अपराधशास्त्र –
महिला अपराध- स्त्रीवादी अपराधशास्त्र – अपराधशास्त्र उस शास्त्र को कहा जाता है जिसके अन्तर्गत मानव व्यवहार को प्रभावित करने वाले अपराधों के विभिन्न पहलुओं का वैज्ञानिक अध्ययन ही नहीं वरन् अपराधियों का नियंत्रण तथा अपराधियों का उपचार भी सम्मिलित है।
स्त्रीवादी अपराधशास्त्र-
स्त्रीवादी अपराधशास्त्र अपराध के सामान्य उपेक्षा और परम्परागत अध्ययन में महिलाओं के प्रति हुए भेदभाव के लिए एक प्रतिक्रिया के रुप में 19वीं शताब्दी के अन्त में विकसित हुआ। यह महिला अपराधी के कारणों, रुझानों और महिला अपराध के परिणाम को समझने के लिए महिला अपराधियों, महिला पीडि़तों और आपराधिक न्याय प्रणाली में महिलाओं पर ध्यान केन्द्रित करने के परिणामस्वरूप आया।
स्त्रीवादी अपराधशास्त्र का द्रष्टिकोण है कि अधिकांश आपराधिक सिद्धान्तों को पुरुषों को ध्यान में रखकर विकसित किया गया था, और पुरुष अपराधिक ता पर ध्यान केन्द्रित किया गया था।
महिलाओं की आपराधिकता के बारे में शुरुआती सिद्धान्त मुख्य रुप से सामाजिक या आर्थिक के बजाय मनोवैज्ञानिक और शारीरिक लक्षणों पर केन्द्रित थे।
महिलाओं में आपराधिक प्रवृत्ति –
महिलाओं में आपराधिक प्रवृत्ति के सन्दर्भ में रैकलेस ने कहा है कि “लड़कियॉं प्रमुख रुप से नियंत्रणहीनता, भगौड़ापन तथा यौन सम्बन्धी अपराध करती हैं, जबकि इसके ठीक विपरीत लड़के प्राय: मारपीट और सम्पत्ति सम्बन्धी अपराध अधिक करते हैं।” इसी तरह प्रो. वार्कर और एडम्स ने इस सम्बन्ध में कहा है, “लड़कियॉं नियंत्रहीनता के अपराध लड़कों के तुलनात्मक अधिक करती हैं तथा लड़के सम्पत्ति सम्बन्धी अपराध अधिक करते हैं।” प्रख्यात समाजशास्त्री डॉ. रुथ मौरिस ने 56 अपराधी बालकों एवं 56 अपराधी बालिकाओं का एक समान अध्ययन करके महिलाओं में पाए जाने वाले अपराधों की विशिष्ट प्रकृति का उल्लेख किया है। लड़कों की तुलना में लड़कियों में अपने अपराधों के लिए अत्यधिक खेद, लज्जा एवं पश्चाताप की भावना पाई जाती है एवं अन्य व्यक्तियों के आपराधिक कृत्यों के प्रति उनका दृष्टिकोण भी लड़कों की तुलना में अधिक प्रतिरोधात्मक होता है। इसी प्रकार लड़कियॉं लड़कों की तुलना में कम मित्रता करती है।
आज लगभग विश्व के सभी देशों में महिला अपराध की दर बढ़ी है। इसका प्रमुख कारण औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की प्रक्रिया है। अक्सर यहां महिलाओं में पाए जाने वाले अपराध की प्रवृत्ति इस प्रकार की होती है कि उनका निरुपण सम्भव नहीं होता है। महिलाओं में यौन अनैतिकता एवं कामुकता सम्बन्धी अपराध इसलिए भी प्रकट नहीं हो पाते क्योंकि वे अत्यन्त सुरक्षित, गुप्त एवं एकांत स्थानों पर किए जाते हैं। इसका पता पुलिस को तो नहीं ही चलता है बल्कि उनके परिवार जनों को भी नहीं चलता है। अगर परिवारजनों को किसी तरह से उनके यौनिक अपराध का पता चल भी जाता है तो वे लोक-लाज एवं सामाजिक प्रतिष्ठा के भय से उनको छिपाने या दबाने का प्रयत्न करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि लड़कियों एवं महिलाओं में इस तरह के अपराध की दर बढ़ती ही चली जाती है एवं महिला अपराध को बढ़ावा मिलता है।
