भौगोलिक उपदर्शन के रजिस्ट्रीकरण की प्रक्रिया:-
सामानों का भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम 1999, की भौगोलिक संकेत (जी आई एक्ट) एक है सुई जेनेरिस अधिनियम की भारत की संसद की सुरक्षा के लिए भौगोलिक संकेत भारत में।
भारत, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के सदस्य के रुप में, बौद्धिक सम्पदा के अधिकारों के व्यापार – सम्बन्धित पहलुओं पर समझौते का पालन करने के लिए अधिनियम बनाया GI टैग यह सुनिश्चित करता है कि केवल अधिकृत उपयोगकर्ताओं (या भौगोलिक क्षेत्र के अन्दर रहने वाले) के रुप में पंजीकृत लोगों को ही लोकप्रिय उत्पाद नाम का उपयोग करने की अनुमति है। दार्जिलिंग चाय पहली GI टैग बन गई। भारत में उत्पाद, 2004-2005 में तब से 370 समान अगस्त 2020 तक सूची में जोड़ दिए गए थे।
अधिनियम की धारा 2(1) (e) के अनुसार, भौगोलिक संकेत को “एक संकेत के रूप में परिभाषित किया गया है जो ऐसे सामानों की पहचान करता है जो कृषि वस्तुओं, प्राकृतिक वस्तुओं या निर्मित माल के रुप में उत्पन्न होते हैं, या किसी देश के क्षेत्र में निर्मित होते हैं, या एक उस क्षेत्र में या इलाकें, जहां किसी वस्तु की गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताओं की विशेषता अनिवार्य रुप से उसके भौगोलिक मूल के कारण होती है और ऐसे मामलों में जहां इस तरह के सामानों का उत्पादन या प्रसंस्करण या तैयारी की गतिविधियों में से एक है। इस तरह के क्षेत्र, क्षेत्र या इलाके में माल सम्बंधित होते है, जैसा भी मामले हो।”
कुछ पंजीकृत भौगोलिक संकेतों में शामिल हैं, दार्जिलिंग चाय, मालाबार मिर्च, बैंगलोर ब्लू अंगूर, पोचमपल्ली ikat, कांचीपुरम रेशम साड़ी सोलापुरी चादर्स, बाग प्रिंट जैसे कृषि सामान। भारत में भौगोलिक संकेतों की सूची में एक और पूरी सूची उपलब्ध है।
रजिस्ट्रीकरण का आवेदन :-
भौगोलिक उपदर्शन के रजिस्ट्रीकरण हेतुआवेदन रजिस्ट्रार के समक्ष लिखित रुप में ऐसे प्ररूप एवं ऐसी रीति से और ऐसे शुल्क के साथ, जो विहित किया जाये, किया जाता है।(पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 की भौगोलिक संकेतक की धारा 11(1) के तहत पंजीकरण का एक आवेदन भौगोलिक संकेतक के रजिस्ट्रार के समक्ष किसी भी व्यक्ति या उत्पादकों या किसी भी संगठन या प्राधिकरण द्वारा स्थापित या संबंधित कानून के उत्पादकों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले समय के लिए किसी भी कानून के तहत किया जाना चाहिए।
धारा 11(2) के तहत एप्लिकेशन को एक उपयुक्त रूप में बनाया जाना चाहिये जिसमें प्रकृति, गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य विशेषताएं शामिल हों, जो भौगोलिक वातावरण, विनिर्माण प्रक्रिया, प्राकृतिक और मानवीय कारकों उत्पादन के क्षेत्र के मानचित्र, भौगोलिक संकेत की उपस्थिति (या विशेष रुप से) के कारण, निर्धारित शुल्क के साथ उत्पादों की सूची।
