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Company Law -मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन (MOA) क्या है?| Memorandum of Association in hindi

मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन

परिचय (Introduction) :-

मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन-

एक कंपनी तब  बनती है जब एक विशिष्ट उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कई लोग एक साथ आते हैं| यह उद्देश्य आमतौर पर प्रकृति में वाणिज्यिक है |कंपनियां आमतौर पर व्यवसायिक गतिविधियों से लाभ उठाने के लिए बनाई जाती हैं |एक कंपनी को शामिल करने के लिए रजिस्ट्रार ऑफ़  कंपनीज के पास एक आवेदन दाखिल करना होता है| इस आवेदन को कई दस्तावेजों के साथ जमा करना आवश्यक है |निगम के लिए आवेदन के साथ जमा किए जाने वाले मूलभूत दस्तावेजों में से एक है, मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन|

संगम -ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) का अर्थ :-

कंपनी के प्रपत्रों  में संगम -ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन ) बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज है| यह एक महत्वपूर्ण प्रपत्र है जो कंपनी के उद्देश्यों को परिभाषित करता है तथा उन आधारभूत शर्तों को  बताता है जिन पर कंपनी को निर्माण की अनुमति हुई, यह कंपनी का चार्टर है यह बाह्य जगत के साथ कंपनी के संबंध को नियंत्रित करती है तथा कंपनी के कार्यक्षेत्र को परिभाषित करता है |इसका उद्देश्य अंशधारियों ,लेनदारों तथा अन्य पक्ष जो कंपनी के साथ व्यवहार करते हैं, कंपनी की गतिविधियों की वास्तविक जानकारी देना है यह इन पक्षों को यह जानकारी देता है कि उनके द्वारा विनियोजित धन का कंपनी कहां उपयोग कर रही है तथा उसका स्वभाव एवं रिस्क की सीमा क्या है|

कंपनी अधिनियम की धारा 28 के अनुसार ,सीमानियम का अर्थ संस्था के मूल रूप से बने हुए अथवा किसी पूर्व अधिनियम या कंपनी अधिनियम ,1956 के अंतर्गत संशोधित सीमानियम से है| परंतु यह परिभाषा अपने आप में पूर्ण नहीं है|

केस:-एशवरी रेलवे कॉटेज कंपनी बनाम में  केयर्न्स के अनुसार,  सीमानियम कंपनी का चार्टर होता है तथा वह कम्पनी के अधिकार क्षेत्र की सीमाओं को परिभाषित करता है| पार्षद सीमा नियम के दो प्रमुख कार्य हैं :-  प्रथम कंपनी का सम्मेलन क्यों हुआ है ,परिभाषित करता है |दूसरा  यह कंपनी की गतिविधियों की सीमारेखा जिसके बाहर कंपनी कार्य नहीं कर सकती है|

संगम -ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन की परिभाषा) :-

कंपनी अधिनियम की धारा 2(56) मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन को परिभाषित करती है, इसमें कहा गया है कि एक ज्ञापन का अर्थ दो चीजें हैं|

मूल रूप से तैयार किये गये एसोसिएशन का ज्ञापन, इसका मतलब यह है कि समय-समय पर मेमोरेंडम में किए  जाने वाले सभी बदलाव भी मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन का हिस्सा होंगे|  कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 399 के अनुसार कोई भी व्यक्ति अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में रजिस्ट्रार के पास दाखिल किसी भी दस्तावेज का निरीक्षण कर सकता है|इसलिए कोई भी व्यक्ति जो कंपनी से निपटना चाहता है वह कंपनी के बारे में मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन के माध्यम से जान सकता है

संगम ज्ञापन कंपनी के क्षेत्राधिकार को निर्धारित करता है। कंपनी के निर्माण में संगम ज्ञापन का महत्वपूर्ण स्थान है।

केस :- गाइनेस बनाम लैंड कारपोरेशन ऑफ आयरलैंड(1882) 22 को चांसरी डिवीजन 359।

इस मामले में यह कहा गया है कि “संगम ज्ञापन एक ऐसा प्रलेख है जिसमें ऐसी मूलभूत दशाएं निहित रहती हैं जिनके आधार पर कंपनी निगमित होने की अनुमति प्राप्त कर सकती है।”

