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Hindu Law- हिंदू विधि की उत्पत्ति एवं स्वरुप | Origin of hindu law in hindi

विधि की उत्पत्ति एवं स्वरुप

हिंदुओं के अनुसार हिंदू विधि की उत्पत्ति (Hindu Law )ईश्वरीय उत्पत्ति है जिसे ऑस्टिन ईश्वरीय नियम कहते हैं जो वेदों से लिया गया है । इस सिद्धांत के अनुसार विधि राज्य से स्वतंत्र थी और राज्य तथा उसकी प्रजा पर बाध्यकारी थी । 

विधि (कानून) हर देश में और जीवन की हर क्षेत्र में आदेश की नींव है। यह लेख भारत में प्राप्त हिंदू कानून (Hindu Law)पर है ।
भारतीय कानून प्रणाली अद्वितीय है भारत में कानून की व्यवस्था के रूप-

1 . प्रादेशिक या सामान्य कानून ।

2 . व्यक्तिगत कानून ।

  • सामान्य कानून भारत के लिए सामान्य प्रावधान करता है।
  • जो व्यक्ति किसी विशेष धर्म के सदस्य हैं उन पर व्यक्तिगत कानून लागू होता है ।
  • हैनरी मेन के अनुसार, हिंदू विधि न्याय शास्त्र की किसी भी ज्ञात प्रणाली का सबसे पुराना कानून है, और वर्तमान समय तक पतन का कोई संकेत नहीं दिखाता है ।

Hindu Law – हिंदू विधि की प्रकृति-

ऐसा माना जाता है कि हिंदू विधि की उत्पत्ति (उदगम ) ईश्वर से होती है ना की विधानमंडल, विधि या विधेयक से ।

  • यह एक कानूनी विधि नहीं बल्कि एक धार्मिक विधि है ।
  • हिंदू विधि शास्त्रियों ने विधि की व्याख्या समाज, धर्म एवं दर्शन के संदर्भ में की है ।
  • हिंदू शास्त्रों में विधि को संप्रभु अथवा राजा का आदेश नहीं माना गया है ।
  • आधुनिक यूरोपीय विधि शास्त्रियों के अनुसार,विधि वह आदेश है जिसे संप्रभु सत्ता संपन्न, किसी राजनैतिक समाज में, उस समाज के सदस्यों या व्यक्तियों पर आरोपित करता है।

हिंदू विधि (Hindu Law)की परिभाषा-

हैनरी मेन के अनुसार, हिंदू विधि (Hindu Law)स्मृतियों की विधि है जो संस्कृत भाष्यों एवं निबंधों में विस्तार रूप से लिखित है तथा जिसे न्यायालयों द्वारा मान्य रीतियों एवं प्रथाओं द्वारा संशोधन तथा परिवर्धन किया गया है ।
केस – बन्निया कोन बनाम बन्नियी,51 M. 1 ,27 L.W.611

सामान्यतया हिंदू विधि से देश की प्रथात्मक विधि का संबोधन नहीं होता, जैसे इंग्लैंड में सामान्य विधि से संबोधित होता है । यह राजाओं द्वारा निर्मित विधि नहीं है जो प्रजा के ऊपर लागू होती है । हिंदू विधि (Hindu Law) का अर्थ अनेक संस्कृत ग्रंथों मैं बताए गए नियमों से है जो संस्कृत के विद्वानों द्वारा प्रमाणित ग्रंथ माने जाते हैं ।

हिंदू विधि किसी एक स्थान या प्रांत में लागू नहीं होती है । यह व्यक्तिगत विधि है ।

इस प्रकार जब एक हिंदू एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है तो अपने पुराने स्थान की रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं से शासित होता है ना कि उस नए स्थान की रीतियों एवं प्रथाओं से ।
केस – पार्वती बनाम जगदीश,29 I.A.82

स्थान त्यागने वाले व्यक्ति को यह सुविधा प्राप्त है कि अपने मूल स्थान की विधि व लोक प्रथाओं का त्याग करके नए स्थान में प्रचलित विधि एवं लोक प्रथाओं को ग्रहण कर सके।

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हिंदू विधि की उत्पत्ति-

हिंदू विधि की उत्पत्ति मूल रूप से दो सिद्धांतों पर हैं जो दुनिया के सबसे पुराने कानून की उत्पत्ति से संबंधित है ।

1 . ईश्वरीय सिद्धांत ।

2 . यूरोपीय या पश्चिमी सिद्धांत ।

ईश्वरीय सिद्धांत-

इसके अनुसार हिंदू विधि की उत्पत्ति ईश्वर प्रदत्त है ।

  • हिंदू विधि पूर्णरूपेण एक प्रगतिशील विधि है । यह उतनी ही पुरानी है जितनी पुरानी मानवता है ।
  • हिंदू विधि ईश्वर प्रदत्त इसलिए मानी जाती है क्योंकि वेदों से प्राप्त हुई बताई जाती है । और वेदों को ईश्वरीय वाणी कहा जाता है ।
  • हिंदुओं का मानना है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने अपनी शक्ति का इतना विकास कर लिया था कि उनका सीधा संबंध ईश्वर से हो गया था और विधि को उन्होंने ईश्वर से ही प्राप्त किया है ।
  • इस सिद्धांत के अनुसार जो कानून की अवहेलना करता है वह ईश्वर की नाराजगी को भड़कायेगा और अगले जन्म में उसे भुगतना पड़ेगा ।

यूरोपीय या पश्चिमी सिद्धांत-

यूरोपीय व पश्चिमी न्याय शास्त्रियों के अनुसार हिंदू कानून ईश्वर प्रदत्त नहीं है बरन बहुत प्राचीन रीति रिवाज है तथा प्रथाओं पर आधारित है जो ब्राह्मणवाद के उदय से पहले से मौजूद है ।

जब आर्य लोग भारत आए यहां पर बहुत सी प्रथाएं व रुड़िया प्रचलित थी जो या तो उनकी प्रथाओं या रीति-रिवाजों से पूरी तरह मेल खाती थी या थोड़ी बहुत मेल खाती थी ।

उन्होंने उन रूढ़ियों व प्रथाओं को पूर्ण रूप से त्याग दिया जिनको वे अपनी अनुरूप नहीं कर सकते थे और कुछ रूढ़ियों व प्रथाओं को अपनी आवश्यकता अनुसार परिवर्तित व संशोधित कर ग्रहण कर लिया ।

बाद में ब्राह्मण वाद ने एक धार्मिक तत्व को कानूनी अवधारणाओं में पेश करके बर्तमान रीति-रिवाजों को संशोधित किया ।

इन दोनों विचारों को मेन ने खारिज कर दिया । उनका मत था की हिंदू विधि इस तरह के नियम और स्मृतियों ने खुदाई और कानून के अधिकारिक स्रोतों का गठन किया । वे राजाओं व शासकों द्वारा न्याय के प्रशासन में लागू किए गए थे चुंकीं ये टिप्पड़ियां शासकों के संरक्षण में लिखी गई थी इसलिए उनके अधिकार को स्वीकार कर लिया गया और वे आगे चलकर कानून के प्राथमिक स्रोत बन गए ।
केस – जगदंबा कौर बनाम सेक्रेटरी ऑफ इंडिया,1887

बाद के भाष्य एवं निबंध अपने समय की उस क्षेत्र की प्रधानों एवं रूढ़ियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां वे लिखे गए थे।