संघ सूची,

(2) राज्य सूची और

(3) समवर्ती सूची
स्थिति को स्पष्ट करने के लिये विभिन्न सुचियों में दिए गए पर्यावरण से संबंधित विषयो का उल्लेख किया जा रहा है….

1:संघ सूची:- विधि बनाने की संसद की शक्ति –

  • Entry 52- उद्योग
  • Entry 53- तेल क्षेत्रों और खनिज स्रोतों का विनियमन और विका
  • Entry-54- खानों का विनियमन और खनिजों का विकास
  • Entry 56- अन्तर्राज्यीय नदियों और नदी दोनों का विनियमन और

• Entry 57- राज्य क्षेत्रीय सागर खणड के मछली पकडना और मीन क्षेत्र

2: राज्य सूची :- विधि बनाने की राज्य विधान मंडलों की शक्ति –

  • Entry 6-लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता
  • Entry 14- कृषि, नाशक जीवों का संरक्षण और पादप रोगों का निवारण
  • Entry 18- भूमि और उपनिवेशन
  • Entry 21- मात्स्यिकी
  • Entry 23- सूची 1 के उपवन्धों के अधीन रहते हुए, खान और खनिज
  • Entry 24- सूची 1 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उद्योग –
  • Entry 10- शव गाड़ना और कब्रिस्तान , शह दाह और शमशान
  • Entry 15- पशुधन का परिरक्षण
  • Entry 16- कांजी हाउस और पशु अतिचार का निवारण
  • Entry 17- जल
  • Entry 25- गैस और गैस संकर्म

3: समवर्ती सूची :- संसद और राज्य विधान मण्डल दोनों विधि बनाने में सक्षम –

  • Entry 17A -वन
  • Entry 17B- वन्य जीवजंतुओं और पक्षियों का संरक्षण-
  • Entry 20- आर्थिक और सामाजिक योजन
  • Entry 20A-जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन
  • Entry 29- मानवों, जीव-जन्तुओं या पौधों पर प्रभाव डालने संक्रामक या सांसर्गिक रोगों अथवा नाशक जीवों के एकराज्य से दूसरे राज्य में फैलने का निवार
  • Entry 36- कारखाना
  • Entry 37- बॉलर
  • Entry 38- विद्युत

6: पर्यावरण निर्देशक सिद्धांत:-

संविधान के अनच्छेद 48A के अधीन पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने के लिये राज्य को निदेश दिया गया हैं। अनुच्छेद 48A राज्य की नीति के निदेशक तत्व के भाग में 42वां संशोधन अधिनियम, 1976 दारा अन्तः स्थापित किया गया था। अनुच्छेद 48A में पर्यावरण के प्रति बड़ी जोरदार घोषणा की गई है जो निम्रलिखित रूप में है…

राज्य देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।

CASE-M.C. Mehta v.Union of India (2002)

इस मामले में न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद39(e), 47 और 48A अपने आप में तथा सामूहिक रूप से लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा, लोक स्वास्थ्य में सुधार तथा पर्यावरण को सुधारने के लिए राज्य पर कर्तव्य डालता है।

7: भारत के अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय दायित्व:-

भारत में अनेक संधियों एवं करारें के माध्यम से क्षेत्रीय तथा विश्व्यापी पर्यावरणीय मुद्दों के सम्बन्ध में समझौता पक्षकार अथवा हस्ताक्षरकर्ता के रूप में दायित्व स्वीकार किया है।

संविधान के अनुच्छेद 51(c) में राज्य के नीति निदेशक तत्व के रूप में भारत ने “संगठित लोगों के एक दूसरे के व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं संधि बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने” का दायित्व स्वीकार किया है। संविधान के अनुच्छेद 253 में विशेष रूप से संसद को शक्ति दी गई है कि “किसी बात के होते हुए भी संसद को किसी अन्य देश या देशों के साथ की गई किसी संधि, करार या अभिसमय अथवा किसी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन, संगम या अन्य निकास में किये गये किसी विनिश्चय के कार्यान्वयन के लिये भारत के सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र या उसके किसी भाग के लिये कोई विधि बनाने की शक्ति है।” संघ सूची जिसमें सम्मिलित विषयों पर संसद को विधि बनाने की शक्ति है, उनमें….