केस :- एशवरी रेलवे केरेज एंड आयरन कंपनी बनाम रिचे (1875) L.R.2 H L 653।

इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया कि संगम ज्ञापन ऐसा क्षेत्र है जिसके बाहर कंपनी की कार्यवाही विस्तारित नहीं हो सकती है। यदि किसी कंपनी का कोई कार्य उसके ज्ञापन में नियत उद्देश्य की सीमा के बाहर चला जाता है तो वह कार्य अधिकारातीत होने के कारण प्रभाव शून्य हो जाता है।

कंपनी का संगम ज्ञापन कंपनी का उद्देश निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

संगम -ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) का प्रारूप:-

कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 14 के अनुसार अनुसूची प्रथम में पार्षद सीमानियम के 4 प्रारूप  दिए गए हैं जो निम्न है:-

तालिका’ B’ अंशों द्वारा सीमित कंपनी|

तालिका ‘C’ गारंटी द्वारा सीमित जिसकी अंश पूंजी नहीं है|

तालिका ‘D’  गारंटी द्वारा सीमित कंपनी जिसकी अंश पूंजी है|

तालिका ‘ E ‘ असीमित दायित्व वाली कंपनी के उपरोक्त में से कोई एक या अन्य कोई प्रारूप उसकी परिस्थितियों के अनुसार अपनाना पड़ता है|

संगम -ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन)  का महत्व :-

पार्षद कंपनी सीमानियम कंपनी का संविधान है जिसके माध्यम से कंपनी बाहरी व्यक्तियों से अपने संबंध स्थापित करती है| कंपनी एक अद्रश्य तथा अमूर्त व्यक्ति है| जिसे प्रलेख के माध्यम से ही जाना जा सकता है| पार्षद सीमानियम में वर्णित उद्देश्यों के आधार पर सामान्य जनता कंपनी के अंशों के रूप में अपनी धनराशि को विनियोजित करती है| इस कारण इसका निर्माण पूर्ण सावधानी से किया जाना चाहिए|

इस प्रलेख के आधार पर कंपनी का सम्मेलन होता है और इसी कारण इसकी विषय  सामग्री में आसानी से परिवर्तन नहीं किया जा सकता है पार्षद सीमानियम ही कंपनी के कार्यक्षेत्र एवं अधिकारों के अपरिवर्तनीय चार्टर के नाम से जाना जाता है| इस प्रकार पार्षद सीमानियम को हम कंपनी का जीवनदाता कह सकते हैं|

संगम -ज्ञापन (मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन) की विषय सामग्री :-

अधिनियम की धारा 13 के अनुसार पार्षद सीमानियम में निम्न बाक्य होने चाहिए :-

नाम वाक्य:-

कंपनी अधिनियम ,2013 की धारा 4(2) में प्रावधान किया गया है कि कंपनी के संगम ज्ञापन में उस कंपनी का नाम उल्लेखित किया जाएगा| कंपनी के प्रवर्तक अपनी इच्छानुसार नाम रख सकेंगे लेकिन ऐसा नाम –

(1 ) पूर्व में रजिस्ट्रीकृत किसी कंपनी के सदस्य अर्थात् उससे मिलता जुलता नहीं होगा|

(2) केंद्रीय सरकार की राय में अवांछनीय नहीं होगा कंपनी के नामकरण के लिए कंपनी रजिस्ट्रार  को आवेदन करना होगा तथा पूर्वानुमति प्राप्त करनी होगी|

(3)  कंपनी के नामकरण के संबंध में मुख्य रूप से दो बातें ध्यान में रखी होगी –

1. ऐसा नाम पूर्व में रजिस्ट्रीकृत किसी  कंपनी के सद्रश्य अर्थात  मिलता जुलता नहीं होगा|

2. कंपनी के नाम के आगे पब्लिक कंपनी की दशा में ‘लिमिटेड’ शब्द जोड़ना होगा , इसी प्रकार प्राइवेट कंपनी की दशा में अपने नाम के आगे ‘ प्राइवेट लिमिटेड’ शब्द जोड़ना होगा|