धारा 11(5) – परीक्षक कमियों के लिए प्रारम्भिक जांच करेगा, कमियों के मामलें में, आवेदक को संचार की तारीख से एक महीने की अवधि के भीतर इसका उपाय करना होगा।
धारा 11 (6) एवं 11(7) – पंजीयन आवेदन को आंशिक रुप से स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। इनकार करने के मामले में, रजिस्ट्रार गैर-स्वीकृत के लिए लिखित आधार देगा। आवेदक को दो महीने के भीतर जवाब देना होगा। फिर से इनकार करने के मामले में, आवेदक इस तरह के निर्णय एक महीने के भीतर अपील कर सकता है।
स्वीकृति का प्रत्याहरण (धारा 12) :-
भौगोलिक उपदर्शन के रजिस्ट्रीकरण के आवेदन को स्वीकार किये जाने के पश्चात् लेकिन उसके रजिस्ट्रीकरण से पूर्व यदि रजिस्ट्रार का समाधान हो जाता है कि –
- आवेदन त्रुटिवश स्वीकार किया गया है, या
- मामले की परिस्थितियों में भौगोलिक उपदर्शन का रजिस्ट्रीकरण नहीं किया जाना चाहिये या शर्तों या सीमाओं अथवा उन शर्तों या सीमाओं के अध्यधीन रजिस्ट्रीकृत किया जाना चाहिये जिनके अध्यधीन उस आवेदन को स्वीकार किया गया है;
तो ऐसी दशा में रजिस्ट्रार आवेदक को सुनने के पश्चात् यदि वह ऐसा चाहता है तो स्वीकृति का प्रत्याहरण कर सकता है तथा इस प्रकार से कार्यवाही कर सकता है मानों आवेदन को स्वीकार नहीं किया गया है।
आवेदन का विज्ञापन (धारा 13) :–
जब रजिस्ट्रार द्वारा भौगोलिक उपदर्शन के रजिस्ट्रीकरण के आवेदन को स्वीकार कर लिया जाता है तो रजिस्ट्रार स्वीकृति के पश्चात् आवेदन को यथाशीघ्र उन शर्तों या सीमाओं, यदि कोई हो, जिनके अधीन आवेदन को स्वीकार किया गया है ऐसे स्वीकृत को विज्ञापित कराता है।
यदि विज्ञापन के पश्चात् आवेदन में किसी त्रुटि का सुधार किया जाता है या आवेदन में संशोधन किये जाने की अनुमति दी गई है तो रजिस्ट्रार अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए आवेदन को पुन: विज्ञापित कराता हैअथवाआवेदन का पुनः विज्ञापन कराये जाने के बजाय आवेदन में किए गये सुधार को विहित तरीके से अधिसूचित कराता है।
रजिस्ट्रीकरण का विरोध (धारा 14) :–
अधिनियम की धारा 14 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति भौगोलिक उपदर्शन के रजिस्ट्रीकरण के आवेदन के विज्ञापन या पुनर्विज्ञापन की तारीख से तीन माह के भीतर या ऐसी अतिरिक्त अवधि के भीतर जो कुल मिलाकर 1 माह से अधिक न हो, जिसकी रजिस्ट्रार अनुमति दे, रजिस्ट्रीकरण के विरोध की लिखित नोटिस रजिस्ट्रार को दे सकता है।
विरोध की नोटिस प्राप्त करने के पश्चात् नोटिस की एक प्रति रजिस्ट्रीकरण के आवेदक को तामील करता है। आवेदक द्वारा विरोध की नोटिस की प्रति प्राप्त करने के दो माह के भीतर रजिस्ट्रार के समक्ष उन आधारों का प्रति कथन प्रेषित किया जाता है जिन पर उसने अपने आवेदन के लिए निर्भर किया है। यदि आवेदक निर्धारित समय के भीतर प्रतिकथन प्रेषित नहीं करता है तो ऐसा समझा जाता है कि उसने अपने आवेदन का परित्याग कर दिया है।