महिला अपराधों की प्रकृति –
विभिन्न विद्वानों द्वारा समय-समय पर किए गए महिला अपराधियों के अध्ययन से भी इसकी प्रकृति पर प्रकाश पड़ता है। राम आहूजा ने भारत में महिला अपराधियों के अपने अध्ययन में अपराध की प्रकृति की व्याख्या दो प्रमुख श्रेणियों के अन्तर्गत की। इनमें प्रथम, वे अपराध जिसमें पीडि़त व्यक्ति शिकायत करता है तथा द्वितीय, वे अपराध जिसमें पीडि़त पक्ष न तो कोई शिकायत करता है। हत्या, चोरी एवं अपहरण आदि प्रथम श्रेणी के अपराध के अन्तर्गत आते हैं जबकि अनैतिक व्यापार, आबकारी एवं आबकारी अपराध आदि दूसरी श्रेणी के अपराध के अन्तर्गत आते हैं।
महिला अपराध के कारण –
महिलाओं में अपराध के कारणों के सम्बन्ध में बहुत कम सैद्धांतिक साहित्य मिलता है। इसका कारण यह है कि किसी भी अपराध शास्त्री ने इसे वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषित करने का प्रयत्न नहीं किया है। लाम्ब्रोसो, फ्रायड, थामस एवं किंग्सले डेविस आदि विद्वानों ने महिलाओं में कुछ जैवकीय लक्षणों की मान्यताओं के आधार पर महिला आपराधिकता को उनके व्यक्तिगत शारीरिक या मनौवैज्ञानिक लक्षणों के सन्दर्भ में समझाने का प्रयास किया। इन्होंने अपराधी के महिलाओं के शारीरिक या मनोवैज्ञानिक लक्षणों को व्याधिकीय विकृत्ति एवं सामान्य से प्रत्यंतर माना था। लोम्ब्रोसो ने पुरुषों में पाये जाने वाले अपराध के विवरण में पूर्णणोद्भाव के सिद्धान्त में कहा कि महिलाओं में जैविकीय विसंगति के रुप में पूर्णणोद्भाव का संकेत नहीं मिलता है। इसके स्थान पर उसने महिलाओं में अपराध का कारण उसकी रुढि़वादी प्रकृति को बताया।
फ्रॉयड ने भी महिला आपराधिकता में शरीर क्रिया सम्बनधी विवरण प्रस्तुत किया। उसने महिलाओं में अपराध को उनके पुरुष त्वमन्यता का कारण बताया। उनका कहना था कि सामान्य महिला तो नारीत्व की सामाजिक परिभाषा को जो मातृत्व से अकेले हित पर केन्द्रित रहती है, स्वीकार करती है व उसका अन्त: करण भी करती है परन्तु अपराध करने वाली महिलाऍं इस हित को स्वीकार नहीं करती हैं तथा उनके विरुद्ध विद्रोह करती है।
किंग्सले डेविस ने भी वेश्यावृत्ति की प्रकार्यात्मक टिप्पणी दी है उनका कहना है कि वेश्यावृत्ति दो परिस्थितियों में पाई जाती है – जिनमें विवाह के ढॉंचे में लिंगीय नवीनता सम्बन्धी मॉंग पूरी नहीं होती या जिनमें पुरुष विकलांग, बदसूरत या नपुंसक होने के कारण अपनी जीवन-साथी की लिंगीय मॉंगों को पूरा नहीं कर पाते।
उपर्युक्त महिलाओं में अपराध के कारण सम्बन्धी व्याख्याओं में कुछ दोष मिलते हैं जो निम्न है –
(i) उपर्युक्त व्याख्याओं में सामाजिक, सांस्कृतिक लक्षणों की बिल्कुल उपेक्षा की गई है।
(ii) उपर्युक्त व्याख्याओं में महिलाओं के जैवकीय लक्षणों के बारे में गलत मान्यताऍं एवं अनुमान लिए गए हैं।
साईमन का कहना है कि लोम्ब्रोसो, फ्रॉयड, थॉमस एवं डेविस आदि विद्वान के दोष तर्कपूर्ण हैं क्योंकि ये महिलाओं के सामान्य लक्षणों के बारे में एवं महिलाओं को समर्पित किये जाने वाली स्वाभाविक सामाजिक भूमिकाओं के बारे में विशेषकर वे भूमिकाऍं जो मातृत्व एवं गृहकार्य पर केन्द्रित है, गलत मान्यताओं पर आधारित है।
