निस्तार पत्रक ( Nistar Patrak in hindi )
सार (Abstract):–
निस्तार पत्रक- कोई व्यक्ति अपना दैनिक जीवन सुविधापूर्ण जीने या जीवनयापन हेतु प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं का उपभोग करता है। वैसे तो प्रकृति द्वारा प्रदत्त वस्तुओं पर सभी व्यक्तियों व जीवों का अधिकार है, परंतु राज्य ने म. प्र. भू राजस्व संहिता के माध्यम से राज्य की समस्त भूमियों का अधिकार संहिता की धारा 57 द्वारा राज्य सरकार में निहित कर लिया है तथा राज्य सरकार भी कुछ नियम व शर्तों के साथ इन प्राकृतिक वस्तुओं के उपयोग का अधिकार प्रदान करती है। इन्ही नियम व शर्तों तथा उन वस्तुओं को निस्तार पत्रक पर अभिलिखित किया जाता है।
इसी प्रकार व्यक्तियों को स्वंय का जीवन यापन सहजता पूर्वक करने हेतु अन्य अधिकारों की आवश्यकता होती है। वाजिब-उल-अर्ज में प्रत्येक गांव के रीति रिवाजों का रिकार्ड दर्ज है, परंतु वाजिब उल अर्ज में दर्ज प्रथागत व सहजता अधिकार, निस्तार अधिकारों से भिन्न हैं।
सिंचाई का अधिकार, रास्ते का अधिकार, मछली पकड़ने का अधिकार या अन्य कोई सहजता अधिकार वाजिब-उल–अर्ज में दर्ज होते है।
निस्तार पत्रक का अर्थ :-
संहिता में निस्तार शब्द की परिभाषा नहीं दी गई है निस्तार शब्द का शाब्दिक अर्थ है “पार लगाना”। अर्थात जिससे ग्रामवासी कृषक को अपने कृषक जीवन को सुविधापूर्वक बिताने में सहायता मिले।
जिन सुविधाओं का उल्लेख संहिता की धारा 235 व 236 में किया गया है वह किसी कर्म से संबंधित है। संहिता के निस्तार अधिकारों की एक विशेषता यह है कि ये किसी व्यक्ति विशेष को प्राप्त न होकर ग्राम के प्रत्येक निवासी को प्राप्त होते है तथा उनकी दूसरी विशेषता यह है कि वे अधिकार राज्य सरकार की दखलरहित भूमि पर ही प्रयुक्त किए जाते है।
संहिता में किन-किन अधिकारों को निस्तार अधिकार माना है यह धारा 235, 236 व 237 में अधिकारों से तथा निस्तार नियमों से जाना जा सकता है।
case :- Raghuveer Singh v. State of Madhya Pradesh
Held :– उच्च न्यायालय तथा राजस्व मंडल ने तालाब के राज्य सरकार में निहित होने के प्रसंग में यह भी निर्धारित किया है कि किसी तालाब में पानी पीने या स्नान करने का अधिकार भी निस्तार का अधिकार है।
निस्तार पत्रक क्या है ?:-
जिस राजस्व अभिलेख में निस्तार के अधिकार अभिलिखित किये जाते है, उसे निस्तार पत्रक कहा जाता हैं। संहिता में निस्तार पत्रक की व्यवस्था विशेष उद्देश्य से हुई है। महाकौशल क्षेत्र में 1954 की संहिता के प्रभावशील होने के पूर्व निस्तार अधिकारों को भी वाजिब-उल-अर्ज में अभिलिखित किया जाता था। वर्तमान संहिता में यह विभेद स्पष्ट किया गया है कि निस्तार पत्रक में ग्राम की दखलरहित भूमि के प्रबंध की योजना तथा धारा 235 में उल्लिखित विषयों का ही समावेश किया जायेगा। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा धारित भूमि में प्राप्त व्यक्तिगत या सामूहिक अधिकारों का उल्लेख नहीं हो सकता। उनका उल्लेख वाजिब–उल-अर्ज में ही किया जायेगा।
निस्तार पत्रक की तैयारी: – Sec. 234