आवेदक द्वारा प्रति-कथन प्रेषित किए जाने पर रजिस्ट्रार उसकी प्रति विरोध की नोटिस देने वाले व्यक्ति को तामील करता है। रजिस्ट्रार के समक्ष विरोधकर्ता और आवेदक द्वारा आवश्यक साक्ष्य प्रस्तुत किये जाते है और यदि वे सुने जाने के इच्छुक है तो रजिस्ट्रार उन्हें सुने जाने का अवसर प्रदान करता है। रजिस्ट्रार उन्हें सुनने, साक्ष्य और आपत्ति के आधारों पर विचार करने के पश्चात् यह विनिश्चत् करता है कि किन शर्तों या सीमाओं पर रजिस्ट्रीकरण की अनुमति दी जानी चाहिये।
रजिस्ट्रार, निवेदन पर, विरोध की नोटिस या प्रति-कथन में किसी त्रुटि के सुधार अथवा उसमें किसी संशोधन की ऐसे निर्बन्धनों पर जिन्हें वह न्यायसंगत रुप से अनुमति दे सकता है।
सुधार एवं संशोधन (धारा 15) :–
अधिनियम की धारा 15 के अनुसार रजिस्ट्रार किसी भी समय रजिस्ट्रीकरण के आवेदन की स्वीकृति से पूर्व या पश्चात् आवेदन में या उससे सम्बन्धित किसी त्रुटि के सुधार की अनुमति अथवा आवेदन में संशोधन की अनुमति प्रदान कर सकता है।
यदि किसी ऐसे एकल आवेदन में संशोधन किया जाता है जिसमें उस आवेदन का दो या अधिक आवेदनों में विभक्तीकरण अन्तर्ग्रस्त है तो उस प्रारम्भिक आवेदन दाखिल करने की तारीख को इस प्रकार विभक्त किये गये विभाजित आवेदनों को दाखिल करने की तारीख समझा जाता है।
रजिस्ट्रीकरण (धारा 16) :–
यदि भौगोलिक उपदर्शन के रजिस्ट्रीकरण के आवेदन को स्वीकार किया गया है और विरोध की अवधि समाप्त हो गई है या आवेदन का विरोध किया गया है तथा विरोध का विनिश्चय आवेदक के पक्ष में हुआ है तो रजिस्ट्रार उक्त भौगोलिक उपदर्शन को रजिस्ट्रीकृत करता है और यदि कोई प्राधिकृत उपयोगकर्ता है तो भौगोलिक उपदर्शन एवं प्राधिकृत उपयोगकर्ता को आवेदन की तारीख से रजिस्ट्रीकृत समझा जाता है और वह तारीख रजिस्ट्रीकरण की तारीख होती है।
भौगोलिक उपदर्शन के रजिस्ट्रीकरण के आधार पर रजिस्ट्रार आवेदक को तथा प्राधिकृत उपयोगकर्ता को, यदि वह भौगोलिक उपदर्शन के साथ रजिस्ट्रीकृत हुआ है तो, उन्हें रजिस्ट्रीकरण का प्रमाण पत्र भौगोलिक उपदर्शन रजिस्ट्री की मुहर के साथ जारी करता है।
यदि आवेदक की ओर से व्यतिक्रम के कारण भौगोलिक उपदर्शन का रजिस्ट्रीकरण आवेदन की तारीख से 12 माह के भीतर पूर्ण नहीं होता है तो रजिस्ट्रार आवेदक को इस बारे में नोटिस देता है और तब तक आवेदन का परित्याग किया गया माना जाता है जब तक नोटिस में दी गई अवधि के भीतर व्यतिक्रम को दूर नहीं कर दिया जाता है।
प्राधिकृत उपयोगकर्ता के रुप में रजिस्ट्रीकरण का आवेदन (धारा 17) :-
अधिनियम की धारा 2(1) (6) के अनुसार प्राधिकृत उपयोगकर्ता से धारा 17 के अधीन रजिस्ट्रीकृत भौगोलिक उपदर्शन के प्राधिकृत उपयोगकर्ता अभिप्रेत है। अधिनियम की धारा 17 प्रावधान करती है कि ऐसे माल का उत्पादक होने का दावा करते हुए कोई व्यक्ति जिसके सम्बन्ध में भौगोलिक उपदर्शन रजिस्ट्रीकृत किया गया है, रजिस्ट्रार के समक्ष ऐसे भौगोलिक उपदर्शन के प्राधिकृत उपयोकर्ता के रुप में अपने को रजिस्ट्रीकृत करने के लिए आवेदन कर सकता है।