उपर्युक्त विवरणों से यह पता चलता है कि महिला अपराध के कारणों को एक या दो आधारों पर नहीं समझा जा सकता है क्योंकि अपराध अपने आप में एक जटिल घटना है। यह एक सार्वजनिक समस्या है जो किसी-न-किसी रुप एवं किसी-न-किसी मात्रा में विद्यमान है। साथ ही इसके सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि यह कोई नवीन प्रघटना नहीं है। अपराध की प्रकृति इतनी जटिल है कि इसके कारणों को किसी एक कारक या कारण के आधार पर स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। महिला अपराध में कारणों को निम्न आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है। अर्थात् महिला अपराध के निम्न कारण बताये जा सकते हैं –
- महिला अपराध के जैविक कारण
- महिला अपराध के मनोवैज्ञानिक कारण
- महिला अपराध के पारिवारिक कारण
- महिला अपराध के आर्थिक कारण
- महिला अपराध के भौगोलिक या पर्यावरण सम्बन्धी कारण
- महिला अपराध के सामाजिक कारण ।
महिला अपराध के जैविक कारण –
जैविक कारण का अर्थ उन कारणों से है जो जन्म से सम्बन्धित या शरीर से सम्बन्धित है। निम्न जैविक कारण है-
- आयु
- लिंग
- शारीरिक दोष
- प्रजाति एवं जन्म स्थान
- वंशानुक्रम
अपराध के नोवैज्ञानिक कारण –
ऐसे कारण व्यक्ति की मनोदशा से सम्बन्धित है। जो निम्न है
- मानसिक कमी
- मानसिक रोग
- संवेगात्मक अस्थिरता एवं संघर्ष
- चरित्रहीनता
पारिवारिक कारण –
महिला अपराध के कुछ पारिवारिक कारण भी होते है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है। किसी भी व्यक्ति पर उसके परिवार की पूर्ण छाप पड़ती है। परिवार को समाजीकरण की पाठशाला कहा गया है। जिन पारिवारिक कारणों से अपराध को प्रोत्साहन मिलता है, वे निम्न है-
- वैवाहिक स्तर
- टुटे या भग्न परिवार
- अनुशासन का अभाव
आर्थिक कारण –
महिला अपराध के कुछ आर्थिक कारण होते हैं, जो निम्न हैं –
- आर्थिक स्थिति
- व्यापारिक स्थिति
- कम मजदूरी और बेरोजगारी
- औद्योगीकरण एवं नगरीकरण
- व्यावसायिक मनोरंजन
- निर्धनता
भौगोलिक या पर्यावरण सम्बन्धी कारण –
कुछ विद्वानों का ऐसा विचार है कि अपराध पर ऋतु एवं मौसम का भी प्रभाव पड़ता है। इन विद्वानों का कहना है कि गर्म जलवायु में व्यक्ति के विरुद्ध एवं ठण्डी जलवायु में सम्पत्ति के विरुद्ध अधिक अपराध होते हैं। डैक्सटर ने इस सम्बनध में बताया है कि बैरोमीटर के पारे के गिरने पर अपराध की संख्या बढ़ती है।
सामाजिक कारण –
महिला अपराध के कुछ सामाजिक कारण भी होते हैं, जो निम्न है –सामाजिक कुरीतियां , सांस्कृतिक संघर्ष , चलचित्र, सामाजिक विघटन, सामाजिक धारणाऍं एवं मूल्य गंदी बस्तियॉं , दूषित कारावास व्यवस्था, शिक्षा का अभाव
उपर्युक्त विभिन्न कारणों के आधार पर महिला अपराध के मुख्य प्रेरक कारक कहे जा सकते हैं–
भौतिकता का द्रष्टिकोण | उपेक्षा एवं अपमान |
विवशतापूर्ण परिस्थितियॉं | पारिवारिक कुसमायोजन |
आधुनिकता की प्रवृत्ति | फैशन की आदत |
विफल विवाहित जीवन | अश्लील साहित्य एवं चलचित्र |
असामाजिक वातावरण | सामाजिक दुष्प्रथाऍं |