उपखंड अधिकारी (S.D.0) प्रत्येक ग्राम के लिये एक निस्तार पत्रक तैयार करेगा, जिसमे-
- किसी ग्राम में की समस्त दखलरहित भूमि के प्रबंध की स्कीम तथा
- उससे अनुषंगिक समस्त विषयों और विशिष्टत धारा 235 में विनिर्दिष्ट विषयों का समावेश होगा।
निस्तार पत्रक में प्रदान किए जाने वाले विषय (Matters to be provided for in Nistar Patrak ):- Sec 235
निम्नलिखित विषयों हेतु निस्तार पत्रक में उपबंध किया जायेगा-
- वे निबंधन तथा शर्तें जिन पर ग्राम में पशुओं को चराने की अनुमति दी जायगी।
- वे निबंधन तथा शर्तें जिन पर तथा वह अधिकतम सीमा, जिस तक कोई निवासी अभिप्राप्त कर सकेगा-
- लकड़ी, इमारती लकडी़, ईंधन या कोई वन उपज
- मुरम, कंकर, रेत, मिट्टी, चिकनी मिट्टी, पत्थर या कोई अन्य गौण खनिज
- साधारणत: पशुओं को चराने का तथा पैरा (b) में वर्णित वस्तुओं के हटाये जाने का विनिमयन करने वाले अनुदेश (Instructions)
- कोई अन्य विषय जिसे निस्तार पत्रक में इस संहिता के द्वारा या इस संहिता के अधीन अभिलिखित किया जाना अपेक्षित हो।
Note :- निस्तार पत्रक में उपरोक्त विषयों का उल्लेख S.D.O. करेगा |
कुछ विषयों के लिए निस्तार पत्रक में प्रावधान (Provision in Nistar Patrak for Certain Matters )- sec. 236
संहिता की धारा 236 प्रावधानित करती है कि धारा 235 के अंतर्गत निस्तार पत्रक तैयार करने में कलेक्टर निम्नलिखित हेतु यथासंभव उपबंध करेगा–
- कृषि हेतु उपयोग में लाये जाने वाले पशुओं को नि:शुल्क चराने के लिये,
- ग्राम के निवासियों द्वारा उनके वास्तविक घरेलू उपभोग के लिये –
- वन उपज का
- गौण खनिजों का मुफ्त ले जाया जाना।
- ग्राम के शिल्पकारों को खण्ड (B) में विनिर्दिष्ट वस्तु में उनकी शिल्पकारी के प्रयोजन केलिए ले जाये जाने के लिये दी जाने वाली रियायतें |
कलेक्टर निस्तार अधिकारों के प्रयोग के लिए दखलरहित भूमि को पृथक रख सकेगा :- Sec 237
धारा 237 की उपधारा (1) द्वारा कलेक्टर को अधिकार प्रदान किया गया है कि वह निम्न प्रयोजनों हेतु दखलरहित भूमि को पृथक रख सकेगा-
- इमारती लकड़ी या ईंधन के लिये आरक्षित क्षेत्र के लिये,
- चारागाह, घास, बीड़ या चारे के लिये आरक्षित क्षेत्र के लिये,
- कब्रिस्तान और शमशान के लिये,
- गोठान के लिये,
- शिविर भूमि के लिये,
- खलिहान के लिये,
- बाजार के लिये,
- खाल निकालने के स्थान लिये,
- खाद के गड्डों के लिये,
- पाठशालाओं, खेल के मैदानों, उद्यानों सड़कों, गलियों, नालियों जैसे तथा उसी प्रकार के लोक प्रयोजनों के लिए
- किन्ही अन्य प्रयोजनों के लिये जो निस्तार के अधिकार के प्रयोग के लिये विहित किये जायें।
इसी की उपधारा (3) उपबंधित करती है-
संहिता के अधीन रहते हुये, कलेक्टर उपधारा (1) के खण्ड (b) में वर्णित भूमि को उस ग्राम की कुल कृषक भूमि के न्यूनतम 2 प्रतिशत तक सुरक्षित रखने के पश्चात् उपधारा (1) में वर्णित ऐसी दखलरहित भूमि को निम्न के व्यपवर्तित कर सकेगा-
आबादी के लिये, या सड़क निर्माण हेतु, प्रांतीय राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग, नहरों, तालाबों, अस्पतालों, विद्यालयों, महाविद्यालयों, गौशालाओं या अन्य किसी जन उपयोगी परियोजनाओं के लिये।