Entry 13:- ‘अन्तर्राष्टीय सम्मेलनों, संगमों और अन्य निकायों में भाग लेना और उनमें किए गए विनिश्चयों का कार्यान्वयन|

Entry 14:- विदेशों में सन्धि और करार करना और विदेशों से की गई संधियों, करारों और अभिसमयों का कार्यान्वयन। के लिये उपबंध किया गया है।

अनुच्छेद 253 और Entry 13 व 14 का परिणाम यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में कोई विधि जिसमें पर्यावरण विधि सम्मिलित है पारित कर सकती है।

संसद ने इस शक्ति का प्रयोग वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 को पारित करने में किया है।

CASE-People’s Union for Civil Liberties v Union of India (1997)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है अन्तर्राष्ट्रीय प्रसंविदा के प्रावधान जो हमारे संविधान द्वारा प्रत्याभत मुल अधिकारों विशदीकरण करते हैं और प्रभावी करते हैं उन पर न्यायालयों द्वारा उन मूल अधिकारों के पहलू के रूप में अवश्य निर्भर किया जा सकता है और वे इस प्रकार प्रवर्तनीय हैं।

CASE-Vellore Citizens Welfare Forum v.Union of India (1996)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अभिनिधारित किया है कि यह विधि की लगभग स्वीकृत प्रतिपादना हैं कि रूढिजन्य अंतरराष्ट्रीय विधि के नियम जो विधि के विरुद्ध नहीं हैं उनको घरेलू विधि में सम्मिलित समझा जाएगा और न्यायालयों द्वारा उन अनुसरण किया जाएगा।

8: मौलिक अधिकार और पर्यावरण संरक्षण:-

1970 के दशक से मानव पर्यावरण संरक्षण की हवा बह रही हैं। पर्यवरण संरक्षण का केन्द्र बिन्दु मानव है। न्यायालयों के दृष्टिकोण में पर्यावरण संरक्षण का बिन्दु मुख्यतः उभर कर आया है। अनुच्छेद 14,19 और 21 में प्रदत्त मूलाधिकारों का निर्वचन पर्यावरण के आलोक में कर न्यायालयों ने इसे विस्तार प्रदान किया है।

• समानता और पर्यावरण संरक्षण का अधिकार:-

संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रत्याभूत समता के अधिकार का भी प्रयोग पर्यावरण संरक्षण के लिए किया जाता है।

अनुच्छेद 14 में उपबन्धित किया गया है कि “राज्य भारत राज्यक्षेत्र के अंतर्गत किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता और विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। अनु० 14 में अन्तार्निहित समता के अधिकार के अन्तर्गत मनमाने और निरंकुश कार्यवाहियों का निषेध है।

CASE- Bangalore Medical Trust V. B.S Muddappa (1991)

इस मामले में बिना लोक हित का मुल्यांकन किए लोक उद्यान को नरसिग होम में परिवर्तित करने के निर्णय को मनमाना एवं विवेकीय शक्ति के दूरपयोग के आधार पर समता के अधिकार का उल्लंघन माना गया।

उच्चतम न्यायालय ने लोक उद्यान और खले स्थान की नगरी विकास में भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा कि “पर्यावरण, मनोरंजन हेतु खुले स्थान और शुद्ध वायु, बच्चों के लिए खेल मैदान, आवासियों हेतु चलने का विस्तृत रास्ता (Promenade) और अन्य सुविधाएँ अथवा सहुलियतें लोक अभिप्राय एवं प्रमुख हितों की विषय वस्तू हैं, जिनका ध्यान विकास योजनाओं में रखा जाना चाहिए । उद्यानों एवं खेल के मैदानों हेतु स्थानों के आरक्षण एवं संरक्षण में निहित लोक हित की प्राइवेट लोगों द्वारा किसी अन्य प्रयोग हेतु परिवर्तित करने के लिए पट्टा देने या विक्रय करने के नाम में बलि नहीं चढ़ायी जा सकती है। ऐसा करना सांविधानिक आदेश के सीधे विपरीत होगा”।

न्यायाधिपति R. M. सहाय ने अपने सहमत निर्णय में स्पष्ट किया कि “सौन्दर्य एवं मनोरंजन हेतु आरक्षित स्थान के रूप में लोक उद्यान समता की संकल्यना एवं सामान्य जन की महता की मान्यता के विकास से सम्बद है । यह लोगों द्वारा स्वयं से प्रदान उपहार है । पर्यावरण एवं प्रषण पर विशेष ध्यान देने के कारण इसका महत्व बहुत बढ़ गया हैं।

• भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पर्यावरण संरक्षण:-

अनुच्छेद 19 (1)(a) के अंतर्गत भाषण और अभिव्याक्ति को स्वतंत्रता पर्यावरणीय समस्या ओ को उजागर करने तथा उनके समाधान में सहायक हुई है। प्रेस के माध्यम से पर्यावरण प्रदूषण एवं तज्जनित ख़तरों के बारे में जानकारी दी जा रही है।

केरल शास्त्र साहित्य परिषद। (KSSP) नामक एक गैर सरकारी संगठन ने “साइलेन्ट वैली श्रोजेक्ट’ को बन्द करने के लिए मजबूर कर दिया । जनमत एवं समाचार माध्यमों ने सरकार को मजबूर कर दिया कि वह टेहरी बांध योजना के संबंध में उचित पर्यावरण प्रभाव आकलन कर सुरक्षा का उपाय करे ।

• व्यापार और वाणिज्य और पर्यावरण संरक्षण की स्वतंत्रता:

संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) में सभी नागरिकों को वति. उपजीविका, व्यापार और कारोबार की स्वतंत्रता प्रदान की गयी हैं।

इस स्वतंत्रता पर अनु० 19(6) के अन्तर्गत सामान्य लोक हित में यक्तिसंगत निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं।

न्यायालयों ने पर्यावरण संरक्षण के आधार घर सामान्य जन हित में लगाये गये निर्बन्धन को युक्तियुक्त निर्बन्धन माना है । कुछ मामलों में कारोबार को बन्द करने का आदेश भी दिया गया है।

CASE- Mo.Harun Ansar V. Distt. Collector Ganga Reddy Distt. A.P.(2004)

Facts: इस वाद में खानापूर एवम् कोकावेट पहाडियों के गोलडोही तथा नानकराम गुडा क्षेत्र (जिला गंगा रेड्डी) में ठोस धातु हेतु ग्रेनाईट के विस्फोट एवं विनाश करने के द्वारा ग्रेनाईट सेलखडी गर्द (granite silica dust) के उड़ने से आसपास सिलिकोसिस नामक बीमारी कारित करने के विरुद्ध लोकहित याचिका दायर की गयी। कोकापेट गांव में चार खदान के पट्टे तथा तीन पत्थर तोडने के स्थान थे जो गाँव से दो किलोमीटर दूरी पर थे।

Held: उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर विचार करते हुए कहा कि एक किलोमौटर के. बाहर खदानें का प्रभाव नहीं पड़ेगा , एक किलोमीटर के बाहर

खदान चलाने की अनुमति इस शर्त के साथ दे दी कि वे आवश्यक अनुमति प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड से प्राप्त करें तथा सुसगत संविधि के अन्तर्गत लगायी गई शर्तों का अनुपालन करें।

CASE- A.P. Gunnies Merchants Association, Hyderabad V. Government of A.P (2001)

उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि पुराने थैलियों में व्यापार जारी रखने और उपयोग में लाए जाने वाले बोरों का पूर्ण अधिकार नहीं है।बोरों की धूलन और सफाई की गतिविधि से किए गए व्यापार से वायु और पर्यावरण प्रदूषण पैदा होता है।

अतः राज्य सरकार द्वारा व्यवसाय को घनी आबादी वाले क्षेत्र से पर्यावरण सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने का निर्देश मान्य है तथा यह संविधान के अनुच्छेद 19(1) (g) का उल्लंघन नहीं है।

• स्वस्थ वातावरण में जीने का अधिकार:-

अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण और दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार छोडकर अन्यथा वंचित नहीं किया जाएगा। पर्यावरण प्रदूषण द्वारा कारित प्रदृषित वातावरण से धीरे धीरे जहर दिया जाना संविधान के अनुच्छेद 21 का अतिक्रमण हैं।

दैहिक स्वतंत्रता की सृजनात्मक व्याख्या के माध्यम से स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार अनुच्छेद 21 में स्वीकार किया गया है।

CASE- A.P. Pollution Control Board (II) V. Prof. M.V. Nayadu (2001)

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि स्वस्थ पर्यावरण और सतत विकास के अधिकार जीवन के अधिकार में निहित मौलिक मानवाधिकार हैं।

हमारे उच्चतम न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन जीवन के अधिकार के भाग के रूप में “स्वस्थ वातावरण” की अवधारणा को विकसित करने वाले पहले न्यायालयों में से एक थे।

CASE- Hinchlal Tiwari V. Kamla Devi (2001)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार और गुणवत्तायुक्त जीवन का आनन्द अनु० 21 में प्रत्याभूत स्वतंत्रता का सार है।