मनोवैज्ञानिक कारण | औद्योगीकरण एवं नगरीकरण |
स्त्रीवादी विचारधारा –
स्त्रीवादी विचारक किसी पक्ष की बात नहीं करते बल्कि वह तथस्थ रूप से बात करने की कोशिश करते है और कहते हैं – विचारकों को लैंगिक रूप से तटस्थ होना चाहिए। इसका मुख्य कारण यह है कि विधि की कमेटी में केवल पुरूष सदस्य होते हैं। ये महिलाओं के स्वास्थ्य, कल्याण , कानूनी प्राधिकार, निवास के लिए अधिकारों की मांग और कहे कि महिलाऍं इस बात की अधिकारिणी है कि उनके जीवन स्तर को सुधारा जाय और सभी महिलाओं के कल्याण की बात कही।
उदारवाद स्त्रीवाद –
उदारवादी स्त्रीवाद समानता की बात करता है, उन्हें हर स्तर पर समानता दी जाय। उदारवादी केवल महिला के अधिकार ही नहीं बल्कि दण्ड की समानता की भी बात करते हैं।
मार्क्सवादी स्त्रीवाद –
मार्क्सवादी विचारधारा के लोग स्त्रीवादी द्रष्टिकोण से कार्य करना प्रारम्भ किया तो उन्होंने कहा कि वर्तमान स्थिति (स्त्री का) का कारण शक्ति का असंतुलन है, समाज में पुरूष के पास शक्ति का केन्द्रीकरण है।
उत्तर आधुनिकता स्त्रीवाद–
यह अंतर्विरोध की चर्चा करता है।
Block feminism –
इसमें महिलाओं को कैसे प्रताडि़त किया जा रहा है, इस बात को उठायी गयी।
कार्सिनल फेमिनिज्म –
यह स्त्री के सामाजिक समस्याओं और लैंगिक असमानताओं को संबोधित करने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली पर निर्भर करती है, जैसे कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा और यौन अपराधियों के लिए सजा। मुख्य रूप से कट्टरपंथी उदारवादी या श्वेत नारीवादियों से जुड़े कार्सिनल नारीवादियों का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव बढ़ाया जा सकता है और कानून को बढ़ाया जा सकता है।
स्त्रीवादी अपराधशास्त्र पर प्रमुख सिद्धान्त –
प्रारम्भिक नारीवादी आपराधिक सिद्धान्त –
फ्रांसीसी-कनाडाई क्रिमिनोलॉजिस्ट मैरी-एंड्री बर्टेंड और ब्रिटिश समाजशास्त्री फ्रांसेस मैरी हेडेंसन उन लोगों में से हैं जिन्हें स्त्रीवाद अपराध विज्ञान के स्कूल में अग्रणी के रूप में स्वीकार किया जाता हैं हेडेन्सन के लेख ‘द डिएविनस ऑफ वीमेन : ए क्रिटिक एंड एन इंक्वायरी को क्रिमिनोलॉजी मुख्यधारा’ की पहली आलोचना के रूप में श्रेय दिया जाता है जिसमें महिलाओं को उनके अध्ययन में शामिल किया गया था।
दास्य मुक्ति का सिद्धान्त –
इसका विकास 1960-70 के दशक का माना जाता है, इसमें परम्परागत अपराधशास्त्र को पढ़ने की कोशिश की गई। सबसे पहले जिन लोगों ने काम किया था-फ्रेडा एडलर और रीता जे साइमन है फ्रेडा एडलर की पुस्तक सिस्टर्स इन क्राइम : द राइज़ ऑफ द न्यू फीमेल क्रिमिनल (1975 में प्रकाशित) शामिल थी, जिसमें नारी अपराधिकता को चल रहे नारीवादी मुक्ति आंदोलन से जोड़ा था, जो इस बात को प्रमाणित करता था कि घर से बाहर महिलाओं के साथ, महिलाओं को विचलित व्यवहारों में भाग लेने के अधिक अवसर दिए गए थे। इस सिद्धान्त को ही दास्य मुक्ति का सिद्धान्त कहा जाता है।
रीता जे साइमन की पुस्तक – वीमेन एंड क्राइम (1975 में प्रकाशित) ने भी इस सिद्धांत को प्रतिध्वनित किया।