परंतु उपधारा (1) में वर्णित प्रयोजनों हेतु पृथक रखी हुई भूमि, किसी व्यक्ति को कृषि प्रयोजनो हेतु व्यपवर्तित या आबांटित नहीं की जायेगी।
उपधारा (4) के अनुसार- जब उपधारा(1) के प्रयोजनों हेतु पृथक रखी गई भूमि का ऐसी विकास और अधोसंरचना परियोजना (Infrastructural Projects ) के लिये जो राज्य सरकार के स्वामित्व की है या अनुमोदित है, किन्तु उपधारा (3) के अधीन नहीं हैं,
उनका व्यपवर्तन अपरिहार्य (अनिवार्य) हो जाता है, तो कलेक्टर निस्तार अधिकारों की पूर्ति हेतु समतुल्य क्षेत्र की भूमि अभिप्राप्त कर लेने पर तर्कसंगत आदेश पारित करते हुये भूमि व्यपवर्तित कर सकेगा ।
निस्तार पत्रक का प्रकाशन (Publication of Nistar Patrak ):
- निस्तार पत्रक का प्रारूप गांव में प्रकाशित किया जायेगा ।
- विधिवत ग्राम के निवासियों की इच्छाये S.D.O. निश्चित करेगा ।
- S.D.O. निस्तार पत्रक को अंतिम रूप देगा ।
निस्तार पत्रक में संशोधन (Amendment in Nistar Patrak):
निस्तार पत्रक में संशोधन भी संभव है, यह संशोधन-
- ग्राम सभा के आवेदन पर
- अगर ग्राम सभा नहीं है तो ग्राम के कम से कम 1/4 बालिग निवासियों के आवेदन पर या
- स्वप्रेरणा से
S.D.O. किसी भी वक्त पर निस्तार पत्रक की प्रविष्टि को संशोधित कर सकता है। हालांकि S.D.O. निस्तार पत्र में संशोधन कर सकता है लेकिन ऐसा संशोधन तभी होगा जबकि आपत्तियों को आमंत्रित कर लिया जाए तथा उनकी जॉंच कर ली जायें। अगर S.D.O. आपत्तियों को आमांत्रित किए बगैर निस्तार पत्रक को संशोधित कर देता है तो उसका संशोधन आदेश अवैध होगा।
निस्तार पत्रक में एक प्रविष्टि का प्रभाव (Effect of an entery in Nistar Patrak):-
case :- Khushiram v. Mangal chand (1965) ANP-439
Held :- जब किसी भूमि को निस्तार पत्रक में किसी एक प्रयोजन हेतु अभिलिखित किया गया हो तब उसका उपयोग उसी प्रयोजन हेतु होगा उससे भिन्न नहीं होगा ।
case:- Raja Sameer Singh v. Ajeem Bakhsh (2006) RNP- 377
Held:- विस्तार पत्रक को संशोधित किये बिना उसमें अभिलिखित भूमि का प्रयोजन बदला नहीं जा सकता ।
प्रावधान के उल्लंघन के लिए सजा (Punishment for Contravention of Provision): – Sec 253
निस्तार पत्रक में की गई प्रविष्टि को भंग करने पर उपखंड अधिकारी (S.D.O.) 50,000 रुपये से अनधिक शास्ति लगा सकेगा तथा वहां से हटाई गई इमारती लकड़ी, वन उपज या किसी अन्य उपज के अधिहरण का आदेश दे सकेगा ।
वाजिब उल अर्ज (Wajib-ul-arz)
वाजिब उल अर्ज क्या है ?( what is Wajib-ul- arz);-
अंग्रेजी में वाजिब-उल-अर्ज शब्द ग्रहण किया गया है और सरकारी हिन्दी में उसे ज्यों का त्यों ग्रहण कर लिया गया है।
वाजिब-उल-अर्ज वास्तव में एक अर्थहीन रूढ़ शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘’अर्ज, निवेदन किया जाने योग्य”।
मुगलों के समय में ग्राम की जो रुढि़यां प्रशासकों को जनता द्वारा मान्य किये जाने के रूप में निवेदित की जाती थी कि वे उन्हे मान्यता प्रदान करें, वाजिब उल अर्ज कही जाती थी।