कंपनी का नाम उसके कार्यालय एवं व्यवसाय स्थल के बाहर सुस्पष्ट शब्दों में संकेत पत्ता (sigbord )पर पेंट किया जाएगा|

केस:- डनलप न्यूमैरिक टायर कंपनी बनाम डनलप मोटर कंपनी 1907,( ए सी 430)

इस मामले में भी यह प्रतिपादित किया गया है कि किसी कंपनी का नाम ऐसा नहीं हो सकता है ,जिसमें लोग भ्रमित  हो जाएं और यह विश्वास कर ले की नई कंपनी पहले विधमान  कंपनी से संबंधित है|

केस:- एम्साॅन कॉर्पोरेशन बनाम एक्शन इंश्योरेंस कंसलटेंटस लिमिटेड ,(1981) 2 ऑल ई .495

इस  मामले में न्यायालय द्वारा आदेश जारी करते हुए यह कहा कि प्रतिवादी कंपनी  एम्साॅन शब्द का प्रयोग नहीं कर सकेगी क्योंकि यह शब्द प्रथमत: वादी कंपनी द्वारा प्रयुक्त  किया गया है आत: उसका इस पर अनन्य प्रयोग करने का अधिकार है|

पंजीकृत कार्यालय खंड :-

किसी कंपनी का पंजीकृत कार्यालय उसकी राष्ट्रीयता और न्यायालयों के क्षेत्राधिकार का निर्धारण करता है| यह निवास का स्थान है और कंपनी के साथ सभी संचार के उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाता है| कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 12 कंपनी के पंजीकृत कार्यालय के बारे में बात करती है| कंपनी के निगमन से पहले केवल राज्य के नाम से उल्लेख करना पर्याप्त है जहां कंपनी स्थित है लेकिन निगम के बाद कंपनी को पंजीकृत कार्यालय का सटीक स्थान निर्दिष्ट करना होगा| कंपनी को निगम के 30 दिनों के भीतर स्थान को भी स्थापित करना होगा| प्रत्येक कंपनी के लिए यह अनिवार्य है कि वह अपने पंजीकृत कार्यालय का नाम और पता प्रत्येक कार्यालय के बाहर जिसमें कंपनी का व्यवसाय होता है ठीक करें |यदि कंपनी एक व्यक्ति कंपनी है तो कंपनी के नाम के नीचे कोष्टक में “एक व्यक्ति कंपनी” लिखा जाना चाहिए |पंजीकृत कार्यालय के स्थान में परिवर्तन की सूचना निर्धारित समयावधि के भीतर रजिस्ट्रार को दी जानी चाहिए|

वस्तु खंड :-

अधिनियम की धारा 4(c ) वस्तु खंड का विवरण देती है वस्तु  खंड एसोसिएशन के ज्ञापन का सबसे महत्वपूर्ण खंड है| यह उस समय के उद्देश्य को बताता है जिसके लिए कंपनी बनाई गई है|आब्जेक्ट क्लास में मुख्य वस्तुएं और मामले दोनों शामिल है| जो कथित वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए आवश्यक हैं जिन्हें आकस्मिक या सहायक वस्तुओं के रूप में भी जाना जाता है| कंपनी अधिनियम , 2013 की धारा 6(b ) के अनुसार बताई गई वस्तुओं को अच्छी तरह से परिभाषित और वैध होना चाहिए| कंपनी की शक्तियों के दायरे को सीमित करके आब्जेक्ट क्लोज को सुरक्षा प्रदान करता है |शेयरधारक वस्तु -खंड स्पष्ट रूप से बताता है कि कंपनी क्या संचालन करेगी |इससे शेयरधारकों को यह जानने में मदद मिलती है कि कंपनी में उनके निवेश का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाएगा|

लेनदार – यह लेनदार को सुनिश्चित करता है कि पूंजी जोखिम में नहीं है कंपनी उस सीमा के भीतर काम कर रही है जैसा कि खंड में कहा गया है|