इन्होंने कहा कि महिला अपराधिकता को समाज ने स्वीकारिता नहीं दी है अर्थात् ये कहते हैं कि हम लोग महिलाओं से अपराध की उम्मीद नहीं रखते हमें लगता है कि अपराध को दूर करने के लिए जिसकी आवश्यकता है वह बस पुरुष ही कर सकता है। क्योंकि अपराधशास्त्र के द्रष्टांतों को पुरूषों के द्रष्टिकोण से परिभाषित किया गया है। महिलाओं को केन्द्रित करके कोई सिद्धान्त नहीं दिया गया है। ये कहते है कि महिलाओं के व पुरूषों के अपराध के दर में जो इस समय विभेद है वह इसलिए है क्योंकि उनका सामाजिकरण अलग ढंग से हुआ है, यह नहीं कि उनका लिंगीय विभेद है। यह भिन्नता उस दिन समाप्त हो जायेगी जिस दिन महिलाओं को भी पुरूषों की तरह समान रूप से हक मिलेगा।
उन सारी बातों को जो विद्वानों ने महिला अपराधिता के सम्बनध में कही है, अगर उसका सिद्धान्त बद्ध करने की कोशिश करे तो सर्वप्रथम यही सिद्धान्त होगा अत: कहा जा सकता है यह सिद्धान्त इस बात पर विश्वास करता है कि महिलाओं का सामाजिकरण भिन्न प्रकार से होता है, उनके साथ हमेशा भेदभाव होता है, जिसकी वजह से उनकी अपेक्षाऍं भी कम होती है। यदि महिलाओं को अवसर मिले तो उनके द्वारा अपराध भी बढ़ेंगे हालांकि बाद में इसे समर्थन नहीं मिला। कुछ विद्वान इन दोनों को अपराधशास्त्र के दायरे में नहीं रखते। यहां कहा गया कि हमारा न्याय-प्रशासन एक अलग प्रकार से चलता है क्योंकि हमारा सहानुभूति उसी स्त्री के प्रति होता है जो हमारे मापदण्डों पर खरी उतरती है।
सामान्य तनाव का सिद्धान्त-
इस सिद्धान्त का प्रति पादक रॉबर्ट एग्न्यू है। ये इस सिद्धान्त के माध्यम से पुरूषों और महिलाओं की अपराध दर के बीच के अंतर को समझने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि वे पुरूषों और महिलाओं में विभिन्न प्रकार के तनाव का अनुभव किया और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया दी। पुरूष हिंसक या सम्पत्ति अपराधों के प्रति अधिक प्रवण लग रहे थे, महिलाओं को नशीली दवाओं के दुरुपयोग के प्रति देखा गया। ये कहते है कि महिलाऍं अधिकतर तनाव में आकर अपराध करती है और आगे कहते है कि हमें ऐसे अपराधों की ऐसी व्याख्या करनी होगी जिससे स्त्रीयों को उपचार प्राप्त हो सके, साथ ही यह भी मत व्यक्त किया की महिलाओं को उनकी जिम्मेदारियों से मुक्त कराना चाहिए ताकि महिला अपराधिकता कम हो सके।
शक्ति नियंत्रण का सिद्धान्त:-
इस सिद्धान्त के प्रतिपादक जॉन हेगन है। ये कहते है कि बाहर का वातावरण हमारे घर के वातावरण को प्रभावित करता है अर्थत कार्य स्थल पर जिसकी जैसी स्थिति रहेगी उसके विपरीत व्यवहार घर पर करेगा।
इन्होंने कहा कि महिला अपराधिता मुख्य रूप से दो मुद्दो पर आधारित होती है–
1) अपने सम्बन्धों को बनाऍ रखने के प्रयास में (पति, पत्नी)
2) सशक्त होने की व्यक्तिगत उत्कष्ठा।
Blood Boundery theory:-
इस सिद्धान्त के द्वारा कहा गया है कि महिलाओं की अपराधिकता उनके पूर्व के पीडि़त कारण से सम्बन्धित है। अर्थात् पूर्व का व्यवहार उनके भविष्य के व्यवहार पर निर्भर करता है। इस सिद्धान्त को मानने वाले कहते है कि जहां तक महिलाओं के आक्रामक व्यवहार की बात है वह उनके पूर्व के व्यवहार पर निर्भर करता है। महिलाओं के साथ पुरूषों से भिन्न व्यवहार किया जाता है। जब महिला न्याय प्रशासन में जाती है तब भी उनके साथ अलग व्यवहार किया जाता है।
