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इद्दत क्या है , परिभाषा, उद्देश्य, अवधि | what is Iddat in hindi?

इद्दत क्या है , परिभाषा, उद्देश्य, अवधि

इद्दत क्या है ? :-

इद्दत (Iddat) एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है ‘प्रतीक्षा की अवधि’ और मुस्लिम महिलाओं के द्वारा इसका पालन किया जाता है। यह पवित्रता की अवधि है जिसे एक मुस्लिम महिला अपने पति की मृत्यु के कारण या तलाक के कारण अपनी शादी के विघटन के बाद पालन करने के लिए बाध्य है, इससे पहले कि वह फिर से कानूनी रूप से शादी कर सके। इद्दत की अवधि का पालन करने का कारण यह पता लगाना है कि महिला गर्भवती है या नहीं और पितृत्व की निश्चितता को स्वीकार करना है।

इद्दत परिभाषा : –

जब कोई विवाह मृत्यु या तलाक द्वारा भंग  किया जाता है तो महिला को एक निर्दिष्ट समय के भीतर शादी करने से मना किया जाता है। इसे Iddat के नाम से जाना जाता है। यह महिला के द्वारा पालन किये  गये संयम की अवधि है। Iddat का उद्देश्य यह पता लगाना है कि महिला गर्भवती है या नही और पितृत्व के बारे में भ्रम से बचें..!

इद्दत(Iddat) की शुरुआत: –

इसकी अवधि पति की मृत्यु के ठीक बाद या मुस्लिम पत्नि के लिये तलाक के बाद शुरू होती है। Iddat का पालन करने के लिए उसकी अज्ञानता के बावजूद यह किसी भी तरह से उचित या प्रभावित नहीं होगा ।

  • यदि उसे अपने पती की मृत्यु के समय समाचार प्राप्त नही हुआ। लेकिन निर्धारित इद्दत अवधि के भीतर इसके बारे में पता चला, तो वह इद्दत अवधि के शेष दिनों के लिए इसका पालन करने के लिए बाध्य है।
  • यदि Iddat की अवधि बीत जाने के बाद उसे बाद में खबर मिलती है तो वह उसका पालन  करने के लिए वाध्य नहीं है। समय ,पती के निधन के समय से या तलाक दिए जाने के समय से गिना जाता है।

केस – अहमद खान बनाम शाह बानो

इस वाद यह स्पष्ट हुआ, कि एक मुस्लिम पती अपनी तलाकशुदा पत्नि को केवल इद्दत अवधि के लिए बनाये रखने के लिए जिम्मेदार था। ऐसी अवधि के बाद महिला को बनाये रखने का दायित्व उसके रिश्तेदारों पर स्थानान्तरित हो जायेगा ।

इद्दत काल क्या है  :-

(a) तलाक की स्थिति में इद्दत काल की अवधि                

(1) मासिक धर्म हो रहा हो –  तीन मासिक धर्म 25-80 दिन।       

(2) यदि मासिक धर्म न रहा  हो।  – तीन चन्द्रमास।             

(3) यदि गर्वभती  हो –गर्भ की समाप्ति या संतानोत्पत्ति 

(4) यदि सहवास से पूर्व तलाक – इद्दत अवधि शून्य

 (b) पति की मृत्यु की स्थिति में इद्दत काल की अवधि – 

(1) पति की मृत्यु- 4 माह 10 दिन

(2) यदि गर्भवती हो- 4 माह 10 दिन या  संतान उत्पत्ति – जो  बाद में हो।

इस अवधि के दौरान किया गया विवाह सुन्नी विधि में फ़ासिद होगा परंतु सिया विधि में यदि यह जानकारी होते हुए निकाह किया जाय तो निकाह वातिल (शून्य) होगा। Iddat अवधि के दौरान पति भी दूसरा निकाह नही कर सकता है। उससे पहले पत्नि को भरण – पोषण करना होता है। Iddat महिला को तलाक के बाद या पति की मृत्यु के बाद रखनी चाहिए।

हालांकि दोनों स्तुतियों के लिए समय अवधि अलग – अलग हो सकती है। मृत्यु के मामले में विधवा को 4 महीने और 10 दिन के लिए इद्दत का पालन करना होगा। लेकिन यदि महिला गर्भवती  है तो उसे बच्चे के जन्म तक इद्दत को बनाये रखना होगा।