रजिस्ट्रीकरण की अवधि, नवीकरण, हटाया जाना, और प्रत्यावर्तन धारा (18):-
1. रजिस्ट्रीकरण की अवधि :-
भौगोलिक उपदर्शन का रजिस्ट्रीकरण 10 वर्ष की अवधि के लिए होता है जिसका समय-समय पर नवीकरण कराया जा सकता है।
प्राधिकृत उपयोगकर्ता का रजिस्ट्रीकरण 10 वर्ष की अवधि के लिए अथवा उस तारीख तक की अवधि के लिए होता है जिस तारीख को भौगोलिक उपदर्शन, जिसके सम्बन्ध में प्राधिकृत उपयोगकर्ता रजिस्ट्रीकृत किया गया है, का रजिस्ट्रीकरण समाप्त हो जाता है, जो भी पूर्वतर हो। भौगोलिक उपदर्शन का रजिस्ट्रीकरण समाप्त होते ही प्राधिकृत उपयोगकर्ता रजिस्ट्रीकरण की अवधि समाप्त हो जाती है।
2. रजिस्ट्रीकरण का नवीकरण –
भौगोलिक उपदर्शन या प्राधिकृत उपयोगकर्ता के रजिस्ट्रीकरण की अवधि समाप्त हो जाने पर रजिस्ट्रीकृत स्वत्वधारी या प्राधिकृत उपयोगकर्ता द्वारा विहित समय के भीतर और विहित शुल्क के भुगतान के अधीन आवेदन किये जाने पर रजिस्ट्रार भौगोलिक उपदर्शन, जैसी भी स्थिति हो, के रजिस्ट्रीकरण का नवीकरण मूल रजिस्ट्रीकरण की समाप्ति की तारीख से अथवा रजिस्ट्रीकरण के बिगत नवीकरण के समाप्त होने की तारीख से 10 वर्ष की अवधि के लिए करता है।
3. भौगोलिक उपदर्शन को हटाया जाना –
भौगोलिक उपदर्शन जैसी भी स्थिति हो, के अन्तिम रजिस्ट्रीकरण की अवधि समाप्त होने से पूर्व रजिस्ट्रार रजिस्ट्रीकरण का नवीकरण कराने हेतु रजिस्ट्रीकरण की समाप्ति की तारीख और संदाय किये जाने वाले शुल्कों के बारे में रजिस्ट्रीकृत स्वत्वधारी या प्राधिकृत उपयोगकर्ता को, जैसी भी स्थिति हो अवगत कराता है और इस सम्बन्ध में विहित समय के भीतर यदि नवीकरण के लिए शर्तों का पालन नहीं किया जाता है तो रजिस्ट्रार भौगोलिक उपदर्शन को रजिस्टर से हटा सकता है।
4.रजिस्ट्रीकरण का प्रत्यावर्तन –
जहां भौगोलिक उपदर्शन को विहित शुल्क का भुगतान न करने के कारण रजिस्टर से हटा दिया गया है तो वहां रजिस्ट्रार 6 माह के पश्चात् एवं भौगोलिक उपदर्शन, जैसी भी स्थिति हो, के अन्तिम रजिस्ट्रीकरण के समाप्त होने से 1 वर्ष के विहित प्ररुप में आवेदन प्राप्त होने पर एवं विहित शुल्क का संदाय किए जाने पर यदि रजिस्ट्रार का समाधान हो जाता है कि ऐसा करना न्यायसंगत है तो भौगोलिक उपदर्शन, जैसी भी स्थिति हो, को रजिस्टर में प्रत्यावर्तित करता है और भौगोलिक उपदर्शन, जैसी भी स्थिति हो के रजिस्ट्रीकरण का नवीकरण विगत रजिस्ट्रीकरण के समाप्त होने से 10 वर्ष की अवधि के लिए करता है।
पंजीकरण प्रक्रिया :-