जैसे– फूलन देवी के बाद का व्यक्तित्व उनके पूर्व के व्यक्तित्व पर निर्भर था।
एक विदेशी वाद – इस वाद में एक लड़की बार डान्सर थी। एक पुरूष ने उसके साथ गलत व्यवहार किया तभी वह लड़की चाकू से उस पर प्रहार किया। उस व्यक्ति ने उसे चुडैल डायन आदि कहने लगा (मतलब वह वैसी उम्मीद नहीं किया था) मामला Court में गया न्यायाधीश ने कहा कि यह महिला बहुत क्षमता वाली है उसे 20 महीने की कारावास दी। हलांकि 1-2 महीने का भी दे सकता था।
मंजुला शेट्टी वाद – इस बाद में महिला जेल में बन्द थी। उस जेल का वार्डन भी एक महिला थी। वार्डन के द्वारा बन्द महिला के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता था अत: कहा जा सकता है कि एक महिला के द्वारा भी दूसरी महिला के प्रति गलत व्यवहार किया जाता है।
प्रमुख विचारक –
लोम्ब्रोसो –
ये कहते है कि विरले ही कोई महिला दुष्ट होती है, किन्तु जब वह होती है, तो पुरूष से आगे बढ़ जाती है लोम्ब्रोसो के अनुसार महिला अपराधी में अपराध मूल व्यवहार के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हो सकते है। कहते है कि महिला अपराधियों की एक बड़ी संख्या किसी व्यक्ति के सुझाव अथवा अत्यन्त सम्मोहक प्रलोभन द्वारा ही वे अपराध की ओर अभिमुख होती है न कि उनमें नैतिक बोध का अभाव इसके लिए उत्तरदायी है। जैसे- अत्याधिक धन लोलुपता अपराध का एक महत्वपूर्णा कारण हो सकता है। अत्यधिक निर्धनता व गरीबी से आह्त होकर आत्महीनता की भवना से ग्रस्त महिलाओं में धन प्राप्त करने की आवेगिक आवश्यकता हो सकती है। वैभवपूर्ण से विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करने की उनकी तीब्र अभिलाषा भी हो सकती है बहुधा पारिवारिक सेवा करने वाली स्त्रियों में छोटे -मोटे अपराध करने की प्रव्रतियाँ पाई जाती है वे स्त्रियॉ प्राय: गरीब परिवार से आती है। कुछ स्त्रियॉ यौन अपराध की ओर भी अभिमुख हो जाती है और वैश्याओं के रूप में अपना समायोजन स्थापित करती है। इसी प्रकार माता-पिता व अभिभावकों द्वारा तिरस्कार और परित्याग तथा बाल्यकाल के दुखद अनुभव, विकृत पड़ोस, अपभ्रष्ट मित्रमण्डली आदि को लोम्ब्रोसो ने महिला अपराध का कारणात्मक कारक माना है अन्तत: लोम्ब्रोसो ने भिन्न-भिन्न देशों के भिन्न-भिन्न दशाओं एवं प्रथाओं को भी जन्मजात महिला अपराधियों की अपेक्षा आकस्मिक महिला अपराधियों के लिए उत्तरदायी कारक माना है।
प्रो.ऑटो पोल्लाक –
प्रो. ऑटो पौल्लाक ने यह दर्शाया है कि महिला अपराधिकता नाकबपोश व्यवहार है। महिलाओं के व्यवहार उसकी परम्परागत भूमिकाओं के पीछे सहज ही एवं स्वाभाविक ढंग से छिप जाता है। परिवारिक जीवन में स्त्री के पत्नी व माता के रूप में विशेष महत्व रहा है। नारी के इन दोनो रूपों के योग से नित नूतन साम्यर्थ बनाऍ जीवन के प्रति आस्था तथा आकर्षण का संचार होती है, यह वह कल्पव़क्ष है जिसमें अनेक शाखाए प्रस्फुटित हो फैलती-फूलती है। ऐसी स्थिति में एक स्त्री द्वारा किया गया अपराध सहज रूप से छिप जाता है और सामाज के अधिकांश लोगों को यह विश्वास नहीं होता की स्त्रियॉ जिन्हें माया, गृहलक्ष्मी आदि गौरवपूर्ण पद प्रदान किया गया है वे भला कभी अपराध कर सकती है अत: पोल्लाक का कहना कि महिला अपराधिकता अधिकांशता नकाब पोश व्यवहार है।