CASE- M. C. Mehta V. Union of India (2004)

इस मामले में अवैधानिक गतिविधि के विनियमितिकरण पर विचार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि विनियमितिकरण सम्भव नहीं होगा यदि यह अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत दिये गये स्वतन्त्रता का उल्लंघन करता है। ऐसे मामलों में केवल यह विचारणीय प्रश्न नहीं होगा कि औद्योगिक इकाइयाँ मास्टर प्लान के उल्लंघन में बनी हैं, बल्कि यह भी ध्यान में रखा जायेगा कि उस क्षेत्र के विधिपूर्ण आवासियों को इससे तकलीफ होगी।

उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 एवं 45-A के अन्तर्गत स्वास्थ्यप्रद, स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण का मूलाधिकार नागरिकों को प्राप्त है।

CASE- Fertilizers and Chemicals Travancore Ltd. Implies Association V. Law Society of India (2004)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 21 में समूह आपदा खतरों से संरक्षण प्राप्त करने का अधिकार सम्मिलित है। यदि तरल अमोनिया टैंक से अमोनिया लीक करने की सम्भावना हैं तो नागरिकों का अधिकार है कि उसके विरुद्ध संरक्षण का दावा करें।

CASE- Bombay Dyeing and Manufacturing Co. Ltd. V. Bombay Environmental Action Group (2006)

इस मामले में टाउन डेवलपमेण्ट स्कीम के संबंध में कहा गया कि पारिस्थितिकीय संतुलन का अधिकार अनुच्छेद 21,48-A और 51-A के अन्तर्गत उपलब्ध है। टाउन प्लानिंग उपबन्धों की व्याख्या करते हुए विभिन्न तरह के परस्पर विरोधी हितों के बीच सामंजस्य स्थापित करना आवश्यक है। आर्थिक विकास के साथ-साथ स्वस्थ पर्यवरण जो स्वास्थ्य और प्रसन्नता के लिए आवश्यक है, ध्यान में रखना अनिवार्य होगा।

CASE- Delhi Pradesh Citizen Council V.Union of India (2006)

इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरण सम्बन्धी उपबन्धों को देखते हुए वृहद स्तर पर आवासीय परिसरों के वाणिज्यिक प्रयोग पर रोक लगाई।

• जानने का अधिकार और पर्यावरण संरक्षण:-

सूचना का अधिकार अनुच्छेद 19(1) (a) में भी निहित है और इसका संविधान के अनुच्छेद 21 के साथ निकट का संबंध है, विशेष रूप से ऐसे पर्यावरणीय मामलों में जहां सरकार के गुप्त निर्णय से लोगों के स्वास्थ्य, जीवन और आजीविका पर असर पड़ सकता है। सूचना को जानने या प्राप्त करने का अधिकार वह मूल अधिकार है जिसके लिए भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लोग आकांक्षा रखते हैं।गोपनीयता निर्वाचित सरकारों की वैधता को नष्ट करती है।

CASE-Research Foundation for Science Technology and Natural Resource Policy V. Union of India (2005)

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के संरक्षण के लिए आवश्यक सूचना और सामुदायिक भागीदारी का अधिकार अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है और यह स्वीकृत पर्यावरण सिद्धांतों द्वारा शासित है। तदनुसार सरकार और प्राधिकारियों को आवश्यक कार्यक्रम बनाकर जन भागीदारी को प्रेरित करना है।

9: पर्यावरण सुरक्षा के प्रति नागरिक के मौलिक कर्तव्य:-

सन 1976 में स्टाकहोम घोषणा 1972 की प्रेरणा से प्रेरित होकर संविधान के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा मुल कर्तव्यों में अनुच्छेद 51A(g) के रूप में पर्यावरण सम्बन्धी नागरिकों का मुल कर्तव्य जोड़ा गया है।

संविधान का अनुच्छेद 51A (g) उपबन्धित करता है कि “भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव है, रक्षा करे और उनका संवर्दन करे तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखे।

CASE- Nature Lovers Movement V.State of Kerala (2000)

इस में न्यायालय ने सरकार के पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधनों के शोषण ‘पर नियंत्रक शतें लगायीं । परन्तु पर्यावरण के उपभोग पर पूर्ण निषेध नहीं जारी किया। पर्यावरण अनुरक्षण एवं अर्थिक विकास में सामंजस्य बनाये रखा गया। केरल उच्च न्यायालय ने इसे पोषणीय विकास एवं पर्यावरण संरक्षण से संगत माना, और सरकारी आदेश की अनुच्छेद 48A और 51-A से संगत घोषित किया।