दिसंबर 1999, में संसद ने भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण 8 संरक्षण) अधिनियम 1999 पारित किया। यह अधिनियम भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतों के पंजीकरण और संरक्षण के लिए प्रदान करना चाहता है। इस अधिनियिम को पेटेंट्स, डिजाइन और ट्रेडमार्क के महानिदेशक द्वारा प्रशासित किया जाता है, जो भौगोलिक संकेतों के रजिस्ट्रार हैं। भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री चेन्नई में स्थित है।
भौगोलिक संकेतक के रजिस्ट्रार को दो भागों में विभाजित किया गया है। भाग ‘ए’ में पंजीकृत भौगोलिक संकेतों से संबंधित विवरण शामिल हैं और भाग ‘बी’ में पंजीकृत अधिकृत उपयोगकर्ताओं के विवरण शामिल हैं। पंजीकरण प्रक्रिया भौगोलिक संकेत और एक अधिकृत उपयोगकर्ता के पंजीकरण के लिए दोनों के समान है|
केस:-बांग्लोर रसोगोला बनाम ओडिशा रसगोला
इस वाद में वर्तमान भारतीय राज्य ओडिशा और पं. बंगाल ने इसके जन्म स्थान होने का दावा किया। बांग्लादेश ने भी अनौपचारिक रुप से अपने जन्मस्थान के होने का दावा किया। लेकिन भौगोलिक संकेत टैग के लिए आवेदन नहीं किया। कुछ बांग्लादेशी हलवाई और खाद्य इतिहासकार मानते हैं कि रसगुल्ला बांग्लादेश में उत्पन्न हुआ था और बाद में ‘कोलकाता में’ नवीन चन्द्र दास द्वारा लोकप्रिय हो गया। लेकिन कुछ अन्य बांग्लादेशी खाद्य इतिहासकार इस दावे को वापस नहीं लेते हैं।
2015 में ओडिशा सरकार द्वारा गठित एक समिति ने कहा कि मिठाई-की उत्पत्ति ओडिशा में हुई थी, जहां इसे जगन्नाथ मन्दिर में चढ़ाया जाता है। पश्चिम बंगाल सरकार ने बैंगलोर रसोगोला नामक संस्करण के लिए एक भौगोलिक संकेत (GI) टैग के लिए आवेदन किया। 2017 में जब पश्चिम बंगाल को अपना रसोगोला का भौगोलिक संकेत मिला, तो भारत के रजिस्ट्री कार्यालय ने स्पष्ट किया कि पश्चिम बंगाल को बंगलार रसोगोल और ओडिशा के लिए GI का दर्जा दिया गया था, अगर वे रंग बनावट के साथ-साथ अपने संस्करण की उत्पत्ति का स्थान भी बता सकते हैं।
2018 में ओडिशा सरकार ने ‘ओडिशा रसगोला’ के लिए GI दर्जे के लिए आवेदन किया, जिसे भारत की GI रजिस्ट्री ने मंजूरी दे दी और बाद में 29 जुलाई 2019 को ओडिशा को अपना खुद का रसगोला का GI दर्जा मिला।
केस – टी बोर्ड ऑफ इंडिया V आईटीसी लि. 2019
इस बाद में वादी के अनुसार, प्रतिवादी ने धोखाधड़ी और द्वेष के इरादे से पंजीकृत भौगोलिक संकेत अधिकारों का उल्लंघन किया है और वादी के अधिकारों को इस तरह बाधित किया जा रहा है-
- प्रतिवादी ने धोखे से GI के टैग का इस्तेमाल अपने व्यावसायिक परिसर में से एक के नाम के रुप में किया है, जो ‘DARJEELING LOONGE’ है जो एक पंजीकृत GI है।
- दुर्भावनापूर्ण इरादे वाले प्रतिवादी ने माल की प्रस्तुति और बिक्री के लिए ‘दार्जलिंग’ नाम का इस्तेमाल किया।
- पंजीकृत GI का उपयोग करके प्रतिवादी ने वादी के अधिकारों में बाधा डाली है क्योंकि प्रतिवादी अपने ग्राहकों को यह बताकर गुमराह करता है कि उत्पादों को मूल स्थान से उत्पन्न किया गया है।
- प्रतिवादी के नाम का उपयोग ‘दार्जिलिंग’ के नाम के लिए लाउंज विज्ञापन और उत्पादों की बिक्री के लिए ईमानदार व्यवसाय प्रथाओं के नाम पर।