जब भू-राजस्व संहिता ने निस्तार फाक अभिलेख की सृष्टि की तब इस बाजिब-उल-अर्ज के लिए अर्थपूर्ण शब्द ‘’रूढ़िपत्रक” अधिक उपर्युक्त होता और सरल भी होता |
वाजिब-उल-अर्ज के सम्बन्ध में प्रावधान :- sec 242
मध्य प्रदेश भू राजस्व संहिता की धारा 242 में वाजिब-उल-अर्ज के सम्बन्ध में निम्न प्रावधान किये गये हैं :-
- इस संहिता के प्रवृत्त होने के पश्चात यथाशीघ्र S.D.O. प्रत्येक ग्राम की रूड़ियों को विहित रीति में अभिलिखित व अभिनिश्चित करेगा इसमे-a.सिचाई के अधिकार या मार्गाधिकार का अन्य सुखाचार
- b.मछली पकड़ने के अधिकार
अभिलिखित होंगे तथा ऐसा अभिलेख ग्राम के वाजिब उल अर्ज नाम से जाना जायेगा।
उपरोक्त अधिकार किसी ऐसी भूमि या जल में जो राज्य सरकार द्वारा या किसी स्थानीय प्राधिकरण का न हो या उसके द्वार नियंत्रित या प्रतिबंधित न हो।
2) उपधारा(1) के अनुसरण में तैयार किया गया अभिलेख S.D.O. द्वारा प्रकाशित किया जायेगा |
(3) ऐसे अभिलेख में की गई किसी प्रविष्टि से व्यर्थित कोई भी व्यक्ति उस प्रविष्टि को रद्द या उपांतरित (modify) कराने हेतु सिविल कोर्ट में उस अभिलेख के प्रकाशित होने की तारीख से 1 वर्ष के भीतर वाद संस्थित कर सकेगा।
(4) वह अभिलेख सिविल न्यायालय के विनिश्चय के अधीन रहते हुये अंतिम और निश्चायक होगा।
(5) S.D.O. उसमें हितबद्ध किसी व्यक्ति के आवेदन पर या स्वप्रेरणा से निम्न आधारों पर वाजिब-उल-अर्ज की किसी प्रविष्टि को उपांतरित कर सकेगा या उसमें कोई नवीन प्रविष्टि अंतः स्थापित कर सकेगा-
a. यह की प्रविष्टि में हितबद्ध समस्त व्यक्ति उसे उपांतरित कराना चाहते हैं, या
b. यह कि किसी सिविल वा द में दी गई किसी डिक्री द्वारा उसे गलत घोषित कर दिया गया है, या
c. यह कि सिविल न्यायालय की किसी डिक्री या आदेश पर या किसी राजस्व अधिकारी के आदेश पर आधारित होते हुये भी वह ऐसी डिक्री या आदेश के अनुसार नहीं है, या
d. यह कि इस प्रकार आधारित होते हुये भी वाद में ऐसी डिक्री या आदेश को अपील पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन में फेरफारित कर दिया गया है, या
e. यह कि सिविल न्यायालय ने डिक्री द्वारा ग्राम में विद्यमान किसी रूढि़ का पर्यवसान कर दिया है।
बाजिब उल अर्ज की अंतिमता (Finallity of waijb -ul-arz) :-
बाजिब उल अर्ज की अंतिमता के संबंध में निम्न वाद महत्वपूर्ण है
case- Chhote Khan V . Malkhan (1954)
Held:- राजस्व अभिलेख की प्रविष्टियां संहिता की धारा 117 (भू अभिलेखों की प्रविष्टियों के बारे में उपधारणा) के अनुसार सही मानी जायेगी, जब तक कि उन्हें अस्वीकार नहीं कर दिया जाता है, लेकिन वाजिब उल अर्ज की प्रविष्टियों को अंतिम और निर्णायक माना जाता है जब तक कि सविल न्यायालय उन्हें निरस्त या संशोधित नहीं करता, उन्हे स्वीकार किया जायेगा।
रुड़ियों को निश्चित या पुष्टि करने की प्रक्रिया (Procedure for Conformation or Fixing Customs) :-
Rule 3नियम 3 के अनुसार रुड़ियों को निश्चित या पुष्टि करने की प्रक्रिया निम्न है:-