जनहित – वस्तु- खंड कंपनी की गतिविधियों के विधिकरण को प्रतिबन्धित  करते हुए कंपनी द्वारा निपटाए जा सकने वाले मामलों की संख्या को सीमित करता है|

उद्देश्य खंड:-

उद्देश्य खंड संगम -ज्ञापन का महत्वपूर्ण भाग होता है| कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 4(1 )(ग ) में उद्देश्य खंड के बारे में प्रावधान किया गया है उद्देश्य खंड में कंपनी के उद्देश्यों का उल्लेख रहता है तथा कंपनी के अधिकार क्षेत्र का निर्धारण करता है| प्रत्येक कंपनी अपने उद्देश्य खंड के अनुरूप कार्य करने के लिए आवद्ध होती है उद्देश्य खंड से परे किया गया कार्य “अधिकारिता” माना जाता है|

लार्ड पार्कर के अनुसार, उद्देश्य खंड कंपनी की शक्ति- सीमा को स्पष्ट करता है तथा उसे मर्यादित बनाए रखता है |उद्देश्य खंड में ऐसे किसी उद्देश्य को स्थान नहीं दिया जाना चाहिए-

  • जो अनैतिक एवं विधि विरुद्ध हो, अथवा
  • कंपनी अधिनियम के उपबन्धों का उल्लंघन करने वाला हो|

दायित्व खंड :-

दायित्व खंड शेयरधारकों को कंपनी के नुकसान के लिए व्यक्तिगत रूप से दायित्व से बचाकर कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है|

सीमित देयताएं  दो प्रकार की होती हैं –

शेयरों द्वारा सीमित –  कंपनी अधिनियम ,2013 की धारा 2(22) शेयरों द्वारा सीमित कंपनी में, शेयरधारकों को केवल उन शेयरों की कीमत चुकानी पड़ती है जिन्हें उन्होंने स्वीकृत किया है अगर किसी कारण से उन्होंने शेयरों के लिए पूरी राशि का भुगतान नहीं किया है और कंपनी बंद हो जाती है तो उनकी देनदारी केवल  अवैतनिक राशि तक सीमित होगी |

गारंटी द्वारा सीमित –  इसे कंपनी अधिनियम ,2013 की धारा 2(21) में परिभाषित किया गया है गारंटी द्वारा सीमित कंपनी में शेयरधारकों के बजाय सदस्य समापन के समय कंपनी की संपत्ति में योगदान करने का वचन देता है सदस्य एक निश्चित राशि की गारंटी देते हैं जिसके लिए वे  उत्तरदाई हैं|

पूंजी खंड :-

यह कंपनी में शेयर पूंजी की कुल राशि बताता है इसे शेयरों में कैसे विभाजित किया जाए जिस प्रकार पूंजी की मात्रा को किस प्रकार के अंशों में बांटा जाता है शेयर, इक्विटी शेयर या वरीयता शेयर हो सकते हैं|

उदाहरण – कंपनी की शेयर पूंजी ₹80,00000 है जो प्रत्येक ₹4000 के 3000 शेयरों में विभाजित है|

सदस्यता खंड :-

सदस्यता खंड बताता है कि विज्ञापन पर हस्ताक्षर कौन कर रहे हैं प्रत्येक ग्राहक को उन  शेयरों की संख्या अवश्य बतानी चाहिए|

एसोसिएशन क्लोज :-

इस खंड में ज्ञापन की ग्राहक एक घोषणा करते है कि वे खुद की कम्पनी से जोड़ना चाहते और एक एसोसिएशन बनाना चाहते है|

नाम खंड में परिवर्तन:-

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 13 (2) में इस संबंध में प्रावधान किया गया है साथ ही धारा 16 में यह कहा गया है कि उपरोक्त परिस्थितियों में केंद्रीय सरकार कंपनी को अपना नाम परिवर्तन करने का निर्देश दे सकेगी और ऐसा निर्देश देने की तारीख से 3 माह के भीतर कंपनी को अपना नाम परिवर्तित करना होगा।