- प्रतिवादी, लाउंज के उद्देश्य के लिए लगाए गए नाम ‘दार्जिलिंग’ का उपयोग करके उन व्यक्तियों की व्यावसायिक गतिविधियों को खतरे में डाला है जो वास्तव में दार्जिलिंग चाय के व्यवसाय में है।
- ‘दार्जिलिंग’ नाम का उपयोग मौजूदा चाय व्यवसाय न्यायावर के लिए एक गंभीर खतरा है और एक विशेष मानक वाले पंजीकृत GI टैग की उपेक्षा भी है।
- ट्रेडमार्क अधिनियम और भौगोलिक संकेत के सन्दर्भ में GI टैग धारक के उपरोक्त अधिकारों का उल्लंघन करने से बचावकर्ता को रोकने के लिए वादी ने अस्थायी रुप से निषेधाज्ञा के लिए एक वार्ताकार आवेदन को स्थानांतरित कर दिया ताकि प्रतिवादी को किसी भी तरह से अधिकारों का उल्लंघन करने से रोका जा सके।
प्रतिवादी द्वारा तर्क – प्रतिवादी के अनुसार, मुकदमा दायर करने के लिए कार्रवाई का कोई कारण नहीं है क्योंकि बाद को सीमा से रोक दिया गया था। चूंकि वादी के पास केवल प्रमाणन ट्रेडमार्क था, इसलिए ट्रेडमार्क के तहत प्रतिवादी ‘दार्जिलिंग लाउन्ज‘ का उपयोग करने के खिलाफ इस तरह के ट्रेडमार्क के तहत वादी के लिए कार्यवाई का कोई अधिकार नहीं है।
निर्णय – कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस साहिदुल्लह मुंशी ने कहा कि चाय बोर्ड द्वारा मुकदमा सीमित कर दिया गया क्योंकि जनवरी 2003 में होटल लाउंज शुरु किया गया था। लेकिन मुकदमा 2010 में दायर थे। 5.26 के तहत सीमा से परे है।
कोर्ट ने आगे कहा कि प्रतिवादियों के बीच दार्जिलिंग लाउन्ज और ट्रेडमार्क या GI अधिनियम के तहत वादी के अधिकारों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है और आरोप निराधार हैं और कोर्ट ने 10 लाख रुपये के मुकदमें को खारिज कर दिया।
केस :- मध्यप्रदेश सरकार बनाम भारत सरकार और संगठन[25 अप्रैल 2019]
इस वाद में बासमती चावल के (GI) टैग के लिए निरुपण किया गया है। M.P. State ने बासमती चावल जो वहां के 13 जिलों में उत्पादन किया जाता है, उसके GI टैग के लिए आवेदन दिया था। मद्रास हाईकोर्ट में।
[APEDA को मई 2010 में 7 राज्यों (हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, पं. उत्तर प्रदेश (26 जिलों) और दिल्ली में फैले हिमालय की तलहटी के नीचे) बासमती में GI का टैग मिला।]
2016 में चेन्नई में बौद्धिक सम्पदा अपीलीय बोर्ड (IPBA) ने APEDA के पक्ष में निर्णय दिया।
सन्दर्भ सूची:-
1 .सिंह, डॉ.एस.के.- ‘बौद्धिक सम्पदा अधिकार कानून’ ‘सेन्ट्रल लॉ एजेन्सी‘ द्वितीय संस्करण ।
2. मिश्र, डॉ. जय प्रकाश -‘बौद्धिक सम्पदा अधिकारएक परिचय ’‘केन्द्रीय कानून प्रकाशन’ 2013 संस्करण ।
3. कक्ष – व्याख्यानडॉ अजय कुमार बर्नवाल।
4 .ऑनलाइन (वेबसाइट आदि)
“यह आर्टिकल Aryesha Anand के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B. Vth सेमेस्टर BANARAS HINDU UNIVERSITY (BHU) की छात्रा है |” |