पोल्लाक का मत है कि महिला द्वारा किये जाने वाले अपराध प्रकाश में नहीं आते और न ही उन्हें किसी समाचार पत्र द्वारा प्रकाशित किया जाता है और न ही उनकी कोई शिकायत की जाती है। परन्तु महिलाओं द्वारा किये जाने वाले कतिपय अपराध जैसे- बाजार में खरीददारी करते समय वस्तुओ की चोरी, वेश्याओं द्वारा की गयी चोरी, पारीवारिक दासियो द्वारा की गयी चोरी, भ्रूणहत्या, मिथ्याशपथ , कूट साक्ष्य, शांति-भंग इत्यादि।
पोल्लाक का मत है कि महिला अपराधियों को पुरूषों द्वारा बचाया जाता है पुरूष ही उनके दुराचारों को छुपाने का प्रयास करते है साथ ही यह मत भी स्पष्ट किया गया है कि पुरूषें द्वारा किये जाने वाले अपराधों में उत्तेजन करने वाला या उसको उकसाने वाला कार्य- स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है इसी प्रकार स्त्रियों को गृहस्वामिनी के रूप में भी अपराध करने के अवसर मिलते है जैसे- अपने पति को विष देकर मार देना या अपने बच्चो के साथ गलत व्यवहार करना। पोल्लाक का यह भी अवलोकन है कि विधि प्रवर्तन अधिकारी, न्यायाधीश, न्यायकर्ता, विधिवेत्ता , अभिनिर्णायक, ज्यूरी सभी पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियो के प्रति बहुत सहज सौम्य एवं मृदुल होते है।
पोल्लाक ने जब उपलब्ध दत्त सामग्री को पुरूष तथा महिला की अपराधियों की वैवाहिक प्रास्थिति के आधार पर अवलोकित किया तब उन्होंने पाया कि अविवाहित महिलाओं की अपेक्षा विवाहित महिलाओं में अपराध करने की प्रवृत्ति अधिक पायी जाती है इसी प्रकार पुरूषों में भी है।
पोल्लाक के अघ्ययन के बाद महिला अपराधियों पर अमेरिका में अनेक अध्ययन किये गये। इन अध्ययनों में बर्थ जे., NK जॉंन, रेकलेस आदि थे।
डिवाइन्स-
डिवाइन्स ने महिला अपराधिकता की व्याख्या की और उन्होने कहा की हमने पुरूष व महिला दोने के आपराधिक कार्यो को भिन्न-भिन्न श्रेणी मे और स्पष्ट किया कि दोनो की आपराधिक प्रवृत्तियों में ज्यादा अन्तर नहीं है और इन्होने दोहरे विचलनकार के सिद्धान्त को स्वीकार किया और कहा जहां एक तरफ हम महिला व पुरूष दोनो को समान स्तर पर रखते है तो वही दूसरी ओर महिलाओं को पुरूषों के सामने झुकाया जाता है और यही कारण है कि महिला अपराध को जन्म देती है।
सन्दर्भ-सूची
- पाण्डेय, डॉ. गणेश- –‘अपराध शास्त्र’ –‘राधा पब्लिकेशन्स’ प्रथम संस्करण 2008
- परांधपे, डॉ ना. वि. – ‘अपराधशास्त्र दण्डप्रशासन एवं प्रवीणनशास्त्र-‘सेनट्रल लॉ पब्लिकेशन्स’ 9th वाँ संस्करण 2018
- कक्ष- व्याख्यान- प्रो. विभा त्रिपाठी
- ऑनलाइन (वेबसाइट इत्यादि)।
“यह आर्टिकल Aryesha Anand के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B. VIth सेमेस्टर BANARAS HINDU UNIVERSITY (BHU) की छात्रा है |” |