- S.D.O. पिछला (यदि कोई हो) वाजिब-उल-अर्ज चेक करेगा तत्पश्चात वाजिब-उल–अर्ज का प्रारूप बनायेगा।
- S.D.0. प्रारूप गांव वालों को दिखायेगा व 15 दिन के भीतर आपत्तियां आमंत्रित करेगा या कोई रूढ़ि जोड़ेगा।
- उक्त कालावधि के पश्चात् वाजिब-उल- अर्ज घोषित करेगा।
- अभिलेख तैयार करेगा जो वाजिब-उल–अर्ज के नाम से जाना जायेगा |
प्रावधान के उल्लंघन के लिए सजा (Punishment for Contravention of Provision) :-
sec 253वाजिब उल अर्ज में दर्ज की गई किसी रूढ़ि का उल्लंघन करने पर S.D.0. 50000 रूपयें से अनधिक शास्ति लगा सकेगा।
निस्तार पत्रक और वाजिब-उल-अर्ज के बीच अंतर
No. | ground | Nistar Patrak | Wajib-ul-arz |
1 | विषय | निस्तार पत्रक ग्रामीणों के विस्तार अधिकारों का एक अभिलेख होता है। | वाजिब- उल अर्ज ग्राम में रूढ़ियों का अभिलेखहोता है। |
2 | क्षेत्र | यह अधिकार दखलरहित भूमि पर प्राप्त होते हैं। | यह अधिकार अन्य भूमिस्वामीकी भूमि पर प्राप्त होते है। |
3 | राज्य सरकार का नियंत्रण | भूमि राज्य सरकार में निहित होती है तथा प्रबंध व नियंत्रण भी राज्य सरकार के अधीन होता है। | वाजिब उल अर्ज में भूमिराज्य सरकार के प्रबंधव नियंत्रण में नहीं होती |
4 | अधिकार | इसमे संपूर्ण दखलरहित भूमि के प्रबंध की स्कीम और धारा 235 अधिकार वर्णित होते है। | इसमें सिंचाई, मछली पकड़ने यामार्गाधिकार का अन्य सुखाचार संबंधी रूड़ियों से संबंधित अधिकार वर्णित होते हैं। |
5 | वाद क्षमता | गांव के 114 वयस्क निवासी या ज्यादा या ग्राम सभा ही वाद पेश कर सकती है। | अकेला व्यक्ति वाद पेशकर सकता है किसी समूह की आवश्यकता नहीं है |
6 | परिवर्तन | स्वयं S.D.O. व्यपवर्तन नहीं कर सकता। व्यपवर्तन हेतु S.D.O. को कलेक्टर की अनुमति लेनी होगी। | न्यायालय में वादद्वारा डिक्री के प्राप्त होने पर अथवा राजस्व पदाधिकारी केआदेश पर परिवर्तनीय है। |
निष्कर्ष Conclusion:–
निस्तार के अधिकार राज्य शासन की अनधिवासित भूमि पर ही दिये जाते है। इन अधिकारों को संदिग्ध न छोड़ा जाये अत: उनका एक अभिलेख रखा जाता है। इस अभिलेख को ही निस्तार पत्रक कहा जाता है। सार रूप में यह कहा जा सकता है निस्तार पत्रक गांव की दखलरहित भूमि के प्रबंध की योजना और निस्तार अधिकारों का समावेश हैा निस्तार पत्रक बड़ा महत्व रखता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त किसी अन्य ग्राम की भूमि तथा जल में कुछ परंपरागत अधिकार होते हैं। ये अधिकार उन व्यक्तियों हेतु जरुरी होते हैं जो भूमिधारित करके अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहते हैं। इन परंपरागत अधिकारों का अभिलेख तैयार किया जाता है तथा वह वाजिब-उल- अर्ज कहा जाता है।
रेफरेंस :-
http://revenue.mp.gov.in/page/madhya-pradesh-land-revenue-code-
यह आर्टिकल Lokesh Namdev के द्वारा लिखा गया है जो की LL.B. IInd से मेस्टर Dr. Harisingh Gour central University,sagar के छात्र है | |
इसे भी पढ़े – मुस्लिम विधि के स्रोत | SOURCE OF MUSLIM LAW IN HINDI |