ऐसा नाम परिवर्तित किए जाने की तारीख से 15 दिन के भीतर कंपनी रजिस्ट्रार को सूचना देनी होगी। सूचना मिलने पर कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा  तदनुसार “निगमन प्रमाण पत्र”संशोधन कर दिया जाएगा।

नाम परिवर्तन से– (1) कंपनी के अधिकारों एवं दायित्वों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(2) कंपनी के नाम से पहले से चल रही कार्यवाहियां प्रभावित नहीं होंगी।

केस:- माइंड ट्री लिमिटेड बनाम रीजनल डायरेक्टर, नॉर्दन रीजन मिनिस्ट्री ऑफ कारपोरेट अफेयर्स, नई दिल्ली (एआईआर 2015) एन ओ सी 526 पंजाब एंड हरियाणा।

इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है किसी कंपनी के अवांछनीय नाम को परिशोधन करने का आदेश दिया जा सकता है।

उद्देश्य खंड में परिवर्तन :-

कंपनी अधिनियम की धारा 13 में किया गया है। उद्देश्य खंड को बदलने के लिए, एक विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता होती है। प्राधिकरण द्वारा परिवर्तनों की पुष्टि की जानी चाहिए। दस्तावेज को प्राधिकरण द्वारा परिवर्तनों की पुष्टि करता है। परिवर्तित ज्ञापन की एक मुद्रित प्रति के साथ रजिस्ट्रार के पास दायर किया जाना चाहिए। परिवर्तन उस  समाचार पत्र में प्रकाशित किया जाना चाहिए जहां कंपनी का पंजीकृत कार्यालय स्थित है। कंपनी की वेबसाइट पर भी उद्देश्य खंड में परिवर्तन का उल्लेख किया जाना चाहिए।

पूंजी खंड में परिवर्तन:-

किसी कंपनी के पूंजी खंड को एक साधारण संकल्प द्वारा बदला जा सकता है।

संगम -ज्ञापन का उपयोग :-

  1. यह एक कंपनी के दायरे में शक्तियों को परिभाषित करता है। जिसके आगे कंपनी काम नहीं कर सकती है।
  2. यह बाहरी दुनिया के साथ कंपनी के संबंधों को नियंत्रित करता है।
  3. इसका उपयोग पंजीकरण प्रक्रिया में किया जाता है। इसके बिना कंपनी को शामिल नहीं किया जा सकता है।
  4. यह किसी भी व्यक्ति की मदद करता है। जो कंपनी के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए कंपनी के साथ दायित्व संविदात्मक संबंध प्रवेश करना चाहता है।
  5. इसे कंपनी का चार्टर भी कहा जाता है क्योंकि इसमें कंपनी उसके सदस्यों और उनकी देनदारियों के सभी विवरण शामिल हैं।

संगम – ज्ञापन एवं संगम -अनुच्छेद में संबंध :-

  1. दोनों दस्तावेज कंपनी अधिनियम के अधीन है।
  2. ये दोनों दस्तावेज सार्वजनिक दस्तावेज हैं। कंपनी के सदस्य और बाहरी लोग उनका निरीक्षण कर सकते हैं और रजिस्ट्रार के कार्यालय में निर्धारित शुल्क का भुगतान करके उनकी एक प्रति खरीद सकते हैं।
  3. लेख ज्ञापन की शर्तों को संसोधित नहीं कर सकते हैं।
  4. कुछ बातों को स्पष्ट करते हुए ज्ञापन को हमेशा लेखों के साथ पढ़ा जाना चाहिए।

संगम -ज्ञापन एवं संगम -अनुच्छेद  कंपनी के दो महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं।

न्यायधीश बोवेन के अनुसार,”संगम- ज्ञापन में उन्  मूलभूत दशाओं का उल्लेख रहता है जिनके आधार पर कंपनी का निगमन किया जाता है, जबकि संगम -अनुच्छेद में कंपनी की आंतरिक व्यवस्था के नियम रहते हैं।”

लार्ड केयंर्स के अनुसार,“संगम- ज्ञापन उस  ध्येय का निर्माण करता है जिसके बाहर कंपनी कार्य नहीं कर सकती और संगम अनुच्छेद में ऐसे क्षेत्र में कार्य संचालन के नियम बनाए जाते हैं।”