CASE- Goa Foundation V. State of Goa(2001)

इस मामले में प्रश्न यह था कि अनुच्छेद 51A(g) के अंतर्गत वन, झील , नदी, वन्य जीव सहित प्राकृतिक पर्यावरण संरक्षण एवं सुधार का मुल कर्तव्य सोसायटी पर लाग होगा।

बम्बई उच्च न्यायालय ने सकारात्मक उत्तर दिया और कहा कि प्रत्येक नागरिक की तरह सोसायटी का भी मुल कर्तव्य हैं कि वनों, झीलों, नदियों, वन्य जीवों का संरक्षण करे।

CASE- Sitaram Chhaparia V. State of Bihar (2002)

इस में रिहायसी क्षेत्र में उद्योग द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड और अन्य दृषित गैसों के उत्सर्जन से रोकना अनुच्छेद 51A(g) के अन्तर्गत उद्योग का मूल कर्नव्य मानते हुए, पटना उच्च न्यायालय ने उसे बन्द कर देने का आदेश दिया।

CASE- Mirzapur Moti Qureshi V. Qureshi Kassab Jamat (2005)

इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 51A(g) में दिये गये मूल कर्तव्य और अनुच्छेद 48 में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्व जो बछडों तथा अन्य दूध वाले और सूखे । जानवरों के प्रति दया की अपेक्षा करता है, का अन्तर्सम्बन्ध बताते हुए स्पष्ट किया कि वनों, झलो, नदियों वन्य जीवों की तरह गाय, बछड़ों और दूध वाले या बिना दूध वाले पशुओं के प्रति दयाभाव रखने का प्रत्येक नागरिक का मुल कर्तव्य है।

CASE- Akhil Gou Sewa Sangh(3) V. State of Andhra Pradesh (2006)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय मोती कुरेसी वाले मामले का स्पष्टीकरण करते हुए मूल अधिकारों पर युक्तियुक्त निर्बधन हेतु अनुच्छ 51A (g) और 48 दोनों की अपेक्षा की।

CASE- In Defense of Environment and Animals V. Principle Chief Conservator of Forest(2012)

इलिप धर्म राव एवं डी० हरिपरान्थमन न्यायमूर्तिगण ने इस मामले में अनुच्छेद 51-A(g) में दिए गये मुल कर्तव्य को पूरा करने हेतु हाथी (Corridor) को उचित ठहराया।

10: निष्कर्ष:-

भारतीय चिंतन परम्परा में पर्यावरण से प्रेम जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा रहा है। लेकिन, तथाकथित आधुनिकता और उपभोक्तावादी संस्कृति ने पर्यावरण को क्षति पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पर्यावरण-स्वच्छता की संकल्पना सीधे तौर पर मानवाधिकार से जुड़ी हुई है। ऐसी स्थिति में पर्यावरण के लिये कानून का संरक्षण भी महत्त्वपूर्ण है। कानून के द्वारा पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वालों को दंडित किया जा सकता है तथा पीड़ितों को क्षतिपूर्ति भी दिलवाई जा सकती है। भारत में पर्यावरण संरक्षण से सम्बन्धित कानूनों का इतिहास 115 वर्ष पुराना है। इसमें वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भू-प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिये अनेक अधिनियम हैं। इन्हें लागू करने में न्यायपालिका का विशेष योगदान है। न्यायपालिका के निर्णय सरकार और जनता, दोनों पर बाध्यकारी होने के कारण पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। इस दृष्टि से भारत का संविधान भी अनुपम है। यह विश्व का पहला ऐसा संविधान है जिसमें पर्यावरण-संरक्षण के लिये विशेष प्रावधान है।

 

References-

1: Environment Protection act, 1986

2: Dr. J. J. Ram upadhyaa, environmental law, 5th edition 2016

3: Dr.Sukanta K.Nanda, Environmental Law,1st edition 2007

4: K.S. Dakshinamurty, “Politics of Environment”, Economic and Political Weekly, Vol. 21 No. 18, (1986) p. 773.

5: P. S. Jaswal and Nishtha Jaswal, Environmental Law, 3rd edition 2009

6: Dr. Anirudhh prasad, environmental law,8th edition 2015

7: Indiawaterportal.org

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यह आर्टिकल Lokesh Namdev के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B. IInd से मेस्टर Dr. Harisingh Gour central University,sagar के छात्र है |