पति की मृत्यु के मामले में पत्नि को अनिवार्य रूप से Iddat  का पालन करना चाहिए। हालांकि, यदि विवाह संपन्न नही हुआ है। तो उसे तलाक के मामलो में इद्दत का पालन करने की आवश्यकता नही है। यदि विवाह संपन्न हो गया है तो 3 महीने तक इद्दत का पालन करना चाहिए।

यदि वह गर्भवती पायी जाती है। तो उसे बच्चे के जन्म तक Iddat का पालन करना चाहिए। Iddat की अवधि पति की मृत्यु के मामले मृत्यु के तुरंत बाद शुरू होती है। तलाक के मामलों में Iddat की अवधि तलाक की घोषणा पर शुरू होती है।

इससे से गुजरने वाली महिला से विवाह मुस्लिम कानून के तहत एक अनियमित या फसीद विवाह माना जाता है। पति को इद्दत की अवधि के दौरान पत्नि का  भरण – पोषण करना चाहिए। विवाह विच्छेद होने  पर मेहर का निपटारा करना चाहिए। तलाकशुदा पत्नि को तत्काल मेहर या आस्थगित मेहर का पूरा भुगतान किया जाना चाहिए। इसके अलावा पति 5वीं से तब तक शादी नही कर सकता जब तक की चौथी पत्नि की शादी पूरी तरह से और अपरिवर्तनीय रूप से भंग न हो जाए।

यदि कोई और Iddat के बाद विधवा से शादी करना चाहता है तो उसके इरादे शुरू से ही स्पष्ट होने चाहिए। इसकी इद्दत के दौरान कोई गुप्त प्रतिवद्धता या समाप्ति होना चाहिये। यह अनिवार्य है कि महिला इद्दत का पालन उस स्थान पर करे, जहां वह अपने पति की मृत्यु के समय या उसके विवाह के विघटन के समय रहती थी|

यदि महिला अपने पति की मृत्यु की खबर मिलने पर तीर्थ यात्रा पर है। तो उसे तुरंत पति के निवास स्थान पर लौटना चाहिए। इद्दत का पालन करना चाहिए यदि वह अपने पति की मृत्यु के दौरान अपने माता – पिता के घर पर है। तो जल्दी से जल्दी अपनी इद्दत पालन करने के लिए लौटना चाहिए।

इद्दत का पालन करते समय क्या नहीं करना चाहिये :-

एक महिला को Iddat का पालन करते समय नहीं करना चाहिये इसमें शामिल हैं –

👉 इस दौरान मेकअप करना मना ।

👉 फैंसी या रेशमी कपड़े मना ।

👉 इस समय के दौरान अकेले घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है जब तक की यह एक चिकित्सा आपत्ति न हो। जिसे घर पर ठीक नही किया जा सकता हो।

👉 शोक करने के लिए उसे अनिवार्य रूप से अपने पति और खुद के लिए अल्लाह से प्रार्थना करनी चाहिए।

👉 महिला किसी भी अंतिम संस्कार में शामिल नही हो सकती है।

केस – एस. के. बसीर बनाम पश्चिम बंगाल

में विद्वान सत्र न्यायधीश, हावड़ा का अवलोकन यह हुआ। की इद्दत अवधि के दौरान भरण- पोषण का भुगतान याचिकाकर्ता द्वारा किया गया था। जो इस याचिकाकर्ता की तलाकशुदा पत्नी थी। धारा 11 से पता चलता है की इद्दत अवधि में तलाक की तारीख के बाद तीन मासिक धर्म  होते हैं। यदि वह मासिक धर्म के अधीन है।

केस- मज़ीद बनाम अफिरा 

इसमें अधिनियम की धारा 3 के तहत न्यायालय द्वारा उचित प्रावधान के रूप में तय की गयी राशि को आवश्यक रूप से कवर करना होगा।

केस – मोनिका गोयल बनाम पंजाब राज्य
ये बात भी महत्व पूर्ण है जो 2017 में पंजाब हाइकोर्ट में आया था। इस अवधि के दौरान पत्नि किसी भी कारण से परिसर नही छोड़ सकती है। खासकर अगर उसे वो सब कुछ प्रदान किया जाता है जो जीने के लिए आवश्यक होता है।

यदि हम अंत में देखें तो–Iddat दो वजहों से वाजिब है।

(1) शौहर की मौत की वजह से।

(2) तलाक या खुलह की वजह से।

संदर्भ :-

1.https://hi.wikipedia.org/wiki/

2. muslim law – Paras Diwan