केस:- इन रि  बगलान हॉल कॉलरी कंपनी, (1870) 5 CA 3461।

इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया है कि कंपनी के संगम अनुच्छेद संगम ज्ञापन के अधीन होते हैं। यदि दोनों में कोई विरोधाभास होता है तो संगम ज्ञापन प्रभावी माना जाएगा। संगम अनुच्छेद में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की जा सकती जो संगम ज्ञापन के प्रतिकूल हो।

संगम- ज्ञापन एवं संगम-अनुच्छेद (लेख) में अंतर:-

संगम -ज्ञापन

  1. संगम -ज्ञापन में उन मूलभूत बातों का उल्लेख किया जाता है। जिनके आधार पर कंपनी का निगमन किया जाता है
  2. संगम- ज्ञापन में कंपनी के उद्देश एवं शक्तियों का उल्लेख किया जाता है।
  3. कंपनी द्वारा संगम ज्ञापन के उद्देश्यों पर कार्य नहीं किया जा सकता है। यदि किया जाता है तो वह अधिकारातीत माना जाता है।
  4. यह एक स्वतंत्र दस्तावेज होता है।
  5. यह बाहरी दुनिया के साथ एक कंपनी के संबंधों का विवरण दे देता है।
  6. इसमें कंपनी ऑब्जेक्ट शामिल होता है।
  7. संगम -ज्ञापन में परिवर्तन की प्रक्रिया जटिल है। इसमें परिवर्तन के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी जरूरी है।
  8. इसमें कंपनी और कंपनी के साथ संव्यवहार करने वाले पर- व्यक्तियों के संबंधों को नियंत्रित किया जाता है।
  9. संगम ज्ञापन के फार्म अनुसूची1 की तालिका A,B,C,D,E में है।
  10. इसे कंपनी अधिनियम ,2013 की धारा 2 (56) में परिभाषित किया गया है।

 

संगम -अनुच्छेद(लेख)

  1. संगम-अनुच्छेदों में उन नियमों एवं विनियमों का उल्लेख किया जाता है। जो कंपनी के आंतरिक प्रबंधन के लिए आवश्यक है।
  2. इसमें कंपनी के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए नियमों एवं विनियमो का उल्लेख किया जाता है।
  3. संगम अनुच्छेद से परे किए जाने वाला कार्य सदस्यों के अनुमोदन से बिधिपूर्ण हो जाते हैं।
  4. संगम -अनुच्छेद ,संगम -ज्ञापन के अधीन होता है। संगम अनुच्छेद में ऐसी कोई बात नहीं रखी जा सकती है जो संगम ज्ञापन के प्रतिकूल हो।
  5. यह कंपनी के आंतरिक मामलों को नियंत्रित करता है।
  6. इसमें कंपनी के सभी नियम शामिल हैं।
  7. संगम अनुच्छेद में परिवर्तन केवल विशेष संकल्प द्वारा किया जा सकता है। केंद्र सरकार के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।
  8. इसमें कंपनी और उसके सदस्यों के बीच संबंधों तथा कंपनी के सदस्यों के बीच पारस्परिक संबंधों को नियंत्रित किया जाता है।
  9. इसमें एसोसिएशन के लेख के प्रपत्र अनुसूची 1की तालिका F,G,H,I,J में है।
  10. इसे कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (5) में परिभाषित किया गया है।

संगम- ज्ञापन और संगम -अनुच्छेद दोनों ही आवश्यक दस्तावेज हैं जो कंपनियों के लिए बाहरी दुनिया से निपटने और इसके आंतरिक मामलों के प्रबंधन की प्रक्रिया का वर्णन करते हैं।

निष्कर्ष :-

संगम -ज्ञापन एक कंपनी के गठन के लिए एक मौलिक दस्तावेज है। यह कंपनी का चार्टर है। ज्ञापन के बिना एक कंपनी को शामिल नहीं किया जा सकता है। संगम- ज्ञापन, संगम- अनुच्छेद के साथ मिलकर कंपनी का संविधान बनाते हैं।

 

संदर्भ:-

 

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